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Daily-current-affairs / 16 Jul 2024

भारत की जलवायु नीति : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ-

1990 का दशक वैश्विक परिवर्तन का समय था। बर्लिन की दीवार गिरने के बाद फ्रांसिस फुकुयामा ने " एंड ऑफ़ हिस्ट्री एंड लास्ट मैन" में तर्क दिया कि पश्चिमी उदार लोकतंत्र ने विजय प्राप्त कर ली है, जिससे आगे के विकास के लिए कोई जगह नहीं बची है। इस अवधि में 1992 के रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण वैश्विक पर्यावरणीय समझौतों का उदय हुआ, इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC), जैव विविधता पर सम्मेलन (CBD), और वन सिद्धांत जैसे समझौते उभर कर सामने आए। भारत में, भुगतान संतुलन संकट, सरकार में बार-बार बदलाव, आर्थिक नीतियों का पुनःआधारीकरण और विश्व में इसकी स्थिति ने देश की नीतियों को प्रभावित किया। रियो सम्मेलन के बाद, भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता के लिए विभागों की स्थापना की।

वैश्विक GHG उत्सर्जन और भारत का योगदान
अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (IPCC) की 6वीं मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में वैश्विक शुद्ध मानवजनित GHG उत्सर्जन 59 ± 6.6 GtCO2eq था। विकसित देश, जिनकी आबादी केवल 16% है, 1970 से 2017 तक 74% अधिक संसाधन उपयोग के लिए जिम्मेदार रहे हैं। इसके विपरीत, भारत सहित अन्य विकासशील देशों का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन स्थिरता सीमाओं के भीतर ही रहा। 2019 में, भारत का सकल GHG उत्सर्जन 3.1 बिलियन टन CO2eq था, और शुद्ध उत्सर्जन 2.6 बिलियन टन CO2eq था। विकसित देशों की तुलना में भारत का उत्सर्जन केवल पूर्ण रूप में बल्कि प्रति व्यक्ति रूप में भी काफी कम है, यह इसके न्यायसंगत हिस्से को दर्शाता है।

भारत की जलवायु नीति के निर्धारक

भूगोल

 भारत दुनिया का 7वां सबसे बड़ा देश है, यह 3.28 मिलियन किमी² के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो विश्व के क्षेत्रफल का मात्र 2.4% भारत में विश्व के ताजे पानी के संसाधनों का 4% है। यह 17 मेगा-बायोडायवर्स देशों में से एक है, जिसमें चार जैव विविधता हॉटस्पॉट, दस जैव-भौगोलिक क्षेत्र और 22 कृषि-बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट हैं। भारत की सभ्यता और अर्थव्यवस्था छह विशिष्ट ऋतुओं: वसंत (बसंत), ग्रीष्म (गर्मी), वर्षा (मानसून), शरद (पतझड़), हेमंत (प्री-विंटर), और शिशिर (सर्दी) के सामंजस्य के साथ विकसित हुई है। हालांकि, हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन ने इस सामंजस्य को बाधित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और प्रकृति एवं समाज दोनों के लिए नकारात्मक परिणाम उत्पन्न हुए हैं।

जनसंख्या

 भारत की 1.4 बिलियन की जनसंख्या को एक संपत्ति और ताकत के स्रोत के रूप में देखा जाता है। देश में विश्व की दस्तावेजित प्रजातियों का 7-8% निवास करता है, जिसमें 45,500 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ, 91,000 पशुओं की प्रजातियाँ और अनगिनत खोजी गई सूक्ष्मजीव प्रजातियाँ शामिल हैं। प्रति व्यक्ति भूमि अनुपात 0.0021 वर्ग किलोमीटर होने के कारण, भारत को स्थिरता की दिशा में एक संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें भूमि और जल प्रबंधन को एकीकृत करना आवश्यक है। भारत के वनों में 70% वैश्विक बाघों की आबादी, 60% से अधिक एशियाई हाथियों की आबादी और एशियाई शेरों की सम्पूर्ण आबादी निवास करती है। 2019 में, भारत के वनों और वृक्ष कवर ने देश के कुल CO2 उत्सर्जन का लगभग 20% हटाया है।

प्रभाव

जलवायु परिवर्तन ने भारत के लिए स्थायी चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2020 के अनुसार, भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों में पाँचवें स्थान पर है, जो चरम मौसम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति से जूझ रहा है। विश्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बढ़ते तापमान और बदलते मानसून वर्षा पैटर्न के कारण अपने GDP का 2.8% खो सकता है। इसके अलावा, कोट्ज़ एट अल (2024) के अध्ययन के अनुसार, अगले 25 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 19% की आय खो सकती है, जिसमें अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे, जबकि वे समस्या के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं।

विश्व दृष्टिकोण

भारत का विश्व दृष्टिकोण इसकी प्राचीन परंपराओं से निर्मित हुआ है, जो प्रकृति के साथ तालमेल में रहने पर जोर देती है। वेदों जैसी प्राचीन ग्रंथों में पृथ्वी के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की गई है। उदाहरण के लिए, अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त कहता है, "पृथ्वी हमारी माता है, और हम उसके बच्चे हैं।" प्रकृति के साथ यह आंतरिक संबंध पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोणों से भिन्न है, जो अक्सर वनों और वृक्षों को केवल कार्बन सिंक के रूप में देखते हैं। भारत में, वनों की पूजा और सम्मान किया जाता है, जो केवल प्राथमिक और विनियमित सेवाएं प्रदान करते हैं, बल्कि सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का भी समर्थन करते हैं।

ट्रस्टीशिप और संयम के गांधीवादी आदर्श भारत के पर्यावरणीय रुख को और मजबूत करते हैं। उनकी यह मान्यता कि पृथ्वी सभी की जरूरतों को पूरा करती है, लेकिन लालच को नहीं, देश के स्थायी जीवनशैली पर जोर देती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का लोगो, "प्रकृति की रक्षा करने पर ही वह हमारी रक्षा करती है," प्रकृति के प्रति श्रद्धा और संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

कार्यवाई

 जलवायु परिवर्तन पर भारत की कार्रवाइयाँ साक्ष्य-आधारित और वैज्ञानिक रूप से प्रेरित हैं। वैश्विक GHG उत्सर्जन में अपने न्यूनतम ऐतिहासिक योगदान के बावजूद, भारत ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कदम उठाए हैं। देश ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन जैसी वैश्विक संस्थानों की स्थापना की है। घरेलू स्तर पर, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण पर ध्यान केंद्रित किया है और 2005 से 2019 के बीच अपने GDP की उत्सर्जन तीव्रता को 33% तक कम कर दिया है।

भारत का प्रति व्यक्ति वार्षिक उत्सर्जन वैश्विक औसत का लगभग एक तिहाई है, इसके बावजूद यह सक्रिय जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है। यह प्रतिबद्धता विकसित देशों के विपरीत है, जिन्होंने जलवायु प्रतिबद्धताओं में असंगति दिखाई है, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका का पेरिस समझौते से हटा और पुनः इसमे शामिल हुआ।

जलवायु नीति का विकास

भारत की जलवायु नीति समावेशी विकास, गरीबी उन्मूलन और UNFCCC के सिद्धांतों का पालन करने को प्राथमिकता देती है। यह विभिन्न क्षेत्रों में स्पष्टता, स्थिरता और समन्वय से युक्त है। भारत का राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (2008) और 23 मंत्रालयों के शामिल प्रयास इसके व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

भारत जलवायु कार्रवाई में वैश्विक नेता है, जो अपनी नीति में आत्मविश्वास और सुविधाजनक कार्रवाई को शामिल करता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा वैश्विक पहल इस नेतृत्व को रेखांकित करते हैं। हालांकि, भारत अकेले जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं कर सकता। विकसित देशों को पर्याप्त जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समानता

भारत के महत्वपूर्ण प्रयासों के बावजूद, जलवायु कार्रवाई की यात्रा अकेले नहीं की जा सकती। विकसित देश, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से वैश्विक कार्बन बजट से अधिक उपभोग किया है, को भारत और वैश्विक दक्षिण के प्रति कार्बन ऋणी है। इन देशों को UNFCCC के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करना चाहिए और पर्याप्त जलवायु वित्त एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करना चाहिए। यह समर्थन विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन और शमन के लिए महत्वपूर्ण है।

अनुकूलन और शमन

 भारत और अन्य विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन एक महत्वपूर्ण चिंता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव उन क्षेत्रों को अनुपातहीन रूप से प्रभावित करते हैं, जिनके पास इन परिणामों का मुकाबला करने के लिए सबसे कम संसाधन हैं। भारत की जलवायु नीति वैश्विक सहयोग और समर्थन की आवश्यकता पर जोर देती है ताकि लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता को बढ़ाया जा सके।

सतत विकास

विकास और पर्यावरणीय स्थिरता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उन्हें समग्र विकास के लिए एक साथ किया जाना चाहिए। भारत का सतत विकास का मॉडल, जो पर्यावरण संरक्षण को आर्थिक और सामाजिक प्रगति के साथ एकीकृत करता है, अन्य विकासशील देशों के लिए एक खाका प्रस्तुत करता है। "वसुधैव कुटुम्बकम" सिद्धांत एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए सामूहिक, समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

निष्कर्ष

भारत की जलवायु नीति सतत विकास और वैश्विक पर्यावरणीय प्रबंधन के प्रति इसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। प्राचीन ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक प्रमाणों में निहित, भारत का दृष्टिकोण समानता, समावेशिता और सक्रिय कार्रवाई पर जोर देता है। विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करके, भारत वैश्विक दक्षिण के लिए एक व्यवहार्य मॉडल प्रदान करता है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक सहकारी, यथार्थवादी दृष्टिकोण की वकालत करता है।

विश्व को जलवायु परिवर्तन की सामूहिक कार्रवाई समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए भारत के "वसुधैव कुटुम्बकम" सिद्धांत को अपनाना चाहिए। वैश्विक सहयोग, संसाधनों के समान वितरण और स्थायी जीवन शैली के माध्यम से हम सभी के लिए एक स्थिर और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। जलवायु कार्रवाई में भारत की नेतृत्व क्षमता एक आशावादी मार्ग प्रदान करती है, जो विकसित दुनिया के विकास मॉडल को चुनौती देती है और एक नए, स्थायी विकासात्मक प्रतिमान की आवश्यकता पर जोर देती है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत की सांस्कृतिक धरोहर और विश्व दृष्टिकोण उसकी जलवायु नीति को कैसे प्रभावित करता है। स्पष्ट करें कि यह पर्यावरण संरक्षण पर पश्चिमी दृष्टिकोण से कैसे भिन्न है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भारत की जलवायु नीति में क्या भूमिका निभाता है।  विकसित देशों को विकासशील देशों को जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करने के लिए UNFCCC के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान क्यों करना चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत- VIF