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Daily-current-affairs / 03 Mar 2025

किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ): भारतीय कृषि में एक परिवर्तनकारी पहल

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सन्दर्भ : भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़कृषि क्षेत्र में छोटे और सीमांत किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम योगदान देते हैं। हालांकि, खंडित भूमि जोत (Fragmented Land Holding), संसाधनों की कमी और बाजार तक सीमित पहुंच जैसी चुनौतियों ने उनके विकास को बाधित किया है। किसानों को सशक्त बनाने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण (Structured Approach) अपनाने की आवश्यकता को समझते हुए, सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में उनकी आर्थिक स्थिरता और सौदेबाजी की शक्ति (Bargaining Power) को बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं।

  • इस दिशा में, 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के गठन और प्रोत्साहन के लिए केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य किसानों को समूहों में संगठित करना, समूहिक उत्पादन का लाभ का लाभ दिलाना, संस्थागत सहायता (Institutional Support) देना और उन्हें बेहतर बाजार तक पहुंच उपलब्ध कराना है। यह योजना 29 फरवरी 2020 को केंद्र सरकार के द्वारा शुरू की गई थी। उन्होंने इस पहल को भारतीय कृषि में एक बड़े बदलाव का प्रतीक बताया, जिससे छोटे किसानों और बड़े बाजारों के बीच की दूरी कम होगी।
  • 2027-28 तक 6,865 करोड़ के निर्धारित बजट परिव्यय के साथ, इस योजना में किसानों के वित्तीय सशक्तिकरण, संसाधनों के बेहतर प्रबंधन (Resource Optimization) और सामूहिक विकास की परिकल्पना की गई है। योजना का उद्देश्य सहकारी शक्ति और डिजिटल एकीकरण का लाभ उठाकर, पारंपरिक कृषि को एक टिकाऊ , बाजारोन्मुख (Market-Driven) और आय केंद्रित उद्यम में परिवर्तित करना है।
  • हाल ही में बिहार के खगड़िया जिले में 10,000वें एफपीओ की स्थापना इस योजना की प्रभावशीलता और कृषि क्षेत्र में सुधार के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह पहल कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार (Structural Reforms) लाने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विकास हैं

किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) :

किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) एक कानूनी रूप से पंजीकृत सामूहिक संस्था (Legally Registered Collective Entity) है, जिसका गठन किसानों द्वारा किया जाता है, ताकि वे उत्पादन और विपणनमें पैमाने की अर्थव्यवस्था (जब उत्पादन का स्तर बढ़ता है, तो प्रति इकाई लागत घट जाती है) का लाभ उठा सकें। एफपीओ को कंपनी अधिनियम, 2013 के भाग IXA या संबंधित राज्यों के सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाता है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ (SFAC) को एफपीओ के गठन, संवर्धन और सहायता प्रदान करने के लिए नोडल एजेंसी (Nodal Agency) बनाया गया है।

एफपीओ का प्रमुख उद्देश्य है छोटे और सीमांत किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं

गुणवत्तापूर्ण कृषि इनपुट तक सीमित पहुंच,
सस्ती दरों पर संस्थागत ऋण की उपलब्धता,
लाभदायक बाजारों तक सीधी पहुंच।

एफपीओ किसानों को सामूहिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे वे थोक में कम दाम पर इनपुट खरीद सकते हैं, बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकते हैं और अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। इससे किसानों की उत्पादन लागत घटती है, उत्पादकता बढ़ती है और आय में वृद्धि होती है।

एफपीओ: उद्देश्य एवं आवश्यकता

उद्देश्य:

1.   सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: टिकाऊ, आय-उन्मुख खेती को बढ़ावा देने और किसानों की सामाजिक-आर्थिक भलाई सुनिश्चित करने हेतु 10,000 एफपीओ की स्थापना।

2.   उत्पादकता में वृद्धि: कृषि उत्पादन और लाभ को अधिकतम करने के लिए कुशल एवं लागत प्रभावी संसाधन उपयोग को प्रोत्साहित करना।

