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Daily-current-affairs / 05 Mar 2025

"भारत-भूटान सहयोग: क्षेत्रीय संतुलन की नई दिशा"

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सन्दर्भ :

भारत की "पड़ोस-प्रथम नीति" (Neighbourhood First Policy - NFP) का मूल उद्देश्य अपने पड़ोसी देशों के साथ विश्वास, विकास सहयोग और साझा सुरक्षा हितों पर आधारित मजबूत साझेदारी बनाना है। यह नीति भारत की आसपास के क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने की कूटनीतिक प्राथमिकता को दर्शाती है।

केंद्रीय बजट 2025-26 इस प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है, जिसमें भारत ने विदेशी सहायता के लिए 5,483 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इसमें से भूटान को सबसे ज्यादा 2,150 करोड़ रुपये मिले हैं, जिससे यह भारत की आर्थिक कूटनीति में भूटान की केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है।यह सहायता सिर्फ आर्थिक सहयोग नहीं है, बल्कि यह एक समग्र रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भूटान में राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण करना है। साथ ही, इस सहयोग का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन बनाना भी है। हाल ही में भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे की भारत यात्रा और उनके द्वारा स्कूल ऑफ़ अल्टीमेट लीडरशिप (SOUL) कॉन्क्लेव 2025 में भागीदारी ने भी दोनों देशों की मजबूत आपसी समझ को प्रदर्शित किया।इस कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना "बड़ा भाई" और "गुरु" कहकर संबोधित किया, जो दोनों देशों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंधों की गहराई को उजागर करता है।

इस लेख के माध्यम से भारत द्वारा भूटान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता, प्रमुख सहयोगी क्षेत्रों और दक्षिण एशिया की व्यापक रणनीतिक तस्वीर में इसकी प्रासंगिकता को समझने का प्रयास किया गया है।

भूटान को वित्तीय सहायता और व्यापक क्षेत्रीय रणनीति:

भूटान भारत की विदेशी सहायता नीति में सबसे महत्वपूर्ण भागीदार है, जिसे 2025-26 के बजट में 2,150 करोड़ की सहायता दी गई है। यह केवल आर्थिक सहयोग नहीं है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक सोच का हिस्सा है, विशेषकर जब चीन हिमालयी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।

इसके अतिरिक्त, मालदीव (600 करोड़), म्यांमार (350 करोड़) और श्रीलंका (300 करोड़) को दी गई सहायता में भी बढ़ोतरी हुई है, जो भारत के समग्र क्षेत्रीय दृष्टिकोण को दिखाता है। वहीं, बांग्लादेश (120 करोड़) और नेपाल (700 करोड़) की सहायता स्थिर रही है। अफगानिस्तान को भी राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद 100 करोड़ दिए गए हैं, जो विकास परियोजनाओं में भारत की सतर्क लेकिन निरंतर भागीदारी को दर्शाता है।

हिमालय में चीन की चुनौती और भूटान की भूमिका:

·        भूटान को दी जा रही यह सहायता, हिमालय में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा है। चीन सीमा विवादों को सुलझाने के लिए भूटान पर दबाव बढ़ा रहा है, साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन भी दे रहा है। भारत की निरंतर आर्थिक और अवसंरचनात्मक सहायता भूटान की रणनीतिक स्वायत्तता (strategic autonomy) बनाए रखने में मदद करती है, जिससे वह चीन के जाल में फंसने से बचता है

·        भूटान का भौगोलिक महत्व भी भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भूटान, सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब स्थित है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाला संवेदनशील गलियारा है। भारत और चीन के बीच 2017 के डोकलाम गतिरोध ने भारत की सुरक्षा में भूटान के महत्व को रेखांकित किया। भूटान के साथ मजबूत संबंध बनाए रखकर, भारत इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण को प्रभावी ढंग से रोकता है।

·        भूटान की भू-राजनीतिक स्थिति उसे भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी बनाती है। अन्य दक्षिण एशियाई देशों के विपरीत, जोकि भारत और चीन के प्रतिस्पर्धी हितों के बीच झूलते रहे हैं, भूटान भारत का सबसे दृढ़ साझेदार बना हुआ है। 2025 का बजट आवंटन केवल ऐतिहासिक संबंधों की निरंतरता है, बल्कि हिमालय में भारत के प्रभाव को मजबूत करने के लिए एक रणनीतिक कदम है।

·        भूटान भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण बफर के रूप में कार्य करता है और भारत की वित्तीय सहायता का उद्देश्य इसकी राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास और बुनियादी ढाँचे के विकास को सुनिश्चित करना है। ऐसे समय में जब चीन नेपाल में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, श्रीलंका में बंदरगाहों का अधिग्रहण कर रहा है और मालदीव में वित्तीय निवेश कर रहा है, भूटान के साथ भारत की गहरी होती भागीदारी क्षेत्रीय प्रधानता बनाए रखने की स्पष्ट प्रतिबद्धता का संकेत देती है।

·        बहुपक्षीय मंचों जैसे कि सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन), बिम्सटेक (बहु- क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) और बीबीआईएन (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल) में भारत के साथ भूटान का तालमेल, क्षेत्रीय गठबंधन को बढ़ावा देने में भारत की सफलता को दर्शाता है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को संतुलित करता है।

भारत-भूटान सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:

1. आर्थिक और व्यापार साझेदारी:

  • भारत और भूटान के बीच आर्थिक संबंधों की नींव भारत-भूटान व्यापार, वाणिज्य और पारगमन समझौते (1972, संशोधन 2016) से बनी है। यह मुक्त व्यापार व्यवस्था को सुगम बनाता है, जिससे भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
  • पिछले दशक में द्विपक्षीय व्यापार तीन गुना बढ़ गया है, जोकि 484 मिलियन डॉलर (2014-15) से बढ़कर 1.6 बिलियन डॉलर (2022-23) हो गया है।
  • भूटान के कुल व्यापार में भारत का योगदान 73% है।

2,150 करोड़ रुपए का आवंटन इन व्यापार संबंधों को सुदृढ़ करेगा, जिससे भूटान की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होगी तथा निवेश, व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारत पर उसकी निर्भरता बढ़ेगी।

2. जलविद्युत सहयोग: आर्थिक एकीकरण का एक स्तंभ:

जलविद्युत भारत-भूटान आर्थिक संबंधों का आधार बना हुआ है। भूटान की अर्थव्यवस्था भारत को जलविद्युत निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसमें शामिल हैं:

  • भूटान के राष्ट्रीय राजस्व का 40%
  • सकल घरेलू उत्पाद का 25%

भारत ने भूटान की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें शामिल हैं:

  • ताला (1020 मेगावाट)
  • चुखा (336 मेगावाट)
  • कुरिचु (60 मेगावाट)
  • मंगदेछू (720 मेगावाट)

पुनात्सांगछू-I और II (कुल 2,200 मेगावाट) और खोलोंगछू (600 मेगावाट) जैसी आगामी परियोजनाएं भूटान से भारत को बिजली निर्यात को और बढ़ावा देंगी, जिसका कुल मूल्य वर्ष 2022 में 2,448 करोड़ था। यह व्यवस्था भूटान की आर्थिक लचीलापन को मजबूत करती है, साथ ही भारत को कम लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध कराती है, जो भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण (clean energy transition) लक्ष्यों के अनुरूप है।

3. बुनियादी ढांचे का विकास:

भारत की वित्तीय सहायता से सीमावर्ती बुनियादी ढांचे, सड़क नेटवर्क और व्यापार सुविधा केंद्रों का विकास हो रहा है। 2025-26 के बजट में शामिल पहल:

·        व्यापार संपर्क बढ़ाने के लिए आधुनिक चौकियां।

·        BBIN फ्रेमवर्क के तहत व्यापार गलियारों का विकास।

·        रेल और विमानन संपर्क का विस्तार।

ये पहल भूटान के आर्थिक विविधीकरण और चीन-प्रभुत्व वाले व्यापार मार्गों पर उसकी निर्भरता को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

