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Daily-current-affairs / 09 Jul 2024

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को कम करने के लिए स्वास्थ्य बजट में दोगुनी वृद्धि : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ

वर्तमान में भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, इनमें से एक चुनौती कम सार्वजनिक खर्च के कारण परिवारों पर उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च का बोझ है। इस जटिल स्थिति के बावजूद स्वास्थ्य, राजनीतिक चुनावों और बजट में सार्वजनिक बहस का मुद्दा नहीं है।

स्वास्थ्य पर व्यय की वर्तमान स्थिति

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च : भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का लक्ष्य अब तक पूरा नही किया जा सका है। वर्तमान में कुल स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का लगभग 3.5% है, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च लगभग 1.35% है। कम सार्वजनिक निवेश परिवारों के लिए उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च का कारण बनता है, जिससे पहले से ही गरीबी की कगार पर जी रहे लोगों पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।
  • आर्थिक झटकों का प्रभाव : नोटबंदी, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) का कार्यान्वयन और कोविड-19 महामारी ने परिवारों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। इन आर्थिक चुनौतियों के कारण कई लोगों को स्थिर वेतन, उच्च खाद्य मूल्य और बढ़ती उधारी का सामना करना पड़ा है, परिणामतः स्वास्थ्य सेवा अधिकांश आबादी के लिए अप्राप्य हो गई है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 13.4% परिवारों ने चिकित्सा बिलों का भुगतान करने के लिए पैसा उधार लिया, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 8.5% था। बाकी आबादी या तो मुफ्त सार्वजनिक देखभाल की तलाश में रहे, खुद को स्वास्थ्य सेवा से वंचित रखा या फिर अपने बजट में ही घटिया देखभाल का विकल्प चुना।

गरीबी और स्वास्थ्य सेवा

  • गरीबी रेखा से नीचे जाना : आकलन है कि 60-80 मिलियन परिवार चिकित्सा खर्च के कारण गरीबी रेखा से नीचे पहुँच गए हैं। इन चिंताजनक आंकड़ों के बावजूद, भारतीय चुनावों में स्वास्थ्य एक गैर जरूरी मुद्दा बना हुआ है। देश की स्वास्थ्य प्रणाली एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां संचारी और गैर-संचारी रोगों के दोहरे बोझ को प्रबंधित करने के लिए क्षमता निर्माण की अति आवश्यकता है, यह विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में अधिक महसूस की जा रही है।
  • रोग प्रबंधन : ध्यातव्य है कि संचारी रोग को अपेक्षाकृत आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। हालाँकि, इनकी उपेक्षा से विनाशकारी परिणाम पैदा हो सकते है। गैर-संचारी रोगों के लिए जीवनभर के प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए एक स्थिर और नियमित देखभाल प्रणाली की जरूरत होती है। इन आवश्यकताओं को संतुलित करने के लिए एक स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता है जिसमें त्वरित और स्थिर दोनों विशेषताएं हो। इसके अलावा इसमें कौशल, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे और पर्यवेक्षी प्रणालियों का सही मिश्रण हो। ध्यान देने वाली बात इन सबके लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है।

स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार

हाल ही में सरकार द्वारा आरंभ की गई स्वास्थ्य सेवा से संबंधित निम्नलिखित पहलें है?

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
  • आयुष्मान भारत
  • प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई)
  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग
  • पीएम राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके)
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके)
  • अप्रभावी सुधार : यद्यपि कई देशों ने अपने स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार किया है, जबकि भारत ने अपर्याप्त बजट वृद्धि और स्वास्थ्य संकटों के प्रति प्रतिक्रियात्मक उपायों के साथ समय बर्बाद किया है। इसका एक उदाहरण सब्सिडी वाली सामाजिक स्वास्थ्य बीमा के तहत आश्वासन राशि में लगातार वृद्धि है, जो स्वास्थ्य देखभाल में प्रणालीगत मुद्दों का समाधान करने में विफल रही है।
  • बजट अपेक्षाएँ : हालांकि पिछली निराशाओं के बावजूद, आगामी बजट से उच्च उम्मीदें हैं। 2010 से, जीडीपी के अनुपात के रूप में भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च 1.12% से 1.35% के बीच बना हुआ है। इस स्थिरता के बावजूद केंद्रीय बजट आवंटन में वृद्धि हुई है - 2012-13 में ₹25,133 करोड़ से 2023-24 में ₹86,175 करोड़ तक हो गया है, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य बजट का जीडीपी के अनुपात में हिस्सा लगभग 0.27% रहा है। राज्य का खर्च उनके राजस्व बजट का औसतन 5% है, जो लक्षित 8% से कम है। यह विशेष रूप से बिहार जैसे गरीब राज्यों में काफी कम है।

