सन्दर्भ:
हाल ही में भारत और भूटान के अधिकारियों के मध्य पुना-1 जलविद्युत परियोजना (HEP) पर सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से एक उच्च-स्तरीय बैठक आयोजित की गई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि करना था। इसके साथ ही, पुना-2 परियोजना के लिए टैरिफ निर्धारण को अंतिम रूप देने पर भी चर्चा हुई। दोनों देशों ने भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के नए मार्गों की संभावनाओं पर विचार किया, जिससे आपसी रणनीतिक साझेदारी की महत्ता और अधिक उजागर हुई।
भारत के लिए भूटान का महत्व:
· भारत, भूटान को अपने और चीन के बीच एक महत्त्वपूर्ण बफर राज्य के रूप में देखता है। भूटान की भौगोलिक स्थिति, जिसके उत्तर में चीन और दक्षिण में भारत स्थित हैं, इसे भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व प्रदान करती है। विशेष रूप से, सिलीगुड़ी कॉरिडोर के संदर्भ में, भूटान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। सिलीगुड़ी एक संकीर्ण भूमि पट्टी है जोकि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने का एकमात्र मार्ग है, यह सैनिकों और आवश्यक सैन्य आपूर्ति की आवाजाही के लिए अत्यावश्यक है। इस परिप्रेक्ष्य में, भूटान की निष्ठा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो जाती है।
· भारत ने ऐतिहासिक रूप से सीमा प्रबंधन में सहायता प्रदान करके और विद्रोही समूहों का मुकाबला कर भूटान की सुरक्षा सुनिश्चित की है। भारतीय सेना नियमित रूप से रॉयल भूटान आर्मी के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती है, जिससे भूटान की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भूटान के लिए भारत का कूटनीतिक समर्थन उसकी संप्रभुता की सुरक्षा के लिए आवश्यक रहा है। भारत और भूटान के बीच बहुआयामी संबंध हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सहयोग इसकी विशेषता है।
व्यापार: भारत, भूटान का मुख्य व्यापारिक भागीदार है, जो इसके आयात का प्रमुख स्रोत और प्राथमिक निर्यात गंतव्य है। व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। भारत, भूटान में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में भी अग्रणी है, और देश के कुल एफडीआई का 50% भारत से आता है।
● 2016 में व्यापार, वाणिज्य और पारगमन समझौता दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित करता है, जिससे आर्थिक आदान-प्रदान सुचारू रूप से संचालित होता है।
1. विकास साझेदारी: भूटान, भारत की बाहरी सहायता का सबसे बड़ा लाभार्थी है, जिसका प्रतिबिंब 2023-24 के भारत के बजट में देखा जा सकता है।
● भारत, 2034 तक भूटान के उच्च आय वाले देश का दर्जा प्राप्त करने के लक्ष्य का समर्थन करता है। ‘ब्रांड भूटान’ और ‘भूटान बिलीव’ जैसी पहलों का उद्देश्य भूटान की आर्थिक संभावनाओं को सुदृढ़ करना है।
2. कनेक्टिविटी: असम से भूटान को जोड़ने वाले गेलेफु माइंडफुलनेस सिटी की योजनाएं कनेक्टिविटी को बढ़ाने और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा हैं।
3. सुरक्षा सहयोग: भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (MTRAT) भूटान में तैनात है, जो रॉयल भूटान आर्मी को सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिससे भूटान की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि हो रही है।
● इसके अतिरिक्त, भारत का सीमा सड़क संगठन (BRO) ने दंतक परियोजना के तहत भूटान में कई महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण किया है, जिससे बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है।
4. नई पहल: भारत ने भूटान में रुपे और भीम ऐप के माध्यम से डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए ‘डिजिटल ड्रुक्युल’ जैसी डिजिटल तकनीकी पहलों की शुरुआत की है।
● अंतरिक्ष सहयोग के अंतर्गत, इसरो और भूटान की अंतरिक्ष एजेंसी संयुक्त रूप से ‘भारत-भूटान सैट’ विकसित किया, जिसका प्रक्षेपण इसरो ने सफलतापूर्वक किया है।
● इसके अलावा, भारत भूटान में STEM शिक्षकों की कमी को दूर कर रहा है और वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भूटान के सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र को कोविशील्ड की 5.5 लाख खुराक प्रदान करके स्वास्थ्य सहायता की है।
जलविद्युत सहयोग:
भारत-भूटान आर्थिक संबंधों की आधारशिला जलविद्युत सहयोग है, जो भूटान की विशाल जलविद्युत क्षमता का उपयोग करता है। भूटान की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ जैसे ताला, चुखा और मंगदेछू भारत को अक्षय ऊर्जा प्रदान करती हैं और भूटान की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यह योगदान भूटान को दक्षिण एशिया में प्रति व्यक्ति आय के मामले में अग्रणी देशों में शामिल करता है। जलविद्युत निर्यात भूटान के राष्ट्रीय राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। हालांकि, पुनात्सांगचू I और II जैसी परियोजनाओं में देरी के कारण जलविद्युत व्यापार में कुछ कठिनाइयाँ उत्पन्न हुई हैं।
