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Daily-current-affairs / 07 Dec 2024

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन : प्रजनन दर में गिरावट के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों की जांच -डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ :

भारत, जोकि 1.4 बिलियन से अधिक जनसंख्या वाला देश है, वर्तमान में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहा है, जिसका प्रमुख लक्षण प्रजनन दर में उल्लेखनीय गिरावट है। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप वृद्ध जनसंख्या का बढ़ता अनुपात, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असंतुलन और श्रमबल की कमी जैसी संभावित चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि, प्रतिस्थापन प्रजनन दर से नीचे गिरने को "सफलता" के रूप में स्वीकार करने से पूर्व, इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का गहराई से मूल्यांकन करना और इन चुनौतियों से निपटने के प्रभावी उपायों की पहचान करना अत्यंत आवश्यक है।

भारत में घटती प्रजनन दर :

·        भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) अब घटकर प्रति महिला 2 बच्चे रह गई है, जोकि 1950 में प्रति महिला 6.2 बच्चों से काफी कम है। अनुमान है कि 2050 तक यह दर और घटकर प्रति महिला 1.3 बच्चे रह सकती है। 2021 में भारत में लगभग 2 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ और 2050 तक यह संख्या घटकर 1.3 करोड़ तक पहुँचने की संभावना है।

·        भारत में 0-14 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या भी घट रही है। 2021 में यह आंकड़ा 36.4 करोड़ था, और 2024 तक इसमें 2.6 करोड़ की कमी होकर यह 34 करोड़ हो जाने का अनुमान है। वहीं, भारत में बुज़ुर्गों (60 वर्ष और उससे ऊपर) की आबादी लगातार बढ़ रही है। 1991 में बुज़ुर्गों की आबादी 6.1 करोड़ थी और 2024 तक इसके बढ़कर 15 करोड़ हो जाने का अनुमान है।

वैश्विक प्रजनन दर में गिरावट :

प्रजनन दर में गिरावट केवल भारत तक सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर, जापान जैसे देश भी इसी तरह के रुझानों का सामना कर रहे हैं। 2021 में, वैश्विक प्रजनन दर प्रति महिला 2.3 बच्चे थी  और 2050 तक इसके घटकर 1.8 हो जाने की उम्मीद है। भविष्य के अनुमानों के अनुसार, 2100 तक यह दर घटकर 1.6 हो जाएगी। जबकि कम आय वाले देशों में प्रजनन दर में वृद्धि जारी रह सकती है, कई विकसित देशों में जनसंख्या में उल्लेखनीय गिरावट देखी जा रही है।

भारत में प्रजनन दर क्यों गिर रही है?

भारत में प्रजनन दर में गिरावट के लिए कई आर्थिक और सामाजिक कारकों ने योगदान दिया है, जिनमें शामिल हैं:

  • शहरीकरण : शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कम बच्चे पैदा करती हैं, जोकि कैरियर लक्ष्यों, शिक्षा और परिवार नियोजन से प्रभावित होता है।
  • देर से विवाह : महिलाओं में शिक्षा और कैरियर संबंधी आकांक्षाओं के बढ़ते स्तर ने विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी में योगदान दिया है।
  • परिवार नियोजन तक पहुंच : गर्भनिरोधकों और परिवार नियोजन विधियों तक बढ़ती पहुंच ने महिलाओं को अपने प्रजनन विकल्पों पर नियंत्रण करने में सशक्त बनाया है।

भारत में प्रजनन दर में गिरावट के प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

·        कुछ लोगों का मानना है कि प्रजनन दर में कमी से जीवन स्तर में सुधार होगा। कम बच्चों को पालने से संसाधनों का अधिक कुशलता से प्रबंधन किया जा सकता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता बेहतर होगी और स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश होगा।

नकारात्मक प्रभाव

  • आर्थिक विकास : प्रजनन दर में गिरावट आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है। भारत में वर्तमान में दुनिया की सबसे युवा आबादी है, लेकिन प्रजनन दर में निरंतर गिरावट से आबादी बूढ़ी हो सकती है और कार्यबल में कमी सकती है।
  • श्रम बाजार : युवा आबादी में गिरावट के परिणामस्वरूप श्रम शक्ति में कमी सकती है, जिससे उत्पादकता और नवाचार प्रभावित हो सकता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली : बढ़ती हुई वृद्ध आबादी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर महत्वपूर्ण दबाव डालेगी, जिसके लिए वृद्धावस्था देखभाल और वृद्धों के समर्थन में बड़े निवेश की आवश्यकता होगी।

