संदर्भ:
भारत लंबे समय से दुनिया के सबसे बड़े प्रेषण प्राप्त करने वाले देशों में से एक रहा है, जहाँ लाखों प्रवासी भारतीय अपने घर पैसे भेजते हैं। हालाँकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा किए गए नवीनतम प्रेषण सर्वेक्षण (2023-24) से पता चलता है कि भारत के प्रेषण प्रवाह में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। पहली बार, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AEs), जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया, से प्राप्त प्रेषण ने खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों (सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान, बहरीन और कुवैत) से प्राप्त प्रेषण को पीछे छोड़ दिया है।
यह बदलाव केवल एक सांख्यिकीय परिवर्तन नहीं है बल्कि वैश्विक प्रवासन पैटर्न, रोजगार के अवसरों और आर्थिक नीतियों में व्यापक परिवर्तनों को दर्शाता है। खाड़ी देशों पर निर्भरता में कमी और उच्च आय वाले देशों से बढ़ती प्रेषण राशि यह संकेत देती है कि भारत अब निम्न-मजदूरी, मात्रा-आधारित प्रेषण से उच्च-मूल्य, कुशल पेशेवरों द्वारा भेजे गए प्रेषण की ओर बढ़ रहा है।
जहाँ यह बदलाव भारत की आर्थिक स्थिरता को सुदृढ़ करता है, वहीं यह प्रवासन प्रवृत्तियों, श्रम बाजार की गतिशीलता और प्रेषण प्रवाह की स्थिरता से जुड़े महत्वपूर्ण नीति पर प्रश्न भी उठाता है। इन प्रवृत्तियों की गहन समझ उन नीतियों को तैयार करने के लिए आवश्यक है जो प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करें और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए प्रेषण लाभ को अधिकतम करें।
खाड़ी देशों से घटते प्रेषण: कारण और प्रभाव
ऐतिहासिक रूप से, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देश भारत की प्रेषण अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे हैं, मुख्यतः वहाँ कार्यरत बड़ी संख्या में भारतीय ब्लू-कॉलर (शारीरिक श्रम करने वाले) श्रमिकों के कारण। हाल की रिपोर्टों के अनुसार खाड़ी देशों से आने वाले प्रेषण में गिरावट आई है। इसके पीछे कई कारण हैं:
1. कोविड-19 के कारण आर्थिक संकट
कोविड-19 महामारी ने खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा असर डाला, जिससे:
• भारतीय प्रवासी श्रमिकों की बड़ी संख्या में नौकरियाँ चली गईं।
• वेतन में कटौती हुई, जिससे प्रेषण भेजने योग्य आय में कमी आई।
• अस्थायी वापसी प्रवासन हुआ, यानी कई श्रमिकों को भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा।
2. खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) में राष्ट्रीयकरण की नीतियाँ-
कई खाड़ी देशों ने विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम करने और स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए श्रम राष्ट्रीयकरण नीतियाँ लागू की हैं।
• सऊदी अरब की "सऊदीकरण" (Nitaqat) नीति निजी क्षेत्र की नौकरियों में सऊदी नागरिकों को प्राथमिकता देती है।
• यूएई की "एमिरातीकरण" रणनीति ने भी कंपनियों को विदेशी श्रमिकों की जगह स्थानीय लोगों को नियुक्त करने के लिए प्रेरित किया है।
