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Daily-current-affairs / 08 Jan 2025

भारत में डिजिटल गवर्नेंस : चुनौतियां, अवसर और सिफारिशें

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सन्दर्भ :

हाल के वर्षों में, भारत ने डिजिटल शासन की दिशा में एक महत्वाकांक्षी यात्रा शुरू की है, जिसका उद्देश्य नागरिक सेवाओं को बढ़ाना और सरकारी कर्मचारियों की दक्षता में सुधार करना है। यह परिवर्तन एक महत्वपूर्ण वास्तविकता को रेखांकित करता है: सार्वजनिक सेवा वितरण की सफलता स्वाभाविक रूप से इसके पीछे कार्यबल के कौशल और क्षमताओं से जुड़ी हुई है। महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद,प्रमुख प्रश्न बने हुए हैं: इस डिजिटल बदलाव की क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिए और क्या किया जा सकता है?

डिजिटल गवर्नेंस की नींव:

शासन एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें सरकार, गैर-सरकारी संगठन, स्थानीय समुदाय और नागरिक सहित विभिन्न हितधारक भागीदार होते हैं। चाणक्य के अर्थशास्त्र में प्रतिपादित शासन सिद्धांतों ने दक्षिण एशियाई शासन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है, जिसमें शासन कला, आर्थिक नीति और नैतिक नेतृत्व पर विशेष बल दिया गया है। आधुनिक युग में, सभी स्तरों पर शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग अनिवार्य हो गया है। शासन में शामिल सभी पक्षों के लिए इन तकनीकों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने हेतु क्षमता निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डिजिटल शासन में क्षमता निर्माण:

डिजिटल शासन व्यवस्था ने सरकारी कार्यप्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। प्रौद्योगिकी के एकीकरण से केवल संचार और निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक कुशल बनी है, बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ी है। इससे बिचौलियों की भूमिका में कमी आई है और जनता को सीधे सेवाएं मिलने लगी हैं। बदलते समय के साथ जनता की अपेक्षाएं भी बढ़ रही हैं, जिसके लिए शासन में कार्यरत लोगों को नए कौशल विकसित करने की आवश्यकता है।

प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

1.   iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म : 2020 में शुरू किया गया यह ऑनलाइन प्रशिक्षण मंच सरकारी अधिकारियों को डेटा विश्लेषण, लोक प्रशासन और डिजिटल तकनीकों से संबंधित आवश्यक कौशल प्रदान करता है। व्यक्तिगतकृत शिक्षण पथों के माध्यम से निरंतर सीखने को प्रोत्साहित किया जाता है, जो कि तेजी से बदलते परिवेश में सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

2.   -ऑफिस पहल : यह पहल सरकारी कार्यप्रवाह को डिजिटल बनाती है, जिससे कागजी कार्रवाई पर निर्भरता काफी कम हो जाती है और परिचालन दक्षता बढ़ जाती है। फ़ाइल प्रबंधन, कार्यप्रवाह और शिकायत निवारण में स्वचालन वास्तविक समय संचार और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

3.   सरकारी -मार्केटप्लेस ( जीईएम ) : जीईएम जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सरकारी खरीद प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण, दक्षता बढ़ाता है और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

4.   डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम : विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का उद्देश्य कर्मचारियों को  -गवर्नेंस टूल, साइबर सुरक्षा और डिजिटल संचार से परिचित कराना है।

 

डिजिटल शासन में चुनौतियाँ :

इन प्रगतियों के बावजूद, भारत में  -गवर्नेंस के सफल कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ बाधा डालती हैं। इन्हें निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

1.   डिजिटल अवसंरचना :

o    सीमित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी : कई ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में अभी भी हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा नहीं है, जिससे  -गवर्नेंस सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।

o    विद्युत आपूर्ति संबंधी समस्याएं : ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार बिजली गुल होना और बिजली की अविश्वसनीयता डिजिटल बुनियादी ढांचे की कार्यक्षमता को बाधित करती है।

2.   अंतरसंचालनीयता :

o    खंडित प्रणालियाँ : विभिन्न सरकारी विभाग ऐसी प्रणालियों का उपयोग करते हैं जोकि हमेशा संगत नहीं होती हैं, जिससे निर्बाध डेटा साझाकरण और समन्वय में बाधा उत्पन्न होती है।

o    प्रणालियों के साथ एकीकरण : पुरानी प्रणालियों को आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ उन्नत करना और एकीकृत करना जटिल और महंगा दोनों है।

3.   डेटा सुरक्षा और गोपनीयता :

o    साइबर सुरक्षा खतरे : डिजिटलीकरण बढ़ने से साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों का जोखिम बढ़ जाता है इसलिए साइबर सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।

o    डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएं : व्यापक डेटा संरक्षण कानून का अभाव व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा करता है।

4.   डिजिटल साक्षरता :

o    कम साक्षरता दर और डिजिटल डिवाइड:

1.   एनएसएसओ डेटा से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 24% घरों में इंटरनेट की सुविधा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 66% है। एनएफएचएस-5 के अनुसार ग्रामीण पुरुषों में इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना महिलाओं की तुलना में लगभग दोगुनी है (49% बनाम 25%)

