सन्दर्भ:
आर्कटिक, जिसे लंबे समय तक एक बर्फीला और निर्जन क्षेत्र माना जाता था, अब तेजी से एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक केंद्र में बदल रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ पिघल रही है, जिससे नए शिपिंग मार्ग खुल रहे हैं और हाइड्रोकार्बन तथा खनिजों के विशाल भंडार सामने आ रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि आर्कटिक अब वैश्विक रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन गया है।
पारंपरिक रूप से रूस, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे आर्कटिक राष्ट्रों का इस क्षेत्र पर वर्चस्व रहा है, लेकिन अब चीन और भारत सहित गैर-आर्कटिक राष्ट्र भी इससे तेजी से जुड़ रहे हैं। भारत ने अपनी भौगोलिक दूरी के बावजूद आर्कटिक के महत्व को पहचाना है, मुख्य रूप से इसके जलवायु पैटर्न , संसाधन सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति पर प्रभाव के कारण।
2022 में भारत की आर्कटिक नीति के अनावरण के साथ, देश ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण (Structured Approach) अपनाया है। हालाँकि, जैसे-जैसे वैश्विक शक्तियाँ प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, भारत को अपने दीर्घकालिक हितों की रक्षा के लिए केवल निष्क्रिय अनुसंधान-संचालित दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
आर्कटिक का भूराजनीतिक और आर्थिक महत्व:
● आर्कटिक क्षेत्र अपने विशाल संसाधनों (Vast Resources) के कारण अत्यधिक आर्थिक और सामरिक महत्व रखता है। अनुमानों के अनुसार, इस क्षेत्र में दुनिया का लगभग 13% तेल और 30% प्राकृतिक गैस भंडार हैं। बर्फ की परत के पीछे हटने के कारण ये संसाधन तेजी से सुलभ हो रहे हैं, जिससे आर्कटिक में अन्वेषण और निष्कर्षण व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बन गया है।
● इसके अतिरिक्त, आर्कटिक एक महत्वपूर्ण पारगमन मार्ग है। उत्तरी समुद्री मार्ग , जो रूस के आर्कटिक तट के साथ चलता है, स्वेज नहर मार्ग की तुलना में यूरोप और एशिया के बीच समुद्री यात्रा के समय को लगभग 40% तक कम करता है। इससे वैश्विक व्यापार, ऊर्जा परिवहन और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
आर्कटिक परिषद:
आर्कटिक का शासन मुख्य रूप से आर्कटिक परिषद द्वारा निर्धारित किया जाता है, जोकि आर्कटिक राज्यों – रूस, अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क और आइसलैंड – से मिलकर बना एक अंतर-सरकारी मंच है। भारत और चीन जैसे गैर-आर्कटिक राज्यों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है, उनका प्रभाव सीमित है। हालाँकि, बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और जलवायु-संचालित परिवर्तन के साथ, गैर-आर्कटिक राज्यों की भूमिका का विस्तार हो रहा है।
भारत की आर्कटिक नीति और सामरिक हित:
भारत की आर्कटिक भागीदारी 1920 में स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुई, जिसने इसे वैज्ञानिक अनुसंधान और आर्थिक गतिविधियों के लिए आर्कटिक तक पहुँच प्रदान की। 2007 में, भारत ने नॉर्वे के स्वालबार्ड में "हिमाद्री अनुसंधान केंद्र" की स्थापना की, जो आर्कटिक में उसकी पहली स्थायी उपस्थिति थी।
2022 में, भारत ने छह प्रमुख स्तंभों पर आधारित एक व्यापक आर्कटिक नीति का अनावरण करके अपनी आर्कटिक महत्वाकांक्षाओं को औपचारिक रूप दिया:
1. वैज्ञानिक अनुसंधान और जलवायु अध्ययन - जलवायु अनुसंधान, आर्कटिक मौसम मॉडलिंग और पर्यावरण अध्ययन में भारत की भागीदारी को बढ़ाना।