इन नीतियों ने भारतीय प्रवासियों के लिए रोजगार के अवसरों में कमी की है, जिससे इन क्षेत्रों से प्रेषण में गिरावट आई है।
3. जीसीसी प्रेषण का घटता हिस्सा
आर्थिक और श्रम नीतियों में हुए इन परिवर्तनों के कारण जीसीसी देशों से आने वाले प्रेषण का हिस्सा स्पष्ट रूप से घटा है:
• यूएई का कुल प्रेषण में हिस्सा 26.9% (2016-17) से घटकर 19.2% (2023-24) हो गया।
• सऊदी अरब का हिस्सा 11.6% से घटकर 6.7% हो गया।
• कुवैत का हिस्सा 6.5% से घटकर 3.9% हो गया।
जीसीसी प्रेषण का भविष्य-
इन प्रवृत्तियों के बावजूद, यदि खाड़ी देशों की आर्थिक स्थिति स्थिर होती है और श्रम नीतियाँ कुशल विदेशी श्रमिकों को समायोजित करने की दिशा में विकसित होती हैं, तो वहाँ से प्रेषण प्रवाह में सुधार हो सकता है। हालांकि, समग्र रुझान यह दर्शाते हैं कि भारत की प्रवासन नीति अब निम्न-कुशल श्रम प्रवासन से हटकर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कुशल पेशेवरों के प्रवासन की ओर बढ़ रही है।
विकसित अर्थव्यवस्थाओं (AEs) से बढ़ते प्रेषण: कारण और प्रभाव-
जहाँ एक ओर खाड़ी देशों से प्रेषण में गिरावट आई है, वहीं दूसरी ओर विकसित अर्थव्यवस्थाओं (AEs) से भारत को मिलने वाले प्रेषण में निरंतर वृद्धि हो रही है।
1. अमेरिका सबसे बड़ा योगदानकर्ता
• 2023-24 में अमेरिका का भारत के कुल प्रेषण में योगदान 27.7% रहा, जो 2016-17 में 22.9% और 2020-21 में 23.4% था।
• हालाँकि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की संख्या खाड़ी देशों की तुलना में कम है, फिर भी वहाँ की उच्च आय और क्रय शक्ति के कारण प्रति व्यक्ति प्रेषण अधिक है।
2. अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं (AEs) से बढ़ता प्रेषण
• यूके का हिस्सा 3% (2016-17) से बढ़कर 10.8% (2023-24) हुआ।
• कनाडा का हिस्सा 3% से 3.8% तक बढ़ा।
• सिंगापुर का हिस्सा 5.5% से 6.6% तक पहुंचा।
3. विकसित अर्थव्यवस्थाओं (AEs) से अधिक प्रेषण के कारण
a) उच्च आय और क्रय शक्ति
• स्टेम (STEM- Science, Technology, Engineering, Mathematics) वित्त और स्वास्थ्य क्षेत्रों में काम कर रहे भारतीय पेशेवर विकसित अर्थव्यवस्थाओं AEs में खाड़ी देशों की तुलना में काफी अधिक कमाते हैं।
• विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मजबूत विनिमय दर (विशेष रूप से अमेरिकी डॉलर) प्रेषण के वास्तविक मूल्य को बढ़ाती है।
b) प्रवासन पैटर्न में बदलाव
• कुशल भारतीय पेशेवर अब जर्मनी, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर बेहतर अवसरों की तलाश में जा रहे हैं।
• ये प्रवासी आम तौर पर अधिक प्रेषण भेजते हैं, जिससे भारत का प्रेषण प्रवाह बढ़ता है।
c) प्रवासन नीतियों में अनिश्चितता
• कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं (AEs) में दक्षिणपंथी राजनीति के कारण प्रवासन नीतियाँ सख्त हो रही हैं।
• इस अनिश्चितता के चलते कई भारतीय प्रवासी अपने मेजबान देशों में निवेश करने की बजाय अपने घर अधिक धन भेजते हैं।
प्रेषण वृद्धि में भारतीय छात्रों की भूमिका
1. बढ़ता छात्र प्रवासन
• अब भारत के प्रेषण प्रवाह का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे भारतीय छात्रों से आता है।
