भारत ने पिछले दशक में अपनी स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली को सुदृढ़ बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOP) को कम करने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है, जो देश की एक बड़ी जनसंख्या के लिए गंभीर आर्थिक बोझ बना हुआ है। शोध अध्ययनों के अनुसार, आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कारण प्रतिवर्ष 3% से 7% भारतीय परिवार गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं, विशेषकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में। इस समस्या का समाधान करना सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्राथमिकता बन गयी है, जिसकी पुष्टि 25 सितंबर 2024 को भारत सरकार द्वारा 2020-21 और 2021-22 के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (NHA) अनुमानों के नवीनतम आंकड़ों से होती है।
हालाँकि, भारत ने इस दिशा में प्रगति की है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 के तहत, भारत को 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.5% सरकारी व्यय करना है।
आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) में उल्लेखनीय गिरावट:
राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (NHA) के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि भारत में पिछले एक दशक में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) में नाटकीय गिरावट आई है। 2013-14 में, आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय कुल स्वास्थ्य व्यय का 64.2% था, जो 2021-22 तक घटकर 39.4% रह गया। यह गिरावट जनता से सरकार की ओर वित्तीय बोझ में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जो स्वास्थ्य में बढ़े हुए सरकारी निवेश और आयुष्मान भारत जैसे व्यापक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की शुरूआत से प्रेरित है। यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है, लेकिन 39.4% का आँकड़ा अभी भी काफी अधिक है, जिसे कम करने के लिए निरंतर और प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
● यह गिरावट पूरे दशक में चल रही प्रवृत्ति का हिस्सा रही है, जिसे COVID-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि ने और तेज कर दिया है।
सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) में वृद्धि:
आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी का एक प्रमुख कारण सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) में तेज वृद्धि है। 2013-14 से 2021-22 के बीच, सरकारी स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा कुल स्वास्थ्य व्यय में 28.6% से बढ़कर 48.0% हो गया। यह भारत की स्वास्थ्य नीति में एक ऐतिहासिक मोड़ है, जहाँ सार्वजनिक व्यय पहली बार आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय से आगे निकल गया है।
● महामारी के कारण स्वास्थ्य आवंटन में हुई वृद्धि ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया, हालाँकि यह वृद्धि महामारी से पहले ही शुरू हो गई थी।
यह बदलाव एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली की ओर संकेत करता है, लेकिन भारत के मौजूदा सरकारी स्वास्थ्य व्यय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 के लक्ष्य के बीच अभी भी एक बड़ा अंतर है, जो 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में GDP का 2.5% व्यय करना चाहता है। चुनौती यह है कि महामारी के तात्कालिक प्रभावों के समाप्त होने के बाद भी, स्वास्थ्य व्यय में इस वृद्धि की गति को बनाए रखा जाए।
कुल स्वास्थ्य व्यय (THE) और सरकारी पहल:
हालाँकि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन पिछले दशक में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य व्यय (THE) में कमी देखी गई है। यह विरोधाभासी प्रवृत्ति मुख्य रूप से सरकारी स्वास्थ्य व्यय की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण है, जिसने परिवारों पर वित्तीय बोझ को कम करने में मदद की है।
इन सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, अभी भी कुल स्वास्थ्य व्यय का 39.4% है, जो एक गंभीर और निरंतर चुनौती को दर्शाता है। आउट-ऑफ-पॉकेट को और कम करने के लिए भारत को कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से 2025 तक राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 के लक्ष्यों को हासिल करने के संदर्भ में।
OOPE में कमी लाने में योगदान देने वाले सरकारी कार्यक्रम:
1. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY):
2018 में शुरू की गई, AB-PMJAY अब भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की आधारशिला बन चुकी है। यह योजना समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त माध्यमिक और तृतीयक देखभाल प्रदान करती है। 2024 तक, इस योजना के तहत 6.9 करोड़ से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा प्रदान की गई है, जिससे गरीब और जरूरतमंद परिवारों पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ कम हुआ है।
आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AB-HWCs):