2. आर्थिक एवं संसाधन विकास - टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए ऊर्जा और खनिज संसाधन अवसरों की खोज करना।
3. शिपिंग और कनेक्टिविटी - व्यापार और रसद लाभों के लिए एनएसआर जैसे आर्कटिक शिपिंग मार्गों का मूल्यांकन करना।
4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शासन - आर्कटिक राज्यों और संस्थानों के साथ राजनयिक जुड़ाव को मजबूत करना।
5. क्षमता निर्माण और मानव संसाधन - आर्कटिक अन्वेषण के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और स्वदेशी क्षमताओं का विकास करना।
6. पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता - पर्यावरणीय प्रबंधन के साथ आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करना।
यद्यपि आर्कटिक में भारत की भागीदारी मुख्यतः वैज्ञानिक और पर्यावरणीय रही है , लेकिन हाल के घटनाक्रम आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों की ओर बदलाव का संकेत देते हैं, विशेष रूप से रूस के साथ सहयोग में।
भारत-रूस संबंध और आर्कटिक सहयोग:
आर्कटिक के हाइड्रोकार्बन और खनिज भंडार में भारत की बढ़ती रूचि रूस के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी से जुड़ी है। रूस आर्कटिक के लगभग 50-55% हिस्से पर सीमा बनाता है , जिससे आर्कटिक संसाधनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।
भारत ने पहले ही रूसी तेल और गैस परियोजनाओं में 15 बिलियन डॉलर का निवेश किया है , जो इस क्षेत्र से ऊर्जा संसाधनों को सुरक्षित करने के लिए उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 22वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन में, दोनों देशों ने विशेष रूप से रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्रों में व्यापार और निवेश सहयोग को गहरा करने पर जोर दिया हैं ।
1. ऊर्जा सुरक्षा और हाइड्रोकार्बन अन्वेषण:
o भारत ने आर्को (Arco) और नोवी पोर्ट (Novi Port) जैसे आर्कटिक ग्रेड के रूसी कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया है।
o भारतीय और रूसी ऊर्जा कम्पनियों के बीच संयुक्त उद्यम से आर्कटिक तेल और गैस भंडारों तक भारत की पहुंच बढ़ सकती है।
2. उत्तरी समुद्री मार्ग (एनएसआर) विकास:
o एनएसआर व्यापार मार्गों पर सहयोग करने के लिए व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (आईआरआईजीसी-टीईसी) के लिए भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के अंतर्गत एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की गई है ।
o भारतीय सरकारी संस्था मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स ने आर्कटिक वाणिज्यिक शिपिंग को मजबूत करने के लिए रूस के ज़्वेज़्दा शिपयार्ड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए है।
3. बहुपक्षीय आर्कटिक जुड़ाव:
o यूक्रेन संघर्ष के बाद पश्चिमी विरोध के बावजूद, रूस भारत के साथ आर्कटिक सहयोग जारी रख रहा है , विशेष रूप से यमल-नेनेट्स क्षेत्र में स्नेझिंका आर्कटिक स्टेशन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा पहलों में ।
o रूसी मंच के माध्यम से आर्कटिक शासन में भारत की भागीदारी उसे इस क्षेत्र में रणनीतिक उपस्थिति प्रदान करती है।
आर्कटिक में रूस और चीन को संतुलित करना:
● चीन ने "पोलर सिल्क रोड" पहल के तहत अपनी आर्कटिक महत्वाकांक्षाओं का विस्तार किया है। हालाँकि, रूस के सुदूर पूर्व में चीन की बढ़ती मुखरता ने रूस-चीन आर्कटिक संबंधों में तनाव पैदा किया है।
● भारत के तटस्थ और टाइम टेस्टेड संबंध मास्को को चीन के प्रभाव का प्रतिकार करने का अवसर देते हैं।
