संदर्भ:
निवर्तमान भारतीय सरकार द्वारा पदभार ग्रहण करते ही, जलवायु पहल को सुदृढ़ करने हेतु लिए जाने वाले उसके निर्णय प्रत्येक मंत्रालय और क्षेत्र को प्रभावित करेगा । आगामी पांच वर्षों में भारत के सतत आर्थिक विकास पथ को निर्धारित करने, वैश्विक दक्षिण के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में राष्ट्र को स्थापित करने और जलवायु वित्तपोषण एवं जलवायु न्याय की पैरवी करने में इन चयनों का निर्णायक महत्व होगा।
भारत का जलवायु परिवर्तन
पिछले दशक में, भारत ने जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में उल्लेखनीय प्रगति और दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित की है। भारत, वैश्विक जलवायु चर्चाओं में एक हिचकिचाने वाले भागीदार से एक सक्रिय नेतृत्वकर्ता के रूप में विकसित हुआ है, जो वैश्विक मुद्दों और संस्थानों को आकार दे रहा है। यह परिवर्तन कई प्रमुख पहलों के माध्यम से स्पष्ट है:
- वैश्विक संस्थाओं की स्थापना: भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। इसके अतिरिक्त, उसने पिछले वर्ष अपनी जी-20 अध्यक्षता के तहत हरित विकास संधि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- महत्वाकांक्षी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य: भारत पहली बार अधिक साहसी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों पर चर्चा कर रहा है। 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य की घोषणा और महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं। शुद्ध-शून्य लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता के माध्यम से, भारत ने सापेक्षिक उत्सर्जन-तीव्रता-आधारित लक्ष्यों पर पूर्ण उत्सर्जन में कमी के महत्व को स्वीकार किया है। इस बदलाव ने नीति निर्माताओं, निजी क्षेत्र और कई अन्य हितधारकों के बीच घरेलू बहस को जन्म दिया है।
- निरंतरता-आधारित आर्थिक नीतियां: भारत में अब पर्यावरणीय निरंतरता आर्थिक नीति का एक प्रमुख केंद्रबिंदु बन गई है। एक उदाहरण के रूप में, भारतीय उत्सर्जन कार्बन व्यापार योजना का निर्माण किया जा रहा है, जिसके कम से कम 30-40 वर्षों तक संचालित होने की संभावना है। यह योजना कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करेगी।
भारत के जलवायु लक्ष्य: मौजूदा और नए
लक्ष्य (2030 के लिए) |
मौजूदा: प्रथम एनडीसी (2015) |
नया: अद्यतन एनडीसी (2022) |
प्रगति |
उत्सर्जन तीव्रता में कमी |
2005 के स्तर से 33-35% |
2005 के स्तर से 45% |
2016 में ही 24% की कमी हासिल कर ली गई थी। अनुमान है कि 30% तक पहुंच गया है। |
गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी स्थापित बिजली क्षमता में |
40% |
50% |
इस साल जून के अंत तक 41.5% हासिल कर लिया गया। |
कार्बन सिंक |
वनीकरण के माध्यम से 2.5 से 3 अरब टन अतिरिक्त सिंक का निर्माण |
पहले जैसा ही |
स्पष्ट नहीं। |
जलवायु कार्रवाई में तेज़ी
अगले पाँच वर्षों में, सरकार को यह प्रदर्शित करने के लिए अपने प्रयासों में तेज़ी लानी चाहिए कि आर्थिक विकास और पर्यावरण सहभागी हो सकते हैं । भारत को अपने जलवायु नेतृत्व को अपनी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के साथ सम्बद्ध करने के लिए "ऊँचे उठो, व्यापक बनो, गहरे बनो" के मंत्र को अपनाना चाहिए।
वैश्विक नेतृत्व को सुदृढ़ करना
वैश्विक जलवायु नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए, भारत महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलनों की मेज़बानी करने का लक्ष्य रखता है। उदाहरण के लिए, यदि भारत को 2028 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP) की मेज़बानी करनी है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इसकी सफलता भी G-20 प्रेसीडेंसी के संरूप हो। यद्यपि वैश्विक वार्ता की समय-सीमा को देखते हुए आगामी चार वर्ष अपेक्षाकृत अल्प अवधि है। इसे संबोधित करने के लिए मुख्य प्रश्न ये हैं:
- क्या भारत को 2030 के बाद तेल और गैस में नए निवेश को रोकने के लिए वैश्विक समझौते पर ज़ोर देना चाहिए?
- क्या इसे विकासशील देशों को बढ़ती गर्मी, तूफ़ान, बाढ़ और सूखे से निपटने में मदद करने के लिए अनुकूलन वित्त पर पर्याप्त प्रतिबद्धताओं की वकालत करनी चाहिए?
