सन्दर्भ:
हाल ही में, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की राज्य सरकारों ने, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के सहयोग से, निर्माण गतिविधियों के लिए लगभग 10,000 कुशल श्रमिकों को इज़राइल भेजने हेतु भर्ती प्रक्रिया शुरू की है। राज्य सरकारों के इस श्रमिक भर्ती प्रक्रिया ने कई विवादों को जन्म दिया है और ट्रेड यूनियनों ने भी इसका विरोध किया है। परिणामतः भारतीय श्रमिकों की नियुक्ति को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही है। यह लेख श्रमिक भर्ती के कारणों, ट्रेड यूनियनों द्वारा उठाई गई आपत्तियों, सरकार के रुख, अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के अनुपालन और वैश्विक प्रवासन प्रवृत्तियों के व्यापक संदर्भ पर प्रकाश डालता है।
क्या आप जानते हैं?
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भर्ती अभियान और विवाद
- एनएसडीसी, अपनी वेबसाइट के माध्यम से, इस उपर्युक्त वर्णित अवसर को "विदेश में सपनों के पासपोर्ट" के रूप में चिन्हित करता है। साथ ही साथ कुशल श्रमिकों को "इज़राइल में नए अवसर की खोज" करने का अवसर भी प्रदान करता है। इस भर्ती अभियान में प्लास्टरिंग श्रमिकों, सिरेमिक टाइल श्रमिकों, लोहे के कार्यों से जुड़े श्रमिकों सहित निर्माण कार्य की विशिष्ट भूमिकाओं में लगे श्रमिकों को लक्षित किया गया है। इनका मासिक वेतन लगभग 1.37 लाख रुपये (6,100 Israeli shekels) निर्धारित है। इसके लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारों के सहयोग से विभिन्न स्थानों पर श्रमिक भर्तियों के लिए स्क्रीनिंग शुरू हो गई है।
ट्रेड यूनियनों का विरोध
- ट्रेड यूनियनों ने उत्प्रवास अधिनियम, 1983 और 2019 के तहत उत्प्रवास नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए इस पहल का विरोध किया है। उनका तर्क है कि इज़राइल जिसे संघर्ष क्षेत्रों में भारतीय श्रमिकों की तैनाती अपने नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के भारतीय लोकाचार के विपरीत है। यह आरोप भी लगाए गए हैं कि वर्तमान सरकार अपने राजनीतिक हितों को मजबूत करने एवं इज़राइल के साथ गठबंधन करने के लिए बेरोजगारी के मुद्दों का लाभ ले रही है। इसे कुछ लोग "नफरत की राजनीति" द्वारा संचालित मानते हैं। विभिन्न आपत्तियों के बावजूद, स्क्रीनिंग केंद्रों पर लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है, जो इस मामले पर सार्वभौमिक कल्याण की भावना का संकेतक हैं।
उत्प्रवास नियम और अनुपालन
- उत्प्रवास अधिनियम के नियमों के अनुसार, संघर्ष क्षेत्रों या पर्याप्त श्रम सुरक्षा की कमी वाले स्थानों पर जाने वाले श्रमिकों को विदेश मंत्रालय के 'ई-माइग्रेट' पोर्टल पर पंजीकरण करना आवश्यक है। हालाँकि इज़राइल उत्प्रवास जांच आवश्यक (ईसीआर) योजना के अंतर्गत आने वाले देशों की सूची में नहीं है, जबकि अफगानिस्तान, बहरीन, इराक, जॉर्डन और अन्य जैसे देश शामिल हैं। इसीलिए इज़राइल के न्द्र्भ में यह भर्ती प्रक्रिया 'ई-माइग्रेट' प्रणाली को दरकिनार कर देती है, जिससे इस क्षेत्र में श्रमिकों के लिए सुरक्षा को लेकर में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- उत्प्रवास नियम यह भी निर्धारित करते हैं, कि भर्ती एजेंट श्रमिकों से ₹30,000 से अधिक का सेवा शुल्क नहीं ले सकते। यद्यपि, इस मामले में, श्रमिकों से एनएसडीसी को शुल्क का भुगतान करने और उड़ान टिकट जैसे खर्चों को कवर करने की उम्मीद की जाती है, जो लगभग ₹1 लाख है। ट्रेड यूनियनों का तर्क है कि संघर्ष क्षेत्र में सरकार द्वारा सहायता प्राप्त इस तरह की भुगतान वाली भर्ती, उत्प्रवास अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
- उक्त बातों के अतिरिक्त रक्षा के मामले में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इजराइल के श्रम मानकों पर संतोष जताया है। इज़राइल को आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) देश बताते हुए उन्होंने इज़राइल के श्रम कानूनों की मजबूती और सख्ती को रेखांकित किया और कहा कि वे प्रवासी श्रमिक अधिकारों के लिए सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस सन्दर्भ में सरकार विदेशों में काम करने वाले भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक और प्रथाएँ:
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के दो सम्मेलनों द्वारा निर्देशित है: रोजगार के लिए प्रवासन सम्मेलन (संशोधित), 1949 (क्रमांक 97), और प्रवासी श्रमिक (अनुपूरक प्रावधान) सम्मेलन, 1975 ( क्रमांक 143)। यद्यपि भारत ने इन सम्मेलनों का अनुमोदन नहीं किया है और इज़राइल ने 1949 के सम्मेलन का वर्ष 1953 में अनुमोदन किया है।
- वर्ष 1949 का कन्वेंशन सदस्य देशों की उत्प्रवासन और आप्रवासन से संबंधित भ्रामक प्रचार के विरोध में उचित कार्रवाई पर बल देता है। इस समय चल रहे संघर्ष को देखते हुए इज़राइल में भारतीय श्रमिकों की तैनाती से जुड़े विवाद इन अंतरराष्ट्रीय मानकों के पालन पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं। इज़राइल रक्षा बलों के प्रवक्ता, डोरोन स्पीलमैन, हमास के साथ संघर्ष के कारण भी इज़राइल में सुरक्षा की कमी को उजागर करते हैं।
- एक अन्य अनुमान के अनुसार गाजा में अपनी जान गंवाने वाले लगभग 100 व्यक्ति एशियाई और अफ्रीकी देशों के प्रवासी श्रमिक थे। भारतीय दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, फरवरी 2023 तक, इज़राइल में लगभग 18,000 भारतीय नागरिक थे, जो स्वास्थ्य देखभाल करने वालों, हीरा व्यापारियों, आईटी पेशेवरों और अध्ययन-अध्यापन जैसे विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित थे।
○ नोट: ILO द्वारा तैयार की गई 2017 की रिपोर्ट पिछले दो दशकों में अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देती है, जिसमें एशिया से अरब राज्यों में प्रवासियों की संख्या 1990 में 5.7 मिलियन से तीन गुना से अधिक होकर 2015 में 19 मिलियन हो गई है।
भविष की रणनीति:
- ILO की 'विश्व रोजगार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024' रिपोर्ट में इस वर्ष के लिए बेरोजगारी दर में वैश्विक वृद्धि की भविष्यवाणी की गई है, हालाँकि महामारी से पहले के स्तर की तुलना में बेरोजगारी और नौकरियों के अंतर में सुधार हुआ है। यह रिपोर्ट बढ़ती सामाजिक असमानताओं की लगातार चुनौती पर भी प्रकाश डालती है। 2030 के बाद कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होने वाले जनसांख्यिकीय परिवर्तन को स्वीकार करते हुए, रिपोर्ट इन देशों के लिए उपयुक्त प्रवासन नीतियों और विशिष्ट कौशल पहल विकसित करने की आवश्यकता पर जोर देती है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य बढ़ती जन आबादी के प्रत्युत्तर में स्थानीय श्रम बाजारों का समर्थन करना और उन्हें विकसित करना है।
- रिपोर्ट यह भी बताती है, कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए गंतव्य देशों में व्यवसायों और क्षेत्रों द्वारा श्रम मांग के सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता है। यह अतिरिक्त श्रम संसाधनों वाले देशों में शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणालियों को सशक्तिकरण के महत्व को रेखांकित करता है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया है, कि ऐसा करने से देश जनसांख्यिकीय बदलावों को लक्ष्यित कर अपनी बढ़ती जन आबादी का समर्थन करने के लिए खुद को बेहतर ढंग से तैयार कर सकें।
- वर्ष 2019 में, सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में विदेश मामलों की संसद की स्थायी समिति ने केंद्र से प्रवासन नीति बनाने का आग्रह किया था। समिति ने अपर्याप्त डेटा बुनियादी ढांचे को एक प्रमुख कारण बताते हुए भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए मौजूदा संस्थागत व्यवस्थाओं को रेखंकित किया। प्रवासन नीति का यह आह्वान ILO की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसमें वैश्विक बेरोजगारी प्रवृत्तियों और जनसांख्यिकीय बदलावों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत- द हिंदू