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Daily-current-affairs / 01 Jun 2024

वैश्विक कार्यबल में कमी और भारत के अतिरिक्त कार्यबल में संतुलन : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ-

भारत ने  दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ दिया है, और यहाँ कई उन्नत देशों में श्रम की कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त कार्यबल है। भारत में 1.4 बिलियन से अधिक की आबादी में से लगभग 65 प्रतिशत कामकाजी उम्र (15-64 वर्ष) के हैं और 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच 27 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या है। यह युवा जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल वैश्विक श्रम बाजार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की महत्वपूर्ण क्षमता रखती है।

भारत का आर्थिक विकास और रोजगार बाजार की गतिशीलता

  • भारत का रोजगार बाजार महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रहा है। ध्यातव्य हो कि यह 7.8 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर के साथ कोविड-19 के बाद दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। मजबूत निजी खपत और सार्वजनिक निवेश से प्रेरित यह वृद्धि भारत को 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकती है।
  • हाल की ओआरएफ. रिपोर्ट से विभिन्न सेक्टरों, क्षेत्रों और लैंगिक रूप से रोजगार लोच में महत्वपूर्ण अंतर देखा गया हैं। सेवा क्षेत्र में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र (0.53) और महिलाओं(0.31) के बीच सबसे अधिक दीर्घकालिक रोजगार लचीलापन दिखाई दिया है।

वैश्विक जनसांख्यिकी बदलाव और श्रम की कमी

  • कई उच्च आय वाले देश तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव का अनुभव कर रहे हैं, जो उम्र बढ़ने वाली आबादी और घटती जन्म दर की विशेषता है। 2050 तक, इन देशों में काम करने की उम्र वाली आबादी 92 मिलियन से अधिक कम हो जाएगी, जबकि बुजुर्ग आबादी (65 और उससे अधिक) 100 मिलियन से अधिक बढ़ जाएगी।
  • यह जनसांख्यिकीय बदलाव एक महत्वपूर्ण असंतुलन पैदा करता है। काम करने की उम्र वाले व्यक्तियों का पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में योगदान करना आवश्यक होता हैं जो बुजुर्ग पीढ़ी का समर्थन करते हैं, इस प्रकार वित्तीय और सामाजिक स्थिरता बनाए रखते हैं।  

उन्नत राष्ट्रों में नए श्रमिकों की आवश्यकता

  • बुजुर्गों होती आबादी के स्थान पर कार्य करने के लिए, उन्नत देशों को अगले 30 वर्षों में 40 करोड़ से अधिक नए श्रमिकों की आवश्यकता होगी। जिसे विकसित देश अकेले घरेलू कार्यबल से पूरा नहीं कर सकते हैं।
  • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे भारत रणनीतिक रूप से अपनी श्रम आपूर्ति को उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मांगों के साथ संरेखित कर सकता है, जिससे आपसी आर्थिक विकास और एकीकरण सुनिश्चित हो सके।
  • उदाहरण के लिए, जर्मनी की कामकाजी उम्र की आबादी में 2050 तक 1 करोड़ की गिरावट आने का अनुमान है, जबकि बुजुर्ग आबादी में काफी वृद्धि होगी। जापान, इटली और अन्य विकसित देशों में भी इसी तरह के रुझान देखे गए हैं जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है।

श्रम गतिशीलता के माध्यम से वैश्विक समानता और उत्पादकता में वृद्धि

  • श्रम गतिशीलता संभावित प्रवासियों को जरूरतमंद नियोक्ताओं के साथ जोड़ सकती है, जिससे वैश्विक समानता और उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। अमीर देशों में जाने वाले श्रमिक अपनी आय में 6 से 15 गुना वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे गरीबी में काफी कमी आएगी।
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभ पर्याप्त संभावित कार्यबल प्रदान करता है। अनुमान है कि भारत सहित कम आय वाले देशों में 2050 तक दो अरब नए कामकाजी उम्र के लोग होंगे। यह अधिशेष श्रम बल उन्नत देशों में श्रम मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने का अवसर प्रदान करता है।


प्रेषण(Remittances) की भूमिका

  • श्रम गतिशीलता के सकारात्मक प्रभाव व्यक्तिगत प्रवासियों से परे फैले हुए हैं। प्रवासी श्रमिकों द्वारा घर वापस भेजी गई राशि उनके गृह देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • 2022 में, भारत को 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रेषण प्राप्त हुआ, इसी के साथ यह 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार करने वाला पहला देश बन गया। ये कोष गरीबी में कमी, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और समग्र आर्थिक विकास में योगदान करता हैं। हालाँकि, महामारी ने प्रवासी श्रमिकों को गंभीर रूप से प्रभावित किया, विशेष रूप से कम कुशल नौकरियों में, जिससे महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है।

