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Daily-current-affairs / 16 May 2024

भारत-डेनमार्क हरित रणनीतिक साझेदारी: सतत विकास और वैश्विक सहयोग मॉडल : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

  • भारत और डेनमार्क लोकतांत्रिक परंपराओं, सुदृढ़ संस्थागत समानताओं और 400 वर्षों से चले रहे व्यापार संबंधों से जुड़े प्राकृतिक सहयोगी हैं। सितम्बर 1949 में नई दिल्ली और कोपेनहेगन के मध्य औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किए गए थे। तब से, यह भागीदारी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों क्षेत्रों में निरंतर प्रगति करती रही है। यह संबंध समावेशिता, सतत विकास और साझा प्रगति की भावना से संचालित है। इस सहयोग का एक उल्लेखनीय प्रयास 28 सितम्बर, 2020 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडेरिकसेन द्वारा शुभारंभ की गई "हरित सामरिक भागीदारी" है। यह भागीदारी पारस्परिक हितों, साझा मूल्यों और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने की प्रतिबद्धता पर आधारित है।

द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति:

  • हरित सामरिक भागीदारी ने भारत और डेनमार्क के बीच पहले से ही गतिशील और रणनीतिक अभिसरण को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा दिया है। यह भागीदारी एक पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण सहयोग और हरित विकास को मजबूत करना है। यह राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देने, आर्थिक संबंधों का विस्तार करने, रोजगार सृजन करने और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने सहित अवसरों का लाभ उठाने हेतु परस्पर सहयोग बढ़ाने का भी प्रयास करता है। इसके मुख्य क्षेत्रों में जल, ऊर्जा, जलवायु वित्तपोषण और हरित वित्तपोषण शामिल हैं, जो भारत के हरित परिवर्तन और समावेशी और सतत विकास पथ सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पूरक शक्तियां और महत्वाकांक्षाएं:

  • भारत की हरित महत्वाकांक्षाएं उच्च हैं और ऊर्जा परिवर्तन के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता है, साथ ही साथ शानदार विकास दर का अनुभव भी हो रहा है। दूसरी ओर, डेनमार्क लंबे समय से हरित और नवीकरणीय ऊर्जा में एक अग्रणी शक्ति रहा है, जो हरित पथ के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करता है। दोनों देशों की पूरक नीति पहल उन्हें एक मजबूत और लचीले रणनीतिक साझेदारी के लिए साथ लाया है। यह भागीदारी केवल दोनों देशों के पर्यावरण संरक्षण और जलवायु सुरक्षा एजेंडों के साथ जुड़ती है बल्कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (यूएनएसडीजी) के अनुरूप कार्बन उत्सर्जन को कम करने की उनकी प्रतिबद्धता को भी दोहराती है। इसके अलावा, हरित सामरिक भागीदारी हरित परिवर्तन पर रणनीतिक वार्ता और जलवायु सुरक्षा पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी में गति को बढ़ाती है, जिससे पेरिस समझौते के स्थिर कार्यान्वयन की सुविधा होती है।

ठोस परिणाम और भविष्य की संभावनाएं:

  • हरित सामरिक भागीदारी ने पहले ही ठोस परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है, विशेषकर भारत-डेनमार्क ऊर्जा भागीदारी (आईएनडीईपी) के माध्यम से यह पहल पवन ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण जैसे क्षेत्रों में हरित ऊर्जा सुरक्षा, क्षमता वृद्धि, ज्ञान-साझाकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को चिन्हित करती है। यह भागीदारी वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन, हरित विकास और सतत विकास को बढ़ावा देने, आम वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत और डेनमार्क की साझा प्रतिबद्धता का उदाहरण है। भारत-फ्रांस के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में डेनमार्क की सदस्यता हरित परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा के लिए इस पारस्परिक प्रतिबद्धता को और दर्शाती है, जो हरित सामरिक भागीदारी के उद्देश्यों को पूरा करती है।

उद्योग जगत का नेतृत्व और तकनीकी नवाचार:

  • इस समय डेनिश कंपनियां स्थिरता और नवाचार में वैश्विक अग्रणी हैं, जो एक सफल हरित परिवर्तन के लिए समाधान और प्रतिबद्धता दोनों प्रदान करती हैं। भारत के पैमाने और डेनमार्क के कौशल के बीच सामंजस्यता का, वैश्विक भलाई के लिए एक शक्ति के रूप में कार्य करने की उम्मीद है यह नवाचार को बढ़ावा देगा और स्वच्छ ऊर्जा सुरक्षा और हरित दुनिया के लिए नई प्रौद्योगिकियों का अनावरण करेगा। भारत में 140 से अधिक डेनिश कंपनियों की उपस्थिति और भारत-डेनमार्क ऊर्जा पार्क बनाने की नवीन अवधारणा हरित सामरिक भागीदारी के तहत भारत में हरित परिवर्तन की क्षमता को रेखांकित करती है। दोनों देशों के बीच बढ़ा हुआ सहयोग पर्यावरण, जल, अर्थव्यवस्था और सतत शहरी विकास पर केंद्रित होगा, जो इस भागीदारी के परिवर्तनकारी प्रभाव को प्रदर्शित करता है।

रणनीतिक सहयोग और तकनीकी तालमेल:

  • बहुपक्षीय मंचों पर भारत और डेनमार्क एक महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं और हरित प्रौद्योगिकी साझा करने पर उनके रणनीतिक सहयोग के दूरगामी प्रभाव शीघ्र ही प्रदर्शित होने की उम्मीद है। इस प्रकार की साझेदारी करके, वे महत्वाकांक्षी जलवायु और सतत ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने की व्यवहार्यता का प्रदर्शन करेंगे। यह अभिसरण डेनिश कंपनियों को, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता के साथ, भारत को वायु प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्यों को पूरा करने और हरित एवं अधिक समृद्ध भविष्य की ओर एक स्थायी प्रक्षेपवक्र स्थापित करने में सहायता करने की अनुमति देता है। हरित सामरिक भागीदारी डेटा, कौशल, प्रौद्योगिकियों, सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों पर सहयोग पर जोर देती है, जिससे बड़े पैमाने पर आवश्यक कौशल को अपनाने और प्रवेश करने और हरित परिवर्तन को अनुकूलित करने की सुविधा मिलती है।

स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र और रोजगार सृजन:

  • भारत का जीवंत स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें कई यूनिकॉर्न शामिल हैं, डेनमार्क के साथ हरित प्रौद्योगिकी सहयोग से अत्यधिक लाभ उठा सकता है। यह साझेदारी स्टार्ट-अप्स की क्षमता को बढ़ाकर, साझा प्रगति की भावना के साथ प्रतिध्वनित होकर, भारत में प्रौद्योगिकी संलयन और रोजगार सृजन के परिदृश्य को बदलने के लिए तैयार है। भारत-डेनमार्क संयुक्त कार्य योजना 2021-2026 हरित विकास, ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री उद्योग के हरित परिवर्तन के लिए हरित सामरिक भागीदारी की क्षमता को अधिकतम करने को प्राथमिकता देती है।

आर्कटिक सहयोग और समुद्री सुरक्षा:

  • आर्कटिक परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में डेनमार्क का दर्जा और भारत का पर्यवेक्षक दर्जा आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान और ऊर्जा संसाधन सहयोग में रणनीतिक सहयोग के लिए एक मंच तैयार करता है। भारत की आर्कटिक के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों में रुचि को देखते हुए, इस सहयोग से वैश्विक ऊर्जा दक्षता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। आर्कटिक क्षेत्र में भारत-डेनमार्क सहयोग की ऐतिहासिक प्राथमिकता नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों और प्रौद्योगिकी सहयोग के उपयोग के लिए उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

रक्षा और सुरक्षा भागीदारी:

  • हरित परिवर्तन के अलावा, भारत और डेनमार्क रक्षा और सुरक्षा भागीदारी के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता साझा करते हैं, जिसमें समुद्री सुरक्षा और समुद्री और शिपिंग उद्योग का हरित परिवर्तन शामिल है। अक्टूबर 2023 में डेनिश शिपिंग कंपनी मर्स्क (Maersk) द्वारा पहले हरित ईंधन से चलने वाले कंटेनर पोत के शुभारंभ से हरित समुद्री सहयोग की क्षमता का पता चलता है। रणनीतिक रक्षा सहयोग में सटीक सैन्य घटक और उपकरण भी शामिल हैं, जिसमें भारत के नेतृत्व वाली हिंद-प्रशांत महासागर पहल में डेनिश योगदान का पता लगाने की योजना है।
  • इसके अतिरिक्त, यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में डेनमार्क की भूमिका इसे महत्वाकांक्षी भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे में एक प्रमुख भागीदार के रूप में रखती है, जिसे नई दिल्ली जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान लॉन्च किया गया था। इस पहल का लक्ष्य रणनीतिक महत्व की एक विश्वसनीय, मजबूत और लचीली वैश्विक मूल्य श्रृंखला स्थापित करना है, जहां हरित ऊर्जा सुरक्षा एक सर्वोपरि घटक है।

निष्कर्ष:

  • निष्कर्ष के तौर पर, भारत और डेनमार्क के बीच रणनीतिक भागीदारी को प्राथमिकताओं और पारस्परिक प्रतिबद्धताओं में काफी तालमेल द्वारा चिह्नित किया जाता है। हरित सामरिक भागीदारी हरित विकास, ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास के लिए दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण के प्रमाण के रूप में खड़ी है। यह साझेदारी केवल पर्यावरण सहयोग को मजबूत करती है बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी संबंधों को भी मजबूत करती है, जो एक सतत भविष्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक मॉडल प्रदर्शित करती है। यह व्यापक और दूरदर्शी साझेदारी वैश्विक हरित परिवर्तन प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान का वादा करती है, जो दोनों देशों के लिए हरित प्रौद्योगिकी और सतत विकास पर प्रगति तेज करने के लिए एक ठोस रोडमैप निर्धारित करती है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और सतत विकास के संदर्भ में भारत-डेनमार्क हरित रणनीतिक साझेदारी के महत्व पर चर्चा करें। सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों और द्विपक्षीय संबंधों पर उनके संभावित प्रभाव पर प्रकाश डालें। (10 अंक, 150 शब्द)

2.    भारत-डेनमार्क हरित रणनीतिक साझेदारी में तकनीकी नवाचार और उद्योग नेतृत्व की भूमिका की जांच करें। भारत के पैमाने और डेनमार्क के कौशल के बीच तालमेल हरित ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास में कैसे प्रगति कर सकता है ? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत - इंडियन एक्सप्रेस

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