सन्दर्भ :
भारत में हरित वास्तुकला तेजी से विकसित हो रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य इमारतों के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करना है। यह दृष्टिकोण निर्माण कार्य के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए संसाधनों जैसे सामग्री और ऊर्जा का अधिकतम कुशलता से उपयोग करने पर केंद्रित है। जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी के कारण वैश्विक चुनौतियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं, जिससे हरित वास्तुकला का महत्व और भी स्पष्ट हो जाता है। भारत जैसे तेज़ी से शहरीकरण कर रहे देशों में पर्यावरणीय मुद्दे अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। हरित वास्तुकला शहरी विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करने में सहायक होती है। ऊर्जा-कुशल और लागत-प्रभावी इमारतों की बढ़ती मांग ने हरित वास्तुकला की लोकप्रियता को और प्रोत्साहित किया है। भारत में, हरित इमारतें पारंपरिक इमारतों की तुलना में 20-30% तक अधिक ऊर्जा बचा सकती हैं, जोकि पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से महत्वपूर्ण योगदान है।
· 2023 में, ऊर्जा और पर्यावरण डिज़ाइन (LEED) प्रमाणन के तहत ,यू.एस. ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने भारत को तीसरे स्थान पर रखा, जोकि देश में पर्यावरण अनुकूल भवन निर्माण की दिशा में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। 7.23 मिलियन सकल वर्ग मीटर (GSM) क्षेत्र में फैली 248 स्वीकृत परियोजनाओं के साथ, भारत ने पर्यावरण स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया है। हाल ही में, इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 65% से अधिक कार्यालय भवनों को अब हरित प्रमाणन प्राप्त है, जिससे भारत पर्यावरणीय निर्माण विधियों में वैश्विक स्तर पर प्रमुख बन गया है।
हरित इमारतों की विशेषताएँ:
हरित इमारतों का उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और ग्रह पर निर्मित पर्यावरण के नकारात्मक प्रभाव को कम करना है। हरित इमारतों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. नवीकरणीय और टिकाऊ संसाधनों का उपयोग : उन सामग्रियों और संसाधनों को प्राथमिकता देना जोकि नवीकरणीय, टिकाऊ और आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों।
2. ऊर्जा संरक्षण : ऊर्जा खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल प्रणालियों और उपकरणों को लागू करना।
3. जल संरक्षण : जल संरक्षण के लिए जलकुशल उपकरणों का उपयोग करना।
4. इनडोर वायु गुणवत्ता में सुधार : इनडोर प्रदूषकों को कम करने के लिए प्राकृतिक वेंटिलेशन, वायु निस्पंदन प्रणाली और कम उत्सर्जन वाली सामग्री के साथ अच्छी इनडोर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
5. जैव विविधता संवर्धन : इमारतों में हरित छतों (Green Roofs) और जीवंत दीवारों (Living Walls) का उपयोग और इनका संयोजन करना।
LEED प्रमाणन भारत में पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं के लिए एक मानक है। ग्रीन बिजनेस सर्टिफिकेशन इंक (GBCI) LEED प्रमाणन प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है। LEED के अतिरिक्त, GBCI बिजली नवीनीकरण में प्रदर्शन उत्कृष्टता (PEER), कुल संसाधन उपयोग और दक्षता (TRUE), अधिक दक्षता के लिए डिजाइन में उत्कृष्टता (EDGE), और SITES जैसे प्रमाणन का प्रबंधन करता है, जोकि ऊर्जा दक्षता, जल संरक्षण और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे स्थिरता पहलुओं पर जोर देते हैं।
भारत में हरित वास्तुकला का उदय: स्थिरता की ओर एक मार्ग
भारत पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के रूप में हरित वास्तुकला को तेजी से अपना रहा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण तेज होता जा रहा है, सतत विकास और भी जरूरी होता जा रहा है। ऊर्जा-कुशल, लागत-प्रभावी इमारतों की बढ़ती मांग के कारण हरित भवन प्रथाओं को अपनाने की गति बढ़ रही है।
सरकारी नीतियाँ और प्रोत्साहन:
भारत सरकार ने हरित भवन प्रथाओं और LEED प्रमाणन को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया है। इन पहलों ने भारत को हरित भवन प्रमाणन में दुनिया के अग्रणी देशों में से एक के रूप में स्थापित करने में मदद की है। यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (USGBC) के अनुसार, 2023 में भारत के पास 7 बिलियन वर्ग फीट से अधिक हरित भवन क्षेत्र थे, जिससे यह इस संबंध में शीर्ष देश बन गया।
प्रमुख नीतियाँ और प्रोत्साहन निम्नलिखित हैं:
1. ग्रीन बिल्डिंग पॉलिसी: 2006 में शुरू की गई यह नीति देश भर में टिकाऊ निर्माण विधियों को बढ़ावा देती है। सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 2030 तक सभी नई संरचनाएँ ग्रीन बिल्डिंग मानकों का पालन करें।
2. कर लाभ: LEED-प्रमाणित भवनों के डेवलपर्स को कर प्रोत्साहन प्रदान किए जाते हैं, जैसे कि सौर पैनल, वर्षा जल संचयन प्रणाली और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढांचे जैसी टिकाऊ सुविधाओं पर 100% मूल्यह्रास, जो उन्हें आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करते हैं।
3. ऋण: भारत सरकार हरित-प्रमाणित निर्माण परियोजनाओं के लिए भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) के माध्यम से कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करती है।
