सन्दर्भ :
न पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक हैं, जोकि कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके और ऑक्सीजन को छोड़ कर ग्रह के फेफड़ों के रूप में कार्य करते हैं। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने, जैव विविधता को बनाए रखने और प्राकृतिक चक्रों के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वन स्वच्छ हवा और पानी प्रदान करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और अनगिनत प्रजातियों के लिए एक अभयारण्य प्रदान करते हैं।
· अपने महत्व के बावजूद, वन शहरीकरण, औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण निरंतर दबाव का सामना करते हैं। इस चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में, भारत आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर आशा की किरण बनकर उभरा है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2023 इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जोकि वन और वृक्ष आवरण के विस्तार के साथ-साथ वनों की आग जैसे पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने में देश के सफल प्रयासों को प्रदर्शित करती है।
भारत में वन क्षेत्र: प्रगति का एक दशक
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा प्रकाशित द्विवार्षिक रिपोर्ट का 18वां संस्करण, भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2023, वन और वृक्ष आवरण में महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालता है। उन्नत उपग्रह इमेजरी और फील्ड डेटा का उपयोग करते हुए, यह रिपोर्ट भारत के वनों की स्थिति और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में उनके योगदान का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करती है।
आईएसएफआर 2023 की मुख्य विशेषताएं:
- वन एवं वृक्ष आवरण विस्तार: भारत का कुल हरित आवरण अब 827,357 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है। इसमें वन क्षेत्र 715,343 वर्ग किलोमीटर (21.76%) और वृक्ष आवरण 112,014 वर्ग किलोमीटर (3.41%) शामिल है।
- वन क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि: पिछले दशक में, भारत का वन क्षेत्र उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 2013 के 698,712 वर्ग किलोमीटर से 2023 में 715,343 वर्ग किलोमीटर हो गया है। 16,631 वर्ग किलोमीटर की यह वृद्धि वनीकरण कार्यक्रमों, संरक्षण नीतियों और समुदाय-संचालित पहलों की सफलता को दर्शाती है।
- वन अग्नि की घटनाओं में कमी: सक्रिय वन अग्नि प्रबंधन उपायों के कारण अग्नि हॉटस्पॉट में कमी आई है, जो 2021-22 में 223,333 से घटकर 2023-24 में 203,544 हो गई है।
- कार्बन पृथक्करण में उपलब्धि: भारत ने 30.43 बिलियन टन CO₂ समतुल्य कार्बन सिंक हासिल किया है, जिसमें 2005 से 2.29 बिलियन टन की प्रभावशाली वृद्धि हुई है। यह 2030 तक 2.5-3.0 बिलियन टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने के भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।
वन संरक्षण को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाएं और पहल
भारत ने वन संरक्षण में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जो सुव्यवस्थित नीतियों और अभिनव पहलों का परिणाम है। ये पहल पारिस्थितिकी बहाली, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु लचीलेपन पर केंद्रित हैं।
1. राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (जीआईएम): 2014 में शुरू किया गया यह मिशन जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा है। यह वनरोपण और पुनर्वनरोपण के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर जोर देता है, जिसमें संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMCs) के माध्यम से स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। वित्तपोषण: वृक्षारोपण और पारिस्थितिकी बहाली प्रयासों को समर्थन देने के लिए 17 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश को 944.48 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
2. नगर वन योजना (एनवीवाई): 2020 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने और शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम करने के लिए शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में शहरी वन और हरित स्थान बनाना है। प्रगति: 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ₹431.77 करोड़ के आवंटन के साथ 546 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
3. स्कूल नर्सरी योजना (एसएनवाई): छात्रों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए बनाया गया यह कार्यक्रम स्कूलों को नर्सरी बनाने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके लिए 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 743 परियोजनाओं के लिए 4.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
4. तटीय आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (मिष्टी): भारत के विशाल समुद्र तटों पर मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के उद्देश्य से, यह कार्यक्रम जैव विविधता को बढ़ाने और जलवायु लचीलापन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वित्तपोषण: ओडिशा, गुजरात और केरल जैसे तटीय राज्यों को 17.96 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
