होम > Daily-current-affairs

Daily-current-affairs / 01 Feb 2025

पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) योजना: भारतीय नौकरशाही में एक विवादास्पद सुधार

image

सन्दर्भ: भारत सरकार द्वारा  नौकरशाही में विशेषज्ञ प्रतिभाओं को शामिल करने के उद्देश्य से 2018 में शुरू की गई पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) योजना अपनी शुरुआत से ही व्यापक बहस और आलोचनाओं के केंद्र में रही है। इस योजना के तहत, पारंपरिक सिविल सेवा भर्ती प्रक्रिया से इतर बाहरी क्षेत्रों से संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे वरिष्ठ पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।

·        इस पहल का मूल उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में विशेषज्ञता की कमी को दूर करना और नीति-निर्माण की प्रभावशीलता को बढ़ाना था। हालांकि, इस योजना को कई राजनीतिक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।  यह निबंध पार्श्व प्रवेश योजना की पृष्ठभूमि, इसके राजनीतिक और कानूनी विवादों तथा भारतीय नौकरशाही में इसके प्रभावों का विश्लेषण करता है।

ऐतिहासिक संदर्भ और पार्श्व प्रवेश की शुरुआत :

पार्श्व प्रवेश योजना को भारतीय नौकरशाही में लंबे समय से चली रही एक समस्या को हल करने के लिए पेश किया गया था: प्रमुख प्रशासनिक क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले कुशल कर्मियों की कमी। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के माध्यम से पारंपरिक भर्ती प्रणाली, प्रशासनिक अधिकारियों को तैयार करने में सक्षम तो है, लेकिन यह अक्सर आधुनिक शासन की जटिलताओं को हल करने के लिए आवश्यक विषय-विशेषज्ञता से रहित होती है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति जैसे तकनीकी क्षेत्रों में।

  • इस योजना को नीति आयोग की सिफारिशों के आधार पर शुरू किया गया था, जिसमें वरिष्ठ नौकरशाही स्तर पर विषय-विशेषज्ञता की आवश्यकता पर बल दिया गया था। नीति आयोग ने तर्क दिया कि भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक लचीला बनाने की जरूरत है, ताकि देश के समक्ष आने वाली जटिल चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
  • इस पहल की आवश्यकता तब महसूस की गई, जब यह स्पष्ट हुआ कि पारंपरिक भर्ती प्रक्रिया, विशेष रूप से यूपीएससी परीक्षा, उन उम्मीदवारों को पर्याप्त रूप से आकर्षित नहीं कर पा रही थी, जो आर्थिक नीति, डिजिटल प्रशासन, जलवायु परिवर्तन  जैसे जटिल शासन संबंधी मुद्दों को संभालने के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल रखते हों।
  • पार्श्व प्रवेश योजना का उद्देश्य प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, अर्थशास्त्र और विधि (लॉ) जैसे क्षेत्रों के विषय-विशेषज्ञों की भर्ती करना था। इन विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया जाना था, जो नीति-निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं

योजना का उद्देश्य और संरचना :

इस पहल का मुख्य उद्देश्य वरिष्ठ सरकारी पदों के लिए प्रतिभा पूल का विस्तार करना था, ताकि निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSU) और शैक्षणिक संस्थानों जैसे क्षेत्रों से विषय-विशेषज्ञता प्राप्त की जा सके इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक आईएएस कैडर को प्रतिस्थापित करना नहीं, बल्कि इसे विशिष्ट ज्ञान और कौशल के साथ पूरक बनाना था।

·        इस योजना के तहत मुख्य रूप से संयुक्त सचिव पद पर नियुक्तियाँ की जाती हैं, जो भारतीय नौकरशाही में उच्चतम रैंकिंग वाले अधिकारियों में से एक होते हैं। ये अधिकारी राष्ट्रीय स्तर पर नीति-निर्माण और उसके कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस योजना का उद्देश्य विशेषज्ञों को शामिल कर शासन की समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाना था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ गहन तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।

·        सरकार विभिन्न क्षेत्रों से पेशेवरों को लाकर नीति-निर्माण में नई सोच और दृष्टिकोण को शामिल करना चाहती थी। यह पहल वरिष्ठ प्रशासनिक स्तरों पर कुशल कर्मियों की कमी को दूर करने और शासन की उभरती जरूरतों को पूरा करने में सरकार को अधिक सक्षम बनाने के लिए भी थी।

विरोध और कानूनी चुनौतियाँ:

इस योजना को लेकर सबसे बड़ा विवाद यह रहा है कि इसमें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण प्रावधान नहीं हैं। इसने सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और संवैधानिक अखंडता पर बहस छेड़ दी है।

  • विपक्षी दलों ने इस योजना की कड़ी आलोचना यह तर्क देते हुए की है, कि यह संविधान में निहित आरक्षण नीति को कमजोर कर रही है। आलोचकों का मानना है कि यह योजना हाशिए पर मौजूद समुदायों को उच्च-स्तरीय प्रशासनिक भूमिकाओं से बाहर कर देती है और विशेषाधिकार प्राप्त समूहों के हाथों में शक्ति केंद्रित करने का एक प्रयास है।
  • अगस्त 2024 में नियुक्तियों के पाँचवें दौर के दौरान यह विवाद और अधिक गहरा गया, जब विपक्षी नेताओं ने इस योजना की भेदभावपूर्ण प्रकृति पर सवाल उठाए। उनका तर्क था कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उम्मीदवारों को अवसरों से वंचित करके सरकार समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर कर रही है।

