सन्दर्भ:
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र अब भारतीय विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बन गया है, विशेषकर पड़ोसी पहले और एक्ट ईस्ट नीति के तहत। यह क्षेत्र आठ राज्यों से मिलकर बना है और पांच देशों के साथ अपनी सीमा साझा करता है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच व्यापार और संपर्क का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने की क्षमता देती है। भारत, इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और परिवहन सुविधाओं को सुधारकर अपने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करना चाहता है। इसके माध्यम से पूर्वोत्तर भारत को क्षेत्रीय विकास की मुख्यधारा से अधिक मजबूती से जोड़ा जा सकता है।हालांकि, हाल ही में बांग्लादेश में हुए राजनीतिक बदलावों और म्यांमार में जारी अस्थिरता ने भारत के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। इन कारणों से कई महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी परियोजनाएँ या तो देरी का शिकार हो गई हैं या रद्द कर दी गई हैं, जिससे व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास और कूटनीतिक संबंध प्रभावित हुए हैं।
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय समझौतों (Bilateral Agreements) को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है, जबकि म्यांमार में जारी संघर्ष ने कई प्रमुख परिवहन मार्गों को बाधित कर दिया है। ये समस्याएँ न केवल भारत की क्षेत्रीय योजनाओं को धीमा कर रही हैं बल्कि पूर्वोत्तर के आर्थिक विकास और सुरक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं।
भारत-बांग्लादेश संपर्क: राजनीतिक बदलाव और आर्थिक व्यवधान
पूर्वोत्तर के लिए बांग्लादेश का सामरिक महत्व:
बांग्लादेश की सीमा भारत के चार पूर्वोत्तर राज्यों से लगती है, जो इन भूमि से घिरे क्षेत्रों (landlocked regions) को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ने और बंगाल की खाड़ी तक समुद्री पहुंच प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती है। पिछले 15 वर्षों में, भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय सहयोग, विशेष रूप से अवामी लीग सरकार के दौरान, कई कनेक्टिविटी परियोजनाओं को बढ़ावा देने में मददगार रहा है। इन मजबूत होते संबंधों को "स्वर्णिम अध्याय" भी कहा गया। इन्हीं आधारों पर भारत ने बांग्लादेश में 8 अरब डॉलर के विकास पोर्टफोलियो के साथ भारी निवेश किया है, जिससे व्यापार, परिवहन और बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय प्रगति हुई।।
राजनीतिक परिवर्तन और उसका प्रभाव:
· अगस्त 2024 में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आए। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत चले जाने और मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी। इसके चलते भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव देखने को मिला।
· इस राजनीतिक बदलाव का सबसे महत्वपूर्ण असर कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर पड़ा है। भारत विरोधी भावनाओं , कूटनीतिक अनिश्चितताओं (Diplomatic Uncertainties) और शेख हसीना के प्रत्यर्पण से जुड़ी दुविधाओं ने कई प्रमुख परियोजनाओं को रोकने या निलंबित करने में योगदान दिया है। इससे भारत की पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी रणनीति और व्यापक एक्ट ईस्ट नीति पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास में व्यवधान:
● समुद्री पहुंच : भारत ने मोंगला पोर्ट में एक टर्मिनल के लिए परिचालन अधिकार जून 2024 में हासिल कर लिया था और खुलना-मोंगला पोर्ट रेल लिंक को वित्तीय सहायता भी दी थी। हालांकि, रसद संबंधी बाधाएँ इन परियोजनाओं के सुचारू संचालन में रुकावट बन रही हैं।
● रेल और अंतर्देशीय परिवहन : आशुगंज अंतर्देशीय कंटेनर बंदरगाह परियोजना , जो हाल ही में उद्घाटित अखौरा-अगरतला रेल संपर्क को सुगम बनाने वाली थी, स्थगित कर दी गई है। इससे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के बीच माल परिवहन प्रभावित हुआ है।
● व्यापार में गिरावट : बांग्लादेश में राजनीतिक परिवर्तन के बाद से भारत-बांग्लादेश व्यापार में गिरावट आई है। सीमा बंद होने , सीमा शुल्क निकासी में देरी और सुरक्षा निगरानी में वृद्धि के कारण व्यापार बाधित हुआ है। अप्रैल और अक्टूबर 2023 के बीच, बांग्लादेश को भारतीय निर्यात में 13.3% की गिरावट दर्ज की गई, जबकि आयात में 2.3% की कमी आई। बांग्लादेश के निर्माण क्षेत्र के लिए आवश्यक फ्लाई ऐश निर्यात में 15-25% की गिरावट देखी गई है।
● भूमि सीमा संपर्क : बेनापोल-पेट्रापोल भूमि बंदरगाह , जो लगभग 30% द्विपक्षीय व्यापार के लिए जिम्मेदार है, में व्यापारिक गतिविधियों में कमी आई है। इससे सीमा पर निर्भर लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है। जुलाई 2024 से रेलवे सेवाएँ (मैत्री एक्सप्रेस, बंधन एक्सप्रेस, मिताली एक्सप्रेस) निलंबित कर दी गई हैं, जिससे यात्री और माल परिवहन बाधित हुआ है।सीमा पार बस सेवाएँ भी बंद पड़ी हैं, जिससे लोगों की आवाजाही पर नकारात्मक असर पड़ा है।
● निलंबित संयुक्त पहल:
बांग्लादेश में शासन परिवर्तन से पहले जारी किए गए अंतिम संयुक्त वक्तव्य में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का उल्लेख किया गया था, लेकिन वे अभी भी स्थगित हैं। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
