संदर्भ:
● 3 से 6 वर्ष की अवस्था बच्चे के विकास हेतु सबसे असाधारण वर्ष होते हैं। जीवन में सब कुछ सीखने की क्षमता इन्ही वर्षों पर निर्भर करती है। अतः 6 वर्ष की आयु तक 85% मस्तिष्क क्षमता विकास प्राप्त करने के वैश्विक प्रमाण को ध्यान में रखते हुए आंगनबाड़ी इकोसिस्टम, देश के बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के उद्देश्य से उनकी आधारभूत संभावनाओं के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन जाता है।
● इस महत्वपूर्ण विकासात्मक चरण के दौरान, 'पोषण भी पढ़ाई भी’ कार्यक्रम बच्चों के लिए समग्र एवं गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक प्रोत्साहन और आरंभिक-प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने, विकासात्मक रूप से उपयुक्त शिक्षाशास्त्र के उपयोग को सुनिश्चित करने तथा प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ शुरुआती बचपन के समय में स्वास्थ्य व पोषण संबंधी सेवाओं पर जोर देने पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह एक लेख बच्चों की संज्ञानात्मक और सामाजिक क्षमताओं को आकार देने, भविष्य की शैक्षणिक सफलता के लिए मंच तैयार करने में प्रारंभिक शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।
● वर्तमान में भारत में, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 4 के अनुरूप, प्रारंभिक बचपन की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए समावेशी और न्यायसंगत सीखने के अवसरों पर जोर देता है। हालाँकि, नीतिगत ढाँचे और पहल के माध्यम से अभी भी बचपन की शिक्षा प्रदान करने में आंगनबाड़ियों की तत्परता आवश्यक है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा का महत्व:
● शिक्षण हेतु बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्ष संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि को चिह्नित करते हैं। इसे स्वीकार करते हुए, भारत प्रारंभिक बचपन शिक्षा प्रभाव अध्ययन 2017, गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा एवं प्राथमिक कक्षाओं में इष्टतम सीखने के परिणामों के बीच सकारात्मक सहसंबंध को रेखांकित करता है। एसडीजी 4 का लक्ष्य 4.2, 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए समग्र विकास और समान सीखने के अवसरों की सिफारिश करते हुए समावेशी शिक्षा की अनिवार्यता के महत्व को उजागर करता है।
नीतिगत हस्तक्षेप और रूपरेखा:
● प्रारंभिक बचपन की शिक्षा से संबंधित भारत की नीति वर्ष 2013 में राष्ट्रीय प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा नीति को अपनाने के साथ विकसित हुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 खेल-आधारित सीखने की पद्धतियों को महत्व देने के साथ-साथ प्रारंभिक बचपन की शिक्षा वितरण के लिए चार मॉडलों पर जोर देती है। इन मॉडलों में आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूलों के भीतर पूर्व-प्राथमिक खंड और प्रीस्कूल जैसे माॅडल शामिल हैं। इन प्रत्येक को समावेशी शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
एनईपी 2020 तथा प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा:
● प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) पहल निष्पक्ष और सतत विकास प्राप्त करने के लिए सबसे शक्तिशाली और किफायती रणनीतियों में से एक है। इसमें यह सुनिश्चित करने की क्षमता है, कि सभी बच्चे, अपनी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, वर्ष 2030 तक औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार हों। प्री-स्कूल शिक्षा, ग्रेड 1 से प्रथम तीन वर्षों तक निर्धारित है। इसके लिए 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के अनुरूप एक व्यापक पाठ्यचर्या ढांचे का प्रस्ताव है, जिसमें कम उम्र से ही खेल, अन्वेषण और बहुभाषी अनुभव पर जोर दिया गया है।
● वर्ष 2025 तक, इस नीति में तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच की परिकल्पना भी की गई है, जिसे स्कूलों और आंगनबाड़ियों दोनों के माध्यम से संचालित की जाएगी। ये संस्थान न केवल अपने परिसर में बच्चों के समग्र विकास को बढ़ावा देंगे, बल्कि अपने घरों में तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों वाले परिवारों को भी सहायता प्रदान करेंगे। उक्त बातों के अलावा इस नीति द्वारा परिकल्पित समग्र दृष्टिकोण से, समाज में एक सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे बच्चों की वृद्धि और विकास के लिए एक सहायक वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
प्रारंभिक बचपन की शिक्षा में चुनौतियाँ:
● अलगाव और भाषा अवरोध के मुद्दे:
