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Daily-current-affairs / 20 Mar 2025

भारत में बाघ अभयारण्यों का विस्तार : चुनौतियाँ, प्रयास और वैश्विक भागीदारी

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सन्दर्भ :

हाल ही में, मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित माधव राष्ट्रीय उद्यान को भारत के 58वें बाघ अभयारण्य के रूप में नामित किया गया है। इस निर्णय से रणथंभौर-कुनो-माधव राष्ट्रीय उद्यान गलियारे में संरक्षण प्रयासों को मजबूती मिलने की सम्भावना है, जिसे बाघों की आबादी के संरक्षण और वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण आवास माना जाता है।

नव घोषित बाघ अभयारण्य 1,651 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और वर्तमान में इसमें एक शावक सहित छह बाघ मौजूद हैं। यह पहल प्रोजेक्ट टाइगर के तहत भारत की व्यापक संरक्षण रणनीति के अनुरूप है, जिसने देश भर में बाघों की आबादी को सुरक्षित रखने और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रोजेक्ट टाइगर का ऐतिहासिक संदर्भ :

  • भारत में बड़े जानवरों का शिकार करना एक प्राचीन प्रथा थी, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान शिकार एक व्यापक और संगठित गतिविधि बन गया। स्वतंत्रता के बाद भी, भारतीय अभिजात वर्ग और विदेशी पर्यटकों के बीच शिकार जारी रहा, जिससे बाघों की आबादी में भारी गिरावट आई। 1960 के दशक तक, कृषि विस्तार और तेजी से वनों की कटाई के कारण बाघों की संख्या में खतरनाक रूप से कमी स्पष्ट हो गई।
  • इस संकट को पहचानते हुए, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने 1969 में बाघ की खाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया। उसी वर्ष, दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की 10वीं सभा में बाघों को एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया और उनके शिकार पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके बाद, भारतीय वन्यजीव बोर्ड के अध्यक्ष करण सिंह की अगुवाई में एक सरकारी टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य बाघ संरक्षण के लिए रणनीति तैयार करना था।
  • इस टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर, अप्रैल 1973 में "प्रोजेक्ट टाइगर" शुरू किया गया। यह पहल 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद आई। शुरुआत में इसे छह वर्ष के लिए एक विशेष परियोजना के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन बाद में इसे एक दीर्घकालिक संरक्षण कार्यक्रम में बदल दिया गया, जिसका उद्देश्य बाघों की सतत् (Viable) आबादी को बनाए रखना और उनके प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा करना था।

बाघ अभयारण्यों की स्थापना और उद्देश्य:

प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत नौ बाघ अभयारण्यों की स्थापना के साथ हुई: मानस (असम), जिम कॉर्बेट (उत्तराखंड ), कान्हा (मध्य प्रदेश), पलामू (झारखंड), रणथंभौर (राजस्थान), सिमलीपाल ( ओडिशा ), मेलघाट (महाराष्ट्र), बांदीपुर (कर्नाटक) और सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) इन अभयारण्यों को उन क्षेत्रों में स्थापित किया गया जहां पहले से राष्ट्रीय उद्यान मौजूद थे। इन्हें केंद्र प्रायोजित योजना के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की गई।

बाघ अभयारण्यों को दोहरे क्षेत्र संरचना के साथ डिजाइन किया गया था:

·         कोर क्षेत्र: ये क्षेत्र सख्त रूप से संरक्षित होते हैं, वृक्षों की कटाई, पशुओं के चरने और मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध होता है (संरक्षण कर्मियों को छोड़कर)

·         बफर जोन: यहां सीमित मानवीय गतिविधियों की अनुमति होती हैं। इनका उद्देश्य संरक्षण प्रयासों को समर्थन देना और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है।

2005-06 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority - NTCA) का गठन किया गया। यह एक वैधानिक निकाय है, जो प्रोजेक्ट टाइगर के कार्यान्वयन की निगरानी करता है और संरक्षण नीतियों को मजबूत बनाता है।

भारत में बाघों का वितरण:

भारत में बाघों की नवीनतम अनुमानित जनसंख्या (2022-23) 3,681 है, जिसमें संभावित संख्या 3,167 से 3,925 के बीच मानी गई है। ये बाघ लगभग 89,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जो जॉर्डन के आकार के बराबर और ऑस्ट्रिया से भी बड़ा है।

भारत में बाघों के वितरण को कई परिदृश्यों में वर्गीकृत किया गया है:

·         शिवालिक पहाड़ियाँ और गंगा के मैदान

·         मध्य भारतीय उच्चभूमि और पूर्वी घाट

·         पश्चिमी घाट

·         उत्तर पूर्वी पहाड़ियाँ और ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदान

·         सुंदरवन

उल्लेखनीय बाघ अभयारण्यों में, कॉर्बेट नेशनल पार्क में सबसे अधिक बाघ आबादी (260) है, इसके बाद बांदीपुर (150), नागरहोल (141), बांधवगढ़ (135), दुधवा (135), मुदुमलाई (113), कान्हा (105), काजीरंगा (104), सुंदरबन (100), ताडोबा-अंधारी (97), सत्यमंगलम (85), और पेंच (77) हैं। राज्य स्तर पर, मध्य प्रदेश 785 बाघों के साथ सबसे आगे है, उसके बाद कर्नाटक (563), उत्तराखंड (560) और महाराष्ट्र (444) का स्थान है।

बाघ संरक्षण की चुनौतियाँ:

प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता के बावजूद, भारत में बाघ संरक्षण को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वर्तमान स्थिति:

  • भारत के 26 टाइगर रिजर्व ऐसे हैं जहाँ बाघों की स्थिर आबादी 50 से अधिक है।
  • अन्य 27 टाइगर रिजर्व कम बाघ घनत्व (Low Tiger Density) की समस्या से जूझ रहे हैं
  • 2022 की रिपोर्ट ने संकेत दिया कि 16 टाइगर रिजर्व में या तो कोई बाघ नहीं है, केवल नर आबादी है, या पाँच से कम बाघ हैं। ये रिजर्व मुख्य रूप से यहाँ स्थित हैं:

ये रिजर्व मुख्य रूप से  स्थित हैं:

·         अरुणाचल प्रदेश

·         छत्तीसगढ

·         झारखंड

·         महाराष्ट्र

·         तेलंगाना

·         ओडिशा

विशेष रूप से ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बाघों की आबादी स्थिर रही है, घटी है या स्थानीय रूप से विलुप्त हो गई है। उदाहरण के लिए, ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व में बाघ विलुप्त हो गए हैं।

संरक्षण चुनौतियों के प्रमुख कारण:

2006-2018 के बीच साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, बाघों के संरक्षण में बाधा डालने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

·         खराब सामाजिक-आर्थिक स्थितियां: स्थानीय समुदाय जीविका के लिए वन संसाधनों पर निर्भर हैं, जिससे अवैध कटाई और शिकार की घटनाएँ बढ़ती हैं।

·         राजनीतिक अस्थिरता और उग्रवाद: कई बाघ अभयारण्य संघर्षग्रस्त (conflict-prone) क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां नक्सलवाद और उग्रवाद के कारण संरक्षण नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना मुश्किल हो जाता है।

·         खनन और विकासात्मक दबाव: बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ (Infrastructure Projects), वनों की कटाई (Deforestation) और औद्योगिक विस्तार बाघों के आवासों को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

·         मानव-वन्यजीव संघर्ष: वन क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विस्तार से बाघों और स्थानीय समुदायों के बीच मुठभेड़ें बढ़ जाती हैं।

·         सीमित मुख्य आवास उपलब्धता: अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ 25% बाघ मुख्य कोर क्षेत्रों (Core Areas) में रहते हैं, जबकि बफर ज़ोन (Buffer Zone) में मात्र 20% बाघ पाए जाते हैं।

वैश्विक प्रयास और भारत की भूमिका:

ग्लोबल टाइगर फोरम (जीटीएफ)

1994 में स्थापित ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF) बाघ संरक्षण के लिए समर्पित एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह 14 बाघ-आवासी (tiger-range) देशों के बीच संरक्षण नीतियों के समन्वय में कार्य करता है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं:

  • बाघ संरक्षण के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत बनाना।
  • संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार एवं सुधार करना।
  • सीमापार संरक्षण पहल विकसित करना।

ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI) और Tx2 कार्यक्रम-

ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI) को 2008 में विश्व बैंक द्वारा संरक्षण समूहों और सरकारों के सहयोग से शुरू किया गया था। 2010 में, रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 13 बाघ-आवासी देशों के नेताओं ने Tx2 लक्ष्य को अपनाया, जिसका उद्देश्य 2006 के आधार वर्ष के मुकाबले 2022 तक वैश्विक बाघ आबादी को दोगुना करना था। भारत ने इस लक्ष्य को निर्धारित समय से पहले प्राप्त कर लिया, जिससे बाघ संरक्षण में उसकी अग्रणी भूमिका और अधिक सशक्त हो गई।

निष्कर्ष:

माधव राष्ट्रीय उद्यान को भारत के 58वें बाघ अभयारण्य के रूप में शामिल किया जाना देश के सतत संरक्षण प्रयासों में एक और महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, बाघों के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए आवास विखंडन , मानव अतिक्रमण, और पारिस्थितिक क्षरण जैसी प्रमुख चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है। भारत की बाघ संरक्षण नीति को और प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

  • संरक्षण नीतियों को और अधिक मजबूत बनाना।
  • प्रमुख आवासों का विस्तार और सुधार करना।
  • बफर ज़ोन में स्थानीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाना, ताकि संरक्षण प्रयासों को जनसमर्थन मिले।
मुख्य प्रश्न: भारत में बाघ अभयारण्यों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, संरक्षण नीतियाँ आर्थिक विकास, स्थानीय आजीविका और जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकताओं के बीच संतुलन कैसे स्थापित कर सकती हैं? उपयुक्त समाधान सुझाएँ।