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Daily-current-affairs / 14 Jun 2024

क्या गठबंधन सरकारें सुधारात्मक एजेंडे को धीमा कर देती हैं ? - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

  • भारत में गठबंधन सरकारों के आर्थिक सुधारों को गति देने या बाधित करने के प्रभाव पर एक सतत बहस निरंतर जारी है। 1993 से 2014 तक, भारत में गठबंधन सरकारों का ही शासन रहा, उसके बाद एकल-दलीय बहुमत वाली सरकार सत्ता में आई। हाल ही में, गठबंधन शासन की वापसी ने महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधारों को लागू करने की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

गठबंधन सरकारों में नीतिगत रियायतें: धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन

  • कार्यकारी सारांश:
    • गठबंधन सरकारों के प्रभाव पर चल रही बहस अक्सर दो धारणाओं पर आधारित होती है: (1) एकल-दलीय सरकारें आदर्श हैं और (2) गठबंधन सरकारें एकात्मक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। यह विश्लेषण इन्हीं धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन करता है। तुलनात्मक अध्ययन दर्शाते हैं कि नीति निर्माण में समझौते और लेन-देन दोनों प्रकार की सरकारों में मौजूद होते हैं। अंतर मुख्य रूप से पारदर्शिता में है: गठबंधन सरकारें अक्सर नीतिगत चर्चाओं को सार्वजनिक तौर पर आयोजित करती हैं, जिससे जवाबदेही बढ़ती है। भारत में ऐतिहासिक रूप से, गठबंधन सरकारों का प्रदर्शन कमजोर नहीं रहा है, बल्कि नियंत्रण और संतुलन प्रणाली ने कभी-कभी एकल-दलीय सरकारों की तुलना में बेहतर शासन को सक्षम बनाया है।
  • आर्थिक सुधार और राजनीतिक स्थिरता:
    • यह सत्य है कि आर्थिक विकास के लिए सुधार आवश्यक हैं, जिन्हें अक्सर एकल-दलीय बहुमत वाली सरकारों की निर्णायक कार्रवाई से जोड़ा जाता है। हालांकि, यह केवल एक कारक है। भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया गठबंधन सरकारों के अधीन शुरू हुई और विभिन्न प्रशासनों के माध्यम से जारी रही। यद्यपि गठबंधन सरकारों में अधिक वार्ता और समझौता शामिल हो सकता है, इससे अधिक स्थिर और स्थायी नीतियां बन सकती हैं। इसके विपरीत, एकल-दलीय बहुमत वाली सरकारें तेजी से किंतु कम सहमति वाले सुधार लागू कर सकती हैं, जिन्हें बाद में चुनौती दी जा सकती है और संभावित रूप से उलट भी दिया जा सकता है।

गठबंधन सरकारों का आर्थिक कार्यक्रम पर प्रदर्शन:

  • निरंतरता और वृद्धिशील नीतिगत परिवर्तन:
    • 1991 के उदारीकरण के बाद से भारत ने विभिन्न सरकारों में आर्थिक नीतियों में उल्लेखनीय निरंतरता देखी है। गठबंधन सरकारों ने वृद्धिशील नीतिगत परिवर्तनों को सुगम बनाया है, जो अक्सर विविध दृष्टिकोणों को समायोजित करने के लिए तंत्रों को संस्थागत बनाते हैं।
      • उदाहरण:
        • वी.पी. सिंह सरकार ने ज्वलंत मुद्दों को संबोधित करने के लिए कई समितियों का इस्तेमाल किया, जो बाद के प्रशासनों के तहत 'मंत्री समूह' के रूप में विकसित हुआ।
    • इस तरह के तंत्र नीतिगत फैसलों में व्यापक सहमति और स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। इसके विपरीत, एकल-दलीय सरकारें व्यापक परामर्श को दरकिनार कर सकती हैं, जिससे विवादास्पद फैसले हो सकते हैं, जैसे कृषि कानून, जिन्हें व्यापक संवाद की कमी के कारण भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
  • केंद्र-राज्य संबंध और गठबंधन गतिकी
    • गठबंधन सरकारें अक्सर उन संस्थानों को सक्रिय करती हैं जो केंद्र-राज्य संबंधों को बढ़ावा देती हैं, क्योंकि सहयोगी दल अक्सर क्षेत्रीय दल होते हैं। यह गतिशीलता अधिक जानकारीपूर्ण और समावेशी नीति निर्माण प्रक्रियाओं को जन्म दे सकती है, हालांकि कभी-कभी अशांत भी हो सकती है। गठबंधन सरकारों के भीतर बातचीत तीखी हो सकती है, जिससे संभावित रूप से सुधार रुक सकते हैं। जनता पार्टी सरकार की वैचारिक प्रतिबद्धताओं के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना करने जैसे ऐतिहासिक उदाहरण इस बात को रेखांकित करते हैं कि गठबंधन सरकारों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।  हालांकि, ये चुनौतियां केवल गठबंधनों के लिए विशिष्ट नहीं हैं; एकल-दलीय सरकारों ने भी आंतरिक जांच और नीतिगत उलटफेरों का सामना किया है, जैसा कि राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान देखा गया था।

