संदर्भ
कर्नाटक उच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने भारत में अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारियों को भविष्य निधि लाभ देने के विस्तार को लेकर बहस छेड़ दी है। यह फैसला 15 साल पुराने कानून में संशोधन को खारिज करता है, जिसने विदेशी कर्मचारियों को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में शामिल होने की अनुमति दी थी। इस फैसले का न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारियों पर बल्कि भारत के सामाजिक सुरक्षा परिदृश्य पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना हैं। इस लेख में हम संशोधन को असंवैधानिक माने जाने के आधार, अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारियों पर संभावित प्रभाव और संबंधित प्राधिकरणों की प्रतिक्रिया को समझेंगे।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) कर्मचारियों के भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है। यह कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के तहत काम करता है। संगठन विभिन्न संस्थानों में भविष्य निधि योजनाओं की देखरेख करता है। भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रशासित, EPFO विश्व के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा संगठनों में से एक है, जो बड़ी संख्या में लोगों को सेवा प्रदान करता है और वित्तीय लेनदेन का संचालन करता है। कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) 1995 में शुरू की गई थी, यह EPFO द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक सामाजिक सुरक्षा उपाय है, जो संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन लाभ प्रदान करता है। EPS की सदस्यता EPF सदस्यों के लिए स्वचालित है, जिसमें नियोक्ता और कर्मचारी दोनों कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ता सहित) का 12% कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना में योगदान करते हैं। 15,000 रुपये प्रति माह के मूल वेतन वाले कर्मचारियों के लिए अनिवार्य, EPF योजना में नियोक्ता के योगदान का 8.33% भाग EPS में जाता है। |
विदेशी कामगारों के लिए ईपीएफ के लाभः
कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952, भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे की रीढ़ है, जिसमें कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने वाली विभिन्न योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं में से, ईपीएफ योजना और ईपीएस योजना श्रमिकों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 2008 में, एक महत्वपूर्ण संशोधन ने इन योजनाओं का दायरा न्यूनतम अवधि के लिए भारत में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों या प्रवासियों तक बढ़ा दिया था। हालांकि, भारतीय कर्मचारियों के विपरीत, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के लिए पीएफ लाभ प्राप्त करने के लिए ₹15,000 प्रति माह की वेतन सीमा लागू नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के लिए पीएफ जमा की निकासी सेवानिवृत्ति या स्थायी अक्षमता जैसी विशिष्ट स्थितियों तक सीमित है।
सामाजिक सुरक्षा समझौतेः
अंतरराष्ट्रीय रोजगार की जटिलता को विभिन्न देशों के बीच सामाजिक सुरक्षा समझौतों (एसएसए) ने और बढ़ा दिया है। ये द्विपक्षीय समझौते विदेश में कार्यरत श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा हितों की रक्षा करते हैं, जो घरेलू और मेजबान देश के कानूनों के तहत दोहरे कवरेज से उत्पन्न होने वाले विरोधाभासी दायित्वों को संतुलित करते हैं। विदेशों में कार्यरत भारतीय कर्मचारियों के लिए, एसएसए यह सुनिश्चित करते हैं कि वे भारत में सामाजिक सुरक्षा में योगदान करते रहें, जिससे दोहरे कवरेज से बचा जा सके। हालांकि, निकासी पर प्रतिबंध और कार्य की निश्चित अवधि अक्सर भारत के बाहर किए गए पीएफ योगदान से प्राप्त व्यावहारिक लाभों को सीमित कर देती है। अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता के बढ़ते महत्व और सीमा पार सामाजिक सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए भारत ने 21 देशों के साथ एसएसए कर रखे हैं।
फैसले के निहितार्थः
कर्नाटक हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना की समावेशिता पर सवाल खड़ा कर दिया है। इस फैसले में जस्टिस के.एस. हेमालेखा ने ईपीएफ योजना के पैरा 83 के तहत विदेशी कर्मचारियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किए जाने पर चिंता जताई है। उन्होंने फैसले में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को रेखांकित किया है। न्यायालय ने ईपीएफ अधिनियम के प्राथमिक उद्देश्य, जो कि कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करना है, पर बल देते हुए, इन लाभों को विस्तारित करने में सुसंगतता और निष्पक्षता की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के लिए विशेष प्रावधानों को अमान्य घोषित करके, यह निर्णय न केवल विद्यमान प्रथाओं को चुनौती देता है, बल्कि वैश्विक संदर्भ में भारत के सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन का भी संकेत देता है।
ईपीएफओ की प्रतिक्रियाः
कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के जवाब में, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने भविष्य की कार्रवाई का मूल्यांकन करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। ईपीएफओ का यह दावा कि वह हितधारकों से सक्रिय रूप से परामर्श कर रहे हैं और अपील के लिए तर्क तैयार कर रहे हैं, यह कानूनी और नीतिगत जटिलताओं को दर्शाता है। यह निर्णय ईपीएफ योजना में विदेश में कार्यरत भारतीय कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने वाले विशेष प्रावधानों के महत्व को रेखांकित करता है। साथ ही, सामाजिक सुरक्षा समझौतों (SSAs) और निर्बाध सामाजिक सुरक्षा कवरेज सुनिश्चित करने में, यह फैसला भारत की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी और प्रतिबद्धताओं पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्ष
कर्नाटक उच्च न्यायालय का अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारियों के लिए ईपीएफ लाभों पर निर्णय भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। एक स्थापित संशोधन को रद्द करके, अदालत ने भविष्य निधि विनियमों की समावेशिता और निष्पक्षता पर बहस को पुनर्जीवित कर दिया है। इस निर्णय के निहितार्थ कानूनी व्याख्याओं से परे हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और द्विपक्षीय समझौतों से संबंधित व्यापक नीतिगत विचारों को प्रभावित करते हैं। वैश्वीकरण की जटिलताओं का सामना करते हुए, भारत के लिए श्रमिकों के हितों की रक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। प्राधिकरणों, हितधारकों और कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया सामाजिक सुरक्षा नियमों के भविष्य की दिशा को निर्धारित करेगी, जो भारत में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के श्रमिकों के अनुभवों को प्रभावित करेगी।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
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