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Daily-current-affairs / 04 Jan 2025

भारत की जैव विनिर्माण क्रांति: BIO-E3 नीति और $300 बिलियन की जैव अर्थव्यवस्था का मार्ग

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सन्दर्भ:

वर्तमान में भारत जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। हाल ही में स्वीकृत 'BIO-E3' नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) इस क्रांति को और गति प्रदान करेगी। यह नीति केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित की गई है और इसका उद्देश्य देश को जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक नेता बनाना है। 2030 तक $300 बिलियन की जैव अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ, यह नीति सतत विकास, तकनीकी नवाचार और महत्वपूर्ण रोजगार अवसरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है, जिससे स्वच्छ और हरित भविष्य सुनिश्चित होता है।

बायोमैन्युफैक्चरिंग क्या है?

बायोमैन्युफैक्चरिंग का तात्पर्य सटीकता और स्थिरता के साथ बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों का उत्पादन करने के लिए इंजीनियर्ड माइक्रोबियल, पौधे और पशु (मानव सहित) कोशिकाओं के उपयोग से है। इस प्रक्रिया में औद्योगिक, स्वास्थ्य सेवा और कृषि उपयोग के लिए जैव-आधारित उत्पादों के निर्माण के लिए उन्नत तकनीकें और प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं। जैव विनिर्माण अनुप्रयोगों के उदाहरणों में शामिल हैं:

     औद्योगिक अनुप्रयोग: बायोप्लास्टिक, बायोडिग्रेडेबल सामग्री और विशेष रसायन।

     स्वास्थ्य सेवा: टीके, जीन थेरेपी और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी।

     कृषि: कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, स्मार्ट प्रोटीन और जलवायु-लचीली फसलें।

यह अभिनव जैव विनिर्माण दृष्टिकोण भारत के जैव-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है।

भारत की जैव अर्थव्यवस्था वृद्धि:

भारत की जैव अर्थव्यवस्था प्रभावशाली दर से बढ़ी है, जोकि 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है। BIO-E3 नीति के साथ, भारत का लक्ष्य 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का लक्ष्य रखते हुए इस वृद्धि को और आगे बढ़ाना है।

मुख्य उपलब्धियाँ:

     वैश्विक वैक्सीन लीडर: भारत वर्तमान में दुनिया के 60% टीकों का उत्पादन करता है, जोकि सार्वजनिक स्वास्थ्य में इसके नेतृत्व को रेखांकित करता है।

     विनिर्माण शक्ति: भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर USFDA-अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या की मेजबानी करता है।

     क्षेत्रीय निवेश: देश में बायो-फार्मा, बायो-एग्री, बायो-इंडस्ट्रियल, बायो-एनर्जी और मेडटेक सहित विभिन्न क्षेत्रों में निवेश बढ़ रहा है।

BIO-E3 नीति के मुख्य उद्देश्य :

1.   जैव विनिर्माण प्रक्रियाओं में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना।

2.   भारत को वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र में अग्रणी के रूप में स्थापित करना।

3.   जैव अर्थव्यवस्था प्रथाओं को बढ़ावा देकर सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।

बायोमैन्युफैक्चरिंग के विषयगत क्षेत्र :

BIO-E3 नीति बायोमैन्युफैक्चरिंग के भीतर छह प्रमुख विषयगत क्षेत्रों को प्रस्तुत करती है, जिनमें से प्रत्येक को विशिष्ट राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है:

1.   जैव-आधारित रसायन और एंजाइम: पेट्रोकेमिकल्स के लिए पर्यावरण के अनुकूल औद्योगिक विकल्प विकसित करना।

2.   कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन: पोषण-सघन उत्पाद बनाना जोकि पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं।

3.   सटीक जैव चिकित्सा: mRNA-आधारित चिकित्सा, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और व्यक्तिगत चिकित्सा जैसे नवाचार।

4.   जलवायु-लचीला कृषि: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ बेहतर लचीलेपन हेतु आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का विकास करना।

