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Daily-current-affairs / 07 Nov 2024

भारत-कनाडा कूटनीतिक गतिरोध: एक जटिल द्विपक्षीय मुद्दा -डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

हाल ही में भारत और कनाडा के राजनयिक संबंधों में गंभीर तनाव उत्पन्न हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों ने एक-दूसरे के शीर्ष राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। यह विवाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा दिए गए उस बयान से उत्पन्न हुआ, जिसमें उन्होंने भारतीय खुफिया एजेंसियों और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बीच संभावित संबंधों का आरोप लगाया। भारत ने निज्जर को खालिस्तानी आतंकवादी करार दिया था। इस आरोप ने कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव पर गंभीर चिंता उत्पन्न की और इसके परिणामस्वरूप भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि हुई, जिसका प्रभाव भारत की विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ा है।

·        इन्हीं परिस्थितियों में हिंदू सभा मंदिर में हिंदू भक्तों पर खालिस्तानी भीड़ द्वारा किए गए हिंसक हमले के बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई। इस घटना ने कनाडा में भारतीय मूल के समुदाय में महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया उत्पन्न की। एकता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए, हजारों भारतीय-कनाडाई, जिनमें हिंदू और सिख दोनों शामिल थे, हिंसा का विरोध करने और हमले के लिए जिम्मेदार खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ एकजुटता व्यक्त करने के लिए सड़कों पर उतर आए। इन विरोध प्रदर्शनों ने केवल खालिस्तानी अलगाववाद के उदय पर समुदाय की गहरी चिंता को उजागर किया, बल्कि कनाडा में इसके राजनीतिक प्रभाव को लेकर व्यापक आशंकाओं को भी प्रकट किया।

कनाडा में सिखों की स्थिति:

1.    सिख समुदाय का राजनीतिक प्रभाव:

·         कनाडा में सिख समुदाय, भले ही अल्पसंख्यक है, फिर भी उसका राजनीतिक प्रभाव विशेष रूप से ओंटारियो में काफी महत्वपूर्ण है।

·         सिख वोट, विशेषकर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नेतृत्व वाली लिबरल पार्टी के लिए, एक निर्णायक तत्व बन चुका है।

2.    खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन:

·         सिख समुदाय का एक वर्ग खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन करता है, और इस पर ट्रूडो सरकार पर इसे बर्दाश्त करने का आरोप भी लगाया गया है।

·         हालांकि, सिख मतदाता पूरी तरह से एकजुट नहीं हैं और अनेक सिख मतदाता विपक्षी दलों का समर्थन करते हैं, जो इस मुद्दे पर गहरे विभाजन को स्पष्ट करते हैं।

सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेद:

1.    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम भारत की संप्रभुता:

·        कनाडा का कानूनी ढांचा अभिव्यक्ति और एकत्र होने की स्वतंत्रता की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप खालिस्तानी आंदोलन को समर्थन प्राप्त हुआ है।

·        इसके विपरीत, भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानते हुए, अलगाववाद को बढ़ावा देने को अस्वीकार्य मानता है।

2.    चरमपंथ की निंदा करने में कनाडा की अनिच्छा:

·        भारत, खालिस्तानी उग्रवाद की स्पष्ट रूप से निंदा करने में कनाडा की अनिच्छा को अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक चुनौती मानता है।

·        कनाडा में जनमत में विभाजन बना हुआ है, जहां युवा पीढ़ी अक्सर खालिस्तानी आंदोलन के इतिहास की संपूर्ण जटिलताओं से अवगत नहीं होती है।

कानूनी जटिलताएँ:

  1. प्रत्यर्पण चुनौतियाँ:
    • भारत ने कनाडा से खालिस्तानी आतंकवादियों के प्रत्यर्पण की मांग की है, लेकिन मानवाधिकार संबंधी चिंताओं और कनाडाई कानूनी ढांचे द्वारा निर्धारित साक्ष्य मानकों के कारण इन अनुरोधों को अक्सर अवरुद्ध कर दिया जाता है।
  2. सहयोग में बाधाएँ:
    • कनाडा की कानूनी प्रणाली भारतीय कानून के तहत एकत्रित खुफिया साक्ष्यों को मान्यता नहीं देती, जिससे आतंकवाद-रोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सहयोग में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  3. साक्ष्य की स्वीकार्यता:
    • भारत की खुफिया पद्धतियाँ, जैसे फोन टैपिंग, कनाडा के कानूनी मानकों पर खरी नहीं उतरतीं, जिससे प्रत्यर्पण की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है।