इसके अतिरिक्त, पार्श्व प्रवेश योजना को कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। कुछ याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह योजना संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन करती है, जो यह अनिवार्य करता है कि स्थायी सिविल सेवाओं की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के माध्यम से होनी चाहिए और इसे वैधानिक नियमों का पालन करना चाहिए।

·         केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में दायर मामला 2020 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय को सौंपा गया और बाद में 2022 में इसे सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि स्थायी पदों पर अनुबंध के आधार पर भर्ती करना असंवैधानिक है।

·         यह कानूनी चुनौती भारतीय संविधान के अनुच्छेद 309 और 310 की व्याख्या पर केंद्रित है, जो सिविल सेवकों की भर्ती और कार्यकाल को नियंत्रित करते हैं। अनुच्छेद 310 राष्ट्रपति को सिविल सेवाओं में नियुक्ति करने का अधिकार देता है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर पार्श्व प्रवेश के माध्यम से स्थायी पदों पर भर्ती को स्पष्ट रूप से अधिकृत नहीं करता है।

राजनीतिक बहस: आरक्षण और प्रतिनिधित्व

हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए आरक्षण की अनुपस्थिति एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गई है। सरकार इस योजना का बचाव करते हुए तर्क देती है कि पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) विशेषज्ञों को शामिल करने का एक तरीका है, ताकि उन जटिल मुद्दों का समाधान किया जा सके जहाँ मौजूदा सिविल सेवा में विशेषज्ञता की कमी हो सकती है। सरकार का दावा है कि ये विशिष्ट पद पारंपरिक सिविल सेवाओं का स्थान लेने के लिए नहीं हैं, बल्कि डिजिटल प्रशासन, अर्थशास्त्र और नीतिगत विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में शासन को बेहतर बनाने के लिए हैं।

  • आलोचकों का तर्क है कि आरक्षण को दरकिनार करना संविधान की उस भावना के खिलाफ है, जो हाशिए पर मौजूद समुदायों को समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी। विपक्ष का मानना है कि यह योजना विशिष्ट वर्ग के प्रभुत्व को बढ़ावा देती है और सत्ता के उच्च पदों पर पहले से ही कम प्रतिनिधित्व प्राप्त समूहों के साथ भेदभाव करती है।
  • कुछ सरकारी सहयोगियों ने भी कोटा होने को लेकर चिंता जताई है इन दलों का मानना है कि यह योजना सिविल सेवाओं में वंचित समूहों के लिए संवैधानिक रूप से सुनिश्चित समान प्रतिनिधित्व के अधिकार का उल्लंघन करती है

आलोचनाओं पर सरकार की प्रतिक्रिया:

सरकार का तर्क है कि पार्श्व प्रवेश योजना एक आवश्यक सुधार है, जिसका उद्देश्य शासन की दक्षता को बढ़ाना है। इसके तहत विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है, जो नई सोच और नवाचारपरक समाधान ला सकते हैं। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस पहल का बचाव करते हुए कहा है कि ये पद अनुबंध आधारित हैं और स्थायी नौकरशाही का हिस्सा नहीं माने जाते, इसलिए आरक्षण की नीति यहां लागू नहीं होती।

  • सरकार ने यह स्पष्ट किया कि पार्श्व प्रवेश के माध्यम से नियुक्त अधिकारी निश्चित अवधि के अनुबंध पर होते हैं, जो प्रतिनियुक्ति (Deputation) की तरह होते हैं, जहाँ आरक्षण नीति लागू नहीं होती।
  • DoPT ने यह भी आश्वासन दिया कि यदि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के पात्र उम्मीदवार चयन मानदंडों को पूरा करते हैं, तो उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी।

नौकरशाही सुधारों के लिए प्रभाव:

पार्श्व प्रवेश योजना की शुरुआत ने भारत की नौकरशाही में सुधार की आवश्यकता पर व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। यह योजना सरकार में विशिष्ट ज्ञान को शामिल करने का अवसर प्रदान करती है, लेकिन साथ ही यह प्रतिनिधित्व और हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए अवसरों की उपलब्धता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाती है।

  • एक ओर, पार्श्व प्रवेश सरकार को उन विशेषज्ञों की सेवाएँ लेने की अनुमति देता है, जो पारंपरिक सिविल सेवा माध्यमों से उपलब्ध नहीं हो सकते। इससे शासन की दक्षता में सुधार हो सकता है और सरकार को विशिष्ट कौशल के साथ उभरती चुनौतियों का सामना करने में सहायता मिल सकती है।
  • दूसरी ओर, आरक्षण की अनुपस्थिति समावेशिता के सिद्धांत को खतरे में डाल सकती है और इससे कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों को प्रमुख प्रशासनिक भूमिकाओं से बाहर किया जा सकता है। यदि इस योजना का विस्तार किया जाता है, तो विशेषज्ञता के साथ-साथ समानता सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण होगा।

 

मुख्य प्रश्न: "भारतीय नौकरशाही में पार्श्व प्रवेश योजना ने सामाजिक न्याय और सिविल सेवाओं के भविष्य को लेकर बहस छेड़ दी है। भारतीय प्रशासनिक सुधारों के संदर्भ में इस योजना के लाभों और चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।"