इस प्रकार के विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति बनाने में प्रायः चार से पाँच वर्ष का समय लगता है, इसलिए भारत को तुरंत अपने प्रयास शुरू करने चाहिए, 2028 के लिए संभावित बड़े लक्ष्यों की पहचान करनी चाहिए और इन लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए गठबंधन बनाना चाहिए। साथ ही, भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समानता को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिए और जलवायु वित्त पर केंद्रित वैश्विक संस्थानों में नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए।
व्यापक क्षेत्रीय उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित करना
विद्युत क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और उसे अपने अंतर्राष्ट्रीय गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्यों और घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस प्रगति को बनाए रखना चाहिए। हालांकि, अब समय आ गया है कि इन लक्ष्यों को अन्य क्षेत्रों तक विस्तारित किया जाए। इस विस्तार में निम्नलिखित लक्ष्य शामिल हो सकते हैं:
- निजी परिवहन क्षेत्र में, विशेष रूप से शून्य-कार्बन दोपहिया और चौपहिया वाहनों के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए । यह पहल न केवल शहरी क्षेत्रों को लाभ पहुंचाएगी बल्कि ग्रामीण भारत को अधिक गतिशील बनने में भी मदद करेगी, स्वच्छ ऊर्जा, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को गति देगी।
विश्वसनीय नीतिगत लक्ष्य उद्योगों और हितधारकों को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करने में कारगर संकेत साबित हुए हैं। अगले वर्ष प्रस्तुत किया जाने वाला 2035 के लिए निर्धारित योगदान (एनडीसी) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों का विस्तार करने का एक अवसर प्रस्तुत करता है।
सब-राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई को मजबूत बनाना
- केंद्र सरकार के इस कार्यकाल में उप-राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई और लचीलेपन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कुछ प्रगति पहले से ही दिखाई दे रही है, परंतु अभी अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
- ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) कई भारतीय राज्यों के साथ मिलकर दीर्घकालिक जलवायु और ऊर्जा मॉडलिंग के माध्यम से उनकी शुद्ध-शून्य योजनाओं का समर्थन कर रहा है। उदाहरण के लिए, सीईईडब्ल्यू ने तमिलनाडु और बिहार के साथ मिलकर उनके शुद्ध-शून्य भविष्य की योजनाओं पर सहयोग किया है।
इस एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, सरकार को निम्नलिखित पर विचार करना चाहिए:
- केंद्र-राज्य समन्वय समूह: सोलहवें वित्त आयोग के माध्यम से राज्य-स्तरीय जलवायु कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए एक केंद्र-राज्य समन्वय समूह बनाना।
- विज्ञान मॉडलिंग का एकीकरण: नीति निर्माण में वैज्ञानिक मॉडलिंग क्षमताओं के गहन एकीकरण को बढ़ावा देना।
- एमआरवी वास्तुकला: राज्य स्तर पर एकीकृत डेटा मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन (एमआरवी) आर्किटेक्चर की सुविधा प्रदान करना।
भारत के संघीय ढांचे को देखते हुए, इन सिफारिशों का आशय जलवायु कार्रवाई को केंद्रीकृत करना नहीं है, बल्कि राज्यों की स्वायत्तता को बनाए रखते हुए राज्य-स्तरीय कार्रवाई के बेहतर समन्वय को सुनिश्चित करना है। इस दृष्टिकोण के लिए जरूरी है कि हम राज्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप से जलवायु संकट से निपटने के बजाय केंद्र सरकार को उनके प्रयासों को सक्रिय रूप से सुगम और समर्थन करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
नई सरकार को अपने कार्यकाल के दौरान भारत की वैश्विक जलवायु नेतृत्व की स्थिति को मजबूत करना चाहिए। इसके लिए अगले चार से पांच वर्षों के लिए एक रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। वैश्विक जलवायु चर्चाओं में भारत की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से विकसित हुई है, और अब यह अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अब समय आ गया है कि भारत अपनी क्षमता का प्रदर्शन करे और आदर्श स्थापित करे।
प्रस्तावित "और ऊँचा उठो, और व्यापक बनो, और गहराई में जाओ" रणनीति इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। वैश्विक नेतृत्व को मजबूत करके, क्षेत्रीय उत्सर्जन लक्ष्यों का विस्तार करके और समन्वित उप-राष्ट्रीय कार्यों को बढ़ावा देकर, भारत सतत आर्थिक विकास के लिए एक मिसाल स्थापित कर सकता है इस प्रकार भारत एक वैश्विक जलवायु नेता के रूप में अपनी स्थिति को सशक्त कर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
|
Source- The Hindu