5.   कार्बन कैप्चर और उपयोग: कैप्चर किए गए CO2 को मूल्यवान औद्योगिक यौगिकों में बदलने के लिए माइक्रोबियल प्रक्रियाओं का उपयोग करना।

6.   समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान: लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों और दूरदराज के क्षेत्रों की अनूठी चुनौतियों का समाधान करना।

नवाचार-संचालित अनुसंधान एवं विकास सहायता :

     बायो-एआई हब: यह हब कृषि, स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण को बेहतर बनाने के लिए जैविक डेटा के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एकीकृत करेंगे। एआई-संचालित डेटा एनालिटिक्स रोग निदान और उपचार को बढ़ाएगा, साथ ही खेती के तरीकों को अनुकूलित करेगा।

     बायोमैन्युफैक्चरिंग हब: ये हब शोधकर्ताओं, स्टार्टअप्स और छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) को अभिनव बायोमैन्युफैक्चरिंग तकनीकों को विकसित करने और बढ़ाने में मदद करने के लिए सामान्य पायलट और प्री-कमर्शियल सुविधाएँ प्रदान करेंगे।

नियामक और डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क :

     डेटा गवर्नेंस: यह सुनिश्चित करना कि नीति के तहत की गई खोजों और आविष्कारों को व्यापक वैज्ञानिक समुदाय के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाए, साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा की जाए।

     नियामक समन्वय: सभी क्षेत्रों में जैव सुरक्षा और जैव सुरक्षा उपायों को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय को मजबूत करना।

BIO-E3 नीति का महत्व :

     संधारणीयता को बढ़ावा देना: यह नीति रासायनिक उत्पादों के लिए जैव-आधारित विकल्प बनाने के लिए संधारणीय जैव-परिवर्तन प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करती है, जो पर्यावरण क्षरण में कमी लाने में योगदान देती है। उच्च-मूल्य वाले जैव-आधारित रसायनों, एंजाइमों और बायोपॉलिमरों के विकास का समर्थन करके, नीति का उद्देश्य भारत को संधारणीय औद्योगिक प्रथाओं में अग्रणी बनाना है।

     पोषण संबंधी आवश्यकताओं को संबोधित करना: 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.67 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, खाद्य सुरक्षा एक ज़रूरी मुद्दा बन जाएगा। BIO-E3 नीति सिंथेटिक बायोलॉजी और मेटाबोलिक इंजीनियरिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके कम कार्बन फ़ुटप्रिंट वाले स्मार्ट प्रोटीन और कार्यात्मक खाद्य पदार्थों के उत्पादन को सक्षम करेगी।

     स्वास्थ्य सेवा में सुधार : यह नीति सेल और जीन थेरेपी में भारत की भूमिका को मज़बूत करती है, 2027 तक बाज़ार की वृद्धि $22 बिलियन तक होने का अनुमान है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत चिकित्सा को आगे बढ़ाना और mRNA चिकित्सीय, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और टीके विकसित करने में देश की क्षमताओं में सुधार करना भी है। प्रमुख उपलब्धियों में स्वदेशी नैफिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक और अभिनव डीएनए-आधारित टीकों का विकास शामिल है।

     जलवायु परिवर्तन से निपटना: भारत के जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्य - जैसे कि 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुँचना - BIO-E3 नीति द्वारा समर्थित हैं। नीति कार्बन कैप्चर और CO2 को मूल्यवान यौगिकों में परिवर्तित करके औद्योगिक क्षेत्रों को डी-कार्बोनाइज़ करने के लिए उपयोग पर केंद्रित है।

     अंतरिक्ष अन्वेषण: नीति लंबी अवधि के मिशनों के लिए टिकाऊ खाद्य उत्पादन विधियों को विकसित करके अंतरिक्ष मिशन चुनौतियों का भी समाधान करती है। बायोमैन्युफैक्चरिंग तकनीकें दूरदराज के स्थानों में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खाद्य सुरक्षा और अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित करेंगी।

BIO-E3 क्यों आवश्यक है?

