प्रसंग:
● अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 के अवसर पर, भारत में लैंगिक दृष्टिकोण की स्थिति पर विचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। समानता की दिशा में प्रगति के बावजूद, लैंगिक भूमिकाओं की पारंपरिक धारणाएं अभी भी व्याप्त हैं जो शिक्षा, कार्यबल भागीदारी और घरेलू निर्णय लेने सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती हैं।
● यहां हम राष्ट्रीय सर्वेक्षणों और रिपोर्टों से अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हुए, 21वीं सदी में भारत में लिंग मानदंडों और दृष्टिकोण में देखे गए परिवर्तनों का विश्लेषण करेंगे।
26 देशों में लैंगिक दृष्टिकोण: यूएसएआईडी रिपोर्ट से अंतर्दृष्टि
● यूएसएआईडी रिपोर्ट जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) के डेटा का उपयोग करके भारत सहित 26 देशों में लिंग दृष्टिकोण की जांच करती है। यह रिपोर्ट पुरुषों में असमान लिंग दृष्टिकोण में गिरावट को प्रकट करती है, जो अधिक न्यायसंगत मानदंडों की ओर एक सकारात्मक बदलाव का संकेत देती है।
● हालांकि, असमानताएं अभी भी बनी हुई हैं, विशेष रूप से महिलाओं के गर्भनिरोधक उपयोग और पुत्र को प्राथमिकता देने के प्रति दृष्टिकोण में। रिपोर्ट के निष्कर्ष लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति को गति देने के लिए लक्षित हस्तक्षेपों के महत्व पर बल देते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2005-2021
● घरेलू हिंसा को उचित ठहराने में कमी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 15-49 आयु वर्ग के पुरुषों में घरेलू हिंसा को उचित ठहराने के मामलों में गिरावट आई है। यद्यपि , कुछ परिदृश्यों में प्रगति स्पष्ट है परंतु चुनौतियाँ बनी हुई हैं जो गहरी जड़ें जमा चुके लैंगिक मानदंडों को बदलने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता का संकेत देती हैं।
आंकड़ा: भारतीय पुरुषों (15-49) का अनुपात जो पत्नी पीटने को उचित ठहराते थे
● भारतीय महिलाओं की घरेलू निर्णयों में बढ़ती स्वायत्तता
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़े यह भी बताते हैं कि 15-49 आयु वर्ग की भारतीय महिलाओं को बड़ी खरीददारी करने में स्वायत्तता में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, युवा महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो वित्तीय सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में सकारात्मक बदलाव को दर्शाते हैं।
आंकड़ा: भारतीय महिलाओं (15-49) का अनुपात जो यह स्पष्ट करते हैं कि बड़ी खरीददारी करने का अंतिम निर्णय अकेले या संयुक्त रूप से उनका होता है
● भारतीय पुरुषों के बीच पत्नी से मार -पीट को उचित ठहराने की सहमति में वृद्धि
अपेक्षाओं के विपरीत, भारतीय पुरुषों के उस अनुपात में वृद्धि हुई है जो पत्नी से मार -पीट को उचित ठहराते हैं, विशेषकर उन मामलों में जहां पत्नी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करती है। यह चिंताजनक प्रवृत्ति युवा आयु वर्गों में, महिलाओं की स्वायत्तता और सहमति के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए गहन प्रयासों की मांग करती है।
आंकड़ा: भारतीय पुरुषों (15+) का वह अनुपात जो इस बात से सहमत हैं कि अगर पत्नी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करती है तो पति का उसे मारना या पीटना उचित है।
● भारतीय घरों में परिवार नियोजन संबंधी निर्णय लेना
भारतीय घरों में परिवार नियोजन संबंधी निर्णय लेने में पति-पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से निर्णय लेने में लगातार वृद्धि देखी गई है। हालांकि, यह भी पाया गया है कि ज्यादातर निर्णय केवल पति द्वारा लिए जाने के मामलों में भी वृद्धि हुई है। यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए समान निर्णय लेने को प्रोत्साहित करने के महत्व को रेखांकित करता है।
आंकड़ा: भारतीय घरों में परिवार नियोजन संबंधी निर्णय लेना
● भारतीय समाज में पुत्रप्रधान मानसिकता का बने रहना
आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय समाज में पुत्र की आकांक्षा बनी हुई है जो विशेष रूप से परिवार नियोजन के निर्णयों में स्पष्ट है। अधिक बच्चों की इच्छा में धीरे-धीरे कमी आने के बावजूद पुत्र की आकांक्षा मजबूत बनी हुई है, जो परिवार की आकांक्षाओं को आकार देने वाले लैंगिक मानदंडों को दर्शाती है।
आंकड़ा: वर्तमान में विवाहित भारतीय पुरुष (15-49 आयु वर्ग) जिनके दो बच्चे हैं और वे अब और बच्चे नहीं चाहते उन्हें उनके जीवित पुत्रों की संख्या के अनुसार वर्गीकृत किया गया है।
भावी रणनीति
● शिक्षा और जागरूकता अभियान: पारंपरिक लैंगिक मानदंडों को चुनौती देने और कम उम्र से ही लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लक्षित शिक्षा और जागरूकता अभियान लागू करना।
● नीतिगत हस्तक्षेप: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार सहित विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानताओं को दूर करने और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने वाली नीतियों का विकास एवं कार्यान्वयन करना।
● समुदाय सहभागिता: महिलाओं को सशक्त बनाने, हानिकारक प्रथाओं को चुनौती देने और लैंगिक रूप से संवेदनशील दृष्टिकोणों तथा व्यवहारों को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक सहभागिता और जमीनी स्तर की पहल को बढ़ावा देना।
● समर्थन सेवाएं: लैंगिक हिंसा से पीड़ितों के लिए सहायता सेवाओं को मजबूत करना और जरूरतमंदों के लिए संसाधनों तथा कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना।
● शोध और डेटा संग्रह: लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति की निगरानी करने और लक्षित हस्तक्षेप साथ सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए अनुसंधान एवं डेटा संग्रह प्रयासों में निवेश करना।
निष्कर्ष:
विगत दो दशकों में, भारत ने लैंगिक मानदंडों और दृष्टिकोणों में धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से बदलाव देखा है। जहाँ समानता की दिशा में प्रगति हुई है, वहीं चुनौतियां बनी हुई हैं, खासकर घरेलू हिंसा और पुत्र प्राप्ति की चाहत के विषय में। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) का डेटा महिलाओं की स्वायत्तता को बढ़ावा देने और घरों में समान निर्णय लेने को प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता है।
Source- ORF