राजकोषीय नीतियां और राजस्व में राज्यों की भागीदारी

  • गठबंधन सरकारों का राज्य राजस्व पर प्रभाव:
    • राष्ट्रीय गठबंधन सरकारों में राज्य सरकारों की भूमिका अक्सर अधिक होती है, जो समावेशी निर्णय लेने की आवश्यकता को दर्शाती है। वर्तमान प्रशासन द्वारा शुरू में अपनाई गई "सहकारी संघवाद" की अवधारणा का लक्ष्य भारतीय संघवाद को मजबूत करना था। हालाँकि, विशेष उपकरों के माध्यम से राजस्व के केंद्रीयकरण और योजना आयोग के उन्मूलन ने वित्तीय शक्ति के संतुलन को बदल दिया है। योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग, एक अधिक तकनीकी संस्थान के गठन से, सामाजिक कल्याण लाभों पर केंद्रीय नियंत्रण में वृद्धि हुई है, जिसने वार्ता के लिए संस्थागत स्थान को कम कर दिया है। इस बदलाव ने राज्यों के बीच असंतोष को बढ़ा दिया है, जो राजकोषीय नीति के लिए अधिक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • जीएसटी और राजस्व साझाकरण की चुनौतियां:
    • वस्तु एवं सेवा कर (GST) को शुरू करने का लक्ष्य कराधान को सुव्यवस्थित करना था, लेकिन इसने केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व साझाकरण में भी जटिलताएं उत्पन्न कर दीं। जीएसटी वार्ताओं ने आम सहमति प्राप्त करने में कठिनाइयों को उजागर किया, जहां राज्यों को कर प्रणाली में बदलाव के कारण राजस्व में गिरावट का सामना करना पड़ा। वहीँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में राज्य के हितों को बेहतर ढंग से व्यक्त करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। साथ ही जीएसटी की रूपरेखा राज्य सरकारों के लिए पर्याप्त रूप से अनुकूल नहीं होने के कारण इसकी  आलोचना की गई है।

वर्तमान गठबंधन सरकार और आर्थिक दृष्टिकोण

  • शक्ति का वितरण और निर्णयण:
    • प्रमुख सहयोगियों के साथ भाजपा के नेतृत्व वाली वर्तमान गठबंधन सरकार महत्वपूर्ण मंत्रालयों में भाजपा के निरंतर प्रभुत्व को दर्शाती है। पिछले दशक में शासन और निर्णय लेने की शैली गठबंधन व्यवस्था के तहत संभावित परिवर्तनों के बारे में सवाल उठाती है। गठबंधन सहयोगियों का आर्थिक दृष्टिकोण अलग-अलग होता है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में आर्थिक सुधारों पर आम सहमति है। निर्णय लेने की गति और नियोजित तंत्र वर्तमान गठबंधन के तहत आर्थिक सुधारों की प्रभावशीलता को निर्धारित करेंगे।
  •  नीतिगत निर्णयों में स्थिरता और समावेशिता:
    • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में कई पक्षों की भागीदारी के परिणामस्वरूप अधिक स्थिर और स्थायी नीतियों की संभावना है। जबकि एकल-पार्टी सरकारें तेजी से सुधारों को आगे बढ़ा सकती हैं, गठबंधन सरकारों की बातचीत और समझौते की अंतर्निहित आवश्यकता ऐसी नीतियों को जन्म दे सकती है जो व्यापक समर्थन और दीर्घायु का आनंद लेती हैं। भारत में पिछली गठबंधन सरकारों का अनुभव दर्शाता है कि समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाएं निरंतर आर्थिक विकास और सुधार की सुविधा प्रदान कर सकती हैं।

निष्कर्ष:

     निष्कर्षतः, गठबंधन सरकारें स्वाभाविक रूप से आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम को रोक नहीं सकती हैं। यद्यपि उन्हें बातचीत और समझौते की आवश्यकता होती है, लेकिन यह अधिक स्थिर और समावेशी नीतियों की ओर ले जा सकता है। भारत में गठबंधन सरकारों के ऐतिहासिक प्रदर्शन से पता चलता है कि वे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा सकते हैं और निरंतरता और वृद्धिशील परिवर्तन सुनिश्चित कर सकते हैं। चाहे गठबंधन सरकार हो या एकल-पार्टी बहुमत वाली सरकार, पारदर्शी और समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाएं सफल आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    भारत में गठबंधन सरकारें एकल-पक्षीय बहुमत वाली सरकारों की तुलना में आर्थिक नीति निर्णय लेने की पारदर्शिता और समावेशिता को कैसे प्रभावित करती हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

2.    भारत में गठबंधन शासन और केंद्र-राज्य राजकोषीय संबंधों के संदर्भ में माल और सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ और लाभ क्या हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत- हिंदू