सन्दर्भ :
खाद्य मुद्रास्फीति, यानी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि, भारत के लिए सबसे गंभीर आर्थिक चुनौतियों में से एक है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में भोजन और पेय पदार्थों का हिस्सा लगभग 45.86% है, जिससे खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि सीधे हेडलाइन मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है। यह न केवल परिवारों और व्यवसायों पर प्रभाव डालती है बल्कि सरकारी नीतियों को भी चुनौती देती है। भारत में, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आय का अधिकांश भाग भोजन पर खर्च करता है, मुद्रास्फीति क्रय शक्ति को कम करती है, असमानता को बढ़ाती है और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है। हाल के दिनों में भारत में खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति कुछ हद तक घटकर नवंबर में 9.04% हो गई, जो अक्टूबर में 10.87% थी। हालांकि, गेहूं और खाद्य तेल जैसी वस्तुओं पर अभी भी चिंता बनी हुई है, जो खाद्य लागत में वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के कारण
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति संरचनात्मक, चक्रीय और बाहरी कारकों के मिश्रण से प्रेरित होती है। आपूर्ति की बाधाएं मुख्य चालक हैं, लेकिन मांग कारक भी मुद्रास्फीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1. जलवायु परिवर्तन और मौसम की अनिश्चितता
भारत की कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अस्थिर हो गया है। हीटवेव, बाढ़, सूखा और असमय बारिश जैसी घटनाएं फसल चक्र को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं, उत्पादन घटाती हैं, और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट पैदा करती हैं।
- हीटवेव: 2022-23 में उत्तरी भारत में हीटवेव के कारण गेहूं सिकुड़ गया और उत्पादन घट गया। इसी प्रकार, उच्च तापमान से दूध और पोल्ट्री उत्पादन भी प्रभावित हुआ।
- असमय बारिश: 2023 में प्याज, टमाटर और गेहूं जैसी फसलें कटाई के दौरान भारी बारिश से खराब हो गईं।
- एल नीनो प्रभाव: 2023 में एल नीनो प्रभाव से अगस्त में रिकॉर्ड सूखा हुआ, जिससे चावल, दाल और सब्जियों की पैदावार प्रभावित हुई।
2. कमजोर कृषि बुनियादी ढांचा
भारत की कृषि आपूर्ति श्रृंखला में काफी खामियां हैं, विशेष रूप से फलों, सब्जियों और डेयरी जैसे जल्दी ही ख़राब हो जाने वाले उत्पादों के प्रबंधन में।
- खराब कोल्ड स्टोरेज: भारत में लगभग 16-18% फल और सब्जियां खराब हो जाती हैं, जिससे हर साल ₹44,000 करोड़ का नुकसान होता है।
- TOP की समस्या: टमाटर, प्याज और आलू (TOP) जैसी वस्तुओं के मामले में आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं के कारण कीमतें तेजी से बढ़ती हैं।
3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं
भारत कुछ प्रमुख वस्तुओं, जैसे खाद्य तेल और दालों के लिए आयात पर निर्भर है, जो वैश्विक मूल्य अस्थिरता के प्रति इसे संवेदनशील बनाती हैं।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष: इस संघर्ष ने गेहूं और खाद्य तेल की आपूर्ति को बाधित किया और उनकी कीमतों को बढ़ा दिया।
- खाद्य तेल संकट: भारत अपनी खाद्य तेल की आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है। अंतरराष्ट्रीय झटकों के कारण घरेलू कमी बढ़ जाती है।
4. नीतिगत कारक
सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), बफर स्टॉक प्रबंधन और आयात-निर्यात प्रतिबंध जैसी नीतियां भी खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित करती हैं।
- MSP: यह किसानों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित करता है, लेकिन इससे उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ जाती है।
- निर्यात प्रतिबंध: उच्च वैश्विक कीमतों के दौरान, चावल और गेहूं जैसे वस्तुओं का निर्यात अधिक लाभदायक हो जाता है, जिससे घरेलू आपूर्ति घटती है।
· बफर स्टॉक प्रबंधन: भारतीय खाद्य निगम (FCI) से खाद्य भंडारों की देरी से या अपर्याप्त रिलीज के कारण कृत्रिम कमी उत्पन्न होती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं।
5. इनपुट लागत में वृद्धि
खाद, कीटनाशकों और डीजल जैसे इनपुट की बढ़ती लागत उपभोक्ताओं पर बोझ डालती है।
- उर्वरक संकट: रूस-यूक्रेन युद्ध ने उर्वरक की आपूर्ति को बाधित किया।
- ईंधन की कीमतें: परिवहन लागत बढ़ने से खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर दबाव बढ़ता है।
6. उपभोग पैटर्न में बदलाव
मध्यम वर्ग के बढ़ने के साथ, भारत में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों (जैसे अंडा, दूध, मांस) की मांग बढ़ रही है, लेकिन उत्पादन में वृद्धि स्थिर है।
खाद्य मुद्रास्फीति के प्रभाव:
1. क्रय शक्ति का ह्रास:
खाद्य मुद्रास्फीति कम आय वाले परिवारों को अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि उनकी आय का बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च होता है।
- इससे परिवार स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आवश्यक खर्चों में कटौती करने को मजबूर होते हैं।
- लगातार मुद्रास्फीति वास्तविक मजदूरी को कम कर देती है, जिससे जीवन स्तर में गिरावट आती है।
2. समग्र मुद्रास्फीति पर प्रभाव:
खाद्य मुद्रास्फीति के कारण समग्र मुद्रास्फीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- इससे भविष्य में मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं बढ़ती हैं, जिससे मजदूरी की मांग और गैर-खाद्य कीमतें प्रभावित होती हैं।
- इसके कारण आरबीआई को मौद्रिक नीति को सख्त करना पड़ता है, जिससे आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
3. खाद्य सुरक्षा पर खतरा:
खाद्य मुद्रास्फीति पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच को बाधित करती है, जिससे कुपोषण और स्टंटिंग बढ़ती है।
4. राजनीतिक और सामाजिक अशांति:
खाद्य कीमतों में तेज वृद्धि अक्सर जनता में असंतोष और विरोध प्रदर्शनों का कारण बनती है।
सरकार द्वारा खाद्य मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के प्रयास:
सरकार ने खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाई हैं, जो तत्काल हस्तक्षेप और दीर्घकालिक सुधारों दोनों पर केंद्रित हैं।
तत्काल उपाय:
- मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF): प्याज, टमाटर और दालों की कीमतों में स्थिरता बनाए रखने के लिए।
- भंडारण सीमा: आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जमाखोरी और कालाबाजारी पर नियंत्रण।
- निर्यात प्रतिबंध: चावल और चीनी जैसे वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना।
दीर्घकालिक सुधार:
- कृषि बुनियादी ढांचे में निवेश: सिंचाई, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन नेटवर्क में सुधार।
- घरेलू उत्पादन में बढ़ावा: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) जैसे कार्यक्रमों के तहत आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन।
· फसल विविधता को बढ़ावा देना: किसानों को उच्च-मूल्य वाली फसलें उगाने और स्थायी प्रथाएँ अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि मानसून पर निर्भर प्रमुख फसलों पर निर्भरता कम की जा सके।
खाद्य मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
भारत, खाद्य मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिए वैश्विक अनुभवों से कुछ महत्वपूर्ण सीख ले सकता है:
· सटीक कृषि (इज़राइल): जल और उर्वरक के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, जो उत्पादकता को बढ़ा सकता है और अपव्यय को कम कर सकता है।
· बफर स्टॉक तंत्र (चीन): आपूर्ति संकट के दौरान कीमतों को स्थिर करने के लिए बड़े रणनीतिक भंडार बनाए रखना।
· फसल बीमा (अमेरिका): किसानों को जलवायु जोखिमों से बचाने और स्थिर उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए व्यापक बीमा योजनाएँ।
आगे का राह :
समग्र रणनीति के तहत मुद्रास्फीति को संबोधित करना
1. जलवायु सहनशीलता बढ़ाना:
o सूखा-प्रतिरोधी और गर्मी सहने वाले फसलों का विकास।
o ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
2. आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना:
o कोल्ड स्टोरेज और गोदामों का विस्तार।
o ग्रामीण सड़कों और परिवहन नेटवर्क में सुधार।
3. घरेलू उत्पादन बढ़ाना:
o दालों और तिलहनों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
o टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन।
4. नीतिगत सुधार:
o MSP नीतियों को तर्कसंगत बनाना।
o सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुव्यवस्थित करना।
5. आहार विविधता को बढ़ावा देना:
o स्थानीय रूप से उपलब्ध सस्ते और पौष्टिक खाद्य पदार्थों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं ने भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया है। कृषि उत्पादकता और आपूर्ति श्रृंखला पर जलवायु अस्थिरता के प्रभावों पर चर्चा करें और भारतीय कृषि में जलवायु सहनशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। |