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Daily-current-affairs / 22 Apr 2022

हिंदू विवाह अधिनियम: क्षेत्राधिकार, अधिवास और वैधता - समसामयिकी लेख

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की-वर्डस :- विशेष विवाह अधिनियम, सपिंडा, वैवाहिक दायित्व, गोपनीयता का अधिकार, व्यभिचार, परित्याग

चर्चा में क्यों ?

  • ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) से शादी करने के बाद महिलाओं को (मुख्य रूप से उत्तरी भारत में ) गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • ऐसे मामलों का प्रमुख कारण यह है कि या तो दूल्हा शादी के बाद दुल्हन को भारत में छोड़ देता है या अन्य कारणों से उसे साथ ले जाता है।
  • प्रमुख समस्या तब उत्पन्न होती है जब विवाद उत्पन्न होता है तथा इस स्थिति में यह अनिश्चित हो जाता है कि इस विवाद का हल किसके क्षेत्राधिकार होना है।
  • इसके साथ ही इन परिस्थितियों में विवाह की वैधता को सिद्ध करना एक कठिन काम हो जाता है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 :-

यह जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में विस्तारित है, यह उन क्षेत्रों में अधिवासित हिंदुओं पर भी लागू होता है, जिन पर अधिनियम का विस्तार होता है और जो उक्त क्षेत्रों से बाहर हैं। इस अधिनियम के प्रमुख पहलू निम्नवत हैं :-

  • यह हिंदुओं (इसके किसी भी रूप या विकास में) और बौद्धों, सिखों, जैनियों और उन लोगों पर भी लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं।
  • यह किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर तब तक लागू नहीं होता जब तक कि केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्देश न दे।
  • तलाक के संबंध में प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 और विशेष विवाह अधिनियम की धारा 27 में निहित हैं।
  • सामान्य आधार जिस पर इन अधिनियमों के तहत पति या पत्नी द्वारा तलाक मांगा जा सकता है, इन व्यापक शीर्षों के अंतर्गत आता है :
  • व्यभिचार,
  • इनफर्टिलिटी
  • क्रूरता,
  • मन की अस्वस्थता,
  • यौन रोग,
  • आपसी सहमति
  • सात वर्ष से जीवित रहने की खबर न मिली हो

हिंदू विवाह के लिए शर्तें :-

दो हिंदुओं के बीच एक विवाह अनुष्ठापित किया जा सकता है, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, अर्थात् :-

I. विवाह के समय किसी भी पक्ष का जीवनसाथी नहीं रहता है;

II. विवाह के समय कोई पक्ष-देने में असमर्थ है

  1. वैध सहमति :- मन की अस्वस्थता के परिणामस्वरूप; या
  2. वैध सहमति देने में सक्षम होने के बावजूद, इस तरह के मानसिक विकार से पीड़ित रहा है या इस हद तक कि वह शादी और प्रजनन के लिए अनुपयुक्त है; या
  3. पागलपन या मिर्गी के आवर्तक हमलों के अधीन रहा है;

III. विवाह के समय वर ने इक्कीस वर्ष तथा वधु ने इक्कीस वर्ष की आयु पूरी कर ली है;

IV. पक्ष निषिद्ध संबंधों से संबंधित नहीं हैं जब तक कि उनमें से प्रत्येक को नियंत्रित करने वाला रिवाज या प्रथा दोनों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देता।

V. पक्ष एक-दूसरे के सगोत्रीय नहीं हैं, जब तक कि उनमें से प्रत्येक को नियंत्रित करने वाली रिवाज या प्रथा दोनों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देती है।

वैवाहिक अधिकार :-

दाम्पत्य अधिकार विवाह द्वारा सृजित अधिकार हैं। इसका तात्पर्य पति या पत्नी का एक दूसरे पर तथा समाज पर अधिकार। दाम्पत्य अधिकारों का भी यही अर्थ है कि जब जोड़े विवाहित होते हैं तो उनके कुछ वैवाहिक अधिकार होते हैं जो दोनों पति-पत्नी द्वारा निभाए जाने चाहिए। कानून इन अधिकारों को मान्यता देता है- विवाह, तलाक आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में और आपराधिक कानून में पति या पत्नी को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के भुगतान की आवश्यकता होती है।