मीडिया की भूमिका:

  1. कनाडा में मीडिया का प्रभाव:
    • कनाडाई मीडिया ने प्रधानमंत्री ट्रूडो के द्वारा भारत के खिलाफ लगाए गए आरोपों को लेकर उनकी कार्यप्रणाली की आलोचना की है और आरोपों के समर्थन में प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों पर सवाल उठाए हैं।
    • मीडिया ने यह सुझाव भी दिया कि इस मुद्दे का इस्तेमाल कनाडा की आंतरिक राजनीतिक चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिए एक रणनीति के रूप में किया गया हो सकता है।
  2. भारत में मीडिया:
    • भारत में मीडिया प्रायः ध्रुवीकृत हो गया है, जहां अधिकांश मीडिया संस्थान सरकार के दृष्टिकोण के प्रति सहमत हैं।
    • मीडिया द्वारा भ्रामक चित्रण के कारण दोनों देशों के बीच इस विवाद की स्पष्टता और समझ में कमी आई है।

भारत-कनाडा संबंधों के प्रमुख सहयोग क्षेत्र:

  1. राजनीतिक संबंध:
    • दोनों देश लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं और वैश्विक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा, और विकास से निपटने के लिए जी-20, राष्ट्रमंडल और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सहयोग करते हैं।
  2. आर्थिक सहयोग:
    • 2023 में द्विपक्षीय व्यापार 9.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • कनाडा भारत में 18वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है, जिसने 2000 से अब तक लगभग 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
    • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) के लिए चल रही वार्ता का उद्देश्य व्यापार संबंधों को और मजबूत करना है।
  3. प्रवासी संबंध:
    • कनाडा में भारतीय मूल के 1.8 मिलियन से अधिक लोग निवास करते हैं, जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  4. शिक्षा और अंतरिक्ष नवाचार:
    • सहयोगात्मक पहलों में स्वास्थ्य सेवा, कृषि जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान, और इसरो द्वारा कनाडाई उपग्रहों का प्रक्षेपण जैसे अंतरिक्ष कार्यक्रम शामिल हैं।
    • भारतीय छात्र कनाडा की अंतर्राष्ट्रीय छात्र आबादी का लगभग 40% प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंध बढ़ते हैं।
  5. परमाणु सहयोग:
    • 2010 में हस्ताक्षरित परमाणु सहयोग समझौता भारत को यूरेनियम की आपूर्ति की अनुमति देता है और निगरानी के लिए एक संयुक्त समिति का गठन करता है।

भारत-कनाडा संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. राजनयिक प्रतिरक्षा मुद्दा:
    • कनाडा ने भारत में अपने राजनयिक कर्मचारियों और नागरिकों की सुरक्षा की मांग करते हुए वियना कन्वेंशन का हवाला दिया है।
    • इन चिंताओं पर भारत की प्रतिक्रिया कूटनीतिक रिश्तों के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण होगी
  2. खालिस्तान मुद्दा:
    • भारत खालिस्तानी अलगाववादी समूहों के प्रति कनाडा की सहिष्णुता को अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखता है।
    • निज्जर की हत्या में कथित भारतीय संलिप्तता की कनाडा द्वारा जांच के बाद तनाव में वृद्धि हुई है।
  3. आर्थिक एवं व्यापारिक बाधाएँ:
    • कूटनीतिक तनाव के कारण व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) वार्ता को अंतिम रूप देने में देरी हो रही है, जिससे व्यापार धीमा हो गया है।
    • भारत में कनाडाई निवेश को लेकर अनिश्चितता ने आर्थिक संबंधों को और जटिल बना दिया है।
  4. वीज़ा और आव्रजन मुद्दे:
    • भारत में कनाडाई राजनयिक उपस्थिति में कमी के कारण वीज़ा प्रक्रिया में देरी से छात्रों और श्रमिकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • इस राजनयिक संकट के कारण भारतीय नागरिकों की कनाडा यात्रा करने की क्षमता में भी बाधाएँ उत्पन्न हो गई हैं।
  5. भू-राजनीतिक निहितार्थ:
    • कूटनीतिक गतिरोध का असर भारत की जी-20 प्रतिष्ठा और कनाडा के जी-7 तथा फाइव आईज सहयोगियों के साथ रिश्तों पर हो सकता है।
    • कनाडा की हिंद-प्रशांत रणनीति, जो पहले भारत पर केंद्रित थी, अब जटिलताएँ उत्पन्न कर रही है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक मामलों में सहयोग सीमित हो रहा है।