3.   वित्तीय एवं संस्थागत सहायता: प्रबंधन, इनपुट खरीद, प्रसंस्करण, बाजार संपर्क और प्रौद्योगिकी अपनाने जैसे पहलुओं को कवर करते हुए पांच वर्षों तक सहायता प्रदान करना।

4.   कृषि उद्यमिता का विकास: किसानों के कौशल विकास के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम का संचालन करना, जिससे एफपीओ की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित हो सके।

छोटे किसानों के समक्ष चुनौतियाँ:

छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसान निम्नलिखित समस्याओं से जूझते हैं:

  • प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और कीटनाशकों तक सीमित पहुंच
  • संस्थागत ऋण की कमी और अनौपचारिक ऋणदाताओं पर अत्यधिक निर्भरता
  • छोटे पैमाने पर उत्पादन के कारण बाजार में सौदेबाजी की शक्ति कम होना
  • भंडारण, प्रसंस्करण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी, जिससे फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

एफपीओ में किसानों को संगठित करके, यह योजना बेहतर बाजार पहुंच, वित्तीय स्थिरता और तकनीकी सहायता सुनिश्चित करती है। यह छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाते हुए ग्रामीण आजीविका को मजबूत करने की दिशा में एक समावेशी एवं टिकाऊ पहल है।

योजना के अंतर्गत वित्तीय और संस्थागत सहायता:

एफपीओ की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार वित्तीय और ऋण सहायता प्रदान करती है, जिसमें शामिल हैं:

प्रति एफपीओ तीन वर्षों तक प्रबंधन लागत सहायता के रूप में 18 लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है।
प्रत्येक किसान-सदस्य को 2,000 रुपये का इक्विटी अनुदान दिया जाता है, जिसकी अधिकतम सीमा प्रति एफपीओ 15 लाख रुपये है।
प्रत्येक एफपीओ के लिए 2 करोड़ रुपये तक की ऋण गारंटी सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, जिससे संस्थागत ऋण तक किसानों की आसान पहुंच सुनिश्चित की जा सके।

एफपीओ को सशक्त बनाने हेतु बहु-मंत्रालयीय समन्वय:

एफपीओ को मजबूत करने के लिए कई मंत्रालय और एजेंसियां सहयोग कर रही हैं:

1.   कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय यह मंत्रालय एफपीओ को बीज, उर्वरक और कीटनाशकों के लाइसेंस दिलाने में मदद करता है। साथ ही, -एनएएम (e-NAM), ओएनडीसी (ONDC) और कृषि इनपुट कंपनियों के जरिए बड़े खरीदारों से जोड़ने का काम करता है।

2.   खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय यह मंत्रालय एफपीओ को ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए आर्थिक मदद देता है। इसमें परियोजना लागत का 35% ऋण-लिंक्ड पूंजी सब्सिडी और 50% तक वित्तीय अनुदान शामिल है।

3.   सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय - यह मंत्रालय एफपीओ को वित्तीय सहायता, इक्विटी अनुदान, ऋण गारंटी, प्रशिक्षण और बाजार से जोड़ने में मदद करता है।

4.   मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय - यह मंत्रालय 2021 से 2026 के बीच 500 करोड़ रुपये खर्च कर, डेयरी सहकारी समितियों और एफपीओ को सहयोग दे रहा है। इसके अतिरिक्त, यह NDDB के जरिए 100 प्लस एफपीओ बनाने में भी मदद कर रहा है।

5.   एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) - यह संस्था निर्यात बढ़ाने और वित्तीय मदद देने के लिए एसएफयूआरटीआई योजना के तहत पंजीकृत एफपीओ को सहयोग करती है।

6.   मसाला बोर्ड - यह बोर्ड गुणवत्तापूर्ण मसालों का उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए काम करता है। साथ ही, फसल के बाद के प्रबंधन में सुधार और किसानों का प्रशिक्षण देने के लिए SPICED योजना चलाता है।

एफपीओ द्वारा की जाने वाली सेवाएं और गतिविधियां:

लागत कम करने और किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं :

1.   गुणवत्तापूर्ण इनपुट की आपूर्ति - एफपीओ किसानों को बीज, उर्वरक, कीटनाशक और अन्य कृषि इनपुट थोक दरों पर और उचित दामों में उपलब्ध कराते हैं।

2.   कस्टम हायरिंग सेवाएँ - एफपीओ के जरिए किसान ट्रैक्टर, सिंचाई प्रणाली और अन्य कृषि मशीनरी को किराये पर ले सकते हैं, जिससे छोटे किसानों को भी आधुनिक तकनीक का लाभ मिल सके।

3.   मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण - किसानों की उपज की सफाई, छंटाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग की सुविधा मिलती है, जिससे उत्पाद का बाजार में मूल्य बढ़ता है।

4.   भंडारण और परिवहन - एफपीओ के माध्यम से किसानों को किफायती भंडारण और सुगम परिवहन की सुविधा मिलती है, जिससे फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

5.   आय-उत्पादक गतिविधियाँ - एफपीओ किसानों को मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, बीज उत्पादन जैसी अतिरिक्त आय देने वाली गतिविधियों में शामिल होने का मौका देता है।

6.   सामूहिक विपणन  - एफपीओ किसानों की उपज को एक साथ इकट्ठा कर थोक में बेचते हैं, जिससे किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिल सके।

7.   बाज़ार सूचना और रसद सहायता - एफपीओ किसानों को बाजार के रुझान, कीमतों और परिवहन से जुड़ी सही जानकारी देकर उन्हें समय पर और सही निर्णय लेने में मदद करता है।

एफपीओ योजना के अंतर्गत प्रमुख पहल:

·        क्रेडिट गारंटी फंड (CGF): एफपीओ को बिना बड़ी संपत्ति या गारंटी रखे संस्थागत ऋण दिलाने के लिए क्रेडिट गारंटी फंड (CGF) बनाया गया है। यह फंड एफपीओ को कार्यशील पूंजी, विपणन अवसंरचना और प्रसंस्करण सुविधाओं के विकास के लिए आसानी से ऋण दिलाने में मदद करता है।

·        डिजिटल बाजार तक पहुंच के लिए ओएनडीसी प्लेटफॉर्म: एफपीओ को ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) से जोड़ा जा रहा है, जिसके तहत 5,000 से अधिक एफपीओ पहले ही इस नेटवर्क में शामिल हो चुके हैं। यह पहल सीधे उपभोक्ता संपर्क  को सक्षम बनाती है, जिससे उचित मूल्य की प्राप्ति होती है और बिचौलियों की भूमिका कम होती है।

·        10,000 एफपीओ का सामान्य सेवा केंद्र (CSC) में रूपांतरण:
एफपीओ को CSC के रूप में विकसित करने के लिए CSC-SPV और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) किया गया है। यह पहल ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाएं, वित्तीय लेनदेन और स्थानीय रोजगार के अवसर सृजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

निष्कर्ष:

10,000 एफपीओ की स्थापना आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में एक महत्वपूर्ण और संरचनात्मक सुधार है। यह पहल छोटे और सीमांत किसानों, विशेष रूप से महिलाओं और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करने में सफल रही है। एफपीओ के माध्यम से बाजार तक सीधी पहुंच, आय सुरक्षा में वृद्धि और बिचौलियों की भूमिका में कमी ने किसानों की समग्र सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर किया है। एफपीओ योजना की सफलता यह दर्शाती है कि सामूहिक खेती और संस्थागत समर्थन किस प्रकार सतत कृषि विकास को गति दे सकते हैं। वित्तीय सहायता, डिजिटल एकीकरण और अवसंरचना सुदृढ़ीकरण जैसे उपायों के माध्यम से एफपीओ भविष्य में आत्मनिर्भर, बाजार उन्मुख और समृद्ध कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

 

मुख्य प्रश्न: किसानों के बीच कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने में एफपीओ की क्षमता पर चर्चा करें। एफपीओ योजना के तहत क्षमता निर्माण कार्यक्रम किसानों के कौशल विकास और एफपीओ की आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने में कैसे योगदान करते हैं?