भारत के फार्मास्युटिकल और मेडिकल डिवाइस क्षेत्र देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी तेजी से योगदान दे रहे हैं। सरकार के मजबूत सहयोग, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के निरंतर प्रवाह और परिवर्तनकारी उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के कारण ये क्षेत्र निरंतर वृद्धि और नवाचार के लिए तैयार हैं।
फार्मास्युटिकल विभाग, जो रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अंतर्गत आता है, इन क्षेत्रों की प्रमुख निगरानी संस्था है। इसका उद्देश्य गुणवत्ता वाली दवाओं की सुलभता सुनिश्चित करना और भारत को वैश्विक फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अग्रणी बनाना है। भारत को "दुनिया की फार्मेसी" के रूप में मान्यता प्राप्त है क्योंकि यहां किफायती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं, विशेष रूप से ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं, बनाई जाती हैं। भारत वैक्सीन आपूर्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लगातार यूनिसेफ का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है, DPT, BCG और खसरा जैसी वैक्सीन्स की वैश्विक मांग का बड़ा हिस्सा पूरा करता है।
- इस संदर्भ में, भारत के फार्मास्युटिकल और मेडिकल डिवाइस क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान अप्रैल से दिसंबर तक 11,888 करोड़ रुपये का एफडीआई प्रवाह हुआ है। इसके अलावा, 2024-25 के दौरान ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के लिए 7,246.40 करोड़ रुपये के 13 एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है, जिससे कुल एफडीआई 19,134.4 करोड़ रुपये हो गया है। यह आंकड़ा फार्मास्युटिकल विभाग द्वारा संकलित किया गया है।
उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं
2020 में शुरू की गई PLI योजनाओं का उद्देश्य घरेलू निर्माण को बढ़ावा देना, आयात पर निर्भरता कम करना और निर्यात को प्रोत्साहित करना है। फार्मास्युटिकल विभाग ने तीन प्रमुख PLI योजनाएं शुरू की हैं:
• फार्मास्युटिकल्स के लिए PLI योजना (₹15,000 करोड़): 2021 में शुरू की गई यह योजना वित्त वर्ष 2022–23 से 2027–28 तक लागू की जाएगी। यह जटिल जेनेरिक दवाएं, बायोफार्मास्युटिकल्स, पेटेंट वाली दवाएं, API और कैंसर व डायबिटीज जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की दवाएं बनाने वाली 55 चयनित कंपनियों को सहयोग देती है।
• बल्क ड्रग्स के लिए PLI योजना (₹6,940 करोड़): मार्च 2020 में शुरू की गई यह योजना 41 प्रमुख बल्क ड्रग्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देती है। दिसंबर 2024 तक 48 परियोजनाएं चयनित की गईं, जिनमें से 34 ने परिचालन शुरू कर दिया है और 25 बल्क ड्रग्स का उत्पादन हो रहा है। कुल निवेश ₹4,253.92 करोड़ रहा, जो प्रारंभिक लक्ष्य ₹3,938.57 करोड़ से अधिक है। उल्लेखनीय उदाहरणों में आंध्र प्रदेश में पेनिसिलिन जी (₹1,910 करोड़ निवेश, ₹2,700 करोड़ आयात प्रतिस्थापन) और हिमाचल प्रदेश में क्लावुलैनिक एसिड (₹450 करोड़ निवेश, ₹600 करोड़ प्रतिस्थापन मूल्य) शामिल हैं।
• मेडिकल डिवाइसेज के लिए PLI योजना (₹3,420 करोड़): यह पहल रेडियोलॉजी उपकरण, कैंसर उपचार तकनीक और इम्प्लांट जैसे उच्च तकनीकी उपकरणों के घरेलू निर्माण को प्रोत्साहित करती है। लाभार्थियों को पांच वर्षों तक वृद्धिशील बिक्री पर 5% प्रोत्साहन दिया जाता है।
प्रमुख सहायक पहलें:
• मेडिकल डिवाइस क्षेत्र: भारत का मेडिकल डिवाइस उद्योग इलेक्ट्रो-मेडिकल उपकरण, सर्जिकल टूल्स, डायग्नोस्टिक रिएजेंट्स, इम्प्लांट्स और डिस्पोजेबल्स जैसे विविध उत्पादों को शामिल करता है। यह क्षेत्र पूंजी और प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जिसमें निरंतर नवाचार और कुशल जनशक्ति की आवश्यकता होती है। घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने, गुणवत्ता मानकों में सुधार करने और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है।
• बल्क ड्रग पार्क्स का प्रोत्साहन: निर्माण लागत को कम करने और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 2020 में बल्क ड्रग पार्क्स योजना को मंजूरी दी। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में तीन पार्क विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें प्रति पार्क अधिकतम ₹1,000 करोड़ या कुल परियोजना लागत का 70% (पहाड़ी/पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90%) तक वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है। इस योजना का कुल परिव्यय ₹3,000 करोड़ है और यह FY 2025–26 तक मान्य है।
