संदर्भ -
हाल के वर्षों में भारत में विज्ञान संचार में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है। देश ने कोविड-19 महामारी के दौरान चंद्रयान-3 मिशन और सूचनात्मक पहलों जैसी उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की।
हालांकि, इन प्रयासों के दौरान वैज्ञानिक जानकारी के विश्वसनीय संचार में महत्वपूर्ण अंतराल को भी देखा गया है। इस लेख में हम भारत में विज्ञान संचार की वर्तमान स्थिति,मौजूदा पहलों और खामियों की जांच कर रहे हैं और विविध संदर्भों में विज्ञान संचार की प्रभावशीलता को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक रणनीति पर भी चर्चा करेंगे।
ऐतिहासिक संदर्भः
ऐतिहासिक रूप से, भारत प्राचीन काल से ही गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और भौतिक विज्ञान में अग्रणी रहा है। इस समृद्ध विरासत के बावजूद, वैज्ञानिक शोध और जन सामान्य तक इसकी पहुँच के बीच काफी अंतर बना रहा। हालांकि इस अंतर को पाटने के प्रयास भी किए गए, शुरुआती प्रयासों में 1915 से विज्ञान परिषद द्वारा हिंदी में प्रकाशित मासिक ‘विज्ञान’ पत्रिका जैसी पहल शामिल हैं।
स्वतंत्रता के बाद की पहलः
1947 में स्वतंत्रता के बाद, प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक आधुनिक 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण ' कीवकालत की, इसमें उन्होंने एक जिज्ञासु और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित करने पर जोर दिया था । भारत का संविधान भी इस दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता और जिज्ञासा की भावना विकसित करना है। नेहरू ने राष्ट्रीय विज्ञान संचार संस्थान (एनआईएससीओएम) जैसे संस्थानों की स्थापना के माध्यम से स्वतंत्र भारत में विज्ञान संचार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यह संस्थान विज्ञान प्रगति जैसी लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं का प्रकाशन करता है।देश में विज्ञान संचार को बढ़ावा देने के लिए अन्य पहलें निम्नलिखित हैं -
● 1951 में प्रकाशन और सूचना निदेशालय (पी. आई. डी.) की स्थापना की गई। इसने विज्ञान प्रगति, विज्ञान रिपोर्टर और विज्ञान की दुनिया जैसी राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं सहित राज्य समर्थित विज्ञान संचार की शुरुआत की ।
● 1959 में स्थापित बिड़ला औद्योगिक और तकनीकी संग्रहालय का उद्देश्य भारत की वैज्ञानिक विरासत को परिभाषित करना और विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देना था।
● 1976 में संविधान के 42वें संशोधन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए नागरिकों के कर्तव्य पर जोर दिया गया।
● छठी पंचवर्षीय योजना (1980-1985) ने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिससे राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) का गठन हुआ।
● स्वायत्त संगठन ‘विज्ञान प्रसार’ की स्थापना विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 1989 में की गई थी।
समकालीन परिदृश्यः
सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर)
● 2021 में, सरकार ने विज्ञान संचार को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए दो संस्थानों का विलय कर सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर का निर्माण किया।
● अधिकांश राष्ट्रीय विज्ञान वित्तपोषण एजेंसियों के पास संचार प्रभाग होते हैं जो प्रेस विज्ञप्ति, सोशल मीडिया अभियानों, प्रदर्शनियों और लोकप्रिय व्याख्यानों में संलग्न रहते हैं।
विज्ञान प्रसार का बंद होनाः
● विभिन्न उपलब्धियों के बावजूद, विज्ञान प्रसार को 2023 की शुरुआत में बंद कर दिया गया था, हालांकि यह भारत में विज्ञान संचार पहलों की गतिशील प्रकृति को भी दर्शाता है।
चुनौतियां और वैज्ञानिक शोधों की कमी: विज्ञान संचार में चुनौतियाँ निम्नवत हैं -
एजुकेशनल फाउंडेशनः
● विज्ञान संचार में औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव।
● भारत में विज्ञान संचार अनुसंधान पर सीमित ध्यान।
वैज्ञानिक प्रक्रिया में एकीकरणः
● वैज्ञानिक प्रक्रिया में विज्ञान संचार का अपर्याप्त समावेश।
