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Daily-current-affairs / 25 Mar 2025

क्षय रोग (टीबी) उन्मूलन में भारत की प्रगति और चुनौतियाँ

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सन्दर्भ :

तपेदिक (टीबी) भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बनी हुई है। पहचान, उपचार और रोकथाम में हुई महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, भारत में वैश्विक टीबी के बोझ का 27% हिस्सा है, जिससे भारत दुनिया भर में टीबी से संबंधित मौतों और संक्रमणों में अग्रणी बना हुआ है। यह बीमारी विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित करती है, जहां सामाजिक-आर्थिक और लिंग आधारित असमानताएँ स्वास्थ्य पहुंच को अधिक बाधित करती हैं।

टीबी उन्मूलन की तात्कालिकता को समझते हुए, भारत ने 2025 तक टीबी को समाप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जो वैश्विक सतत विकास लक्ष्य (SDG) 2030 की समय-सीमा से पांच वर्ष पहले है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने कई नवीन रणनीतियाँ अपनाई हैं, जिनमें आणविक परीक्षण का विस्तार, छोटी अवधि वाली उपचार पद्धतियों की शुरुआत, सामाजिक सहायता प्रणालियों को सशक्त बनाना और टीबी सेवाओं को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) में एकीकृत करना शामिल है।

हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद टीबी की घटनाओं और मृत्यु दर में कमी लाने में अभी भी कई बाधाएँ बनी हुई हैं। इनमें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, इलाज की लागत, बीमारी से जुड़ा सामाजिक कलंक और स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे की चुनौतियाँ शामिल हैं।

यह लेख भारत में टीबी के बोझ, प्रमुख सरकारी पहलों, हालिया प्रगति और उन मौजूदा चुनौतियों का विश्लेषण करता है, जिन्हें टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संबोधित किया जाना आवश्यक है।

भारत में टीबी का बोझ और रुझान:

भारत विश्व में टीबी मामलों का एक बड़ा हिस्सा वहन करता है, लेकिन हाल के आँकड़े इस बीमारी की घटनाओं और मृत्यु दर को कम करने में सकारात्मक प्रगति को दर्शाते हैं।

टीबी की वर्तमान स्थिति:

        टीबी दर (2023): प्रति 100,000 जनसंख्या पर 195 मामले, जो 2015 में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 237 मामलों से 17.7% की गिरावट को दर्शाता है।

        टीबी मृत्यु दर (2022): कुल 3,31,000 मौतें, अर्थात प्रति 100,000 जनसंख्या पर 23 मौतें।

        वैश्विक योगदान: भारत वैश्विक टीबी मामलों के 27% हिस्से के साथ इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित देशों में शामिल है।

        दवा प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी):

o    टीबी के नए मामलों में 2.5% दवा प्रतिरोधी होते हैं।

o    पूर्व-उपचारित 13% मामलों में दवा प्रतिरोध विकसित हो जाता है।

        टीबी-एचआईवी सह-संक्रमण: भारत में 2% टीबी रोगी एचआईवी पॉजिटिव हैं।

टीबी रिपोर्ट 2023 इस बात पर ज़ोर देती है कि रोकथाम टीबी उन्मूलन रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनी हुई है। टीबी के बढ़ते बोझ को देखते हुए लक्षित हस्तक्षेप, सामाजिक सहायता तंत्र और मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा आवश्यक हैं।

प्रमुख सरकारी हस्तक्षेप और रणनीतियाँ:

भारत सरकार ने प्रारंभिक पहचान, उपचार, वित्तीय सहायता और सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक नीतियाँ और कार्यक्रम लागू किए हैं।

1.  राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी):

        यह कार्यक्रम 2020 में संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) के स्थान पर शुरू किया गया।  इसके अंतर्गत टीबी उन्मूलन के लिए शीघ्र पहचान, प्रभावी उपचार, रोकथाम और सामुदायिक सहभागिता पर विशेष ध्यान दिया गया।

2.   आणविक परीक्षण और नई दवा व्यवस्था का विस्तार:

        उन्नत आणविक परीक्षण से टीबी और दवा प्रतिरोध का शीघ्र पता लगाने में मदद मिलती है, जिससे निदान और उपचार की प्रभावशीलता बढ़ती है।

        बीपीएएलएम रेजिमेन की शुरूआत , दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए एक छोटा, पूर्णतः मौखिक उपचार, जिसमें शामिल हैं:

o    बेडाक्विलिन, प्रीटोमेनिड , लाइनज़ोलिड , और मोक्सीफ्लोक्सासिन

3. वित्तीय और पोषण सहायता पहल:

        नि- क्षय पोषण योजना (एनपीवाई):

o    टीबी रोगियों को उनके उपचार के दौरान प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के रूप में प्रति माह 1,000 रुपये प्रदान किए जाते हैं।

o    उपचार अनुपालन और सफलता दर को बढ़ाने के लिए पात्रता को हाल ही में दोगुना किया गया है।

        प्रधान मंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान:

o    यह समुदाय-संचालित पहल है, जिसके तहत व्यक्तियों और संगठनों के योगदान से अतिरिक्त पोषण सहायता प्रदान की जाती है।

4. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) के साथ टीबी सेवाओं का एकीकरण:

        आयुष्मान भारत के अंतर्गत :

o    टीबी सेवाओं को निम्नलिखित के साथ एकीकृत किया गया है:

o    प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है, जिसमें टीबी उपचार को शामिल किया गया है।

o    आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM): यह स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWC) के रूप में कार्य करते हैं, जो बलगम संग्रह और टीबी देखभाल सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

5. सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करना:

o    टीबी से बचे लोगों और चैंपियंस को जागरूकता पैदा करने और शीघ्र निदान में सहायता के लिए शामिल किया जा रहा है।