4. डिजिटल और वित्तीय कनेक्टिविटी:

भारत निम्नलिखित माध्यमों से भूटान की डिजिटल अर्थव्यवस्था को सक्रिय रूप से समर्थन दे रहा है :

  • रुपे कार्ड और यूपीआई भुगतान प्रणाली की शुरूआत।
  • फिनटेक बुनियादी ढांचे का संवर्धन।
  • व्यापार और पर्यटन के लिए सीमा पार डिजिटल लेनदेन।

यह सहयोग सुनिश्चित करता है कि भूटान चीन के माध्यम से वैकल्पिक व्यापार मार्ग तलाशने के बजाय भारत के साथ आर्थिक रूप से एकीकृत बना रहे।

5. क्षेत्रीय और बहुपक्षीय जुड़ाव:

बहुपक्षीय मंचों पर भारत के साथ भूटान का तालमेल नई दिल्ली की क्षेत्रीय कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण है। भूटान निम्नलिखित में सक्रिय भागीदार है:

  • सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन)
  • बिम्सटेक (क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल )
  • बीबीआईएन (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल)

ये क्षेत्रीय ढांचे दक्षिण एशिया में चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) को संतुलित करने वाले गठबंधन बनाने की भारत की क्षमता को बढ़ाते हैं।

भावी सहयोग के संभावित क्षेत्र:

1. जलवायु लचीलापन और नवीकरणीय ऊर्जा

भूटान का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में प्रमुख देश बनना है। भविष्य में सहयोग निम्नलिखित पर केंद्रित हो सकता है:

  • हरित हाइड्रोजन उत्पादन
  • क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए जलविद्युत ग्रिड का विस्तार
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर संयुक्त पहल

2. डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा

अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ, भारत और भूटान निम्नलिखित संभावनाएं तलाश सकते हैं:

  • डिजिटल बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए साइबर सुरक्षा ढांचे
  • सीमा पार -कॉमर्स सुविधा
  • डिजिटल गवर्नेंस और एआई में सहयोग

3. सतत पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान:

·        भूटान की पर्यटन नीति, जो उच्च-मूल्य,कम -प्रभाव पर्यटन नीति पर केंद्रित है, भारत के सतत आर्थिक विकास के दृष्टिकोण के अनुरूप है। पर्यटन अवसंरचना और कनेक्टिविटी को मजबूत करने से द्विपक्षीय जुड़ाव और बढ़ेगा।

निष्कर्ष:

केंद्रीय बजट 2025-26 में भूटान को दी गई भारत की वित्तीय सहायता केवल एक आर्थिक सहयोग नहीं है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक प्रतिबद्धता का स्पष्ट संकेत है। यह सहायता ऐसे समय में दी जा रही है, जब चीन दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव का तेजी से विस्तार कर रहा है। भूटान के प्रति भारत का निरंतर समर्थन यह सुनिश्चित करता है कि:

   भूटान में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास बना रहे।

   हिमालय क्षेत्र में चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को संतुलित किया जा सके।

   दक्षिण एशिया में भारत-प्रेरित क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को मजबूती मिले।

भारत-भूटान साझेदारी, क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत करती है, जो यह दर्शाती है कि आर्थिक परस्पर निर्भरता, रणनीतिक सूझबूझ और आपसी विश्वास मिलकर दक्षिण एशिया के भविष्य को कैसे आकार दे सकते हैं। यदि यह सकारात्मक प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह संबंध केवल और मजबूत होगा, बल्कि दक्षिण एशिया में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को भी सुदृढ़ करेगा, जिससे एक स्थिर, सुरक्षित और सहयोगपूर्ण क्षेत्रीय व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी।

मुख्य प्रश्न: भारत के क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में भूटान की रणनीतिक स्थिति का विश्लेषण कीजिए, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में। इस संदर्भ में, भूटान की भूमिका भारत के लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण है?