4. राज्य स्तरीय प्रोत्साहन: कई राज्य ग्रीन बिल्डिंग सर्टिफिकेशन और ऊर्जा-कुशल निर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और कर छूट प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात ग्रीन-प्रमाणित इमारतों के लिए 10,00,000 रुपये (लगभग 11,943 अमेरिकी डॉलर) प्रदान करता है।
5. त्वरित अनुमोदन: हरित-प्रमाणित इमारतें त्वरित अनुमोदन, निरीक्षण और कम भवन शुल्क के लिए पात्र होती हैं।
6. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: सरकार नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और कर लाभ प्रदान करती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से हरित भवन विकास को समर्थन प्रदान करती है।
तकनीकी उन्नति: नवाचार और स्थिरता
तकनीकी प्रगति भारत में पर्यावरण के अनुकूल इमारतों की पहुँच में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। पुनर्नवीनीकृत कंक्रीट, बांस का उपयोग और सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के एकीकरण जैसे नवाचार टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं। द इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा उल्लेखित अनुसार , भारतीय भवन बाजार 2025 तक 39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा हरित निर्माण परियोजनाओं से होगा।
बढ़ती सार्वजनिक मांग: उपभोक्ता वरीयताओं में बदलाव
टिकाऊ इमारतों के प्रति उपभोक्ताओं की पसंद में उल्लेखनीय बदलाव आया है। पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ, अधिक उपभोक्ता हरित इमारतों के लिए प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार , हरित इमारतें उत्सर्जन को 35% और रखरखाव लागत को 20% तक कम कर सकती हैं। बढ़ती जागरूकता के साथ ये आर्थिक लाभ, हरित इमारतों को डेवलपर्स और उपभोक्ताओं दोनों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं।
भारत में हरित वास्तुकला को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ :
· टिकाऊ सामग्रियों तक पहुँच: टिकाऊ सामग्रियां अक्सर पारंपरिक विकल्पों की तुलना में अधिक महंगी और कम सुलभ होती हैं, जिससे वे बजट-संवेदनशील परियोजनाओं के लिए कम व्यवहार्य हो जाती हैं।
· विनियामक और प्रमाणन बाधाएँ: LEED जैसे प्रमाणन प्राप्त करना जटिल और समय लेने वाला हो सकता है, जिसके लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होती है, जोकि छोटी फर्मों या व्यक्तिगत पेशेवरों के लिए एक बाधा बन सकता है।
· जागरूकता और समझ की कमी: जबकि हरित वास्तुकला में रुचि बढ़ रही है, इसके दीर्घकालिक लाभों के बारे में जागरूकता की कमी बनी हुई है। कई हितधारक हरित इमारतों को उनकी लागत बचत के बावजूद वित्तीय रूप से अव्यावहारिक मानते हैं।
· कुशल कार्यबल की आवश्यकता: हरित भवन प्रथाओं से परिचित वास्तुकारों, इंजीनियरों और ठेकेदारों सहित कुशल श्रमिकों की कमी टिकाऊ वास्तुकला को व्यापक रूप से अपनाने में एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है।
अवसर :
· दीर्घकालिक लागत बचत और संपत्ति का बढ़ा हुआ मूल्य: ग्रीन बिल्डिंग ऊर्जा खपत, पानी के उपयोग और रखरखाव लागत को कम करके दीर्घकालिक बचत प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, इनकी संपत्ति का मूल्य भी अधिक होता है।
· रोजगार सृजन और आर्थिक विकास: हरित भवन क्षेत्र में आर्किटेक्ट्स, इंटीरियर्स डिज़ाइनर्स, निर्माण श्रमिकों और स्थिरता विशेषज्ञों के लिए रोजगार सृजन होने की उम्मीद है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
· पर्यावरणीय प्रभाव में कमी: चुनौतियों पर काबू पाने से CO2 उत्सर्जन और जल खपत में उल्लेखनीय कमी आ सकती है, जिससे स्थिरता लक्ष्यों में और अधिक योगदान मिलेगा।
भारत में हरित वास्तुकला का भविष्य: एक टिकाऊ कल
· भारत में हरित वास्तुकला का भविष्य आशाजनक है, जोकि उभरते रुझानों, नवीन तकनीकों, सहायक नीतियों और संधारणीय जीवन में बढ़ती सार्वजनिक रुचि से प्रेरित है। स्मार्ट बिल्डिंग तकनीक, वर्टिकल ग्रीनरी और सर्कुलर इकोनॉमी जैसे नए रुझान निर्माण के भविष्य को आकार देंगे। 2025 तक, भारत का हरित भवन बाजार 39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो इस क्षेत्र की क्षमता को दर्शाता है।
· निरंतर सरकारी सहायता, तकनीकी प्रगति और टिकाऊ इमारतों के लिए बढ़ती उपभोक्ता मांग के साथ, भारत हरित वास्तुकला में वैश्विक नेता बनने की स्थिति में है। पर्यावरण के अनुकूल निर्माण प्रथाओं के प्रति भारत की प्रतिबद्धता अन्य विकासशील देशों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करती है, जोकि साबित करती है कि आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता एक साथ रह सकते हैं। भारत में हरित वास्तुकला में एक लचीले और टिकाऊ भविष्य को बढ़ावा देने की क्षमता है, जोकि यह सुनिश्चित करती है कि शहरी विकास लोगों और ग्रह दोनों की जरूरतों को पूरा करे।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: भारत में हरित वास्तुकला को तेजी से हो रहे शहरीकरण से उत्पन्न पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक आशाजनक समाधान के रूप में देखा जाता है। भारत के पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर हरित भवन प्रथाओं के प्रभाव का विश्लेषण करें। तकनीकी प्रगति हरित वास्तुकला के प्रसार में कैसे योगदान देती है? |