होम > Daily-current-affairs

Daily-current-affairs / 15 Jul 2024

न्यूट्रिनो प्रयोगशाला के लिए भारत की खोज : डेली न्यूज़ एनालिसिस

image

संदर्भ:

  • यदि बाधाओं से भरी भारत की न्यूट्रिनो वेधशाला (INO) कभी हकीकत बनती है, तो यह देश की सबसे बड़ी बुनियादी विज्ञान परियोजनाओं में से एक होगी। नोबेल पुरस्कार विजेता और न्यूट्रिनो शोधकर्ता ताकाकी काजिता का मानना ​​है, कि प्रस्तावित भूमिगत प्रयोगशाला अभी भी प्रायोगिक एवं प्रासंगिक है।

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला

  • भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (INO) एक प्रस्तावित कण भौतिकी अनुसंधान परियोजना है, जिसका उद्देश्य 1,200 मीटर गहरी गुफा में न्यूट्रिनो का अध्ययन करना है। न्यूट्रिनो वैसे मूलभूत कण हैं, जिन्हें विद्युत आवेश की कमी और पदार्थ के साथ न्यूनतम संपर्क के आधार पर पता लगाना मुश्किल है। इसके बावजूद, वे प्राथमिक भौतिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • तारे, सुपरनोवा, कण त्वरक और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों जैसे उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं में उत्पादित न्यूट्रिनो का अध्ययन; सामान्यतः ब्रह्मांडीय किरणों और पृष्ठभूमि विकिरण से बचने के लिए, भूमिगत निर्मित डिटेक्टरों का उपयोग करके किया जाता है। इस समय वैश्विक रूप से लगभग 20 न्यूट्रिनो डिटेक्टर मौजूद हैं, जो मुख्य रूप से दूर के तारों और आकाशगंगाओं के स्तर पर न्यूट्रिनो का निरीक्षण करते हैं।
  • INO का संचालन सात प्राथमिक और 13 सहभागी अनुसंधान संस्थानों द्वारा किया जाएगा, जिनका नेतृत्व टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज (IIMSc) करेंगे।  वर्ष 2005 में परिकल्पित इस परियोजना को वर्ष 2009 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से शुरुआती प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इस साइट को बॉडी वेस्ट हिल्स में बदल दिया गया। लेकिन वर्ष 2015 में 1,500 करोड़ रुपये के पुनः वित्तपोषण के साथ स्वीकृत, INO में अब प्रयोग के लिए 50 किलोटन का एक चुंबक होगा, जो दुनिया का सबसे बड़ा चुंबक होगा। जापान और भारत के न्यूट्रिनो अनुसंधान के बीच व्याप्त समानताएं और विरोधाभास; न्यूट्रिनो अनुसंधान की सहायता से ब्रह्मांड में पदार्थ की उत्पत्ति के बारे में हमारी समझ के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। लगभग 60 वर्ष पहले, कर्नाटक के कोलार में एक सोने की खान के अंदर ऐतिहासिक विज्ञान प्रयोगों ने भारतीय, जापानी और यह उल्लेखनीय है, कि ब्रिटिश वैज्ञानिकों के बीच सहयोग के माध्यम से वर्ष 1965 में वायुमंडलीय न्यूट्रिनो की खोज की। इसके बाद न्यूट्रिनो अनुसंधान की क्षमता के प्रति जागरूक होकर, जापान ने माउंट इकेनो के नीचे स्थित भूमिगत कामिओका वेधशाला में अपनी मिट्टी के नीचे प्रयोग जारी रखा। यहीं पर एक टीम ने 1980 के दशक के अंत में ब्रह्मांडीय न्यूट्रिनो की खोज की थी।  इसके बाद, जापान ने एक समर्पित न्यूट्रिनो वेधशाला, सुपर-कामीओकांडे की स्थापना की, जिसका संचालन 1996 में शुरू हुआ। इस संदर्भ में वर्ष 2002 में, एक शोधकर्ता ने अपने योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार जीता।

