सन्दर्भ:
तकनीकी प्रगति और जनसांख्यिकीय बदलावों के कारण वैश्विक श्रम बाजार में तीव्र परिवर्तन हो रहे है। 2030 तक कुशल श्रम की मांग, आपूर्ति से अधिक होने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। फिक्की-केपीएमजी के एक अध्ययन "भारतीय कार्यबल की वैश्विक गतिशीलता" के अनुसार, विश्व को 85.2 मिलियन से अधिक कुशल श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ेगा, जिससे संभावित रूप से $8.45 ट्रिलियन वार्षिक राजस्व का नुकसान होगा । यह परिदृश्य दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है, लेकिन साथ ही, यह भारत के लिए एक अवसर भी प्रदान करता है। भारत अपने कुशल कार्यबल को वैश्विक स्तर पर एक परिसंपत्ति के रूप में स्थापित कर सकता है, जिससे न केवल वैश्विक आर्थिक स्थिरता में योगदान होगा, बल्कि भारत के स्वयं के आर्थिक विकास को भी गति मिलेगी।
वैश्विक कार्यबल रुझान और क्षेत्रीय मांग:
अध्ययन के अनुसार श्रम की कमी सभी क्षेत्रों में एक समान नहीं होगी, बल्कि जनसांख्यिकीय रुझानों, औद्योगिक आवश्यकताओं और आर्थिक नीतियों के आधार पर अलग- अलग होगी। तीन प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में कार्यबल की कमी होने की सम्भावना है:
1. खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) और ऑस्ट्रेलिया - इन क्षेत्रों में विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र में श्रमिकों की उच्च मांग होगी, क्योंकि तीव्र शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास प्राथमिकता बनी हुई है।
2. यूरोप - यूरोप सेवा क्षेत्र के पेशेवरों पर अधिक निर्भर होगा, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी-संबंधी सेवाओं में।
3. सभी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की मांग - बढ़ती उम्र की आबादी और बढ़ती स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं के कारण स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र सभी क्षेत्रों में उच्च मांग में होगा। इसके अतिरिक्त, स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बिग डेटा, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स ( IoT ), ब्लॉकचेन , संसाधन दक्षता और स्थिरता में विशेषज्ञता की मांग बढ़ती रहेगी, जो भविष्य के कार्यबल परिदृश्य को आकार देगी।
वैश्विक श्रम बाज़ार में भारत का भू-राजनीतिक लाभ:
अन्य देशों के प्रवासी समुदायों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में संघर्ष करना पड़ सकता है, लेकिन भारतीय श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर मिल रहे हैं। यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी, जहां अप्रवास विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, कुशल भारतीय पेशेवरों की मांग बनी हुई है।
हालांकि, अवैध प्रवास एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिससे आर्थिक और प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। इसके लिए कानूनी प्रवासन प्रणाली को मजबूत करना आवश्यक है ताकि भारतीय श्रमिकों को शोषण से बचाया जा सके और भारत को कुशल श्रम के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित किया जा सके।
भारत का जनसांख्यिकीय लाभ:
भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन से अधिक है, जिसमें लगभग 65% लोग कामकाजी आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में हैं और 27% से अधिक 15 से 24 वर्ष के बीच के हैं। यह जनसांख्यिकीय अधिशेष (Demographic Surplus ) वैश्विक कार्यबल की कमी को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।
● दोहरा लाभ : भारत की अपेक्षाकृत युवा औसत आयु 28.4 वर्ष है, जो न केवल प्रतिस्पर्धी कार्यबल उपलब्ध कराता है, बल्कि घरेलू उपभोग के माध्यम से आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देता है।
● पूर्व की सफलताये : आईटी और बीपीओ क्षेत्रों में भारत की सफलता ने वैश्विक आर्थिक योगदान के लिए कुशल जनशक्ति का लाभ उठाने की इसकी क्षमता को प्रदर्शित किया है।
कार्यबल की गतिशीलता में बाधाएँ:
वैश्विक श्रम बाजार में बढ़ती मांग के बावजूद, विभिन्न संरचनात्मक और प्रणालीगत बाधाएँ कुशल कार्यबल की मुक्त गतिशीलता को बाधित करती हैं। प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
1. विनियामक और आव्रजन बाधाएँ:
कठोर वीज़ा प्रक्रियाएँ और कार्य परमिट नियम कुशल प्रवास के अवसरों को सीमित करते हैं। कई देशों में आप्रवासन नीतियों का कठोर होना भारतीय श्रमिकों के लिए चुनौतियाँ बढ़ा रहा है।
2. भर्ती में गड़बड़ी और मानव तस्करी:
कई प्रवासी श्रमिक शोषणकारी भर्ती प्रथाओं और अनियमित बिचौलियों का शिकार होते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान मानव तस्करी और अनैतिक भर्ती प्रथाओं से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया था।
3. नीतिगत बाधाएँ और कौशल विसंगतियाँ:
भारतीय पेशेवरों, विशेष रूप से चिकित्सा और इंजीनियरिंग क्षेत्र के श्रमिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिग्री मान्यता की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे कई उच्च-योग्यता प्राप्त भारतीय पेशेवर अल्प रोजगार या बेरोजगारी की स्थिति में पहुँच जाते हैं।
4. भाषाई और सांस्कृतिक बाधाएँ:
कई देशों में भाषा दक्षता की कमी और सांस्कृतिक अनुकूलन संबंधी चुनौतियाँ कार्यबल के एकीकरण में बाधा उत्पन्न करती हैं। इन बाधाओं के कारण उत्पादकता और दक्षता प्रभावित होती है, जिससे श्रमिकों के पेशेवर विकास में अवरोध आता है।
सरकारी पहल और नीतिगत प्रतिक्रियाएँ:
इन समस्याओं को पहचानते हुए , भारत सरकार ने कार्यबल की सुगम गतिशीलता को सुगम बनाने के लिए कई पहलों को क्रियान्वित किया है। प्रमुख हस्तक्षेपों में शामिल हैं:
● द्विपक्षीय समझौते और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) - भारत ने प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए जीसीसी देशों के साथ औपचारिक समझौते किए हैं।
● कौशल विकास कार्यक्रम - सरकार ने कार्यबल प्रशिक्षण को वैश्विक श्रम बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने को प्राथमिकता दी है । भारत-संयुक्त अरब अमीरात के संयुक्त विजन में कौशल निगम के महत्व पर प्रकाश डाला गया।
● कार्यबल समर्थन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म - भारत ने प्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से जीसीसी देशों में, धोखेबाज बिचौलियों से बचाने के लिए ऑनलाइन भर्ती प्रणाली स्थापित की है।
भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता का लाभ उठाना:
अपनी विशाल कार्यशील जनसंख्या के अनुकूलन के लिए भारत ने कई कौशल प्रशिक्षण और प्रवासन पहल शुरू की हैं :
● कौशल विकास पहल :
o कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का उद्देश्य श्रमिकों को उच्च मांग वाले कौशल में प्रशिक्षित करना है।
o राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 व्यावसायिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में एकीकृत करती है, जिससे प्रारंभिक स्तर पर कौशल विकास संभव हो सके।
● प्रवास समझौते : भारत ने इटली, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के साथ प्रवास और कौशल प्रशिक्षण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे कुशल श्रमिकों के कानूनी आवागमन में सुविधा होगी।
कार्यबल की गतिशीलता को अनुकूलित करने के लिए रणनीतिक उपाय
भारत की वैश्विक कार्यबल उपस्थिति को और मजबूत करने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
1. क्षेत्र-विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण - कार्यबल प्रशिक्षण को लक्षित भौगोलिक क्षेत्रों और उभरते उद्योगों की मांगों के अनुरूप होना चाहिए।
2. भर्ती प्रथाओं का विनियमन –श्रमिकों के शोषण और तस्करी से निपटने के लिए सख्त निगरानी तंत्र लागू किया जाना चाहिए ।
3. योग्यताओं की मान्यता - शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता पर ध्यान केंद्रित करके वैश्विक कार्यबल एकीकरण को आसान बनाया जा सकता है।
4. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करना - केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों को प्रशिक्षण कार्यक्रमों और वैश्विक रोजगार सुविधा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
5. परिपत्र प्रवासन और गतिशीलता को बढ़ावा देना - अस्थायी कार्य वीजा और गतिशील कार्यबल मॉडल को लागू करने से जनसांख्यिकीय असंतुलन को रोकने और श्रम की कमी को दूर करने में सहायता मिलेगी।
विकसित भारत का विज़न:
भारत की कार्यबल क्षमता उसकी आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2030 तक 6.5 से 9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। भारत 8.45 ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक आर्थिक क्षमता का कितना लाभ उठा सकता है, यह उसकी आर्थिक नीतियों और कार्यबल प्रबंधन की प्रभावशीलता पर निर्भर करेगा।
यदि भारत नीतिगत सुधारों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक कार्यबल नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करता है, तो वह वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है। ये प्रयास न केवल वैश्विक कार्यबल स्थिरता में योगदान देंगे, बल्कि विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। साथ ही बदलते श्रम बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप, भारत का कुशल कार्यबल वैश्विक आर्थिक विकास को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम होगा।
मुख्य प्रश्न : भारत की कार्यबल गतिशीलता इसकी आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी कारक हो सकती है। भारत के कुशल श्रम प्रवास के आर्थिक निहितार्थों और विकसित भारत की परिकल्पना में इसके योगदान का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। |