जमीनी स्तर पर, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने हेतु ये केंद्र स्थापित किए गए हैं। 2024 तक, 1.75 लाख से अधिक कार्यात्मक आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं, जो गैर-संचारी रोग प्रबंधन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, और उपशामक देखभाल जैसी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। इन केंद्रों ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को समुदाय के करीब लाकर स्वास्थ्य सेवाओं में समानता बढ़ाई है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (PMNDP):
2016 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए डायलिसिस सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। अब तक इस पहल के तहत 25 लाख से अधिक गरीब मरीजों को डायलिसिस सेवाओं का लाभ मिला है, जिससे इस प्रक्रिया से जुड़े भारी आर्थिक बोझ को कम करने में मदद मिली है।
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP):
इस योजना का उद्देश्य सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। 2024 तक, प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत कई जनऔषधि केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं, जिससे आम जनता को आवश्यक दवाइयाँ कम कीमत पर मिल सकीं और घरेलू स्वास्थ्य व्यय में हजारों करोड़ रुपये की बचत हुई।
स्वास्थ्य वित्तपोषण में चुनौतियाँ:
जबकि भारत के स्वास्थ्य वित्तपोषण परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है, कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इनमें शामिल हैं:
1. सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को बनाए रखना: राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वास्थ्य व्यय की वृद्धि बनी रहे। स्वास्थ्य मुख्य रूप से राज्य का विषय है, और जबकि राजकोषीय विकेंद्रीकरण ने राज्य सरकारों के लिए उपलब्ध धन में वृद्धि की है, ये निधियाँ हमेशा उच्च स्वास्थ्य सेवा खर्च में परिवर्तित नहीं हुई हैं। उदाहरण के लिए, 13वें वित्त आयोग के दौरान 32% से 14वें वित्त आयोग के दौरान 42% तक राजकोषीय हस्तांतरण के बावजूद राज्य स्तर पर स्वास्थ्य व्यय में आनुपातिक वृद्धि नहीं हुई।
2. स्वास्थ्य बजट के प्रभावी उपयोग में चुनौतियाँ: महामारी के दौरान स्वास्थ्य बजट में वृद्धि के बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा दिए गए धन का एक बड़ा हिस्सा उपयोग नहीं हुआ है। यह समस्या निधियों के सही तरीके से इस्तेमाल में कमी को दर्शाती है। इसे सुधारने के लिए प्रशासनिक क्षमताओं में वृद्धि और प्रक्रियाओं में सुधार करना जरूरी है।
3. देखभाल की गुणवत्ता और सेवाओं की निरंतरता: दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना अभी भी एक चुनौती है, क्योंकि सार्वजनिक आपूर्ति श्रृंखलाओं में नकली दवाओं के मामलों की रिपोर्ट होती रहती है। इसके अलावा, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AAM) द्वारा दी जाने वाली प्राथमिक देखभाल का आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के माध्यम से उपलब्ध माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के साथ एकीकरण, देखभाल की निरंतरता के लिए आवश्यक है। इस एकीकरण के अभाव में, कई रोगियों को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सही तरीके से समझने में कठिनाई होती है।
4 दुर्लभ रोग और जनसंख्या-विशिष्ट आवश्यकताएँ:
हालांकि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AAM) स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान करते हैं, फिर भी दुर्लभ बीमारियों और अन्य कम प्रतिनिधित्व वाली स्वास्थ्य जरूरतों को ध्यान में रखने वाली नीतियों की कमी है। सभी आबादी वर्गों के लिए समान स्वास्थ्य सेवा पहुँच सुनिश्चित करने के लिए इन खामियों को दूर करना आवश्यक है।
आगे की राह:
पिछले दशक में, भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, विशेष रूप से आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के क्षेत्र में। निरंतर सरकारी निवेश, बेहतर निधियों का उपयोग और स्वास्थ्य सेवाओं का एकीकरण भारत के लिए 2025 तक राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 के तहत निर्धारित 2.5% सकल घरेलू उत्पाद के सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनिवार्य है।
भविष्य की दृष्टि में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है:
● स्वास्थ्य बजट को बनाए रखना और उसमें वृद्धि करना।
● आवंटित धन के अधिक प्रभावी उपयोग के लिए प्रशासनिक क्षमताओं को सुदृढ़ करना।
● प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक सेवाओं को एकीकृत कर देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करना।
● गुणवत्ता नियंत्रण और जनसंख्या-विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं के बीच के अंतराल को संबोधित करना।
भारत में सफल स्वास्थ्य वित्तपोषण सुधारों का एक वैश्विक उदाहरण बनने की क्षमता है। हालांकि, इसके लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में निरंतर ध्यान, राजनीतिक इच्छाशक्ति और निरंतर निवेश की आवश्यकता होगी। स्वास्थ्य सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरी है, जैसा कि कोविड-19 महामारी से पता चलता है। स्वास्थ्य में निवेश करना न केवल एक सामाजिक अनिवार्यता है, बल्कि देश के भविष्य के लिए एक आर्थिक आवश्यकता भी है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: स्वास्थ्य सुरक्षा को अब राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। स्वास्थ्य सेवा में निवेश करना न केवल एक सामाजिक अनिवार्यता है, बल्कि भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए एक आर्थिक आवश्यकता भी है। विश्लेषण करें। |