सन्दर्भ: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25, जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2025 को संसद में प्रस्तुत किया। यह भारत के पिछले वर्ष के आर्थिक प्रदर्शन की विस्तृत समीक्षा प्रदान करता है तथा आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुमान प्रस्तुत करता है। यह सर्वेक्षण मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंथा नागेश्वरन के मार्गदर्शन में आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा तैयार किया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण नीति-निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह देश के आर्थिक प्रदर्शन की व्यापक समीक्षा प्रस्तुत करता है, प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित करता है और आर्थिक लचीलेपन को सुदृढ़ करने के लिए रणनीतियाँ सुझाता है। इस वर्ष का सर्वेक्षण संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत की आर्थिक स्थिरता पर बल देता है। साथ ही, यह उन संरचनात्मक कमजोरियों को भी इंगित करता है जो दीर्घकालिक विकास को बाधित कर सकती हैं। भारत की विकास गाथा को निरंतर बनाए रखने के लिए यह सर्वेक्षण विनियामक सुधारों, व्यापार सुलभता में वृद्धि और एक अधिक उद्यम-हितैषी वातावरण के निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में दो प्रमुख वैश्विक चिंताओं पर प्रकाश डाला गया है जो भारत की आर्थिक प्रगति को प्रभावित कर सकती हैं:
1. वैश्विक व्यापार और निवेश में मंदी :
वैश्विक आर्थिक वातावरण लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है। वैश्विक व्यापार और निवेश में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जिसका मुख्य कारण संरक्षणवाद में वृद्धि और वैश्वीकरण में आई गिरावट है। भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितताओं ने इस प्रवृत्ति को और अधिक गहरा किया है। सर्वेक्षण में इस बात की चेतावनी दी गई है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था एक दीर्घकालिक ठहराव ( Stagnation) के दौर में प्रवेश कर सकती है, जिसमें वैश्विक आर्थिक विकास की गति मंद बनी रह सकती है।
2. वैश्विक विनिर्माण में चीन का प्रभुत्व:
सर्वेक्षण वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में चीन की प्रभावशाली भूमिका को रेखांकित करता है। चीन वर्तमान में वैश्विक उत्पादन में लगभग एक-तिहाई योगदान देता है, जो अगली 10 सबसे बड़ी विनिर्माण अर्थव्यवस्थाओं के संयुक्त उत्पादन से भी अधिक है। हालांकि, भू-राजनीतिक बदलाव, आर्थिक विखंडन (Fragmentation) और आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी चिंताओं ने वैश्विक विनिर्माण रणनीतियों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को जन्म दिया है। वैश्वीकरण के युग में स्थापित आपूर्ति शृंखलाओं की पुनर्संरचना की संभावनाओं के बीच, चीन पर वैश्विक निर्भरता फिर से बढ़ सकती है। यह भारत के लिए न केवल चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है बल्कि अवसर भी प्रदान करता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति:
1. वास्तविक जीडीपी वृद्धि: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.4% रहने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2025-26 के लिए यह 6.3% से 6.8% के दायरे में रहने की संभावना जताई गई है। यह स्थिर आर्थिक वृद्धि मजबूत घरेलू मांग, बढ़ते निजी निवेश और सेवा क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन को दर्शाती है।
2. निजी उपभोग में वृद्धि: निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE), जो व्यक्तियों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए खर्च को मापता है, में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में PFCE की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2023-24 में 60.3% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 61.8% होने की उम्मीद है। यह वृद्धि वित्त वर्ष 2002-03 के बाद से निजी उपभोग का उच्चतम स्तर होगी। उपभोग में यह वृद्धि मुख्य रूप से मजबूत उपभोक्ता विश्वास, बढ़ती डिस्पोजेबल आय, मध्यम वर्ग की खपत में विस्तार और शहरीकरण जैसे कारकों से प्रेरित होगी।
3. सकल मूल्य वर्धन (जीवीए): समग्र सकल मूल्य वर्धन (GVA) महामारी-पूर्व रुझानों को पार कर चुका है और ऐतिहासिक स्तरों से ऊपर बना हुआ है, जिससे विनिर्माण, सेवाओं और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि का संकेत मिलता है।