○ छोटे बच्चों के लिए, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा संरचित शिक्षण वातावरण में उनके प्रारंभिक अनुभव का प्रतीक है। हालाँकि, यह परिवर्तन कई चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है, जिनमें अलगाव की चिंता, समाजीकरण कठिनाइयाँ और भाषा संम्बधी बाधाएँ आदि शामिल हैं। राष्ट्रीय प्रारंभिक बचपन शिक्षा (ईसीसीई) पाठ्यक्रम ढांचा इन बाधाओं को स्वीकार करता है और अनौपचारिक, खेल-आधारित सीखने के माहौल को बढ़ावा देने में माता-पिता, परिवारों और समुदायों की भूमिका पर जोर देता है। साथ ही साथ समावेशी शैक्षिक प्रथाओं को सुनिश्चित करते हुए, भारत की भाषाई विविधता को समायोजित करने के लिए बहुभाषी कक्षाओं की सिफारिश भी की जा रही है।
● कार्यान्वयन की समस्या:
○ वर्तमान में संचालित विभिन्न नीति निर्देशों के बावजूद, प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के व्यावहारिक कार्यान्वयन में, कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से भारत की शहरी प्रवासी आबादी के संबंध में। प्रवासी परिवारों को सीमित जागरूकता और भाषाई असमानताओं के कारण गुणवत्तापूर्ण पूर्व-प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय प्रारंभिक बचपन शिक्षा पाठ्यचर्या रूपरेखा बहुभाषी कक्षाओं के महत्व को तो रेखांकित करती है लेकिन कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार करती है। इसके लिए आरंभ से ही विविध भाषाई और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों और शिक्षकों की तैनाती के संबंध में प्रश्न उठते रहे हैं। अपर्याप्त स्टाफिंग, अपर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने में व्यवधान डालती है, जिससे असमानताएँ बढ़ती हैं।
● प्रशिक्षण और संसाधन:
○ प्रारंभिक बचपन की शिक्षा को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू मानव संसाधनों में निवेश करना है। प्रशिक्षित शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभाते हैं, फिर भी इस पेशे में अक्सर सम्मानजनक मान्यताओं और पर्याप्त पारिश्रमिक का अभाव देखा गया है। युवा शिक्षार्थियों की बहुआयामी आवश्यकताओं को संबोधित करने हेतु शिक्षकों की क्षमता सुनिश्चित करने सहित अधिक कौशलयुक्त प्रशिक्षण और समर्थन की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विशेष ध्यान और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो प्रारंभिक बचपन की शिक्षा सेटिंग्स के भीतर व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और समावेशी प्रथाओं की आवश्यकताओं को रेखांकित करता है।
सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ:
● गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन की शिक्षा शैक्षणिक तैयारियों के अतिरिक्त अग्रणी रुप में से सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करती है। यह मातृ कार्यबल भागीदारी को सक्षम करके, बच्चों की देखभाल के बोझ को कम करके, प्रारंभिक शिक्षा के आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान देती है और बड़े बच्चों के बीच स्कूल छोड़ने की दर को कम करती है। हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए, गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा तक पहुंच सामाजिक गतिशीलता, शैक्षिक असमानताओं को कम करने और गुणवत्तापूर्ण जीवन की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती है।
बढ़ता हुआ निवेश:
● यद्यपि प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सराहनीय है, लेकिन इसके लगातार सार्थक प्रभाव के लिए निरंतर निवेश अनिवार्य है। प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च; आंगनबाड़ियों के लिए सशक्तिकरण पहल के साथ मिलकर, समान पहुंच की सुविधा प्रदान कर सकता है और समावेशी शिक्षण वातावरण को बढ़ावा दे सकता है। हालाँकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बच्चों की विविध आवश्यकताओं और प्रासंगिक चुनौतियों की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष:
● भारत की गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन शिक्षा की दिशा में की जा रही यात्रा सराहनीय प्रगति और लगातार चुनौतियों से भरी है। आंगनबाड़ियों को सशक्त बनाना और शिक्षक प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना; छोटे बच्चों के लिए समावेशी और न्यायसंगत सीखने के अवसरों को साकार करने की दिशा में सरकार के एक महत्वपूर्ण प्रयास हैं। नीतिगत ढाँचे इसके लिए एक रोडमैप प्रदान करते हैं, यद्यपि उनका प्रभावी कार्यान्वयन प्रणालीगत बाधाओं और संसाधन की कमियों को दूर करने की गतिशीलता पर निर्भर करता है। प्रारंभिक बचपन की शिक्षा को प्राथमिकता देकर और मानव पूंजी में निवेश करके, भारत आजीवन सीखने और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत नींव रख सकता है। इस संदर्भ में देश का भविष्य भारत के सबसे कम उम्र के शिक्षार्थियों के पोषण के लिए संवेदनशीलता और दृढ़ प्रतिबद्धता द्वारा निर्देशित ठोस प्रयासों की मांग करता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत: ORF