 

राजनयिक प्रतिरक्षा पर वियना कन्वेंशन:

राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन (1961) और कांसुलर संबंधों पर वियना कन्वेंशन (1963) राजनयिक मिशनों और कांसुलर अधिकारियों के लिए रूपरेखा स्थापित करते हैं।

  • प्रमुख प्रावधानों में गिरफ्तारी से राजनयिक उन्मुक्ति, राजनयिक परिसर की अखंडता, वाणिज्य दूतावास अधिकारियों को बिना किसी हस्तक्षेप के अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए संरक्षण, तथा विदेशों में सुरक्षित संचार और सहायता सुनिश्चित करना शामिल है।

 

फाइव आइज़ एलायंस

फाइव आईज एलायंस ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक खुफिया साझेदारी है, जोकि सिग्नल इंटेलिजेंस के लिए यूके-यूएसए समझौते पर आधारित है।

·        यह खुफिया जानकारी का एक व्यापक स्पेक्ट्रम साझा करता है। बाद में गठबंधन का विस्तार करके इसमें नाइन आइज़ (नीदरलैंड, डेनमार्क, फ्रांस, नॉर्वे ) और 14 आइज़ (बेल्जियम, इटली, जर्मनी, स्पेन, स्वीडन) को शामिल किया गया।


आगे की राह:

·         खालिस्तान मुद्दा: भारतीय प्रवासियों और खालिस्तानी अलगाववाद से संबंधित चिंताओं को हल करने के लिए सक्रिय वार्ता आवश्यक है, ताकि संप्रभुता और कानूनी ढांचे के लिए पारस्परिक सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।

·         आर्थिक संबंधों को मजबूत करना: सीईपीए वार्ता को पुनर्जीवित करने से प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में व्यापार और निवेश की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।

·         भू-राजनीतिक संतुलन: दोनों देशों को अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना चाहिए और अपनी विदेश नीति में संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करना चाहिए।

·         बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना: भारत और कनाडा को साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देते हुए सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए जी7 और फाइव आईज गठबंधन जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिए।

 

निष्कर्ष:

भारत-कनाडा कूटनीतिक संकट अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को दर्शाता है, जहाँ ऐतिहासिक शिकायतें, राजनीतिक गतिशीलता और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ आपस में जुड़ी हुई हैं। दोनों देशों को अपने मतभेदों को दूर करने के लिए रचनात्मक बातचीत में शामिल होना चाहिए और साझा मूल्यों तथा आपसी हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खालिस्तान मुद्दे को संबोधित करके, आर्थिक संबंधों को मजबूत करके और भू-राजनीतिक हितों को संतुलित करके, भारत और कनाडा विश्वास, सम्मान और सहयोग के आधार पर एक सशक्त और स्थिर रिश्ता स्थापित कर सकते हैं। समाधान के लिए कूटनीतिक संवेदनशीलता, रणनीतिक दूरदर्शिता और तेजी से परस्पर जुड़ती दुनिया में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।

 

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

विशेष रूप से खालिस्तानी आंदोलन के संदर्भ में कनाडा की घरेलू और विदेशी नीतियों को आकार देने में सिख प्रवासियों की भूमिका पर चर्चा करें। यह भारत-कनाडा कूटनीतिक संघर्ष पर कनाडा के रुख को कैसे प्रभावित करता है?