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Daily-current-affairs / 01 May 2024

भारत का ऊर्जा परिदृश्य - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ-

भारत ने महत्वाकांक्षी ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों को निर्धारित किया है, इसी के साथ, देश अपने बिजली क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास और विविधीकरण कर रहा है। यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के प्रति प्रतिबद्धता के साथ, भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी स्थापित क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी को 50% तक बढ़ाना है। इसके अलावा, भारत ने 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का एक दीर्घकालिक लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार

  •  नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में प्रगतिः भारत ने पिछले एक दशक में अपनी नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) क्षमता के विस्तार में महत्वपूर्ण प्रगति की है। पिछले 10 वर्षों में देश में लगभग 109 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (बड़ी पनबिजली को छोड़कर) की वृद्धि हुई है।
  • राज्य आधारित पहल और नीतिगत समर्थनः राज्य-नोडल एजेंसियों ने अक्षय ऊर्जा पहल को चलाने, विशेषज्ञता प्राप्त करने और एसोसिएशन ऑफ रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसियों ऑफ स्टेट्स(AREAS) जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों और घरेलू सामग्री आवश्यकताओं जैसी नीतिगत पहलों ने घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित किया है, जबकि नियामक समर्थन ने निवेश जोखिमों का समाधान कर मांग को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) और ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम जैसी योजनाओं ने अक्षय ऊर्जा विस्तार के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देते हुए बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और सहायता प्रदान की है।

पवन ऊर्जा

  • जून 2023 तक, पवन ऊर्जा अक्षय स्रोतों की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 34% थी। भारत विश्व स्तर पर तटवर्ती पवन प्रतिष्ठानों के लिए चौथा सबसे बड़ा बाजार है, यह विश्व के पवन टरबाइन घटक कारखानों के लगभग 10% की मेजबानी करता है।
  • पवन ऊर्जा की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए, भारत ने राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति और राष्ट्रीय पवन एवं सौर संकर नीति जैसी योजनाएं पेश की हैं। इसके अतिरिक्त, अपतटीय और सौर पवन प्रौद्योगिकियों को मिलाकर संकर संयंत्र स्थापित करने हेतु पहल चल रही है, जो अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

सौर ऊर्जा

  • सौर ऊर्जा में भारत की प्रगति उल्लेखनीय रही है, जिसने देश को इस क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है। 2018 से 2023 तक सौर क्षमता में 200% की वृद्धि हुई है, परिणामतः सौर ऊर्जा भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया है। यह 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% बिजली क्षमता प्राप्त करने में सौर ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • हालिया वर्षों में भारत में घरेलू सौर विनिर्माण क्षमताओं में वृद्धि देखी गई है, विभिन्न अनुमानों के अनुसार 2021 की तुलना में 2025 तक सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता में चार गुना वृद्धि होगी। प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) जैसी नीतियों और सौर पैनल निर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहनों ने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है।

ग्रीन हाइड्रोजन

  • हरित हाइड्रोजन में भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिए एक आशाजनक अवसर प्रस्तुत करता है। ध्यातव्य हो कि हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान में हाइड्रोजन की मांग के एक महत्वपूर्ण भाग को जीवाश्म ईंधन के माध्यम से पूरा किया जाता है, हरित हाइड्रोजन पर भारत का ध्यान नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों और जलवायु उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होगा। 2021 में शुरू किए गए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन से 2030 तक लगभग छह लाख नौकरियों के सृजन की उम्मीद है, जो आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों में योगदान देगा। भारत के लिए हरित हाइड्रोजन मानक और इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन जैसे नीति आयोग के व्यापक रोडमैप और नीतिगत उपाय हरित हाइड्रोजन एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करते हैं।

जैव ऊर्जा

  • बायोमास और जैविक अपशिष्ट स्रोतों से प्राप्त जैव ऊर्जा भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में महत्वपूर्ण है। देश की प्राथमिक ऊर्जा खपत के एक बड़े हिस्से के लिए बायोमास के साथ, जैव ऊर्जा परियोजनाओं ने ऊर्जा की जरूरतों को स्थायी रूप से पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम और जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति जैव-ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने और इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक नीतिगत ढांचा प्रदान करते हैं।
  • सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) जैसी पहलों का उद्देश्य परिवहन क्षेत्र के लिए ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने हेतु संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त, GOBARDHAN जैसी योजनाएं ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाते हुए पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देती हैं।

ऊर्जा भंडारण समाधान

  • ग्रिड स्थिरता संबंधी चुनौतियों का समाधानः ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियां ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण के साथ इनका विशेष महत्व है। बैटरी और पम्प्ड स्टोरेज हाइड्रोपावर (पीएसएच) जैसे ऊर्जा भंडारण विकल्पों पर भारत का ध्यान ऊर्जा प्रणालियों को अनुकूलित करने के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है। फ्लाईव्हील, सुपरकैपेसिटर और हाइड्रोजन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां ग्रिड-स्तरीय संतुलन और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र का समर्थन करने के लिए आशाजनक समाधान प्रदान करती हैं।
  • घरेलू बैटरी निर्माण को बढ़ावा देनाः देश के ऊर्जा परिवर्तन, आयात लागत को कम करने और विदेशी बाजारों पर निर्भरता को कम करने के लिए एक मजबूत घरेलू बैटरी निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है। राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन और उन्नत रसायन विज्ञान प्रकोष्ठ (एसीसी) बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम जैसी नीतियां घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करती हैं और बैटरी क्षेत्र में नवाचार और रोजगार सृजन को बढ़ावा देती हैं।

उभरती हुई तकनीकें

  • नई तकनीकों की खोजः महासागर ऊर्जा और भू-तापीय ऊर्जा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर भारत का ध्यान विविध नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की खोज के लिए प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की पहलों का उद्देश्य इन क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास, नवाचार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • नकारात्मक उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों का दोहनः नकारात्मक उत्सर्जन प्रौद्योगिकियां (एनईटी) विशेष रूप से कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के नेतृत्व में कार्बन कैप्चर जैसी परियोजनाएं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीयूएस प्रौद्योगिकियों को लागू कर रहीं हैं।

निष्कर्ष
पिछले एक दशक में अक्षय ऊर्जा के विस्तार और डीकार्बोनाइजेशन के प्रयासों में भारत द्वारा की गई प्रगति सराहनीय है, जो सतत विकास और जलवायु कार्रवाई के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सौर और पवन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि से लेकर हरित हाइड्रोजन और जैव ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली पहलों तक, भारत ने एक स्वच्छ और लचीले ऊर्जा भविष्य के लिए एक ठोस नींव रखी है। एक स्थायी और ऊर्जा-सुरक्षित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए निरंतर नीतिगत समर्थन, घरेलू विनिर्माण में निवेश और उभरती प्रौद्योगिकियों में नवाचार आवश्यक होगा।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    भारत के नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार के प्रयास, विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा में, ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने और एक स्थायी ऊर्जा परिदृश्य में संक्रमण के अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों के साथ कैसे संरेखित होते हैं? (10 Marks, 150 Words)

2.    हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण समाधान जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए भारत ने कौन सी नीतियां और पहल लागू की हैं, और ये प्रयास डीकार्बोनाइजेशन और जलवायु शमन में राष्ट्र के प्रयासों में कैसे योगदान करते हैं? (15 Marks, 250 Words)

 

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