श्रम गतिशीलता के समक्ष चुनौतियां

  • स्पष्ट लाभों के बावजूद, श्रम गतिशीलता का समर्थन करने वाली वर्तमान प्रणालियाँ आवश्यक सुविधाओं को प्रदान करने में अपर्याप्त हैं और अक्सर नकारात्मक सार्वजनिक धारणाओं से बाधित होती हैं।
  • कई उच्च आय वाले देशों में आप्रवासी विरोधी भावनाएं और प्रतिबंधात्मक आप्रवासन नीतियां संभावित प्रवासियों के लिए बाधाएं पैदा करती हैं। ये सांस्कृतिक मुद्दे अक्सर ऐसी नीतियों की ओर ले जाते हैं जो आप्रवासियों की संख्या को सीमित करती हैं और उनके लिए पर्याप्त समर्थन प्रणाली प्रदान करने में विफल रहती हैं।
  • इसके अलावा, प्रवास से जुड़ी कानूनी और नौकरशाही बाधाएं चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।
  • कई देशों में जटिल आप्रवासन प्रक्रियाएँ हैं जो संभावित प्रवासियों को रोकती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, प्रवासियों को उनके नए वातावरण के अनुकूल बनाने और समाज के उत्पादक सदस्य बनने में मदद करने के लिए व्यापक एकीकरण कार्यक्रमों की अक्सर कमी होती है।

श्रम गतिशीलता बढ़ाने के लिए रणनीतिक समाधान

इन चुनौतियों को दूर करने के लिए एक रणनीतिक और अच्छी तरह से समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

  • श्रम गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ाना, आप्रवासन प्रक्रियाओं को सरल बनाना, प्रवास के अवसरों के बारे में स्पष्ट जानकारी प्रदान करना और प्रवासियों के लिए सहायता सेवाएं प्रदान करना प्रक्रिया को अधिक सुलभ और कुशल बना सकता है।
  • जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से नकारात्मक सार्वजनिक धारणाओं को खत्म करना और प्रवासियों के सकारात्मक योगदान को उजागर करना श्रम गतिशीलता के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाने में मदद कर सकता है।
  • "विश्व गुरु" से "विश्व बंधु" (वैश्विक भागीदार) में परिवर्तन, सहयोग और आपसी लाभ पर ध्यान केंद्रित करने में सहायक होगा। यह बदलाव वैश्विक श्रम बाजार की मांगों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए आवश्यक है।
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने कार्यबल को आवश्यक कौशल से युक्त करने के लिए कौशल पहलों में निवेश करना आवश्यक है।
  • उच्च-मांग वाले क्षेत्रों की पहचान: उन्नत देशों में उच्च-मांग वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जो स्वास्थ्य सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा और विनिर्माण जैसे तीव्र श्रम की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण: भारतीय श्रमिकों की उत्पादकता और समग्र वैश्विक वित्तीय प्रभाव का आकलन करने सहित श्रम बाजार ढांचे का उपयोग करके इन क्षेत्रों में भारतीय श्रम को एकीकृत करने के आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
  • श्रम गतिशीलता में वृद्धि: भारत से वैश्विक श्रम प्रवास के लिए सक्षम स्थितियों की पहचान करके श्रम गतिशीलता को बढ़ाने की आवश्यकता है इसमें श्रम गतिशीलता लेनदेन लागत को कम करना और भारतीय श्रम बाजार में लौटने वाले श्रमिकों के सुचारू पुनर्एकीकरण को सुनिश्चित करना शामिल है।

निष्कर्ष
वैश्विक मांग के साथ भारत के प्रचुर मात्रा में कार्यबल को प्रभावी ढंग से संरेखित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें लक्षित कौशल पहल, श्रम गतिशीलता ढांचे में वृद्धि और प्रवासी श्रमिकों के लिए मजबूत समर्थन प्रणाली शामिल है। इस तरह के रणनीतिक प्रयासों के माध्यम से, भारत वैश्विक कार्यबल अंतराल को कम कर सकता है और अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाजार में खुद को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  1. उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में श्रम की कमी को दूर करने में भारत के युवा जनसांख्यिकीय प्रोफाइल के संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा करें। भारत इन अर्थव्यवस्थाओं की मांगों के साथ अपनी श्रम आपूर्ति को रणनीतिक रूप से कैसे संरेखित कर सकता है? (10 Marks, 150 Words)
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रेषण की भूमिका की जाँच करें। वर्तमान चुनौतियों और लाभों को ध्यान में रखते हुए श्रम गतिशीलता को बढ़ाने और भारतीय श्रमिकों को वैश्विक श्रम बाजार में एकीकृत करने के लिए क्या रणनीतिक उपाय किए जा सकते हैं? (15 Marks, 250 Words)