भारत की न्यूट्रिनो वेधशाला की अनिश्चित यात्रा

  • भारतीय वैज्ञानिकों का इस प्रयोग से पीछे रहने का कोई इरादा नहीं था। हालाँकि इस संदर्भ में मूल प्रयोग 1992 में कोलार में सोने की खदानों के बंद होने के कारण समाप्त हो गए थे, लेकिन वेधशाला बनाने की योजना पहले से ही चल रही थी। व्यापक विचार-विमर्श के बाद, कालांतर में एक प्रस्ताव तैयार किया गया और 2011 में, भारत सरकार ने तमिलनाडु में 1.3 किमी भूमिगत भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला के लिए लगभग 1,350 करोड़ रुपये के वित्त व्यवस्था की घोषणा की।
  • हालांकि एक दशक से अधिक समय बाद भी यहां कोई प्रगति नहीं हुई है और वर्तमान में, INO का भाग्य अनिश्चित है। इस बीच, जापानी शोधकर्ताओं को सुपर-कामीओकांडे के एक वर्ष के भीतर न्यूट्रिनो दोलन नामक घटना का पहला सबूत मिला।  इस खोज के कारण पिछले नोबेल पुरस्कार विजेता के एक छात्र को 2015 में संयुक्त रूप से एक और नोबेल पुरस्कार मिला। अपना पूरा शोध करियर जापान में बिताने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता ने घर के नज़दीक न्यूट्रिनो प्रयोगशाला होने के लाभों का उदाहरण दिया है। हाल ही में नोबेल पुरस्कार विजेता, कार्य समिति की एक बैठक के दौरान कहा, "हम प्रयोगशाला तक आसानी से पहुँच सकते हैं, और डिटेक्टर पास में ही है।"

INO परियोजना का विरोध:

  • रेडियोधर्मिता की चिंताएँ
    • INO परियोजना का विरोध पर्यावरण संबंधी चिंताओं और विकिरण के बारे में आशंकाओं पर केंद्रित है। INO वैज्ञानिकों के आश्वासन के बावजूद कि वेधशाला एक किलोमीटर की गहराई पर भूमिगत स्थित होगी, जिससे वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव कम से कम होगा, पर्यावरणीय चिंताएँ बनी हुई हैं। वे अपनी वेबसाइट के माध्यम से इस बात को चिन्हित करने का प्रयास आर रहे हैं, कि प्रयोग से रेडियोधर्मिता उत्पन्न नहीं होगी और यह प्राकृतिक सतही विकिरण से सुरक्षित है। इसके विपरीत, जापानी न्यूट्रिनो परियोजना ने अपने डिटेक्टर को एक सक्रिय खदान में रखा, जिससे अतिरिक्त खुदाई से बचा जा सके। मूल रूप से प्रोटॉन क्षय का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन की गई यह परियोजना विकिरण से संबंधित नहीं थी। हालांकि यह महत्वपूर्ण सफलता सुपरनोवा 1987A के अवलोकन के साथ मिली, जिसे कामियोकांडे-II डिटेक्टर द्वारा पता लगाया गया। यह ब्रह्मांडीय न्यूट्रिनो अनुसंधान की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।
  • पारिस्थितिक चिंताएँ
    • प्रस्तावित INO परियोजना स्थल मथिकेट्टन-पेरियार बाघ गलियारे की सीमा में आता है, जो वन्यजीवों की आवाजाही का मार्ग है। हालाँकि विशेषज्ञों का तर्क है, कि गहरी भूमिगत सुरंगें और प्रयोगशाला बाघों और गलियारे के लिए न्यूनतम जोखिम पैदा करती हैं, तथापि तमिलनाडु सरकार के हलफनामे में संभावित पारिस्थितिक प्रभावों का उल्लेख किया गया है। साथ ही  इसमें विस्फोट और सुरंग बनाने जैसी निर्माण गतिविधियों के कारण वन्यजीवों और स्थानीय पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई गई है। यह साइट केरल के पेरियार टाइगर रिजर्व को श्रीविल्लिपुथुर मेघमलाई टाइगर रिजर्व से जोड़ती है, जो बाघों में जैव विविधता और आनुवंशिक विविधता के लिए आवश्यक है।

