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Daily-current-affairs / 07 Jun 2024

भारत में स्वास्थ्य नियमन : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

मई के आखिरी सप्ताह में, नई दिल्ली के एक निजी नवजात देखभाल नर्सिंग होम में आग लगने से एक दुखद घटना घटी, इसका मीडिया में तीव्र कवरेज हुआ और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप हुए। प्रस्तुत की गई गलत रिपोर्टों में दावा किया गया कि दिल्ली में कई नर्सिंग होम बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं। हालांकि प्रारंभिक हंगामे के बाद, यह घटना तो जल्द ही भुला दी गई, लेकिन शोक संतप्त माता-पिता और स्वास्थ्य देखभाल विनियमों में प्रणालीगत विफलता पर चर्चा जारी है। 
स्वास्थ्य देखभाल विनियमों की स्थिति:

  • अत्यधिक और अवास्तविक मानक: स्वास्थ्य विनियम किसी भी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। अगर हम भारत की बात करें तो यहाँ समस्या विनियमों की कमी की नहीं बल्कि उनकी अधिकता की है। कुछ राज्यों में, प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा को कई विनियमों के तहत 50 से अधिक अनुमोदन प्राप्त करने होते हैं। इसके बावजूद, अधिकारियों और अन्य लोगों का मानना है कि निजी स्वास्थ्य क्षेत्र अव्यवस्थित है। इसके अलावा, कई विनियम अवास्तविक मानक निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए, क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2010, कुछ अप्राकृतिक प्रावधानों के कारण व्यापक रूप से अपनाया नहीं गया है। इसी तरह, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS) को 2007 में अपनी शुरुआत के बाद से दो बार संशोधित किया गया है, फिर भी भारत में केवल 15% से 18% सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं ने इन्हे पूरा किया है।
  • मिश्रित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का मिश्रण है, जिसमें निजी क्षेत्र लगभग 70% बाह्य रोगी सेवाएं और 50% अस्पताल आधारित सेवाएं प्रदान करता है। महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य संकेतक निजी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के प्रभावी कामकाज के कारण हैं। हालांकि, यह गलत धारणा है कि सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र हमेशा निजी क्षेत्र की तुलना में बेहतर विनियमों का पालन करता है। इस धारणा को 2017 की दो घटनाओं ने चुनौती दी, जहां दिल्ली में एक सरकारी अस्पताल और एक निजी अस्पताल दोनों ने नवजात शिशुओं को मृत घोषित कर दिया था जबकि वे जीवित थे। निजी अस्पताल का लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया, जबकि सरकारी अस्पताल को केवल एक जांच समिति का सामना करना पड़ा, यह घटना विनियमों के असमान प्रवर्तन का मामला है।

विनियामक ढांचे में चुनौतियाँ:

  • देरी और नौकरशाही: निजी नर्सिंग होम और क्लीनिकों के समक्ष एक प्रमुख समस्या अनुमोदनों में देरी है। समय पर नवीकरण के लिए आवेदन करने के बावजूद, अनुमोदन में महीनों की देरी होती है, जिससे इन संस्थानों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। यह धीमी अनुमोदन प्रक्रिया स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के कुशल संचालन में बाधा डालती है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • निजी क्षेत्र में विविधता: भारत में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र विविधतापूर्ण है, जिसमें एकल-चिकित्सक क्लीनिक और छोटे नर्सिंग होम से लेकर बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल तक शामिल हैं। छोटे सुविधाएं, जो अक्सर मध्यम और निम्न-आय वाले लोगों को सेवा प्रदान करती हैं, सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, इन सुविधाओं से बड़े अस्पतालों जैसे ही मानकों को पूरा करने की उम्मीद की जाती है, परिणामतः अनुपालन महंगा हो जाता है और संभावित रूप से लागत रोगियों पर स्थानांतरित होती है।

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अन्य मुद्दे:

  • अपर्याप्त चिकित्सा अवसंरचना: भारत में अस्पतालों की भारी कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, और कई मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में बुनियादी उपकरण और संसाधनों की कमी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुसार भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर केवल 0.9 बिस्तर हैं, जिनमें से केवल 30% ही ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण देखभाल के मानकीकरण का अभाव: भारत में स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में व्यापक अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर अपर्याप्त सुविधाएं और संसाधन होते हैं, और खराब विनियमन के कारण कुछ निजी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में निम्न गुणवत्ता की देखभाल होती है।
  • गैर-संक्रामक रोग: भारत में 60% से अधिक मौतें गैर-संक्रामक रोगों (एनसीडी) के कारण होती हैं, जैसे मधुमेह, कैंसर, और हृदय रोग। इससे गरीबों के लिए खर्च की चिंताएं बढ़ जाती हैं।
  • पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की कमी: भारत में प्रति व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या सबसे कम है। मानसिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बहुत कम है, जिससे मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए खराब मानसिक स्वास्थ्य परिणाम और अपर्याप्त देखभाल होती है।
  • डॉक्टर-रोगी अनुपात में अंतर: भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात काफी कम है। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य पत्रिका के अनुसार 2030 तक भारत को 20 लाख डॉक्टरों की जरूरत है। वर्तमान में, एक सरकारी अस्पताल का डॉक्टर लगभग 11,000 रोगियों को देखता है, जो WHO की 1:1000 की सिफारिश से बहुत अधिक है।