5. एक पेड़ एक माँ के नाम अभियान: यह अभियान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया। यह पहल भावनाओ को पारिस्थितिकी क्रियाकलापों से जोड़ती है तथा नागरिकों से अपनी माताओं के सम्मान में एक पेड़ लगाने का आग्रह करती है।
6. प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा): यह कार्यक्रम विकासात्मक गतिविधियों के कारण होने वाले वन नुकसान की भरपाई के लिए प्रतिपूरक वनरोपण सुनिश्चित करता है। यह वन संरक्षण अधिनियम और संवर्धन अधिनियम, 1980 का पालन करता है, जो पारिस्थितिक क्षतिपूर्ति को अनिवार्य बनाता है।
7. वन अग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2018): यह योजना सामुदायिक क्षमता को बढ़ाकर, उन्नत निगरानी प्रणालियों की तैनाती करके तथा पूर्व चेतावनी के लिए पूर्वानुमान उपकरणों का उपयोग करके वनों की आग के विरुद्ध लचीलापन पैदा करती है।
8. संयुक्त वन प्रबंधन समितियां (जेएफएमसी): भारत की वन प्रबंधन रणनीति की आधारशिला के रूप में, संयुक्त वन प्रबंधन समितियां स्थानीय समुदायों को वन संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सशक्त बनाती हैं।
वन संरक्षण में प्रौद्योगिकी की भूमिका:
प्रौद्योगिकी ने भारत में वन संरक्षण में क्रांति ला दी है, जिससे सटीक निगरानी, शीघ्र हस्तक्षेप और बेहतर संसाधन प्रबंधन संभव हो गया है। प्रमुख प्रगति में शामिल हैं:
प्रमुख प्रगति:
- उपग्रह निगरानी: वन आवरण में परिवर्तन के वास्तविक समय के आंकड़े प्रदान करके, उपग्रह निगरानी वैज्ञानिक आधार पर निर्णय लेने में मदद करती है।
- उन्नत वन अग्नि चेतावनी प्रणाली: समय पर चेतावनी देकर, यह प्रणाली वन अग्नि से होने वाले नुकसान को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- वन सीमाओं का डिजिटलीकरण: वन क्षेत्रों का मानचित्रण और डिजिटलीकरण सीमा विवादों को सुलझाने और अतिक्रमण को रोकने में मदद करता है।
- राष्ट्रीय वन सूची: वन विकास, जैव विविधता और कार्बन स्टॉक पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करने वाला एक वैज्ञानिक मूल्यांकन है।
संरक्षण का समर्थन करने वाला कानूनी ढांचा:
1. भारतीय वन अधिनियम, 1927: वन विनियमन और संसाधन उपयोग पर केंद्रित है।
2. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करके वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा करता है।
3. वन संरक्षण एवं संवर्धन अधिनियम , 1980: विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ पारिस्थितिक संरक्षण को संतुलित करता है।
4. राज्य-विशिष्ट वन एवं वृक्ष संरक्षण अधिनियम: स्थानीय संरक्षण रणनीतियों को सुनिश्चित करना।
प्रेरणादायक सामुदायिक योगदान:
पद्म श्री तुलसी गौड़ा, जिन्हें अक्सर "पेड़ों की माँ" कहा जाता है, व्यक्तिगत प्रयासों से बड़े बदलाव लाने की एक प्रेरणादायी मिसाल हैं। उन्होंने कर्नाटक में लाखों पेड़ लगाकर बंजर भूमि को हरा-भरा बना दिया है। उनका समर्पण सरकार के प्रयासों को पूरक करते हुए दिखाता है कि व्यक्तिगत स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण में कितना योगदान दिया जा सकता है।
वन महोत्सव और वन्यजीव सप्ताह जैसे जागरूकता अभियानों ने स्थानीय समुदायों को संगठित किया है तथा उन्हें वन संरक्षण में सक्रिय हितधारक बनाया है।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशाएँ:
उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, शहरीकरण के कारण वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और वित्त पोषण संबंधी बाधाएं जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं।
भविष्य की प्राथमिकताएँ:
- नीतियों और प्रवर्तन तंत्र को मजबूत बनाना।
- सार्वजनिक जागरूकता और सहभागिता का विस्तार करना।
- तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना, जैसे कि पूर्वानुमानित वन प्रबंधन के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करना।
- पारिस्थितिक संरक्षण के साथ विकासात्मक गतिविधियों को संतुलित करना।
निष्कर्ष:
भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2023 दर्शाती है कि दूरदर्शी नीतियों, नवीन तकनीकों और जन सहयोग से वन संरक्षण में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की जा सकती है। भारत में वन क्षेत्र में वृद्धि, वन अग्नि में कमी और कार्बन पृथक्करण में वृद्धि ने देश को वैश्विक स्तर पर टिकाऊ पर्यावरण प्रबंधन का एक आदर्श बना दिया है। 2030 के कार्बन सिंक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी पक्षों, जैसे सरकार, समुदाय और व्यक्तिगत नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। वन संरक्षण और स्थिरता को बढ़ावा देकर, भारत न केवल अपनी प्राकृतिक विरासत की रक्षा कर रहा है, बल्कि दुनिया के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण स्थापित कर रहा है।
मुख्य प्रश्न: वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में भारतीय वन अधिनियम (1927) और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) जैसे भारत के कानूनी प्रावधानों की भूमिका की जाँच करें। समकालीन पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने में ये कानून कितने प्रभावी हैं? |