आर्कटिक सहयोग को गहरा करके, भारत रूस के लिए अपने भू-रणनीतिक महत्व को बढ़ा सकता है और साथ ही दीर्घकालिक ऊर्जा एवं व्यापार हितों को सुरक्षित कर सकता है।
भारत की आर्कटिक भागीदारी में चुनौतियाँ:
1. तकनीकी बाधाएँ:
o भारत के पास बर्फ तोड़ने वाले बेड़े (Icebreaker Fleet) और ध्रुवीय बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिससे व्यापक आर्कटिक अभियान चलाने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
o चीन के विपरीत, जिसने आर्कटिक लॉजिस्टिक्स में निवेश किया है, भारत की तकनीकी उपस्थिति न्यूनतम बनी हुई है।
2. आर्कटिक शासन में सीमित प्रभाव:
o आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक राज्य होने के कारण, भारत के पास मतदान का अधिकार नही, जिससे उसका नीति निर्धारण प्रभाव सीमित हो जाता है।
o पश्चिमी नेतृत्व वाले भू-राजनीतिक तनाव , जैसे नाटो-रूस संघर्ष , भारत की साझेदारियों को प्रभावित करते हैं।।
3. पर्यावरण और स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
o भारत सतत आर्कटिक संसाधन विकास का समर्थन करता है , लेकिन आर्थिक और पारिस्थितिक प्राथमिकताओं में संतुलन बनाना जटिल बना हुआ है।
o जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों को भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों के अनुरूप होना चाहिए।
भारत की आर्कटिक नीति में रणनीतिक बदलाव की आवश्यकता:
भारत का आर्कटिक क्षेत्र में जुड़ाव अब तक वैज्ञानिक रूप से संचालित रहा है, लेकिन आर्कटिक संसाधनों पर वैश्विक प्रतिस्पर्धा के चलते अधिक व्यापक भू-राजनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
एक महत्वपूर्ण संस्थागत पुनर्संयोजन की आवश्यकता है:
● वर्तमान में, भारत की आर्कटिक नीति की देखरेख पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( MoES ) द्वारा की जाती है, जबकि आर्कटिक कूटनीति का प्रबंधन विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा किया जाता है।
● विदेश मंत्रालय को आर्कटिक नीति निर्माण में रणनीतिक और आर्थिक आयामों को एकीकृत करने में केन्द्रीय भूमिका निभानी चाहिए।
● अंतर-मंत्रालयी समन्वय को मजबूत करके भारत अपनी नीतियों को अधिक प्रभावी बना सकता है।
● भारत को बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्रों और रसद क्षमताओं का विस्तार करने से आर्कटिक में भारत की स्थायी उपस्थिति सुनिश्चित होगी।
● रूस से परे आर्कटिक देशों (जैसे, नॉर्वे और कनाडा) के साथ सहयोग से भारत के रणनीतिक विकल्पों में विविधता आएगी।
निष्कर्ष:
चूंकि आर्कटिक भू-राजनीतिक युद्धक्षेत्र में तब्दील हो रहा है, इसलिए भारत को वैज्ञानिक अनुसंधान से आगे बढ़कर खुद को एक विश्वसनीय आर्कटिक हितधारक के रूप में स्थापित करना होगा। जबकि रूस के साथ सहयोग आर्थिक और रणनीतिक लाभ प्रदान करता है, भारत को एक ही भागीदार पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए एक संतुलित जुड़ाव रणनीति सुनिश्चित करनी चाहिए।
संस्थागत सुधारों, बुनियादी ढांचे के विस्तार और बहुपक्षीय आर्कटिक कूटनीति भारत ke लिए निर्णायक साबित हो सकती हैं। यदि भारत निष्क्रिय रहता है, तो उसे आर्कटिक शासन में हाशिए पर जाने का जोखिम होगा। हालाँकि, अपनी आर्कटिक रणनीति को सक्रिय रूप से मजबूत करके ,भारत इस उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य में दीर्घकालिक संसाधन पहुंच , व्यापार के अवसर और वैश्विक रणनीतिक प्रभाव को सुरक्षित कर सकता है।
मुख्य प्रश्न : भारत-रूस व्यापार संबंधों को बढ़ाने में उत्तरी समुद्री मार्ग (एनएसआर) की भूमिका और वैश्विक शिपिंग गतिशीलता पर इसके प्रभाव का आकलन करें। |