संदर्भ –
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने 21 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण परामर्श जारी किया, जिसमें राजनीतिक दलों से विकलांगता-संवेदनशील शब्दावली अपनाने का आग्रह किया गया है। इस पहल का उद्देश्य विकलांगता-समावेशी संचार को बढ़ावा देना, सूचना की पहुंच सुनिश्चित करना और राजनीतिक दल के भीतर समावेश को बढ़ावा देना है। चुनाव भाषणों के दौरान राष्ट्रीय नेताओं द्वारा विकलांगता का अपमानजनक तरीके से उपयोग करने के हालिया उदाहरणों की पृष्ठभूमि में, निर्वाचन आयोग की सलाह एक सराहनीय कदम है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016:
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, भारत में एक आधारभूत कानून है जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सशक्त बनाना है। विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करते हुए, यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और समावेश को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है।अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं -
· विकलांगता की परिभाषाः यह अधिनियम शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक और संवेदी अक्षमताओं सहित विभिन्न तरह की विकलांगताओं को मान्यता देता है।
· अधिकार: अधिनियम में समानता, गैर-भेदभाव और समाज में पूर्ण भागीदारी सहित विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारी की रूपरेखा तैयार की गई है।
· शिक्षाः यह18 वर्ष की आयु तक मुफ्त शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देता है।
· रोजगारः रोजगार में समान अवसरों को बढ़ावा देता है, भेदभाव को रोकता है और सरकारी एवम निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की नौकरी में आरक्षण को अनिवार्य करता है।
· सुलभताः यह अधिनियम सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों में बाधा मुक्त पहुंच पर जोर देता है।
· स्वास्थ्य सेवाः सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करता है।
· कानूनी क्षमताः कानून के समक्ष समान मान्यता के अधिकार को मान्यता देता है और निर्णय लेने की क्षमता का समर्थन करता है।
· सामाजिक सुरक्षाः विकलांग व्यक्तियों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी उपायों को बढ़ावा देता है।
ईसीआई के दिव्यांगता-समावेशी संचार के लिए दिशानिर्देशः
विकलांगता-संवेदनशील संचार दिशानिर्देशों पर निर्वाचन आयोग की सलाह चुनाव अभियानों के दौरान राजनीतिक नेताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अपमानजनक भाषा की प्रतिक्रिया है। दिशा-निर्देश कई प्रमुख पहलुओं पर जोर देते हैंः
● असभ्य शब्दावली पर प्रतिबंधः कलंक या हाशिए पर रहने वाले समुदाय के लिए असभ्य शब्दावली से बचने पर जोर ।
● अमानवीकरण और रूढ़िवादी प्रथाओं की रोकथामः अमानवीय प्रथाओं और विकलांगो व्यक्तियों से संबंधित रूढ़ियों को समाप्त करने का आह्वान।
● कानूनी प्रभावः पीडब्ल्यूडी अधिनियम की धारा 92 के तहत इन संचार दिशानिर्देशों के उल्लंघन के संदर्भ में तीव्र कार्यवाही।
दिशानिर्देशों के लाभः
राजनीतिक समावेशन को बढ़ावा देनाः विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के सिद्धांतों के अनुरूप राजनीति में विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा । इससे दिव्यांगजनों के विविध योगदान को स्वीकार करते हुए एक अधिक समावेशी राजनीतिक वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
● समावेशिता और सुलभताः दिशा निर्देश राजनीतिक क्षेत्र में दिव्यांगजनों के लिए सुलभता को सुगम बनाएंगे, यह सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक दलों की वेबसाइटों पर जानकारी सुलभ हो। दिशा निर्देश भौतिक बाधाओं को समाप्त करते हुए उचित पहुंच वाले स्थानों पर राजनीतिक कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करते है।