बजट के लिए आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

  • स्वास्थ्य के लिए नीति आयोग कार्य योजना को लागू करना : सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसमें सरकारी खर्च को जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाना और उपचारात्मक देखभाल के बजाय रोकथाम पर जोर देना शामिल है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल लागत प्रबंधन आयोग की स्थापना : एक राष्ट्रीय आयोग नियुक्त किया जाना चाहिए जो स्वास्थ्य सेवा खर्च रणनीतियों की सिफारिश करे और प्रणाली प्रदर्शन की निगरानी करे।
  • विश्व बैंक और एडीबी ऋण : स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में एक सकारात्मक विकास हाल ही में देखा गया है यह पहल विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से कुल $240 मिलियन के ऋणों की बातचीत है। इन ऋणों का उद्देश्य जिला-स्तरीय रोग निगरानी प्रयोगशालाओं को मजबूत करना, बड़े जिलों में आईसीयू स्थापित करना और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को बढ़ाना है। यद्यपि ये ऋण कोविड-19 महामारी द्वारा उजागर किए गए कुछ अंतरालों को संबोधित करते हैं, लेकिन भारत को बुनियादी स्वास्थ्य अवसंरचना में तेजी से और भारी निवेश जारी रखना चाहिए, विशेष रूप से उन राज्यों में जहाँ महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की कमी है।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना में असमानताएँ : बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम जैसे राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं और मानव संसाधनों की गंभीर कमी है। इन असमानताओं को केंद्रीय सरकार से एक बढ़े हुए और भिन्न वित्तीय पैकेज के साथ दूर करने की आवश्यकता है।
  • आयुष्मान भारत : जब तक स्वास्थ्य सेवा सेवाओं की आपूर्ति में सुधार नहीं होता, तब तक आयुष्मान भारत (पीएमजेएवाई) जैसी मांग-पक्ष की पहल का सीमित मूल्य है, क्योंकि इसके तहत आउटपेशेंट देखभाल कवर नहीं की जाती है। पिछड़े राज्यों में सिस्टम विकसित करने के लिए, वित्त मंत्रालय को स्वास्थ्य बजट, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए बजट में महत्वपूर्ण वृद्धि करनी चाहिए और स्वास्थ्य बजट में सभी 4% स्वास्थ्य उपकर के तहत एकत्रित धनराशि को आवंटित करना चाहिए। अब तक एकत्रित ₹69,063 करोड़ में से केवल 25% ही स्वास्थ्य मंत्रालय को स्थानांतरित किया गया है।
  • जीएसटी करों का युक्तिकरण : सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के अलावा, स्वास्थ्य उत्पादों पर जीएसटी करों का युक्तिकरण करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर 18% जीएसटी और इंसुलिन एवं हेपेटाइटिस डायग्नोस्टिक्स पर 5% जीएसटी है। यह उच्च दर मधुमेह और हेपेटाइटिस के बढ़ते प्रचलन को देखते हुए समस्यास्पद हैं। उन निजी संस्थाओं के लिए नकारात्मक प्रोत्साहन पर विचार किया जाना चाहिए जो पूर्ण जीएसटी छूट और अन्य वित्तीय लाभों के बावजूद स्वास्थ्य देखभाल लागत बढ़ाते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक अधिकार के रूप में मानना : स्वास्थ्य क्षेत्र में मूल मुद्दा राज्य की भूमिका, करदाता नागरिकों के अधिकार और प्रस्तावित विकास मॉडल है। इस संदर्भ में प्रमुख प्रश्न है कि क्या स्वास्थ्य एक सार्वजनिक वस्तु है, क्या स्वस्थ कल्याण मानव विकास के लिए बुनियादी है और क्या स्वास्थ्य नागरिकों और राज्य के बीच सामाजिक अनुबंध का हिस्सा है। यदि इन प्रश्नों का उत्तर हाँ है, तो सरकार को स्वास्थ्य बजट को दोगुना करना चाहिए और विकृत प्रणाली को ठीक करने के लिए सुधार शुरू करना चाहिए।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर करने के लिए समय, राजनीतिक सहमति और स्थिरता की आवश्यकता होती है। अन्य देशों ने इस दिशा में बेहतर प्रगति की है और भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनने की अपनी आकांक्षा को प्राप्त करने के लिए उनसे सबक लेना  चाहिए। स्वास्थ्य बजट में पर्याप्त वृद्धि के साथ-साथ प्रणालीगत सुधार महत्वपूर्ण हैं ताकि सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुलभ और किफायती हो सके।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के संभावित प्रश्न

  1. भारत के कम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय का घरेलू आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च पर प्रभाव का विश्लेषण करें और इस वित्तीय बोझ को कम करने के उपाय सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की स्वास्थ्य सेवा सुधारने में प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। भारतीय राज्यों में स्वास्थ्य अवसंरचना में असमानताओं को दूर करने के लिए और कौन से कदम आवश्यक हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: हिन्दू

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