संदर्भ-
भारत का श्रम बाजार अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, क्योंकि देश कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। देश की युवा आबादी, जिसकी औसत आयु 28.4 वर्ष है, इस आर्थिक विस्तार को बढ़ावा देने की कुंजी है। 7.8 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर के साथ, भारत संभावित रूप से 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है, देश की इस तेज वृद्धि को मजबूत निजी खपत और सार्वजनिक निवेश द्वारा बढ़ावा मिल रहा है।
वैश्विक परिदृश्य में बदलावः भारत के लिए अवसर
भारत ने अपने लक्ष्य वैश्विक परिदृश्य और विनिर्माण की गतिशीलता में चल रहे उन परिवर्तनों के बावजूद निर्धारित किए हैं, जो महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति में व्यवधान के कारण हुए हैं। विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका (यू. एस.) की आयात मांग चीन की प्रतिस्पर्धी लागत संरचना की तुलना में भारत में प्रचुर श्रम संसाधनों और यहाँ के बढ़ते घरेलू बाजार के कारण भारत की ओर आकर्षित हुई है। भारत में विनिर्माण एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसने सकल मूल्य वर्धन(GVA) में लगातार 17-19 प्रतिशत का योगदान दिया है। भारत सरकार ने मेक इन इंडिया, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं और समर्थ उद्योग जैसी पहलों के माध्यम से विनिर्माण को प्राथमिकता दी है। इसके अलावा सेवा क्षेत्र जीवीए में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान देता है, जो रोजगार पैदा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की क्षमता प्रदर्शित करता है।
अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, पिछले एक दशक में विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार स्थिर हो गया है, और यहां तक कि इसमें गिरावट भी आई है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्र में यह स्पष्ट दिखाई देता है। तकनीकी प्रगति के कारण पूंजी-उत्पादन अनुपात में गिरावट आई है, और पूंजी-श्रम अनुपात में वृद्धि हुई है, यह भारत के बढ़ते कार्यबल को रोजगार देने की विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता के विषय में सवाल उठाता है। भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए रोजगार पर विभिन्न अनुमान बताते है, कि इस क्षेत्र में समग्र रोजगार में गिरावट जारी रहेगी।
अगले दशक में भारत के युवाओं को किस रोजगार बाजार की ओर देखना चाहिए?
आर्थिक विकास के लिए उच्चतम रोजगार लोच के साथ, भारत का सेवा क्षेत्र एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। विभिन्न रिपोर्ट में सेवा क्षेत्र के भीतर दस उप-क्षेत्रों की रोजगार क्षमता को उजागर किया गया है जिनमें 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विकास और रोजगार सृजन की सबसे ज्यादा क्षमता है। इन क्षेत्रों में डिजिटल सेवाएं (चौथी औद्योगिक क्रांति या 4आईआर, सामग्री अर्थव्यवस्था) वित्तीय सेवाएं (बैंकिंग और बीमा) स्वास्थ्य सेवाएं; आतिथ्य सेवाएं; उपभोक्ता खुदरा सेवाएं; वैश्विक क्षमता केंद्र; नवीकरणीय ऊर्जा; ई-कॉमर्स; एमएसएमई; और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में 2030 तक 10 करोड़ से अधिक नई नौकरियों का सृजन करने की क्षमता है।
भारत में अनुमानित बेरोजगारी दर
समावेशी विकास के लिए नीतिगत सिफारिशें
अगले दशक में भारत रोजगार वृद्धि के लिए प्रमुख नीतिगत सिफारिशें प्रस्तावित की गई हैं:
- रोजगार और उत्पादकता बढ़ानाः शैक्षणिक संस्थानों, निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं और नागरिक समाज के साथ सहयोग स्थापित किया जाना चाहिए ताकि रोजगार की कमी की पहचान की जा सके और पाठ्यक्रम एवं कार्यक्रमों को श्रम बाजार की जरूरतों के साथ संरेखित किया जा सके।
- कौशल में विविधीकरणः निरंतर मानव पूंजी विकास के लिए औपचारिक मेंटरशिप कार्यक्रमों और ब्रिज पाठ्यक्रमों के माध्यम से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी कौशल और उच्च प्रौद्योगिकी-वाली नौकरीयों के लिए कौशल विकाश किया जाना चाहिए।
- सेवा उद्योगों को प्राथमिकता : पर्यटन, आतिथ्य, वित्तीय सेवाओं और स्वास्थ्य सेवा जैसे उच्च रोजगार लोचदार क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए विनिर्माण प्रगति से अधिशेष श्रम को अवशोषित करने कि आवश्यकता है।
- उद्यमिता को प्रोत्साहन: रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार का समर्थन करने के लिए उद्यमिता हेतु एक सक्षम वातावरण निर्मित किया जाना चाहिए साथ ही महिला कार्यबल भागीदारी को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोगः सार्वजनिक-निजी सहयोग के माध्यम से रोजगार के लिए तैयार, अर्ध-कुशल और कुशल कार्यबल का विकास करना, नवाचार को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए व्यवसायों के भीतर अनुसंधान एवं विकास विभागों की स्थापना करने के साथ उन्हे मजबूत किया जाना चाहिए।
- रोजगार प्रोत्साहन के लिए सरकारी पहलों का लाभ उठानाः देश में रोजगार के अवसरों का उपयोग करने के लिए मौजूदा सरकारी नीतियों और पहलों का लाभ उठाना आवश्यक हैः
- डिजिटल इंडिया
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई)
- स्टार्टअप इंडिया
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं
- प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
इसके अतिरिक्त, पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौतों पर बातचीत करके; विशेष रूप से श्रम-गहन निर्यात क्षेत्रों के लिए, निवेश को आकर्षित किया जा सकता है और यह नए रोजगार पैदा करने में सहायक साबित होगा।
निष्कर्ष
2030 के लिए भारत का रोजगार दृष्टिकोण चुनौतियों और अवसरों का अनूठा परिदृश्य प्रस्तुत करता है। डिजिटल रूप से सशक्त, कुशल, अभिनव और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए व्यक्तियों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और सरकार सहित हितधारकों द्वारा समन्वित कार्रवाई आवश्यक है। उच्च क्षमता वाले सेवा क्षेत्रों में रोजगार सृजन को प्राथमिकता देकर और लक्षित नीतियों को लागू करके, भारत समावेशी विकास और आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित करते हुए अगले दशक के लिए अपने रोजगार बाजार को प्रभावी ढंग से बदल सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न- प्रश्न 1: भारत के श्रम बाजार ने कोविड-19 के बाद कैसे बदलाव प्रदर्शित किया है और 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के देश के लक्ष्य के पीछे प्रमुख चालक कारक क्या हैं? 2030 तक महत्वपूर्ण रोजगार सृजन के लिए तैयार विशिष्ट उप-क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, रोजगार सृजन में सेवा क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा करें। (10 Marks, 150 Words) |
Source- ORF