● प्रभावी संचार के लिए छात्र, वैज्ञानिक और संस्थागत स्तरों पर दृष्टिकोण बनाने की आवश्यकता है। लेकिन इसका अभाव दिखाई देता है।
व्यावसायिक मान्यता और सार्वजनिक जुड़ावः
● प्रभावी विज्ञान संचार के लिए वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन की कमी
● सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए संस्थागत आउटरीच कार्यक्रमों का अभाव ।
● पहुंच बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में शोध पत्रों के अनुवाद की कमी ।
जनजातीय क्षेत्रों में अंधविश्वासः
● निम्न साक्षरता स्तर वाले जनजातीय क्षेत्रों में अंधविश्वास बना रहता है।
● यह वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्रगति की स्वीकृति में बाधा डालता है।
विज्ञान का सीमित मीडिया कवरेजः
● भारतीय मीडिया में विज्ञान का कवरेज केवल तीन प्रतिशत है।
● वैज्ञानिक प्रगति के बारे में जागरूकता की कमी।
समग्र बनाम वैज्ञानिक साक्षरता में विसंगतिः
● वैज्ञानिक साक्षरता बढ़ती समग्र साक्षरता दर से पीछे है।
● वैज्ञानिक सिद्धांतों की समझ में सुधार के लिए लक्षित प्रयासों की कमी ।
क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयासः
● जन शिक्षा के प्रयास जारी हैं, लेकिन स्थानीय भाषाओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
● भाषा की बाधाओं को तोड़कर व्यापक दर्शकों तक पहुंचने पर महत्व दिया जाना चाहिए ।
प्रशिक्षित विज्ञान संचारकों की कमीः
● विज्ञान के क्षेत्र में कुशल संचारकों की कमी।
● वैज्ञानिक जानकारी को अधिक आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की कमी।
विज्ञान संचार में रेडियो और टेलीविजन की भूमिकाः
● आशाजनक होते हुए भी, इन माध्यमों को वैज्ञानिक सामग्री के प्रसार में सुधार की आवश्यकता है।
● विज्ञान संचार को बढ़ाने में इन मंचों के संभावित प्रभाव पर जोर दिया जाना चाहिए।
प्रभावी विज्ञान संचार के लिए रणनीतियाँ:
औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षणः
● मास्टर और डॉक्टरेट स्तरों पर विज्ञान संचार डिग्री कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिए।
● सूचित संचारकों का एक कैडर निर्मित करने के लिए विज्ञान संचार में अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए ।
वैज्ञानिक प्रक्रिया में एकीकरणः
●वैज्ञानिक पद्धति के अभिन्न अंग के रूप में विज्ञान संचार को शामिल किया जाना चाहिए ।
● विज्ञान संचार में सक्रिय रूप से लगे वैज्ञानिकों के लिए नवीन पुरस्कार आरंभ किए जाने चाहिए ।
● आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। ।
बहु-विषयक दृष्टिकोणः
●राष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर विज्ञान संचार रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है ।
● विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ एक पेशेवर संगठन बनाया जाना चाहिए ।
● सरकारी स्तर के विज्ञान विभागों, कार्यालयों और हितधारकों के साथ निकटता से सहयोग किया जाए ।
संचार ढांचाः
● तत्काल चुनौतियों का सामना करने के लिए संचार ढांचा स्थापित किया जाना चाहिए ।
● वैज्ञानिक तर्क और विज्ञान की सार्वजनिक समझ को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं तैयार की जाए ।
● विज्ञान, चिकित्सा, आपदा प्रबंधन, राष्ट्रीय सुरक्षा, कूटनीति, मीडिया प्रारूप, संचार नेटवर्क और जनसांख्यिकीय समूहों से जुड़े विषयों में अंतरसंबंध स्थापित किया जाना चाहिए।
उपसंहारः
भारत में विकसित होता विज्ञान संचार अवसरों और चुनौतियों दोनों को प्रस्तुत करता है। चंद्रयान-3 मिशन और कोविड-19 के दौरान विभिन्न पहलों ने प्रभावी संचार के माध्यम से व्यापक समझ की क्षमता को प्रदर्शित किया है । हालांकि, विज्ञान प्रसार का बंद होना और महामारी के दौरान चुनौतियां विज्ञान संचार के लिए एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। शैक्षिक कमियों को दूर करके, वैज्ञानिक प्रक्रिया में संचार को एकीकृत करके और एक बहु-विषयक रणनीति अपनाकर, भारत वैज्ञानिक रूप से सूचित समाज को बढ़ावा देते हुए विज्ञान को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने की अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
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Source- The HIndu