4. मुद्रास्फीति के रुझान: सर्वेक्षण के अनुसार, मुख्य मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई है, जिसका मुख्य कारण कोर मुद्रास्फीति (जिसमें खाद्य और ईंधन की कीमतें शामिल नहीं होती हैं) में कमी है। हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 7.5% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 8.4% हो गई है।
o खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि में योगदान देने वाले कारकों में आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाली मौसम संबंधी अनिश्चितताएं तथा सब्जियों और दालों जैसी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें शामिल हैं।
o सरकार का लक्ष्य मौद्रिक नीति में लचीलापन बनाए रखते हुए खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में लक्षित हस्तक्षेप के माध्यम से मुद्रास्फीति को स्थिर करना है।
क्षेत्रीय विकास
● कृषि विकास: वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि क्षेत्र में 3.8% की वृद्धि होने का अनुमान है। वित्त वर्ष की पहली छमाही में कृषि क्षेत्र में स्थिर वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें दूसरी तिमाही में 3.5% की वृद्धि देखी गई। यह वृद्धि खरीफ उत्पादन में वृद्धि, अनुकूल मानसूनी परिस्थितियों और उच्च जलाशय स्तरों द्वारा समर्थित रही, जिससे सिंचाई सुविधाओं और फसल उत्पादकता में सुधार हुआ। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कुल खरीफ खाद्यान्न उत्पादन 1647.05 लाख मीट्रिक टन (LMT) तक पहुँचने की उम्मीद है, जो वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में 5.7% की वृद्धि को दर्शाता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाए रखने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र में लचीलापन बनाए रखना आवश्यक है।
● औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन: वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के औद्योगिक क्षेत्र में 6.2% की वृद्धि का अनुमान है, जो निर्माण गतिविधियों, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन से प्रेरित है। हालांकि, वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही, विशेष रूप से दूसरी तिमाही में, औद्योगिक विकास को विनिर्माण निर्यात में गिरावट, औसत से अधिक मानसून के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और त्योहारी सीजन के मिले-जुले प्रभावों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, भारत का विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले सूचकांकों में से एक बना हुआ है, जो घरेलू बाजार में मजबूत मांग और उत्पादन गतिविधि में सुधार को दर्शाता है।
● सेवा क्षेत्र की वृद्धि: सेवा क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, और वित्त वर्ष 2024-25 में इसकी अनुमानित वृद्धि दर 7.2% है। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में इस क्षेत्र में 7.1% की वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट, पेशेवर सेवाओं, लोक प्रशासन और रक्षा द्वारा संचालित है। वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल से नवंबर के बीच भारत के सेवा निर्यात में 12.8% की वृद्धि हुई, जो वैश्विक बाजार में इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को दर्शाता है, विशेष रूप से आईटी और व्यावसायिक सेवाओं में।
बाह्य क्षेत्र प्रदर्शन
● व्यापार और चालू खाता
अप्रैल से दिसंबर 2024 तक भारत के व्यापारिक निर्यात में सालाना आधार पर 1.6% की वृद्धि हुई, जबकि व्यापारिक आयात में 5.2% की वृद्धि दर्ज की गई। सेवाओं के निर्यात में मजबूत प्रदर्शन ने इस असंतुलन को दूर करने में मदद की, जिसके परिणामस्वरूप भारत वैश्विक स्तर पर सेवाओं के सातवें सबसे बड़े निर्यातक के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल रहा। विदेशों से भेजे गए धन ने भी चालू खाता घाटे (CAD) को Q2 FY25 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1.2% पर अपेक्षाकृत सीमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
● प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई )
एफडीआई प्रवाह में उल्लेखनीय सुधार देखा गया, जो वित्त वर्ष 2024 में 47.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 55.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 17.9% अधिक है। यह वृद्धि आर्थिक सुधारों, राजनीतिक स्थिरता और बड़े उपभोक्ता बाजार द्वारा प्रेरित भारत की अपील को निवेश गंतव्य के रूप में उजागर करती है।
बुनियादी ढांचा और नवीकरणीय ऊर्जा
● बुनियादी ढांचे का विकास :
बुनियादी ढांचे में निवेश दीर्घकालिक विकास के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता बनी हुई है। रेल और बंदरगाह क्षमता के विस्तार पर सरकार का ध्यान स्पष्ट है। 2031 किलोमीटर रेलवे नेटवर्क चालू हो गया है और अप्रैल से नवंबर 2024 के बीच वंदे भारत ट्रेनों की 17 नई जोड़ी शुरू की गई हैं, जिससे कनेक्टिविटी में और वृद्धि हुई है।
● नवीकरणीय ऊर्जा :
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता दिसंबर 2024 तक सालाना आधार पर 15.8% बढ़ने की उम्मीद है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और प्रधानमंत्री-कुसुम योजना जैसे हरित निवेशों पर सरकार के जोर से कार्बन में तेजी से कमी आने की संभावना है।
रोजगार और श्रम बाजार: बेहतर होते रुझान
● आर्थिक सर्वेक्षण में रोजगार रुझानों की रिपोर्ट दी गई है, जो महामारी के बाद की रिकवरी, नौकरियों के औपचारिकीकरण में वृद्धि और कार्यबल की बढ़ती भागीदारी द्वारा समर्थित है। 2023-24 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार:
● बेरोजगारी दर में गिरावट आई है।
● श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में सुधार हुआ है, जो रोजगार के अवसरों में वृद्धि का संकेत है।
● श्रमिक-जनसंख्या अनुपात (WPR) में वृद्धि हुई है, जो कार्यबल की अधिक सहभागिता को दर्शाता है।
हालाँकि, नौकरी की गुणवत्ता और वेतन वृद्धि में संरचनात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
नीति अनुशंसाएँ:
1. आर्थिक वृद्धि के लिए विनियमन में कमी
सर्वेक्षण में व्यवसाय विनियमन को सरल बनाने की बात की गई है, विशेषकर छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए। नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करने से व्यवसाय करने की लागत कम होगी, उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा और निवेश तथा रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
2. व्यापार सुधार कार्य योजना (BRAP )
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने व्यापार सुधार कार्य योजना (BRAP) पेश की है, जिसका उद्देश्य व्यापार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देना है। सर्वेक्षण में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उभरते और महत्वाकांक्षी राज्यों में BRAP को लागू करने के महत्व पर जोर दिया गया है।
3. बुनियादी ढांचे और निवेश की कमी को दूर करना
सर्वेक्षण में बड़े पैमाने पर और गुणवत्तापूर्ण तरीके से वस्तुओं के उत्पादन में भारत की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है। इसके लिए दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए घरेलू विनिर्माण और बुनियादी ढांचे में निवेश को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 भारत की आर्थिक प्रगति का विस्तृत और सूक्ष्म मूल्यांकन प्रदान करता है। जबकि जीडीपी वृद्धि स्थिर बनी हुई है, मुद्रास्फीति, विनियामक बाधाओं और औद्योगिक बाधाओं जैसी संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक होगा। प्रमुख नीति प्राथमिकताएँ हैं:
1. व्यापार विस्तार और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए विनियमन में कमी।
2. औद्योगिक एवं अवसंरचना क्षमता में वृद्धि करना।
3. आपूर्ति पक्ष हस्तक्षेप के माध्यम से मुद्रास्फीति को स्थिर करना।
4. स्थायी रोजगार वृद्धि के लिए श्रम बाजार को मजबूत बनाना।
भारत की व्यापार-समर्थक नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना, निवेश को आकर्षित करना और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना, इन सभी पहलुओं की क्षमता इसके आर्थिक विकास को निरंतर बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाएगी।
मुख्य प्रश्न : आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में वैश्विक मंदी और व्यापार तनाव से संबंधित जो प्रमुख चिंताएँ उठाई गई हैं, उनके संदर्भ में भारत इन बाहरी कारकों से उत्पन्न जोखिमों को कैसे कम कर सकता है और अपने विकास के रास्ते पर किस प्रकार प्रगति कर सकता है, इसका विश्लेषण करें। |