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Daily-current-affairs / 18 Oct 2024

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली: चुनौतियाँ और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा का सवाल- डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को तीन स्तरों में विभाजित किया गया है: प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल। हालांकि यह ढांचा देश की विशाल जनसंख्या को सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने का प्रयास करता है, लेकिन इस प्रणाली में कई चुनौतियाँ हैं जो इसकी प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों का प्रभाव केवल मरीजों की देखभाल पर पड़ता है, बल्कि स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा और भलाई भी खतरे में डालती है।

 

भारत की कमज़ोर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली:

·        भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में अपर्याप्त फंडिंग होने के कारण यह बड़ी जनसंख्या की ज़रूरतों को पूरा करने में पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों और नर्सों की कमी, आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता, और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे जैसी समस्याएँ आम हैं। ये समस्याएँ विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में और भी ज़्यादा गंभीर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) अक्सर पर्याप्त स्टाफ या संसाधनों के बिना काम कर रहे हैं। शहरी सार्वजनिक अस्पतालों में भी, अत्यधिक मरीजों की संख्या सीमित मेडिकल स्टाफ को संभालने में कठिनाई पैदा करती है।

·        उदाहरण के तौर पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जैसे प्रमुख संस्थानों में आप यह सारी स्थितियां स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं। अपने क्षेत्रों में प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण कई मरीज लंबी दूरी तय करके AIIMS जैसे अस्पतालों में आते हैं, जिससे तृतीयक अस्पतालों में अत्यधिक भीड़ हो जाती है। यह स्थिति मरीजों और उनके परिवारों पर भावनात्मक और आर्थिक दबाव डालती है।

 

स्वास्थ्यकर्मियों की व्यक्तिगत सुरक्षा:

·        स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में संसाधनों की कमी के साथ-साथ, एक और गंभीर समस्या स्वास्थ्यकर्मियों की व्यक्तिगत सुरक्षा है। विशेष रूप से जूनियर डॉक्टर, जो इस प्रणाली के अग्रिम पंक्ति के योद्धा होते हैं, अधिक असुरक्षित होते हैं। हाल ही में हुए यौन हिंसा के मामले, बुनियादी सुविधाओं की कमी और शारीरिक सुरक्षा से संबंधित धमकियों ने इन समस्याओं को और भी अधिक उजागर कर दिया है।

·        इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के एक अध्ययन के अनुसार, 75% से अधिक डॉक्टरों ने अपने कार्यस्थल पर किसी किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया है।

·        उदाहरण के तौर पर आप कोलकाता के RG Kar मेडिकल कॉलेज की घटना को देख सकते हैं। यहाँ जूनियर डॉक्टरों ने असुरक्षित कार्य परिस्थितियों और स्वच्छ विश्रामगृहों की कमी के कारण काफी विरोध किया था। यह मुद्दा उस वक़्त राष्ट्रीय चर्चा में आया जब ड्यूटी पर एक पीजी प्रशिक्षु का बलात्कार और उसकी हत्या कर दी गई। यह घटना स्वास्थ्यकर्मियों की दैनिक ज़िंदगी में गंभीर खतरों को दर्शाती है।

 

हिंसा के कारण:

PLoS ONE में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, डॉक्टरों के खिलाफ 82.2% हिंसा के मामलों में अपराधी मरीज के परिवार के सदस्य या रिश्तेदार होते हैं।

·        अक्सर, मरीज या उनके परिवार वाले इस वजह से हिंसा का सहारा लेते हैं क्योंकि स्वास्थ्य प्रणाली उनकी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाती।

·        कुछ मामलों में, मरीज की स्थिति में सुधार होना या गलत इलाज के संदेह में हिंसा होती है।

·        कई बार लंबे इंतजार और ऊँचे चिकित्सा खर्चों के कारण भी लोग हिंसक हो जाते हैं, जिनके लिए डॉक्टर ज़िम्मेदार नहीं होते।

·        डॉक्टरों से अपेक्षाएं तो ज़्यादा हैं लेकिन उनके पास संसाधन प्रणाली काफी कमजोर है। जब मरीज या उनके परिवार को किसी इलाज में देरी या गलती का संदेह होता है, तो उनकी निराशा हिंसा में बदल जाती है।