उल्लेखनीय जलविद्युत सहयोगों में शामिल हैं:-
● भारत द्वारा भूटान में चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण: कुरिचू, ताला, चुखा और मंगदेछू, जोकि भूटान के ऊर्जा क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और भारत को बिजली आपूर्ति करती हैं।
● 720 मेगावाट की मंगदेछू परियोजना, जो भारत-भूटान ऊर्जा सहयोग में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है
भारत-भूटान संबंधों में चुनौतियाँ:
मजबूत सहयोग के बावजूद, भारत-भूटान संबंधों में कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:
1. उग्रवादियों अड्डे :
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के उग्रवादी समूह, जैसे उल्फा और एनडीएफबी, ने भूटान के इलाकों का अपने छिपने के ठिकाने के रूप में उपयोग किया है, जिससे दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंध जटिल हो गए हैं।
2. बीबीआईएन पहल में गतिरोध:
बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता, भूटान की पर्यावरणीय चिंताओं के कारण रुका हुआ है, जिससे क्षेत्रीय संपर्क में रुकावट आई है।
3. वित्तीय बोझ में वृद्धि:
भारत द्वारा जलविद्युत परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण मॉडल में 60:40 मॉडल (60 प्रतिशत अनुदान और 40 प्रतिशत ऋण) से बदलकर 30:70 मॉडल (30 प्रतिशत अनुदान और 70 प्रतिशत वाणिज्यिक ऋण) में परिवर्तन ने भूटान पर अधिक वित्तीय दबाव डाल दिया है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है।
4. चीन की मौजूदगी:
भूटान और चीन के बीच डोकलाम सहित सीमा विवाद भारत के लिए सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है। इस क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के सामरिक हितों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
भूटान में चीन की बढ़ती उपस्थिति: 1. चीन का बढ़ता प्रभाव: o उदाहरणस्वरूप, चुखा और पुनात्सांगचू जलविद्युत परियोजनाओं में भी चीन की भूमिका है। 2. क्षेत्रीय मुखरता: o पंगडा नामक नए गांव के निर्माण के साथ-साथ त्राशीगांग के सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य के 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन के हालिया दावे से चीन की क्षेत्रीय मुखरता स्पष्ट होती है। 3. राजनीतिक संबंधो में बदलाव : भारत के लिए निहितार्थ
· भारत के सुरक्षा हितों के लिए खतरा: भूटान-चीन सीमा समझौते से भारत के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा निहितार्थ हो सकते हैं, क्योंकि यह समझौता सिलीगुड़ी कॉरिडोर के निकट है, जोकि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। · भू-राजनीतिक निहितार्थ: भूटान में चीन की बढ़ती उपस्थिति क्षेत्रीय भू-राजनीतिक संतुलन और गतिशीलता को बाधित कर सकती है, जिससे भारत और चीन के बीच तनाव और बढ़ सकता है। · भारत के प्रभाव में कमी: भूटान और चीन के बीच घनिष्ठ संबंध भूटान की पारंपरिक भारत-समर्थक विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे क्षेत्र में भारत के प्रभाव के लिए नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। |
निष्कर्ष:
भारत, भूटान में विकसित हो रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य में सक्रियता से आगे बढ़ रहा है, जिसमें चीन का बढ़ता प्रभाव शामिल है। इस संदर्भ में, भारत को अपने ऐतिहासिक संबंधों का लाभ उठाना चाहिए और प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करना आवश्यक है। भारत-भूटान संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश बाहरी प्रभावों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं और आपसी सम्मान एवं सहयोग पर आधारित अपनी दीर्घकालिक साझेदारी को कैसे बढ़ावा देते हैं। भूटान की विदेश नीति के विकल्पों का परिणाम क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। इस प्रकार, भारत को अपने हितों की रक्षा करने और दक्षिण एशिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए सक्रिय भागीदारी और कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता होगी।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: बढ़ते चीनी प्रभाव के संदर्भ में भारत की भू-राजनीतिक रणनीति में भूटान के महत्व का परीक्षण करें। इसके साथ ही, यह चर्चा करें कि भूटान की स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है? |