2.   जीएसएमए मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 में बताया गया है कि भारत में महिलाओं के पास मोबाइल फोन होने की संभावना 11% कम है और इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना 40% कम है तथा केवल 33% महिलाएं ही मोबाइल इंटरनेट के बारे में जानती हैं।

o    प्रशिक्षित सरकारी कर्मचारियों की कमी : यह सुनिश्चित करना कि सभी सरकारी कर्मचारी -गवर्नेंस प्लेटफार्मों के प्रबंधन में कुशल हों, एक सतत चुनौती है।

5.   तकनीकी सहायता और रखरखाव :

o    अपर्याप्त तकनीकी सहायता : कई क्षेत्रों में -गवर्नेंस प्रणालियों के रखरखाव और समस्या निवारण के लिए कुशल कर्मियों की कमी है।

o    मापनीयता संबंधी मुद्दे : अगर कोई सिस्टम मापनीय नहीं है तो जैसे-जैसे उसका उपयोग बढ़ता है, उसका प्रदर्शन खराब होने लगता है। जैसे कि एक वेबसाइट धीमी हो जाती है या एक ऐप क्रैश हो जाता है।

6.   लागत और वित्तपोषण :

o    उच्च कार्यान्वयन लागत : डिजिटल बुनियादी ढांचे की स्थापना, प्रणालियों को बनाए रखने और कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।

o    उन्नत प्रौद्योगिकियों की लागत : एआई और ब्लॉकचेन जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर लागू करना महंगा है।

7.   उपयोगकर्ता पहुंच और समावेशिता :

o    भाषाई बाधाएँ : भारत की भाषाई विविधता के कारण बहु-भाषाओं में -गवर्नेंस सेवाओं की आवश्यकता है।

o    दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुगम्यता : दिव्यांग उपयोगकर्ताओं के लिए समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त तकनीकी विचारों की आवश्यकता होती है।

चुनौतियों पर काबू पाने के लिए सिफारिशें :

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रमुख सिफारिशें की हैं:

·         अनुकूल वातावरण का निर्माण :

o    सरकार के भीतर परिवर्तन के लिए इच्छाशक्ति पैदा करना।

o    उच्चतम स्तर पर राजनीतिक समर्थन प्रदान करना।

o    -गवर्नेंस पहल को प्रोत्साहित करना।

o    परिवर्तन की मांग उत्पन्न करने के लिए जन जागरूकता बढ़ाना।

·         व्यवसाय प्रक्रिया पुनः अभियांत्रिकी : प्रक्रियागत, संस्थागत और कानूनी परिवर्तनों द्वारा समर्थित, -गवर्नेंस आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिए सरकारी प्रक्रियाओं और संरचनाओं को पुनः डिजाइन करना।

·         तकनीकी समाधान विकसित करना : डिजिटल गवर्नेंस ढांचे को मानकीकृत और अनुकूलित करने के लिए एक राष्ट्रीय -गवर्नेंस उद्यम वास्तुकला का निर्माण करना।

·         निगरानी एवं मूल्यांकन : कार्यान्वयन संगठनों द्वारा -गवर्नेंस परियोजनाओं की निरंतर निगरानी सुनिश्चित करना।

·         सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) : -गवर्नेंस परियोजनाओं के विभिन्न घटकों के लिए पीपीपी मोड का लाभ उठाना।

·         महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना की सुरक्षा : महत्वपूर्ण अवसंरचना को सुरक्षित करने के लिए रणनीति विकसित करना, जिसमें बेहतर  विश्लेषण और सूचना साझाकरण शामिल है।

·         क्षमता निर्माण और ज्ञान प्रबंधन : शासन पहल को मजबूत करने के लिए ज्ञान प्रबंधन और कौशल विकास के लिए प्रणालियां स्थापित करना।

आगे की राह :

भारत की डिजिटल गवर्नेंस पहल ने एक मजबूत आधार तैयार किया है, लेकिन इस परिवर्तन की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। प्रमुख अनुशंसाएँ इस प्रकार हैं:

1.   अवसंरचना विकास : डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना को मजबूत करना।

2.   गतिशील प्रशिक्षण कार्यक्रम : तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए अनुकूली प्रशिक्षण मॉड्यूल डिजाइन करना।

3.   प्रोत्साहन संरचनाएं : नवाचार को बढ़ावा देने और डिजिटल उपकरणों को प्रभावी ढंग से अपनाने वाले व्यक्तियों/संस्थानों को पुरस्कृत करने के लिए एक व्यवस्था बनाना।

4.   समावेशी नीतियाँ : दिव्यांगों और भाषायी रूप से विविध आबादी सहित सभी नागरिकों के लिए पहुँच सुनिश्चित करना।

मजबूत बुनियादी ढांचे, निरंतर क्षमता निर्माण और समावेशी नीतियों के साथ, भारत डिजिटल शासन के लिए एक वैश्विक मानदंड स्थापित कर सकता है और एक ऐसा मॉडल प्राप्त कर सकता है जो सभी के लिए जवाबदेह, पारदर्शी और समावेशी हो।

 

मुख्य प्रश्न: डिजिटल शासन में भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण को बदलने की क्षमता है।इससे जुडी चुनौतियों का विश्लेषण करें और उनसे निपटने के लिए सुझाव दें।