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Daily-current-affairs / 18 Mar 2025

फाइव आईज संकट और भारत के लिए निहितार्थ

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संदर्भ:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गठित "फाइव आईज” (Five Eyes) गठबंधन, जो विश्व की सबसे शक्तिशाली खुफिया साझेदारी में से एक है, वर्तमान में एक अभूतपूर्व आंतरिक संकट का सामना कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का यह गठबंधन अमेरिका की विदेश नीति में हुए व्यापक बदलावों के कारण गंभीर उथल-पुथल में है। विशेष रूप से, डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अपनाई गई नीतियों ने इस गठबंधन की स्थिरता को चुनौती दी है। यह संकट केवल फाइव आईज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी देशों की सामूहिक सुरक्षा संरचना को भी प्रभावित कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह इस स्थिति का आकलन करे और अपनी खुफिया कूटनीति को नए वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप ढाले।  

फाइव आईज: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास:
फाइव आईज गठबंधन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन के बीच हस्ताक्षरित एक समझौते के रूप में शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य दुश्मन संचार को इंटरसेप्ट करना और उसे डिकोड करना था। 1946 में इस द्विपक्षीय समझौते को औपचारिक रूप दिया गया और बाद में 1948 में इसमें कनाडा तथा 1956 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को शामिल किया गया। शीत युद्ध के दौरान इस गठबंधन ने सोवियत संघ और वारसा संधि के तहत आने वाले देशों की गतिविधियों पर नज़र रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 9/11 के बाद, इसका दायरा आतंकवाद और साइबर सुरक्षा तक विस्तारित हो गया। हाल के वर्षों में Five Eyes गठबंधन ने चीन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, विशेष रूप से हुआवेई जैसी कंपनियों के माध्यम से साइबर सुरक्षा को लेकर चिंताओं को उठाया गया है।

हाल के घटनाक्रम और चुनौतियाँ-

फ़ाइव आईज़ गठबंधन वर्तमान में अमेरिकी विदेश नीति में बदलावों के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में, अमेरिका के अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ जुड़ने के तरीके में बदलाव हुए हैं। कुछ प्रमुख घटनाक्रमों में शामिल हैं:

1.   अमेरिका-कनाडा व्यापार विवादट्रंप प्रशासन की आक्रामक व्यापार नीतियों ने कनाडा को झटका दिया है। उन्होंने कनाडा को "अमेरिका का 51वां राज्य" बनाने की बात कहकर विवाद को और बढ़ा दिया।

2.   ग्रीनलैंड विवादट्रंप द्वारा डेनमार्क से ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाने की कोशिश यूरोपीय सहयोगियों के लिए अस्वीकार्य रही।

3.   ब्रिटेन के प्रति कटु रुखट्रंप समर्थकों ने ब्रिटेन की "वोक राजनीति" और लेबर सरकार की नीतियों की आलोचना की है। वाशिंगटन में आयोजित एक बैठक में अमेरिकी सीनेटर जे.डी. वांस ने ब्रिटेन को "पहला इस्लामिक परमाणु शक्ति संपन्न देश" करार देकर नया विवाद खड़ा कर दिया।

4.   ट्रंप प्रशासन के नए नियुक्त अधिकारीतुलसी गैबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया निदेशक और कश पटेल को FBI निदेशक बनाए जाने से पारंपरिक सहयोगी देशों की चिंता बढ़ गई है। उनका मानना है कि ट्रंप का खुफिया साझेदारी को लेकर अनिश्चित दृष्टिकोण Five Eyes की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।

5.  अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव- अमेरिकी सरकार ने रूस और यूक्रेन जैसे देशों के साथ अपने संबंधों के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाया है। नाटो और यूरोपीय संघ जैसे गठबंधनों की भूमिका के बारे में भी चर्चा हुई है। इन बदलावों के कारण फाइव आईज के सदस्यों के बीच मतभेद पैदा हुए हैं।

6.  व्यापार और आर्थिक संबंध- व्यापार नीतियाँ तनाव का स्रोत बन गई हैं। अमेरिका और कनाडा, जो लंबे समय से व्यापार भागीदार हैं, को व्यापार नियमों पर असहमति का सामना करना पड़ा है। सीमा सुरक्षा और व्यापार नीतियों के बारे में चर्चाओं ने गठबंधन में कनाडा की भूमिका के बारे में अटकलों को जन्म दिया है, हालाँकि अधिकारियों ने किसी भी बड़े बदलाव से इनकार किया है।

7.   इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग- चुनौतियों के बावजूद, फाइव आईज राष्ट्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सुरक्षा उपस्थिति का विस्तार करना जारी रखते हैं। ऑस्ट्रेलिया, यू.के. और यू.एस. के बीच एक नई सुरक्षा साझेदारी AUKUS इसका एक उदाहरण है। यह समझौता सैन्य सहयोग पर केंद्रित है, विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के विकास में। जापान ने हाल के वर्षों में फाइव आईज देशों के साथ अपने खुफिया सहयोग को भी बढ़ाया है।

फाइव आईज का भविष्य और संभावित विभाजन
फाइव आईज में अमेरिका की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में यह गठबंधन गहरे विभाजन की ओर बढ़ रहा है। ट्रंप के सलाहकारों द्वारा कनाडा को फाइव आईज से निकालने की अटकलें, ब्रिटेन के प्रति कड़ा रवैया, और अमेरिकी दक्षिणपंथियों द्वारा फाइव आईज के उदारवादी घटकों की आलोचना इस गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठा रही है। यदि ट्रंप प्रशासन फाइव आईज को पुनर्गठित करने की दिशा में बढ़ता है, तो यह संभव है कि यूरोपीय संघ और NATO इस स्थिति का लाभ उठाकर एक अलग खुफिया नेटवर्क विकसित करें। 

भारत के लिए रणनीतिक अवसर
फाइव आईज में उत्पन्न संकट भारत के लिए कई संभावनाएं प्रस्तुत करता है:

1.   इंटेलिजेंस साझेदारी का विस्तारफाइव आईज के भीतर अस्थिरता भारत को अपनी खुफिया क्षमताओं को मजबूत करने और अन्य मित्र देशों के साथ गहन सहयोग के अवसर प्रदान कर सकती है।

2.   इंडो-पैसिफिक में भूमिका – AUKUS (अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच सैन्य गठबंधन) के विस्तार की चर्चाओं के बीच भारत अपनी रणनीतिक स्थिति को बेहतर बना सकता है।

3.   तकनीकी सुरक्षाहुआवेई और 5G जैसी सुरक्षा चिंताओं के बीच भारत को पश्चिमी देशों के साथ साइबर सुरक्षा और तकनीकी खुफिया साझेदारी को मजबूत करना चाहिए।

4.   नए गठबंधन की संभावनायदि फाइव आईज में विभाजन गहरा होता है, तो भारत नए बहुपक्षीय खुफिया साझेदारी के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

5.   डिजिटल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहयोगभारत को अपने तकनीकी कौशल का लाभ उठाकर डिजिटल निगरानी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित खुफिया विश्लेषण के क्षेत्र में फाइव आईज और अन्य मित्र देशों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

6.   साइबर सुरक्षा सहयोगबढ़ते साइबर हमलों और डिजिटल युद्धों के बीच भारत को Five Eyes देशों के साथ साइबर सुरक्षा उपायों को साझा करने की पहल करनी चाहिए।

निष्कर्ष
फाइव आईज गठबंधन में मौजूदा संकट अमेरिका की बदलती नीतियों का परिणाम है। यदि यह संकट और गहराता है, तो यह वैश्विक सुरक्षा ढांचे में व्यापक परिवर्तन ला सकता है। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह इस स्थिति का लाभ उठाए और अपनी खुफिया कूटनीति को पुनर्गठित करे। भारत को अपने पारंपरिक साझेदारों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए और नए रणनीतिक गठबंधनों की संभावनाओं का मूल्यांकन करना चाहिए। वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से हो रहे बदलावों के बीच भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

मुख्य प्रश्न: कनाडा और यू.के. जैसे पारंपरिक सहयोगियों के प्रति अमेरिका के बदलते रुख के पश्चिमी सुरक्षा गठबंधनों की स्थिरता पर संभावित परिणामों का मूल्यांकन करें। इस संदर्भ में भारत को अपनी रणनीतिक साझेदारियों को कैसे आगे बढ़ाना चाहिए?