 

हिंसा का प्रभाव:

हिंसा के शिकार होने का स्वास्थ्यकर्मियों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

·        कई अध्ययनों में डॉक्टरों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता और अवसाद के लक्षण पाए गए हैं।

·        इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ता है क्योंकि डॉक्टर अपनी सुरक्षा के लिए संसाधन संपन्न क्षेत्रों में काम करना पसंद करते हैं, जिससे ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित होती हैं।

·        हिंसा के बाद, डॉक्टर आपातकालीन सेवाएँ प्रदान करने से कतराते हैं, मरीजों को जल्दी से विशेषज्ञों के पास भेज देते हैं, और अत्यधिक जांच और परीक्षण करने लगते हैं, जिससे इलाज की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

 

वर्तमान स्थिति और कानून की कमी:

भारत में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कोई केंद्रीय कानून नहीं है। हालांकि 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई एकीकृत कानून नहीं है, जिससे इन सुरक्षा उपायों का प्रवर्तन उतना प्रभावी नही होता है जितना होने की आवश्यकता है। इससे डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भीड़ द्वारा हमले, मौखिक दुरुपयोग और कभी-कभी शारीरिक हमले के प्रति असुरक्षित रहते हैं।

 

सुधार की आवश्यकता:

इस समस्या से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है:-

·        स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त बनाना: हमें स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने के लिए अधिक धन खर्च करने की आवश्यकता है, जैसे कि इलाज में लंबे इंतजार को कम करना, दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, और वित्तीय सहायता प्रदान करना।

·        नीति और संस्थागत उपाय: अस्पतालों में CCTV कैमरे और मेटल डिटेक्टर जैसे सुरक्षा उपाय लगाने चाहिए ताकि मरीजों के परिजन हथियार ला सकें। साथ ही, मरीजों और उनके परिजनों की भावनात्मक स्थिति को संभालने के लिए काउंसलर्स की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

·        केंद्रीय कानून: पश्चिम बंगाल की घटना के बाद, केंद्र सरकार ने 2019 में पेश किए गए बिल की समीक्षा के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने की घोषणा की। जब तक केंद्रीय कानून लागू नहीं हो जाता, तब तक राज्य-स्तरीय सुधार स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं।

 

निष्कर्ष:

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की चुनौतियाँ डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा से गहराई से जुड़ी हुई हैं। जूनियर डॉक्टर, नर्स, और अन्य फ्रंटलाइन कार्यकर्ता इस प्रणाली की कमजोरियों का सबसे अधिक सामना करते हैं। वास्तविक और स्थायी परिवर्तन के लिए भारत को अपनी स्वास्थ्य प्रणाली में संसाधनों की कमी को दूर करना होगा और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए मजबूत केंद्रीय कानून लागू करने होंगे।

 

 

यूपीएससी नोट्स:

 

1.     भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तीन स्तरों में विभाजित है, लेकिन संसाधनों की कमी, स्टाफ की कमी और बुनियादी ढांचे की कमजोरियाँ इसकी प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।

2.     स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है, खासकर जूनियर डॉक्टरों के लिए, जो हिंसा और असुरक्षित कार्य स्थितियों का सामना करते हैं। 75% से अधिक डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर हिंसा झेली है।

3.     हिंसा के मुख्य कारणों में इलाज में देरी, गलत इलाज का संदेह, और ऊँचे चिकित्सा खर्च शामिल हैं, जिससे मरीज या उनके परिवार हिंसक हो जाते हैं।

4.     हिंसा का मानसिक प्रभाव डॉक्टरों पर गहरा होता है, जिससे PTSD, चिंता, और अवसाद के मामले बढ़ते हैं। इससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

5.     कानूनी सुरक्षा के अभाव में, डॉक्टर हमलों का शिकार होते हैं। हालांकि 26 राज्यों में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कानून हैं, लेकिन कोई केंद्रीय कानून नहीं है।

6.     स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सशक्त करने, अस्पतालों में सुरक्षा उपाय बढ़ाने और केंद्रीय कानून लागू करने की आवश्यकता है।

 

 

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

स्वास्थ्य सेवा में डॉक्टरों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के कारणों का विश्लेषण करें और इन घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम सुझाएँ।