● इस समझौते का उद्देश्य उप-क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देना था, जिससे चारों देशों के बीच व्यापार और यात्री परिवहन सुगम हो सके। हालांकि, राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण यह समझौता अभी तक लागू नहीं हो पाया है।
● भारत (गेदे , हल्दीबाड़ी) से बांग्लादेश ( दर्शन , चिलाहाटी ) और आगे भूटान तक मालगाड़ी सेवाओं का संचालन ।
● भारती एयरटेल और जियो इन्फोकॉम द्वारा 4G/5G सेवाओं के विस्तार के लिए बांग्लादेश सरकार के साथ सहयोग की योजना थी।
रणनीतिक निहितार्थ:
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता ने भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं की कमजोरी को उजागर कर दिया है। इसका असर सिर्फ व्यापार और बुनियादी ढांचे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि लोगों के बीच संपर्क और क्षेत्रीय एकीकरण को भी प्रभावित किया है।
म्यांमार का आंतरिक संघर्ष और कलादान परियोजना:
अराकान सेना और बढ़ती अस्थिरता:
म्यांमार का रखाइन राज्य , जो भारत के कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) के लिए महत्वपूर्ण है, में संघर्ष तेज़ हो रहा है।
अराकान आर्मी (AA) ने 18 में से 15 टाउनशिप पर कब्ज़ा कर लिया है, जिससे बांग्लादेश और चिन राज्य के पलेटवा (Paletwa) के साथ मुख्य सीमा बिंदु बाधित हो गए हैं। ये दोनों ही भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं के लिए अहम हैं।
भारत की कनेक्टिविटी पहल के लिए चुनौतियाँ:
● सित्तवे बंदरगाह परिचालन : 2023 में चालू होने वाले इस बंदरगाह को जारी हिंसा के बीच सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
● पलेटवा-ज़ोरिनपुई राजमार्ग : कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) के लिए महत्वपूर्ण 109 किलोमीटर लंबा यह सड़क संपर्क कानूनी, रसद और सुरक्षा चुनौतियों के कारण अधूरा रह गया है। परियोजना के लिए अराकान आर्मी (AA) के कथित समर्थन के बावजूद, सैन्य हवाई हमलों और संघर्षों ने प्रगति को बाधित किया है।
● आईएमटी त्रिपक्षीय राजमार्ग (आईएमटी-टीएच) : म्यांमार के माध्यम से भारत के पूर्वोत्तर को थाईलैंड से जोड़ने के उद्देश्य से यह पहल, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक विस्तारित व्यापक क्षेत्रीय संपर्क प्रयासों का हिस्सा है। हालांकि, अस्थिरता ने प्रगति को धीमा कर दिया है, और अब तक केवल 25% प्रमुख बुनियादी ढांचे का कार्य पूरा हो सका है। तामू-कायगोन-कलेवा सड़क पर 69 पुलों को बदलने का कार्य अब भी एक बड़ी बाधा बना हुआ है।
भारत की सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की बाधाएं:
● मिजोरम में भूमि विवाद: भूमि अधिग्रहण के अनसुलझे मुद्दे और बुनियादी ढांचे की कमियों के कारण कलादान परियोजना में और अधिक देरी हो रही है।
● सीमा व्यापार व्यवधान: जातीय तनाव और सुरक्षा चिंताओं के कारण मोरेह (मणिपुर) और ज़ोखावथर (मिजोरम) के माध्यम से व्यापार मार्ग प्रतिबंधित हैं।
● भू-राजनीतिक जुड़ाव: भारत ने अपनी परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए म्यांमार की सत्तारूढ़ सेना, जातीय सशस्त्र संगठन (EAO) और राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG) के साथ बातचीत की है। हालाँकि, जारी हिंसा इन कूटनीतिक प्रयासों को जटिल बना रही है।
व्यापक भू राजनीतिक निहितार्थ :
म्यांमार में जारी अस्थिरता बिम्सटेक और एक्ट ईस्ट नीति (Act East Policy) के तहत भारत की क्षेत्रीय संपर्क योजनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। लंबे समय से चल रहे संघर्ष से यह स्पष्ट होता है कि भारत को एक व्यापक और बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, ताकि उसकी परियोजनाएँ भू-राजनीतिक अस्थिरता से कम प्रभावित हों और अधिक टिकाऊ बन सकें।
आगे की राह :
1. सीमा प्रबंधन को मजबूत करना: भारत को बांग्लादेश और म्यांमार के साथ अपनी सीमाओं पर सुरक्षा उपायों को बढ़ाना चाहिए, ताकि व्यापार मार्गों (trade routes) और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं (infrastructure projects) की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
2. राजनयिक सहभागिता में विविधता लाना: बांग्लादेश और म्यांमार में विभिन्न राजनीतिक पक्षों के साथ सक्रिय सहभागिता आवश्यक है, ताकि संभावित व्यवधानों (disruptions) को कम किया जा सके।
3. लचीला बुनियादी ढांचा विकास: उन्नत हवाई और समुद्री परिवहन जैसे वैकल्पिक संपर्क मार्गों में निवेश, दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकता है।
4. क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग: म्यांमार को स्थिर करने और सीमा पार शासन में सुधार के लिए आसियान और बिम्सटेक देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना आवश्यक है।
5. आर्थिक और व्यापार विविधीकरण: भारत को राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक व्यापार समझौतों और निवेश रणनीतियों का पता लगाना चाहिए।
जबकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, कनेक्टिविटी के लिए भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण को उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुसार विकसित किया जाना चाहिए। लचीलेपन और अनुकूलनशीलता पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को बनाए रख सकता है और अपने पूर्वोत्तर के आर्थिक भविष्य को सुरक्षित कर सकता है।
मुख्य प्रश्न: नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीतियों के संदर्भ में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के सामरिक महत्व पर चर्चा करें । इस क्षेत्र में सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को क्या रणनीति अपनानी चाहिए? |