संदर्भ:
हाल ही में इस्लामाबाद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2024 अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में उभरा, जिसमें प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियाँ विभिन्न भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का हल निकालने के लिए एकत्रित हुईं। सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों का प्रभाव व्यापक है, जोकि वैश्विक जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सम्मेलन क्षेत्रीय सहयोग की उभरती गतिशीलता को भी उजागर करता है।
· भारत ने एक प्रमुख भागीदार के रूप में बहुपक्षीय तंत्र के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने और सहयोग को प्रोत्साहित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा, बहुपक्षवाद और आर्थिक एकीकरण की आवश्यकता पर चर्चा की गई, जोकि संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के लिए एससीओ सदस्य देशों की साझा आकांक्षाओं को दर्शाती है।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के बारे में:
· एससीओ की उत्पत्ति 1996 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान द्वारा गठित "शंघाई फाइव" में निहित है। इस समूह का गठन 1991 में यूएसएसआर के विघटन के बाद क्षेत्र में सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए किया गया, जिसमें चरमपंथी धार्मिक समूहों और जातीय तनावों के प्रति चिंताएँ शामिल थीं।
· एससीओ की औपचारिक स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी, जिसमें उज्बेकिस्तान को छठा सदस्य बनाया गया था। हाल ही में बेलारूस के शामिल होने के बाद, एससीओ में अब कुल नौ सदस्य हैं: भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान। अफगानिस्तान और मंगोलिया को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
वर्तमान भू राजनीतिक परिदृश्य में एससीओ:
· सुरक्षा सहयोग: एससीओ उन कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक है, जो मुख्य रूप से अपने एशियाई सदस्यों के बीच सुरक्षा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। क्षेत्रीय शक्तियाँ, विशेषकर रूस और चीन, एससीओ को पश्चिमी-प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के विकल्प के रूप में स्थापित कर रही हैं, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ उनकी बढ़ती प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर।
· भू-राजनीतिक गतिशीलता: अपनी घोषित "असीम मित्रता" के बावजूद, चीन और रूस एससीओ के भीतर प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। मध्य एशियाई गणराज्य, जो परंपरागत रूप से रूस के प्रभाव क्षेत्र में रहे हैं, अब चीन की आर्थिक पहलों का केंद्र बन गए हैं, विशेषकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के माध्यम से।
· हालिया घटनाक्रम: 2017 में भारत और पाकिस्तान को शामिल करने से जटिल भू-राजनीतिक गतिशीलता उजागर हुई, जिसमें रूस ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया, जबकि चीन ने शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए पाकिस्तान का समर्थन किया।
· संगठन का विस्तार : एससीओ के हालिया विस्तार को रूस और चीन के साथ अमेरिका के बिगड़ते संबंधों की पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है, विशेषकर 2022 के रूस-यूक्रेन युद्ध और ट्रंप प्रशासन के दौरान शुरू हुए व्यापार तनाव के बाद।
एससीओ के भीतर चुनौतियाँ:
· सीमित परिणामों की प्राप्ति: विश्लेषकों का कहना है कि एससीओ की पहलों में अक्सर ठोस नतीजे नहीं मिलते। संगठन भारत और पाकिस्तान जैसे परस्पर विरोधी हितों वाले देशों को शामिल करता है, जिससे साझा पहलों पर सहयोग जटिल हो जाता है।
· पहलों की अस्पष्टता :एससीओ की कई पहलों में भाषा स्पष्ट नहीं है, जिससे सदस्य देश अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाते हुए केवल सतही तौर पर उनका समर्थन करते हैं। इस स्थिति से संगठन की आंतरिक संघर्षों को सुलझाने की क्षमता पर सवाल उठता है।
एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत का पक्ष के मुख्य विषय:
1. आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा का मुकाबला करना:
एससीओ के भीतर, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई भारत की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक रही है। शिखर सम्मेलन में, भारत ने एससीओ सदस्यों के बीच आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की मजबूत आवश्यकता पर जोर दिया, यह दृष्टिकोण विशेष रूप से क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसमें अफगानिस्तान और मध्य एशिया में जारी संघर्ष हैं।
· सीमा पार आतंकवाद, विशेष रूप से पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाला, भारत की सुरक्षा चिंताओं का प्रमुख केंद्र है।
2. आर्थिक एकीकरण और व्यापार को बढ़ावा देना :
भारत ने एससीओ सदस्यों के बीच सहयोग बढ़ाने की महत्वपूर्ण आर्थिक संभावनाओं को रेखांकित किया। इस चर्चा में व्यापार, ऊर्जा प्रवाह और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लाभों पर प्रकाश डाला गया जो क्षेत्रीय परिदृश्य को बदल सकते हैं।
· भारत एससीओ को मध्य एशिया के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में देखता है, जोकि ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार आकांक्षाओं के लिए आवश्यक है।
· अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) जैसी पहल एससीओ के क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के उद्देश्यों के अनुरूप हैं।
3. संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान:
शिखर सम्मेलन के दौरान संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति आपसी सम्मान का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह सिद्धांत विशेष रूप से कुछ एससीओ सदस्यों के बीच बढ़ते तनाव के उपाय के रूप शांति और स्थिरता बनाए हेतु आवश्यक है। इस विषय पर फोकस किया गया कि सहयोग में शामिल सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान होना चाहिए, जिससे क्षेत्र में मौजूद विवादों को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा सके।
4. जलवायु परिवर्तन और सतत विकास :
जलवायु कार्रवाई पर भारत का वैश्विक नेतृत्व शिखर सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण फोकस था।
· सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) जैसी पहलों पर प्रकाश डाला गया।
वैश्विक संस्थाओं के सुधार में भारत की भूमिका:
· भारत का आह्वान बहुपक्षीय सुधारों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के लिए, एससीओ शिखर सम्मेलन 2024 का एक महत्वपूर्ण पहलू था। इस सम्मेलन में वैश्विक संस्थाओं को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और प्रभावी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
· भारत ने यूएनएससी को अधिक समावेशी बनाने का समर्थन किया हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों को अधिक प्रतिनिधित्व देने के लिए। यह पहल एससीओ के अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने के व्यापक एजेंडे के अनुरूप है। भारत की इस सुधार का समर्थन वैश्विक शासन को नया रूप देने की उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
एससीओ ढांचे में व्याप्त चुनौतियाँ:
- अपनी क्षमता के बावजूद, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से आंतरिक विभाजन के मामले में। भारत और पाकिस्तान, दोनों एससीओ सदस्य, के बीच तनाव संगठन के लक्ष्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा, चीन और रूस जैसे प्रमुख देशों के अलग-अलग हित भी आम सहमति बनाने की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं।
- उदाहरण के लिए, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से मध्य एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव कभी-कभी भारत की अपनी कनेक्टिविटी आकांक्षाओं से टकराता है।
- उदाहरण के लिए, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से मध्य एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव कभी-कभी भारत की अपनी कनेक्टिविटी आकांक्षाओं से टकराता है।
- हालांकि, 2024 के शिखर सम्मेलन ने यह प्रदर्शित किया कि एससीओ क्षेत्रीय संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है। अंतर्निहित चुनौतियों के बावजूद, भारत की सक्रिय भागीदारी क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
सऊदी अरब और मिस्र जैसे देशों की एससीओ में रूचि , भारत के लिए नए साझेदारों के साथ जुड़ने का अच्छा अवसर हैं।
निष्कर्ष: बहुध्रुवीय विश्व के लिए भारत का दृष्टिकोण-
एससीओ शिखर सम्मेलन 2024 ने यूरेशियाई भू-राजनीति में भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से उजागर किया, जिसमें क्षेत्रीय सहयोग, सुरक्षा, और सतत विकास के महत्व पर विशेष जोर दिया गया। जैसे-जैसे वैश्विक व्यवस्था बहुध्रुवीयता की ओर अग्रसर हो रही है, भारत की भूमिका एससीओ में और भी अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। बहुपक्षवाद, संप्रभुता, और जलवायु कार्रवाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से, भारत इस क्षेत्र के भविष्य को आकार देने में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के महत्व पर चर्चा करें। SCO में भारत की भागीदारी उसकी विदेश नीति प्राथमिकताओं को कैसे दर्शाती है? |