दिशानिर्देशों की सीमाएँः
● सलाहकार प्रकृतिः दिशानिर्देश अनिवार्य के बजाय सलाहकार हैं, यह उनके कार्यान्वयन में विसंगति को पेश करते हैं। कुछ दिशानिर्देशों में अनिवार्य भाषा का उपयोग दूसरों संदर्भों में उपयोग की जाने वाली विवेकाधीन भाषा के विपरीत है।
● आदर्श आचार संहिता से अलग :आधिकारिक आदर्श आचार संहिता में इनकी अनुपस्थिति चुनावों के दौरान इन दिशानिर्देशों की प्रवर्तनीयता को सीमित करती है। कुछ दिशानिर्देशों के उल्लंघन के परिणामों के बारे में अस्पष्टता है, विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम की धारा 92 के संबंध में देखा जा सकता है ।
● भाषा में अस्पष्टताः "अंधे", "बहरे" और "गूंगे" जैसे विशिष्ट शब्दों के उपयोग से संबंधित दिशानिर्देशों में अस्पष्टताएँ हैं। संयुक्त राष्ट्र विकलांगता समावेशन रणनीति में उल्लिखित विकलांगता-संवेदनशील भाषा पर स्पष्ट परिभाषाएं और मार्गदर्शन संभावित भ्रम को दूर करने के लिए आवश्यक हैं।
ईसीआई के दिशानिर्देशों की प्रभावशीलता बढ़ानाः
इन दिशा निर्देशों के प्रभाव को मजबूत करने के लिए, निम्नलिखित परिवर्तन की आवश्यकता हैः
● समान आदेश की आवश्यकताः सभी श्रेणियों में एक समान आदेश के माध्यम से, राजनीतिक दलों के लिए एक सुसंगत और लागू करने योग्य ढांचा प्रदान किया जाना चाहिए।
● आदर्श आचार संहिता (एम. सी. सी.) में शामिल करना: प्रवर्तन में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए एम. सी. सी. के भीतर इन दिशानिर्देशों को शामिल किया जाना चाहिए। यह कदम निर्वाचन आयोग को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत आवश्यक कार्रवाई करने का अधिकार देगा।
● शब्दों में अस्पष्टता को समाप्त करनाः दिशानिर्देशों के भीतर अस्पष्टता की पहचान और सुधार करना, जैसे कि विकलांगता-संवेदनशील शब्दों और वाक्यों की एक विस्तृत सूची प्रदान की जानी चाहिए।
राजनीतिक समावेश पर राष्ट्रीय नीति :राष्ट्रीय नीति में राजनीतिक समावेश पर एक अध्याय को शामिल करने का प्रस्ताव किया जाना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों के साथ संरेखित हो । विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुच्छेद 29 के साथ संबंधित एक व्यापक अध्याय को शामिल करने से इस कमी को दूर किया जा सकता है।
विकलांग विधायकों पर एक डेटाबेस का निर्माणः प्रतिनिधित्व में मौजूदा अंतर को दूर करने के लिए विकलांग विधायकों पर डेटा के संग्रह की वकालत की जानी चाहिए। आगामी 2024 के चुनावों में इस अंतर को दूर करना दिव्यांगजनों के राजनीतिक समावेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
निष्कर्ष
अंत में, राजनीतिक दलों के लिए विकलांगता-संवेदनशील दिशानिर्देशों पर ईसीआई की हालिया सलाह समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इन दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए, कई संवर्द्धन की आवश्यकता है, जैसे कि सुसंगत और अनिवार्य भाषा, आदर्श आचार संहिता में समावेश और राष्ट्रीय नीतियों के भीतर राजनीतिक समावेश के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण। इन पहलुओं को संबोधित करके, भारत एक अधिक समावेशी राजनीतिक परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो विकलांग व्यक्तियों का सम्मान करता हो और उन्हें सशक्त बनाता हो। जैसे-जैसे 2024 के आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मौजूदा विसंगतियों को ठीक करने और विकलांग व्यक्तियों के लिए राजनीतिक समावेश को सही मायने में अपनाने का एक अनूठा अवसर है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
|
स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस