संदर्भ:
- हालिया मीडिया रिपोर्टों में, भारत द्वारा म्यांमार के साथ 1,610 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने के लिए 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश करने के निर्णय को उजागर किया गया है। यह पहल म्यांमार के साथ भारत सरकार द्वारा किए गए फ्री रेजिम मूवमेंट (FRM) समझौते को रद्द करने के बाद की गई है।
- यह समझौता पहले दोनों तरफ के लोगों को बिना वीजा के 16 किलोमीटर तक सीमा पार करने की अनुमति देता था। भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र (NER) में चल रही मादक पदार्थों की तस्करी और म्यांमार के शरणार्थियों की आमद, जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए, फ्री रेजिम मूवमेंट की निरस्ती को सैन्य चौकियों की स्थापना के साथ-साथ एक आवश्यक प्रयास के रूप में देखा जाता है।
- इसके साथ ही, भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का फैसला जटिलताओं से मुक्त नहीं है। इस क्षेत्र की जटिल भू-आकृतिक संरचना और सीमावर्ती समुदायों के बीच घनिष्ठ जातीय संबंध इस पहल के सफल कार्यान्वयन के लिए चुनौतियां उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार, भारत के लिए इस नीति को आगे बढ़ाने से पहले उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जटिलताओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है।
सीमा पर बाड़ लगाना क्यों आवश्यक है ?
- 1970 के दशक से ही, भारत का उत्तर पूर्व क्षेत्र (NER) मादक पदार्थों की तस्करी से अत्यधिक प्रभावित रहा है। इसका प्रमुख कारण स्वर्णिम त्रिकोण से इसकी निकटता है, जो विश्व के सबसे बड़े मादक पदार्थ तस्करी केंद्रों में से एक के रूप में विख्यात है। स्वर्णिम त्रिकोण में उत्तर पश्चिमी म्यांमार, उत्तरी लाओस और उत्तर पश्चिमी थाईलैंड शामिल हैं।
- भारत-म्यांमार सीमा की असुरक्षित प्रकृति ने मादक पदार्थों के सुगम प्रवाह को सक्षम बनाया है, जिससे NER की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 2023 में म्यांमार का दुनिया का शीर्ष अफीम उत्पादक बनने के साथ ही, म्यांमार में अवैध फसल की खेती में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आधिकारिक रिपोर्टों में NER राज्यों में जब्त किए गए अवैध सामानों का मूल्य ₹2,000 करोड़ (लगभग US$267 मिलियन) से अधिक था।
- असम और मणिपुर राज्यों में बरामद की गई मादक पदार्थ और गिरफ्तार किए गए तस्कर इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करते हैं। वर्ष 2024 में भी इस प्रवृत्ति के बने रहने से म्यांमार से उत्पन्न होने वाली तस्करी को रोकने के लिए कठोर नियंत्रक उपायों, जिनमें सीमा पर बाड़ लगाना शामिल है; की तत्काल आवश्यकता को बल मिलता है।
- म्यांमार के शरणार्थियों की आमद, विशेष रूप से मिजोरम और मणिपुर राज्यों में, उपर्युक्त वर्णित स्थिति की जटिलता को और बढ़ा देती है। वर्ष 2021 में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के कारण भारत के NER में शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हुई है। यद्यपि साझा जातीय संबंधों के कारण मिजोरम इन शरणार्थियों का स्वागत कर रहा है, लेकिन इस आतिथ्य की दीर्घकालिक स्थिरता अनिश्चित है।
- मिजोरम की मुख्यतः कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था और एक भू-आबद्ध तथा अल्पविकसित राज्य के रूप में इसका दर्जा स्थानीय निवासियों और आने वाले शरणार्थियों के बीच संभावित संसाधन प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है। म्यांमार की सेना और प्रतिरोध समूहों के बीच चल रहे संघर्ष से शरणार्थियों की संख्या में और वृद्धि होने की संभावना है, जिससे भारत के लिए सीमा पर सख्त नियंत्रणकारी उपायों को लागू करना और भी आवश्यक हो जाता है, ताकि आव्रजन संबंधी चुनौतियों का प्रभावी प्रबंधन किया जा सके।
सीमा पर बाड़ लगाने की चुनौतियाँ:
- भारत सरकार के FRM को रद्द करने और सीमा पर बाड़ लगाने के प्रस्ताव को लेकर NER के राजनीतिक नेताओं और क्षेत्रीय संस्थाओं से मिलीजुली प्रतिक्रियाएँ आई हैं। हालांकि असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्री सीमा पार विद्रोह, अवैध शरणार्थी घुसपैठ और मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने की आवश्यकता को महत्त्व देते हुए इस फैसले का समर्थन करते हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों से इसका विरोध हो रहा है। भाजपा शासन के अधीन होने के बावजूद नागालैंड ने भी इस प्रयास का विरोध किया है और मिजोरम विधानसभा ने इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है। इसके अलावा, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (Isak Muivah), जो वर्तमान में भारत सरकार के साथ संघर्ष विराम पर है, ने चिंता व्यक्त की है, कि बाड़ लगाने से सीमा के दोनों ओर नागा समुदायों के बीच जातीय संबंध बाधित होंगे। यह 'नागालिम' नामक एकीकृत नागा मातृभूमि की उनकी आकांक्षा को रेखांकित करता है, जिसमें भारत और म्यांमार दोनों क्षेत्र शामिल हैं।
- मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड के कई आदिवासी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करते हुए, औपनिवेशिक युग के इस सीमांकन को मानने से इनकार कर दिया है। उनका तर्क है, कि बाड़ लगाने से क्षेत्रीय आकांक्षाएँ बढ़ सकती हैं और भारतीय राज्य के साथ उनके संबंधों में तनाव बढ़ सकता है, जिससे वे संभावित रूप से भारत से और दूर हो सकते हैं।
- भारत-म्यांमार सीमा पर आदिवासी आबादी की उपस्थिति इन समुदायों की परस्पर निर्भरता को रेखांकित करती है। यह जनसांख्यिकीय वास्तविकता बताती है कि सीमा पर बाड़ लगाने और FRM को रद्द करने से मौजूदा लोगों के बीच के संबंध ख़राब हो सकते हैं।
- केंद्र सरकार का यह फैसला भारत कि, व्यापक भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंध मजबूत करने के उद्देश्य से बनाई गई उसकी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' के लिए भी चुनौतियाँ खड़ी करता है। भारत-म्यांमार सीमा की भौगोलिक जटिलताएँ, जिसमें दक्षिण की निम्न पहाड़ियाँ और उत्तर में ऊबड़-खाबड़ भू-क्षेत्र और चोटियाँ भी शामिल हैं, सीमा संबंधी पहलों को लागू करने के लिए विकट चुनौतियाँ पेश करती हैं।
- यह उल्लेखनीय है, कि सीमा पर बाड़ लगाने के पिछले प्रयास काफी हद तक अकुशल रहे हैं; उदाहरण के लिए, मणिपुर-म्यांमार सीमा पर सिर्फ 10 किलोमीटर की बाड़ लगाने में ही एक दशक लग गया। ये कठिनाइयाँ भारत की पहल को और जटिल बना देती हैं, जिससे सीमा के मुद्दे पर अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक हो जाता है।
निष्कर्ष:
- भारत द्वारा म्यांमार के साथ सीमा को मजबूत करने के लिए बाड़ लगाने और एफआरएम समझौते को रद्द करने के निर्णय ने एक जटिल परिदृश्य उत्पन्न किया है, जिसके कई संभावित नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। यह सच है, कि खुली सीमा ने अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दिया है, जो उत्तर पूर्व क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिरता को कमजोर करती हैं।
- हालांकि, जटिल भौगोलिक परिस्थिति और सीमावर्ती समुदायों के बीच घनिष्ठ जातीय संबंध इस फैसले के प्रभावी कार्यान्वयन को जटिल बनाते हैं। उत्तर पूर्व क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक नेताओं, विद्रोही गुटों और स्थानीय समुदायों के विरोध से मौजूदा तनाव और बढ़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय आकांक्षाएं तेज हो सकती हैं और भारत की 'पूर्व की ओर कार्य नीति' में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, भारत की म्यांमार के साथ सीमा सुरक्षा रणनीति में एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो सुरक्षा चिंताओं और क्षेत्र की जटिल वास्तविकताओं दोनों को ध्यान में रखे।
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स्रोत - द इंडियंस एक्सप्रेस