• प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP): इस योजना का उद्देश्य जन औषधि केंद्रों के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना है। अप्रैल 2025 तक देशभर में ऐसे 15,479 केंद्र कार्यरत हैं। ये केंद्र जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देते हैं और इस भ्रांति को चुनौती देते हैं कि केवल महंगी दवाएं ही प्रभावी होती हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं में लोगों का भरोसा बढ़ता है।
फार्मास्युटिकल उद्योग को सशक्त बनाने की योजना (SPI)
₹500 करोड़ के परिव्यय वाली यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को उनके बुनियादी ढांचे और नियामक अनुपालन में सुधार के लिए समर्थन देती है। यह योजना FY 2021–22 से FY 2025–26 तक मान्य है और इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
• नियामक मानकों का उन्नयन: संशोधित शेड्यूल M और WHO-GMP प्रमाणन प्राप्त करने वाले संयंत्रों के लिए प्रतिपूर्ति-आधारित सहायता दी जाती है।
• बुनियादी ढांचा विकास: परीक्षण प्रयोगशालाएं, प्रशिक्षण केंद्र और अनुसंधान हब जैसे साझा क्लस्टर सुविधाओं के निर्माण के लिए निधि उपलब्ध कराई जाती है।
• ज्ञान विनिमय को बढ़ावा: यह योजना नीति अनुसंधान, डेटाबेस विकास और शिक्षाविदों, उद्योग और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग को समर्थन देती है।
सक्षम सुधार: पेटेंट कानून और अनुसंधान एवं विकास (R&D)
भारत की फार्मास्युटिकल सफलता की कहानी इसके पेटेंट कानूनों पर आधारित है। 1970 के पेटेंट अधिनियम ने फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए पेटेंट को बाहर रखा, जिससे घरेलू कंपनियों को रिवर्स इंजीनियरिंग के माध्यम से किफायती विकल्प बनाने का अवसर मिला। इससे जेनेरिक दवा उद्योग को बढ़ावा मिला।
WTO के TRIPS समझौते के लागू होने के बाद, भारत ने 2005 से फार्मास्युटिकल उत्पादों पर पेटेंट की अनुमति देने के लिए अपने कानूनों में संशोधन किया। इसके बाद अनुसंधान प्राथमिकताओं में बदलाव आया—जहां शुरुआती 2000 के दशक में R&D बजट का 60–65% हिस्सा प्रक्रिया और रिवर्स इंजीनियरिंग में जाता था, वहीं 2005 के बाद नवाचार पर फोकस बढ़ा और अब इस पर 30–35% R&D निवेश होता है।
भविष्य की चुनौतियां:
• बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): ड्राफ्ट पेटेंट (संशोधन) नियम, 2023 को लेकर सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता पर प्रभाव की चिंता है।
• गुणवत्ता आश्वासन: पूरे उत्पादन और वितरण नेटवर्क में उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
• नियामक जटिलता: लगातार बदलते और सख्त नियमों का पालन करना, विशेषकर छोटी कंपनियों के लिए, एक बोझ है।
• प्रतिभा की कमी: अनुसंधान, गुणवत्ता नियंत्रण और निर्माण में कुशल पेशेवरों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जबकि आपूर्ति सीमित है।
निष्कर्ष:
भारत का फार्मास्युटिकल और मेडिकल डिवाइस क्षेत्र सरकारी नीतियों, अंतरराष्ट्रीय निवेश और घरेलू नवाचार के सहयोग से निरंतर प्रगति कर रहा है। PLI और SPI जैसी रणनीतिक योजनाएं, बुनियादी ढांचे का विकास और नियामक आधुनिकीकरण भारत को वैश्विक फार्मा और मेडिकल टेक्नोलॉजी हब के रूप में सशक्त बना रहे हैं।
सस्ती स्वास्थ्य सेवा, अनुसंधान और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, ये क्षेत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में प्रमुख भूमिका निभाते रहेंगे। जैसे-जैसे भारत नवाचार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ेगा, फार्मास्युटिकल और मेडिकल डिवाइस उद्योग राष्ट्रीय विकास के मजबूत स्तंभ बने रहेंगे।
मुख्य प्रश्न: भारत को अपने मजबूत जेनेरिक दवा उद्योग और वैक्सीन आपूर्ति श्रृंखला के कारण अक्सर "विश्व की फार्मेसी" कहा जाता है। इसके आलोक में, भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र को मजबूत करने और इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में सरकारी पहल और सुधारों की भूमिका पर चर्चा करें। |