सन्दर्भ:
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के रूप में पुनः चयन ने भारत-अमेरिका संबंधों के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण निहितार्थ प्रस्तुत किए हैं। दोनों देशों के बीच राजनीतिक और रणनीतिक सहयोग में समानताएँ उभर कर सामने आई हैं। तथापि ट्रंप प्रशासन का दृष्टिकोण व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्र में व्यावहारिक, लेन-देन आधारित संबंधों पर आधारित है, जिसमें आर्थिक राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद पर विशेष बल दिया गया है। इस दृष्टिकोण का भारत-अमेरिका के रक्षा, प्रौद्योगिकी और आतंकवाद-विरोधी सहयोग पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
· ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान, इन साझा लक्ष्यों के माध्यम से भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की दिशा और दोनों देशों की विदेश और आर्थिक नीतियाँ प्रभावित हो सकती हैं, जोकि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
भारत-अमेरिका संबंधों का महत्व:
भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी दशकों से मजबूत हो रही है। दोनों देशों के समान लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा हितों के कारण उनके संबंध और गहरे हुए हैं। इन संबंधों का मुख्य केंद्र वैश्विक स्थिरता, आतंकवाद से लड़ाई और आर्थिक विकास है। भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व दोनों देशों को जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा खतरों और व्यापार असंतुलन जैसी वैश्विक समस्याओं से निपटने में एक मजबूत साझेदार बनाता है।
भारत-अमेरिका संबंधों का सामरिक आयाम:
1. साझा रणनीतिक हित:
भारत और अमेरिका के सामरिक हितों में समानताएँ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं, जिनमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग: ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति का उद्देश्य अमेरिका की विदेशी सैन्य भागीदारी को कम करना था, जिससे भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में अधिक प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर मिला। इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियार सौदों और अमेरिकी सैन्य तकनीक तक पहुँच शामिल है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता और आतंकवाद निरोध: दोनों देश समान सुरक्षा खतरों का सामना कर रहे हैं और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आतंकवाद निरोध, समुद्री सुरक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने पर सहयोग बढ़ने की संभावना है।
- चीन पर नियंत्रण: दोनों देश चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन के सैन्य और आर्थिक प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए गहन सहयोग के अवसर उत्पन्न होते हैं।
2. भू-राजनीतिक संतुलन:
ट्रंप की अप्रत्याशित विदेश नीति के कारण भारत को अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करना होगा, साथ ही चीन और रूस जैसी वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को भी संतुलित करना होगा। यह संतुलन भारत के रणनीतिक हितों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
ट्रम्प 2.0 नीतियों के आर्थिक आयाम:
व्यापार संबंध: अवसर और चुनौतियाँ
ट्रंप का "अमेरिका फर्स्ट" दृष्टिकोण व्यापार असंतुलन को कम करने और अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों के प्रमुख पहलुओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- टैरिफ और व्यापार बाधाएँ: ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए गए थे, जिनमें स्टील, एल्युमीनियम और वस्त्र शामिल थे। यह नीति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी जारी रह सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को चुनौतियाँ आ सकती हैं। अमेरिका भारत से कृषि, बौद्धिक संपदा और सेवाओं में अधिक बाजार पहुंच की मांग कर सकता है।
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA): ट्रंप के पहले कार्यकाल में FTA वार्ताएँ रुकी हुई थीं, लेकिन उनके दूसरे कार्यकाल में इन वार्ताओं के फिर से शुरू होने की संभावना है। हालांकि, भारत को अमेरिकी मांगों के साथ अपनी घरेलू प्राथमिकताओं को संतुलित करते हुए बाजार पहुंच और बौद्धिक संपदा सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
- विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण: अमेरिका में विनिर्माण को फिर से बढ़ावा देने के प्रयासों के चलते भारत के लिए कई नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। अमेरिकी कंपनियाँ चीन के विकल्प के रूप में भारत की श्रम शक्ति, कम उत्पादन लागत और बेहतर बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता दे सकती हैं। इसके अतिरिक्त, भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) का विस्तार इस प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से दर्शाता है, जो इसे अमेरिकी कंपनियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना रहा है।
· उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का प्रभाव : भारत की पीएलआई योजना, जिसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है, अमेरिकी निवेश आकर्षित करने के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करती है। इन सुधारों से अमेरिकी कंपनियों को भारत में अपने परिचालन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, जो अंततः रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।
आव्रजन और कार्यबल चुनौतियां:
ट्रम्प की सख्त आव्रजन नीतियाँ भारत के आईटी क्षेत्र और ट्रम्प 2.0 के तहत अमेरिका में कार्यबल पर प्रभाव डाल सकती हैं:
· एच-1बी वीज़ा प्रतिबंध: भारतीय पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम को सख्त नियमों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कुशल भारतीय श्रमिकों के लिए अमेरिकी वर्क परमिट प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। इससे भारत के आईटी क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
· निर्वासन और वैध प्रवासन: अवैध आव्रजन पर ट्रम्प का सख्त रुख वैध भारतीय प्रवासियों को सीधे प्रभावित नहीं कर सकता है, लेकिन इससे भारतीय प्रवासियों के लिए अनिश्चितता पैदा हो सकती है।
ऊर्जा और जलवायु नीति के निहितार्थ:
· ऊर्जा आयात लाभ: एक प्रमुख तेल आयातक के रूप में, भारत को ट्रम्प की नीतियों से लाभ हो सकता है, जोकि अमेरिकी जीवाश्म ईंधन उत्पादन के कारण वैश्विक तेल कीमतों को घटा सकती हैं। इससे भारत का आयात बिल कम हो सकता है और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार हो सकता है।
· जलवायु परिवर्तन पहल के लिए चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन के बारे में ट्रम्प का संदेह और पेरिस समझौते से उनका हटना भारत के लिए चिंताजनक है, जोकि जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशील है। भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा है और ट्रम्प का रुख जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों को धीमा कर सकता है, जिससे भारत की जलवायु अनुकूलन रणनीतियों पर असर पड़ सकता है।
वैश्विक एवं क्षेत्रीय निहितार्थ
वैश्विक व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभाव
· भारत के लिए अवसर: अमेरिका-चीन के बीच चल रहे व्यापार तनाव के कारण अमेरिकी कंपनियाँ चीन से दूर आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की कोशिश कर सकती हैं। भारत, अपने बड़े उपभोक्ता बाजार और पीएलआई जैसी अनुकूल नीतियों के साथ, एशिया में विस्तार करने की इच्छुक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक आकर्षक विकल्प के रूप में स्थित है।
· भारत के लिए चुनौतियाँ: हालाँकि, वैश्विक व्यापार तनाव भारत के व्यापार संबंधों को बाधित कर सकता है, जिसके लिए अमेरिका, चीन और अन्य वैश्विक देशों के साथ अपनी साझेदारी को सावधानीपूर्वक संचालित करने की आवश्यकता होगी। व्यापार युद्ध का जोखिम भारत की आर्थिक वृद्धि और स्थिरता को जटिल बना सकता है।
भू-राजनीतिक विचार:
ट्रंप की विदेश नीति, जोकि अप्रत्याशित है, के कारण भारत को अमेरिका और रूस तथा चीन सहित अन्य शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना होगा। भारत के लिए चुनौती इन देशों के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होगा।
निष्कर्ष:
ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है। अमेरिका की संरक्षणवादी व्यापार नीतियाँ, सख्त आव्रजन कानून और जलवायु परिवर्तन के बारे में संदेह भारत की आर्थिक और भू-राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए बाधाएँ खड़ी कर सकते हैं। हालाँकि, रक्षा, प्रौद्योगिकी और क्षेत्रीय स्थिरता में सहयोग के अवसर भारत-अमेरिका साझेदारी को मज़बूत कर सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने की भारत की क्षमता उसकी रणनीतिक कूटनीति, आर्थिक सुधारों और अनुकूलनशीलता पर निर्भर करेगी। अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था, रणनीतिक महत्व और पीएलआई योजना जैसी पहलों का लाभ उठाकर भारत अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को गहरा कर सकता है और साथ ही अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में, भारत और अमेरिका के पास एक मजबूत और लचीली साझेदारी बनाने की क्षमता है, लेकिन इसके लिए ट्रम्प 2.0 के तहत विकसित वैश्विक और क्षेत्रीय गतिशीलता को ध्यान से समझने की आवश्यकता होगी।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग में प्रमुख विकास क्या हैं और इसका एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर क्या प्रभाव हो सकता है? |