स्वास्थ्य देखभाल विनियमों में सुधार के लिए प्रस्ताव:

  • सरल और व्यवहार्य दिशानिर्देश: वर्तमान चुनौतियों का संधान करने के लिए, स्वास्थ्य देखभाल विनियमों को व्यावहारिक और कार्यान्वित दिशानिर्देशों के साथ तैयार किया जाना चाहिए। इसमें कई स्वास्थ्य विनियमों का सामंजस्य स्थापित करना और आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाना शामिल है। अनुमोदन अनावश्यक देरी से बचने के लिए समयबद्ध तरीके से दिए जाने चाहिए।
  • विभिन्न सुविधाओं के लिए विभेदित दृष्टिकोण: स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की विविध प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, विनियमों को विभेदित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। छोटे क्लीनिक और नर्सिंग होम के लिए बड़े अस्पतालों की तुलना में अलग मानक होने चाहिए। प्रत्येक श्रेणी के लिए आवश्यक और वांछनीय नियमों की सहायता से नियमित आत्म-मूल्यांकन और नियामक दौरे से निगरानी की जानी चाहिए। सरकार को इन मानकों का पालन करने में मदद के लिए छोटे क्लीनिकों को सब्सिडी और वित्तीय सहायता पर विचार करना चाहिए।
  • प्रमुख हितधारकों की भागीदारी: विनियम तैयार करने की प्रक्रिया में डॉक्टरों के संघ, अस्पतालों और सामुदायिक सदस्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि विनियम व्यावहारिक हों और सभी हितधारकों की आवश्यकताओं को पूरा करें।
  • एकल डॉक्टर क्लीनिक और छोटे सुविधाओं को बढ़ावा : एकल डॉक्टर क्लीनिक और छोटे स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं प्राथमिक देखभाल प्रदान करने और स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम रखने में महत्वपूर्ण हैं। इन सुविधाओं को अत्यधिक विनियमों के बजाय समर्थन की आवश्यकता है। इन सुविधाओं को बढ़ावा देना राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के लक्ष्य के अनुरुप है, जो जनकेंद्रित, सुलभ, सस्ती, और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती है।
  • सतत स्वास्थ्य शासन: इसमें बेहतर प्रबंधन प्रणालियों का कार्यान्वयन, स्वास्थ्य देखभाल नियामक निकायों को मजबूत करना और अधिक प्रभावी एवं कुशल स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाना शामिल है। इसके अलावा, महत्वपूर्ण चिकित्सा अवसंरचना और डेटा को किसी भी साइबर हमले जैसे हालिया AIIMS दिल्ली पर रैंसमवेयर हमले से सुरक्षित करने के लिए उपयुक्त साइबर सुरक्षा उपाय भी किए जाने चाहिए।
  • मूल कारणों का समाधान करना: दिल्ली में आग त्रासदी को ऐसी घटनाओं के मूल कारणों का आकलन और इन्हे रोकने के लिए ठोस योजना बनाने कि आवश्यकता है। साथ ही प्रमुख हितधारकों के सहयोग से विकसित सरल और कार्यान्वित विनियम आवश्यक हैं। निष्पक्ष कार्यान्वयन, समयबद्ध निर्णय और सब्सिडी के साथ छोटे स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को बढ़ावा देने से गुणवत्ता और सुरक्षा में सुधार होगा।

निष्कर्ष:

भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को स्वास्थ्य विनियमों के लिए एक सूक्ष्म और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नियामक ढांचे को सरल बनाना, विभिन्न प्रकार की सुविधाओं के लिए विभेदित दृष्टिकोण अपनाना, विनियमन प्रक्रिया में प्रमुख हितधारकों को शामिल करना और छोटे स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को बढ़ावा देना आवश्यक कदम हैं। इन मुद्दों को संबोधित करके, भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है और एक सुलभ, सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली सुनिश्चित कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
प्रश्न 1: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के सामने नियामक नीतियों और स्वास्थ्य मानकों के कार्यान्वयन के संदर्भ में चुनौतियों पर चर्चा करें। प्रभावी और व्यावहारिक स्वास्थ्य विनियम बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
प्रश्न 2: भारत की मिश्रित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र की भूमिका का विश्लेषण करें। गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए छोटे स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं जैसे एकल-डॉक्टर क्लीनिक और नर्सिंग होम का समर्थन करने के लिए नियामक ढांचे को कैसे अनुकूलित किया जा सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: हिंदू

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