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Daily-current-affairs / 09 Mar 2024

हिन्द-प्रशांत गतिशीलता- ग्रीस का रणनीतिक विकास और क्षेत्रीय प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -

हालिया समय में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीतिक गतिशीलता वैश्विक आकर्षण का केंद्र रही है, इस सन्दर्भ में विभिन्न राष्ट्रों और गठबंधनों ने इसके महत्व पर बल दिया है। ग्रीस, जो पारंपरिक रूप से तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शामिल नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में इसकी रुचि बढ़ती दिख रही है। ग्रीस की रणनीतिक और वाणिज्यिक क्षमताओं के साथ-साथ ग्रीस और भारत के बीच हाल के आदान-प्रदान, हिंद-प्रशांत रणनीतियों में महत्वपूर्ण योगदान करने की इसकी क्षमता को दर्शाते हैं। यह परिवर्तन केवल ग्रीस की भू-राजनीतिक स्थिति के लिए बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और संपर्क के लिए भी आवश्यक है।

ग्रीस के साथ भारत के संबंध

ऐतिहासिक संबंधः
यूनान के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध 2500 वर्षों से अधिक पुराने है, यह सम्बन्ध  चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सिकंदर महान के अभियान से पहले के हैं। अशोक के शिलालेखों में दोनों देशों के बीच राजनयिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों का उल्लेख किया गया है। मौर्य राजाओं और यूनान के बीच व्यापार के प्रमाण सिक्कों और लेखन में पाए जाते हैं। चाणक्य ने चंद्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नामक एक यवन राजदूत की उपस्थिति का वर्णन किया है। भारतीय और यूनानी दोनों संस्कृतियों से प्रभावित फलती-फूलती गांधार कला इनके प्राचीन संबंधों का प्रमाण है।
व्यापारिक संबंधः
भारत और ग्रीस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022-23 में 2 अरब डॉलर तक पहुंच गया। भारत मुख्य रूप से ग्रीस को एल्यूमीनियम, जैविक रसायन, मछली और क्रस्टेशियन, लोहा और इस्पात का निर्यात करता है, जबकि ग्रीस भारत को खनिज तेल और इससे निर्मित  उत्पादों, सल्फर, 'एल्यूमीनियम फोएल' आदि का निर्यात करता है। 84वें थेसालोनिकी अंतर्राष्ट्रीय मेला (टीआईएफ) 2019 में 'सम्मानित देश' के रूप में भारत की भागीदारी ने दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक जुड़ाव की गहराई को प्रदर्शित किया है।
राजनीतिक संबंधः
भारत और ग्रीस के बीच राजनयिक संबंध मई 1950 में स्थापित हुए थे, उसी वर्ष ग्रीस ने दिल्ली में अपना दूतावास खोला, जिसके बाद भारत ने 1978 में एथेंस में अपना दूतावास खोला। दोनों देशों ने कश्मीर और साइप्रस सहित मुख्य राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर लगातार एक-दूसरे का समर्थन किया है। ग्रीस भारत के स्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के विस्तार की भी वकालत करता है।
रक्षा संबंधः
सैन्य प्रशिक्षण, संयुक्त अभ्यास और रक्षा उद्योग सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत और ग्रीस के बीच रक्षा सहयोग 1998 में तेज होना शुरू हुआ था। एक्सर्साइज आईएनआईओसीएचओएस-23 में भारत की भागीदारी दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने का प्रतीक है।
सांस्कृतिक आदान-प्रदानः
ग्रीक इंडोलॉजिस्ट दिमित्रिओस गालानोस ने भारत में हिंदू ग्रंथों का ग्रीक में अनुवाद करके और एक संस्कृत-अंग्रेजी-यूनानी शब्दकोश का संकलन करके महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सितंबर 2000 में नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हेलेनिक अध्ययन के लिए "दिमित्रिओस गैलानोस" पीठ की स्थापना सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और मजबूत करती है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद यूनानी छात्रों को भारत में अध्ययन करने के लिए वार्षिक छात्रवृत्ति प्रदान करती है, जिससे सांस्कृतिक समझ और अकादमिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है। एक प्रतिष्ठित ग्रीक इंडोलॉजिस्ट प्रो. निकोलस कज़ानास को 2021 में भारत द्वारा प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो आपसी सांस्कृतिक उपलब्धियों को दर्शाता है।

हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में यूनान की विकसित होती रुचिः
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ ग्रीस का हालिया जुड़ाव इसकी पारंपरिक नीतियों से प्रस्थान का प्रतीक है। यूरोपीय संघ के देशों में ग्रीस की तटरेखा सबसे लंबी है, जो इसके समुद्री महत्त्व को दर्शाती है। विगत हो कि ग्रीस विश्व के सबसे बड़े जहाज-निर्माता देशों में से एक है। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा पहलों में इसकी सक्रिय भागीदारी और यूरोपीय संघ के समुद्री सुरक्षा एजेंडे को आकार देने में सहायक भूमिका इसके विकसित रणनीतिक दृष्टिकोण को रेखांकित करती है।
इसके अलावा, हाल के आधुनिकीकरण के प्रयासों से ग्रीस के नौसैनिक शक्ति में तीव्र वृद्धि हुई है, यह समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। फ्रांस से अत्याधुनिक युद्धपोतों की खरीद और इसके बढ़ते नौसैनिक बेड़े से उभरती क्षेत्रीय गतिशीलता के साथ संरेखण में अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के ग्रीस के इरादे का पता चलता है।
भारत-ग्रीस रणनीतिक साझेदारीः
ग्रीस के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी क्षेत्रीय सुरक्षा और संपर्क में आपसी हितों को रेखांकित करती है। प्रधानमंत्री मोदी की ग्रीस यात्रा और उसके बाद के संवादों ने एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत के लिए साझा दृष्टिकोण पर बल दिया है। भारत के प्रमुख सम्मेलन, रायसीना डायलॉग में ग्रीस की भागीदारी, द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करती है, जिससे इस क्षेत्र में ग्रीस की रणनीतिक उपस्थिति बढ़ी है।
इसके अलावा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वायु सेना और नौसेना को तैनात करने का ग्रीस ने इरादा व्यक्त किया है जो क्वाड ढांचे के भीतर भारत की सुरक्षा अनिवार्यताओं के अनुरूप है। ग्रीस का रणनीतिक जुड़ाव भारत की सुरक्षा धारणाओं और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाता है, विशेष रूप से सत्तावादी शासनों की बढ़ती मुखरता के बीच के सन्दर्भ में यह अधिक स्पष्ट है।
क्षेत्रीय गतिशीलता में ग्रीस की भूमिकाः
विकासशील क्षेत्रीय गतिशीलता के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ग्रीस की रणनीतिक स्थिति अधिक महत्वपूर्ण है। यूरोपीय संघ के लाल सागर मिशन के मेजबान देश के रूप में और रणनीतिक रूप से स्थित परिचालन कमान केंद्रों के साथ, ग्रीस यूरोप और एशिया को जोड़ने वाले एक प्रमुख देश के रूप में उभरा है। हिंद-प्रशांत में इसके प्रभाव का विस्तार क्षेत्रीय संपर्क एजेंडा में योगदान देने की इसकी इच्छा से उपजा है।
इसके अलावा, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के लिए ग्रीस का प्रयास क्षेत्रीय संपर्क ढांचे को आकार देने में इसकी सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है। अपनी समुद्री क्षमताओं और रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठाकर, ग्रीस का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
चुनौतियां और भू-रणनीतिक विचारः
तुर्की का मुखर रुख और क्षेत्रीय विवाद ग्रीस की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के लिए चुनौतियां पैदा करते हैं। बढ़ती नौसैनिक शक्ति और क्षेत्रीय उल्लंघनों के साथ, तुर्की ग्रीस के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चिंता के रूप में उभरा है। इसके अलावा, तुर्की का भारत विरोधी रुख और क्षेत्रीय विवादों में हस्तक्षेप भू-राजनीतिक तनाव को रेखांकित करता है, जिससे ग्रीस से रणनीतिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
तुर्की द्वारा ग्रीस के क्षेत्रीय जल और द्वीपों पर संप्रभुता को चुनौती देने की संभावना क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा देती है। बढ़ती भू-रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बीच अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए ग्रीस के सैन्य और राजनीतिक उपाय अनिवार्य हो जाते हैं।
निष्कर्ष
अंत में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ग्रीस की बढ़ती रुचि उसके भू-राजनीतिक दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव का संकेत देती है। अपनी समुद्री क्षमताओं और रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठाकर, ग्रीस क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने और संपर्क एजेंडा को बढ़ावा देने में एक प्रमुख देश के रूप में उभरा है। भारत के साथ इसकी रणनीतिक साझेदारी और क्षेत्रीय पहलों में सक्रिय भागीदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बढ़ाने के लिए इसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
हालाँकि, पड़ोसी राज्यों, विशेष रूप से तुर्की द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के लिए ग्रीस की क्षेत्रीय अखंडता और भू-राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए मजबूत प्रतिक्रिया और राजनयिक जुड़ाव की आवश्यकता है। हिंद-प्रशांत रणनीतियों में ग्रीस की भागीदारी के लिए भारत का समर्थन द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा अनिवार्यताओं को मजबूत करता है।
कुल मिलाकर, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ग्रीस की सक्रिय भागीदारी इसकी रणनीतिक आकांक्षाओं को दर्शाती है और वैश्विक भू-राजनीति में इस क्षेत्र के बढ़ते महत्व को रेखांकित करती है। सहयोगात्मक प्रयासों और रणनीतिक गठबंधनों के माध्यम से, ग्रीस का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास और समुद्री सुरक्षा में सार्थक योगदान देना है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. ग्रीस की ऐतिहासिक समुद्री ताकत और हाल के नौसैनिक आधुनिकीकरण के प्रयास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इसकी विकसित भूमिका में कैसे योगदान करते हैं? ( 10 Marks, 150 Words)
  2. तुर्की के साथ ग्रीस के संबंधों के विषय में सामने भू-राजनीतिक चुनौतियां और विचार क्या हैं, स्पष्ट करें। ये कारक इसकी हिंद-प्रशांत रणनीति को कैसे प्रभावित करते हैं? ( 15 Marks, 250 Words)

Source- Indian Foundation