वैवाहिक अधिकारों में शामिल हैं :-

  1. साथ रहना : जीवनसाथी या विवाहित जोड़े को साथ रहना चाहिए
  2. वैवाहिक संभोग : पति या पत्नी या विवाहित जोड़े का एक दुसरे पर शारीरिक या यौन संबंध से सम्बंधित अधिकार और कर्तव्य होते हैं।
  3. एक दूसरे को सांत्वना : पति-पत्नी को एक दूसरे को दिलासा देना चाहिए जैसे; भावनात्मक और मानसिक आराम।
  4. वैवाहिक दायित्व : विवाहित जोड़े को घर की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
  • वैवाहिक अधिकारों की बहाली के प्रावधान जैसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 और विशेष विवाह अधिनियम की धारा 22 एक पति या पत्नी को "बिना उचित कारण" के "विवाह से वापसी" (विवाह को तोडना) पर स्थानीय जिला अदालत में जाने तथा शिकायत का अधिकार देती है। अदालत पति या पत्नी को वैवाहिक जीवन में लौटने का आदेश दे सकती है।
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता का आदेश 21 नियम 32 अदालत को पति या पत्नी की संपत्ति को कुर्क करने की अनुमति देता है यदि वह लौटने के अपने आदेश का पालन नहीं करता है।
  • हालाँकि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में "वापस लेने" या "उचित कारण" का अर्थ तथा सीमा अस्पष्ट है।
  • कानून को इस आधार पर अब चुनौती दी जा रही है कि यह निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • मुख्य समस्या यह है कि वैवाहिक बलात्कार अपराध नहीं है तथा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के प्रावधान, (जब एक महिला के उद्देश्य से) उसकी शारीरिक स्वायत्तता को छीन लेते हैं और उसे अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर करते हैं। यदि कोई महिला अपने पति के पास लौटने का अनुपालन नहीं करती है, तो अदालत उसकी संपत्ति को कुर्क भी कर सकती है।

समान नागरिक संहिता :-

  • भारतीय संविधान के राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (भाग 4) के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
  • एक समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून प्रदान करने का प्रयास करती है, जो सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि में लागू होता है।
  • एक समान नागरिक संहिता न केवल समुदायों के बीच कानूनों की एकरूपता सुनिश्चित करने का प्रयास करती है, बल्कि पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों के बीच समानता सुनिश्चित करने वाले समुदायों के भीतर कानूनों की एकरूपता भी सुनिश्चित करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने गोवा (एक मात्र राज्य जहाँ समान नागरिक सहिंता लागू है) को एक बेहतर उदाहरण के रूप में वर्णित किया है, जहां कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा करते हुए धर्म की परवाह किए बिना सभी के लिए समान नागरिक संहिता लागू है।
  • 21वें विधि आयोग ने भारत में परिवार कानूनों में सुधार पर एक परामर्श पत्र भी प्रस्तुत किया।

इस सन्दर्भ में प्रमुख ऐतिहासिक निर्णय :-

  • 1960 के दशक के शुरुआती फैसलों में से एक में, तीरथ कौर मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली को बरकरार रखा, यह देखते हुए कि एक पत्नी का अपने पति के प्रति पहला कर्तव्य है कि वह अपने अधिकार के प्रति आज्ञाकारी रूप से स्वयं को प्रस्तुत करे तथा उसकी छत और सुरक्षा के नीचे बनी रहे।
  • 1984 में, सुप्रीम कोर्ट ने सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा के मामले में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 को बरकरार रखा था, जिसमें कहा गया था कि यह प्रावधान विवाह के टूटने की रोकथाम के लिए एक सहायता के रूप में एक सामाजिक उद्देश्य को पूरा करता है।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने विभा श्रीवास्तव मामले में हिंदू पत्नी की धर्मपत्नी, अर्धांगिनी के रूप में रूढ़िवादी अवधारणा का कमजोर किया तथा यह अभिनिर्धारित किया कि पत्नी पति के साथ समान स्थिति और समान अधिकारों के साथ विवाह में भागीदार है।
  • अभिनेत्री सरिता के प्रसिद्ध मामले में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि, यौन सहवास वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री का एक अविभाज्य घटक है।
  • वैवाहिक बलात्कार के विरुद्ध लड़ाई और वैवाहिक अधिकारों की बहाली ने जीवन का एक नया आयाम तब प्राप्त किया है जब सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीशों की बेंच ने गोपनीयता को "संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार" के रूप में मान्यता प्रदान की। यह एक व्यक्ति को व्यक्तिगत अंतरंगता, पवित्रता पारिवारिक जीवन, घर, यौन अभिविन्यास, आदि के मामलों को तय करने का पूरा अधिकार देता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया जोसेफ शाइन फैसले में निष्कर्ष निकाला कि राज्य किसी व्यक्ति के निजी मामलों में अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है।

स्रोत :-

  • सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -1 :- भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत की विविधता, महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन।
  • सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2 :- भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास और विशेषताएं।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • हाल ही में अनिवासी भारतीयों के साथ विवाह के कारण विवाह की वैधता के मामले सामने आए हैं। इस सन्दर्भ में हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रमुख बिन्दुओं तथा उसमें वर्णित विवाह की शर्तों की विवेचना कीजिए? हिंदू विवाह अधिनियम के साथ-साथ विशेष विवाह अधिनियम में वैवाहिक अधिकारों की अवधारणा के बारे में संक्षेप में बताएं और क्या समान नागरिक संहिता समाधान के रूप में काम कर सकती है?

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