     कौशल अंतराल को पाटना: सिंथेटिक बायोलॉजी, बायोइन्फॉर्मेटिक्स और बायोप्रोसेस इंजीनियरिंग जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों के तेजी से विस्तार के साथ, पेशेवरों की एक नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। नीति कुशल जनशक्ति की उपलब्धता सुनिश्चित करने और महत्वपूर्ण कौशल की कमी को दूर करने के लिए प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में बायो-हब स्थापित करेगी।

     सर्कुलर बायोइकोनॉमी सिद्धांतों को अपनाना: BIO-E3 नीति सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों पर आधारित है - पुनः उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण। यह दृष्टिकोण अपशिष्ट को कम करेगा और जैव प्रौद्योगिकी में सतत विकास को बढ़ावा देगा।

     वैश्विक नेतृत्व: भारत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे वैश्विक नेताओं से मूल्यवान सबक ले सकता है, जिसने बायोमैन्युफैक्चरिंग स्टार्टअप में $2 बिलियन का निवेश किया है। BIO-E3 नीति भारत को बायोमैन्युफैक्चरिंग नवाचार के मामले में सबसे आगे लाने के लिए डिज़ाइन की गई है, जोकि जैव विविधता और मौजूदा अनुसंधान बुनियादी ढांचे में देश की ताकत का लाभ उठाती है।

     सुव्यवस्थित विनियामक अनुमोदन: बायोमैन्युफैक्चरर्स के लिए सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम की शुरूआत नौकरशाही देरी को कम करेगी और नवाचार को गति देगी, जिससे स्टार्टअप और एसएमई के लिए अपने संचालन को बढ़ाना आसान हो जाएगा।

भारत की बायोटेक यात्रा और BIO-E3 नीति:

BIO-E3 नीति भारत की पिछली बायोटेक पहलों पर आधारित है, जैसे:

     बायोइकोनॉमी पर राष्ट्रीय मिशन (2016): बायो-आधारित उद्योगों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया।

     राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (2017): मिशन में भारत के बायोफार्मा क्षेत्र को मजबूत किया गया।

     राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति (2015-2020): इसमें अनुसंधान अवसंरचना में वृद्धि की गई।

     जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (2018):  इसके तहत बायो-आधारित ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा दिया गया।

आगे की राह :

     सर्कुलर बायोइकोनॉमी प्रथाओं को अपनाना: बायोमैन्युफैक्चरिंग में पुन: उपयोग, मरम्मत और रीसाइक्लिंग को शामिल करने से पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।

     अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: भारत अपनी बायोमैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाने और ज्ञान साझा करने के लिए यूएसए, जापान और फिनलैंड जैसे देशों के साथ साझेदारी कर सकता है।

     STEM प्रतिभा पूल को मजबूत करना: भारत में वैश्विक STEM प्रतिभा का 25% बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करने से जैव प्रौद्योगिकी में निरंतर विकास और नवाचार सुनिश्चित होगा।

     निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: लक्षित प्रोत्साहन में वृद्धि जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार में निजी निवेश को प्रोत्साहित करेंगे।

     नियामक ढांचे का विस्तार: मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय जैव सुरक्षा और जैव सुरक्षा के निर्बाध कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगा।

निष्कर्ष:

BIO-E3 नीति भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण क्षण है। नवाचार, स्थिरता और उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देकर, भारत जैव प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता बनने के लिए तैयार है, जो जैव अर्थव्यवस्था के भविष्य को आकार देगा। यह नीति केवल खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य जैसी राष्ट्रीय चुनौतियों से निपटती है, बल्कि भारत को वैश्विक तकनीकी उन्नति में सबसे आगे रखती है।

प्रश्न:

देश की जैव अर्थव्यवस्था को बदलने में भारत की BIO-E3 नीति के महत्व का मूल्यांकन करें। यह नीति पर्यावरणीय स्थिरता और रोजगार सृजन को कैसे संबोधित करती है?