कमज़ोर समूहों के लिए लक्षित हस्तक्षेप:

o    तमिलनाडु कासनोई एराप्पिला थिट्टम (TN-KET): यह कार्यक्रम टीबी मृत्यु दर में कमी लाने के लिए उच्च जोखिम वाले रोगियों की शीघ्र पहचान और रेफरल सुनिश्चित करता है।

o    जनजातीय समुदायों, प्रवासियों और बेघरों के लिए केंद्रित कार्यक्रम: इनमें लक्षित केस फाइंडिंग और अनुकूल हस्तक्षेप मॉडल शामिल हैं।

6. निजी क्षेत्र की चुनौतियों और समाधान:

        50% से अधिक टीबी रोगी निजी स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में उपचार लेते हैं।

        चुनौतियाँ:

o    निजी क्षेत्र में देखभाल की असमान गुणवत्ता के कारण निदान में देरी और उपचार अनुपालन की समस्याएँ होती हैं।

o    निजी अस्पतालों में टीबी उपचार के लिए उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE)

समाधान:

o   निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के मध्य रेफरल प्रणाली को सुदृढ़ और प्रभावी बनाना।

o    यह सुनिश्चित करना कि AB-PMJAY सार्वजनिक और निजी दोनों अस्पतालों में टीबी उपचार लागत को कवर करे।

2025 तक टीबी उन्मूलन की चुनौतियाँ:

1. सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ:

        कलंक और भेदभाव:

o    कई टीबी रोगी सामाजिक कलंक और अलगाव के भय के कारण उपचार लेने में देरी करते हैं।

o    उच्च तनाव वाली कॉर्पोरेट नौकरियों (विशेषकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों) में कार्यरत महिलाओं को खराब पोषण और कार्यस्थल पर तनाव के कारण अधिक जोखिम रहता है।

        लिंग और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ:

o    हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक कम पहुंच टीबी के निदान और उपचार के परिणामों को प्रभावित करती है।

2. एकीकृत स्वास्थ्य सेवा में अंतराल:

        जांच की कमियाँ:

o    टीबी रोगियों की क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, उच्च रक्तचाप और अवसाद की भी जांच की जानी चाहिए।

        तकनीकी अंतराल:

o    एआई-सक्षम छाती एक्स-रे से टीबी का शीघ्र पता लगाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए व्यापक स्तर पर कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

3.  वित्तीय बाधाएं और जेब से होने वाला खर्च (ओओपीई):

o   वर्तमान वित्तीय सहायता (नि-क्षय पोषण योजना के तहत 1,000 प्रति माह) सभी अप्रत्यक्ष लागतों को कवर करने के लिए अपर्याप्त है।

संभावित समाधान:

  • टीबी रोगियों के परिवार के सदस्यों को भी पोषण सहायता प्रदान करना।
  • उपचार के दौरान आर्थिक कठिनाइयों को कम करने हेतु वेतन-हानि मुआवजा योजना का पायलट प्रोजेक्ट लागू किया जा सकता है।

कोविड-19 से सबक: जन जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता

        जन जागरूकता अभियानों का अभाव:

o    कोविड-19 के विपरीत, टीबी को लेकर लगातार विज्ञान-आधारित जन जागरूकता प्रयास नहीं किए गए हैं।

        अनुशंसित कार्यवाहियाँ:

o     व्यापक जागरूकता के लिए सोशल मीडिया, टेलीविजन और सामुदायिक नेटवर्क का उपयोग करना।

o     रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को रोकने के लिए दवा प्रतिरोधी टीबी (DR-TB) की शिक्षा को बढ़ावा देना।

भविष्य की दिशाएँ: टीबी उन्मूलन के लिए प्रमु कदम

1.   विकेन्द्रीकृत टीबी देखभाल का विस्तारसमग्र टीबी प्रबंधन के लिए आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM) को सशक्त बनाना।

2.   लिंग-संवेदनशील टीबी ढांचे का कार्यान्वयनउपचार प्रक्रिया में लिंग-आधारित असमानताओं को दूर करना।

3.   एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल मॉडल को बढ़ावा देनाटीबी स्क्रीनिंग को गैर-संचारी रोगों (NCD) की जांच के साथ जोड़ना।

4.   जेब से होने वाले खर्च (OOP) को कम करनावित्तीय सहायता योजनाओं का विस्तार करना।

5.   जन जागरूकता अभियानों को मजबूत करनाटीबी से जुड़े कलंक और गलत सूचनाओं से निपटने के लिए बहु-मंचीय संचार रणनीतियों का उपयोग करना।

निष्कर्ष:

भारत ने टीबी उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। उन्नत निदान तकनीक, कम समय के उपचार, वित्तीय सहायता और सामुदायिक भागीदारी ने उपचार के परिणामों में सुधार किया है, फिर भी सामाजिक कलंक, वित्तीय कठिनाइयों और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच से जुड़े मुद्दों का समाधान करना आवश्यक है। 2025 तक टीबी उन्मूलन और सभी के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) सुनिश्चित करने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय और समानता-केंद्रित दृष्टिकोण आवश्यक होगा, जिसमें प्रौद्योगिकी, वित्तीय सहायता, निजी क्षेत्र की भागीदारी और व्यापक जन जागरूकता को शामिल किया जाए।

मुख्य प्रश्न: 2025 तक टीबी उन्मूलन के भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टीबी सेवाओं को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) में एकीकृत करना क्यों महत्वपूर्ण है? आयुष्मान भारत और अन्य सरकारी पहलों के संदर्भ में इस एकीकरण की सफलताओं और चुनौतियों का विश्लेषण करें।