भारत में न्यूट्रिनो वेधशाला के लाभ

  • अनुसंधान सुविधाएं
    • भारत में न्यूट्रिनो वेधशाला स्थापित करने से स्थानीय कण भौतिकी के छात्रों को, उन्नत डिटेक्टरों तक पहुँच की आसान सुविधा मिलती है, जिससे उन्हें विदेश यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती। नोबेल पुरस्कार विजेता ने 1980 के दशक के अपने अनुभव से अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं से निकटता के लाभों का भी उल्लेख किया। इस बीच, जापान की सुपर-कामीओकांडे सुविधा, कण भौतिकविदों को प्रशिक्षित कर रही है, जिनमें से कुछ विदेश में काम करना पसंद करते हैं। 2015 में नोबेल पुरस्कार के बाद उक्त प्रस्तावों में गिरावट के बावजूद, पुरस्कार विजेता ने INO परियोजना को पूरा करने की सिफारिश की और विलंब के बावजूद भी न्यूट्रिनो भौतिकी में आगे की खोज करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • वैश्विक परमाणु भौतिकी अनुसंधान में योगदान
    • INO परियोजना, विभिन्न विरोधों का सामना करने के बावजूद भी, भारत के लिए पर्याप्त महत्व रखती है।  इसका उद्देश्य भौतिकी, जीव विज्ञान, भूविज्ञान और इंजीनियरिंग सहित कई विषयों को शामिल करते हुए एक प्रमुख भूमिगत विज्ञान के अध्ययन को सुगम बनाना है, जिससे भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं में वृद्धि होगी। LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) इंडिया प्रोजेक्ट के साथ, यह भारतीय भौतिकविदों की एक प्रमुख आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक उच्च-ऊर्जा और परमाणु भौतिकी अनुसंधान में योगदान का वादा करता है। इसके अलावा, यह भारतीय विज्ञान के छात्रों को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी विकास में शामिल होने के अवसर प्रदान करता है, जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी बुनियादी ढांचे दोनों में उन्नति को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

  • भारत स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला (आईएनओ) परियोजना भारत में महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक प्रयासों को आगे बढ़ाने की जटिल चुनौतियों और अपार संभावनाओं का उदाहरण है। शुरुआती वादे और नोबेल पुरस्कार विजेता ताकाकी काजिता जैसे प्रसिद्ध समर्थकों के बावजूद, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और नौकरशाही बाधाओं के कारण परियोजना रुकी हुई है। एक बार पूरा हो जाने पर, आईएनओ परियोजना भारतीय विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। यह मौलिक अनुसंधान में वैश्विक नेता बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और भारत की वैज्ञानिक आकांक्षाओं का प्रमाण है। देरी और सार्वजनिक आशंकाओं पर काबू पाने के लिए पारदर्शी संचार, वास्तविक चिंताओं को संबोधित करना और भारतीय विज्ञान और समाज के लिए दीर्घकालिक लाभों को उजागर करना आवश्यक है। अटूट प्रतिबद्धता और सहयोगी भावना के साथ, भारत अंततः न्यूट्रिनो अनुसंधान में सबसे आगे अपना उचित स्थान ले सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. भारत की वैज्ञानिक उन्नति और इसकी चुनौतियों के लिए भारत स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला (आईएनओ) परियोजना के महत्व पर चर्चा करें। यह परियोजना वैश्विक परमाणु भौतिकी अनुसंधान में कैसे योगदान दे सकती है?  (10 अंक, 150 शब्द)
  2. भारत में प्रस्तावित न्यूट्रिनो वेधशाला (आईएनओ) परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चिंताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। भारत में ऐसी सुविधा स्थापित करने से जुड़े संभावित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? (12 अंक, 250 शब्द)

 

 

स्रोत: हिंदू