• ये छात्र ऋण भुगतान और पारिवारिक वित्तीय सहायता के माध्यम से प्रेषण में योगदान करते हैं।
2. “डेस्किलिंग” और अल्प-रोज़गार की चुनौती
• कनाडा और यूके में कई भारतीय छात्र “स्वेच्छा से डेस्किलिंग” का सामना कर रहे हैं, जहाँ उन्हें स्थायी निवास के लिए खुद को निम्न-स्तरीय नौकरियों (खुदरा, होटल, डिलीवरी) तक सीमित करना पड़ता है।
• यह उनकी दीर्घकालिक आय क्षमता को सीमित करता है, जिससे भविष्य में प्रेषण प्रवाह पर असर पड़ता है।
3. वीजा नीतियों में बदलाव का प्रभाव
• कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अचानक वीज़ा नियमों में बदलाव से छात्रों के करियर प्रभावित होते हैं, जिससे वे प्रेषण भेजने में असमर्थ हो सकते हैं।
भारत की प्रेषण अर्थव्यवस्था में भविष्य की प्रवृत्तियाँ-
1. विकसित अर्थव्यवस्था (AEs) से प्रेषण में संभावित वृद्धि – जैसे-जैसे कुशल प्रवास बढ़ेगा, अमेरिका, यूके और कनाडा जैसे देशों से प्रेषण बढ़ते रहेंगे।
2. भारत में वापसी प्रवासन की संभावना – यदि प्रवासन नीतियाँ और अधिक सख्त होती हैं, तो कुछ भारतीय पेशेवर भारत लौट सकते हैं, और अपने वित्तीय संसाधन व प्रेषण साथ ला सकते हैं।
3. खाड़ी प्रेषण का स्थिरीकरण – GCC क्षेत्र में आर्थिक सुधार रोजगार के अवसरों को पुनर्जीवित कर सकते हैं, जिससे वहाँ से प्रेषण स्थिर हो सकता है।
प्रेषण लाभ को अधिकतम करने के लिए नीति सुझाव
1. कौशल समन्वय और प्रवासन नीतियाँ – भारत को अपनी शिक्षा और कौशल विकास योजनाओं को वैश्विक श्रम बाजार से जोड़ना चाहिए ताकि भारतीय कामगार अपनी योग्यता के अनुसार नौकरियाँ प्राप्त कर सकें।
2. विदेशों में भारतीय छात्रों के डेस्किलिंग को रोकना – सरकार को मेजबान देशों के साथ समझौते करने चाहिए ताकि योग्य भारतीय स्नातकों को उनकी विशेषज्ञता के अनुसार रोजगार मिल सके।
3. लौटने वाले प्रवासियों के लिए निवेश प्रोत्साहन: भारत को लौटने वाले प्रवासियों को घरेलू अर्थव्यवस्था में पुनः निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रेषण दीर्घकालिक आर्थिक विकास में योगदान देता है।
निष्कर्ष
भारत का धन प्रेषण परिदृश्य एक मौलिक परिवर्तन से गुजर रहा है, जो खाड़ी आधारित, निम्न-वेतन प्रेषण से हटकर विकसित देशों के कुशल पेशेवरों द्वारा भेजे गए उच्च-मूल्य प्रेषण की ओर बढ़ रहा है। यह बदलाव अवसरों और चुनौतियों दोनों को प्रस्तुत करता है। यह जहाँ भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है, वहीं रणनीतिक नीति हस्तक्षेप की भी माँग करता है ताकि प्रेषण लाभ अधिकतम हों और प्रवासी श्रमिकों को समर्थन मिल सके। कौशल अंतर को दूर कर, प्रवासन नीतियों में सुधार कर और श्रम बाजार में एकीकरण सुनिश्चित कर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि प्रेषण आर्थिक विकास का एक सशक्त स्रोत बना रहे।
मुख्य प्रश्न: भारत का धन प्रेषण परिदृश्य खाड़ी से कम वेतन वाले धन प्रेषण से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से उच्च मूल्य वाले अंतर्वाह में बदल रहा है। भारत धन प्रेषण के लाभों को अधिकतम करने और सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए क्या रणनीतिक नीतिगत हस्तक्षेप कर सकता है? (250 शब्द) |