क्षेत्रीय जनसांख्यिकीय असंतुलन :

·        भारत में प्रजनन दर में गिरावट एक समान नहीं है। केरल, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर चुकी है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तर और पूर्व के राज्यों में अभी भी प्रजनन दर उच्च है। इससे क्षेत्रीय असमानताएँ पैदा होती है,जोकि राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधन आवंटन को प्रभावित कर सकती हैं।

·        उदाहरण के लिए, परिसीमन की प्रक्रिया, जोकि जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का आवंटन करती है, के परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्यों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व खोना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग जनसंख्या के आकार के आधार पर संसाधनों का आवंटन करता है और कम प्रजनन दर वाले राज्यों को केंद्रीय निधियों के अपने हिस्से में कमी देखने को मिल सकती है।

श्रम गतिशीलता और क्षेत्रीय असंतुलन का समाधान:

घटती प्रजनन दर को कम करने का प्रयास करने के बजाय, भारत को बेहतर श्रम गतिशीलता के माध्यम से क्षेत्रीय असंतुलन को प्रबंधित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दक्षिणी राज्यों, जिनकी प्रजनन दर कम है, को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन उच्च प्रजनन दर वाले क्षेत्रों से श्रमिकों की आवाजाही में सुधार करके इस समस्या को कम किया जा सकता है। यह उन नीतियों के माध्यम से संभव हो सकता है जो प्रवास को सुविधाजनक बनाती हैं, रोजगार के अवसरों में सुधार करती हैं और प्रवासियों के लिए बेहतर रहने की स्थिति प्रदान करती हैं।

महिला श्रम बल भागीदारी:

·        जनसांख्यिकीय परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले सबसे महत्वपूर्ण अवसरों में से एक महिला श्रम बल में भागीदारी में वृद्धि की संभावना है। हाल के वर्षों में सुधार के बावजूद, भारत की महिला श्रम बल में भागीदारी अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम बनी हुई है। बदलती जनसांख्यिकीय संरचना महिलाओं को शिक्षा, कौशल विकास और करियर के अवसरों तक बेहतर पहुँच प्रदान करके इस मुद्दे को संबोधित करने का अवसर प्रदान करती है।

·        कम बच्चों की संख्या के कारण बच्चों की देखभाल में लचीलापन होने से महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश करने के अधिक अवसर मिल सकते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां उच्च स्तर की शिक्षा और कौशल की आवश्यकता होती है। सरकार महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करके, साथ ही समान वेतन, नौकरी की सुरक्षा और कार्यस्थल समानता सुनिश्चित करके इस बदलाव का समर्थन कर सकती है।

वृद्ध होती जनसंख्या और स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियाँ:

·        भारत की बुजुर्ग आबादी तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे चुनौतियाँ और अवसर दोनों सामने रहे हैं। जैसे-जैसे बुजुर्गों की आबादी बढ़ेगी, स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष तौर पर वृद्धावस्था देखभाल की मांग भी बढ़ेगी। सरकार को बुजुर्गों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवा ढाँचा बनाने, सामाजिक सुरक्षा जाल को बेहतर बनाने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि बुजुर्गों को परिवार और राज्य दोनों प्रणालियों से पर्याप्त सहायता मिले।

·        बुजुर्गों की आबादी में वृद्धि के बावजूद, भारत के बुजुर्ग अभी भी विकसित देशों की तुलना में परिवार के समर्थन पर ज़्यादा निर्भर हैं। हालांकि, इस पारंपरिक सहायता प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए और वृद्धाश्रमों तथा डे-केयर सेवाओं जैसे वैकल्पिक देखभाल समाधानों का विस्तार किया जाना चाहिए।

 

नीति अनुशंसाएँ:

प्रजनन दर बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, भारत को बढ़ती उम्र की आबादी से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने, श्रम गतिशीलता में सुधार लाने और मानव पूंजी में निवेश करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। प्रमुख नीतिगत सिफारिशों में शामिल हैं:

  • शिक्षा और कौशल विकास में निवेश: भावी कार्यबल, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और युवाओं को तैयार करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
  • महिला श्रमबल भागीदारी को बढ़ावा देना: ऐसी नीतियाँ जोकि औपचारिक क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा देती हैं, नौकरी की सुरक्षा प्रदान करती हैं और कार्यस्थल पर भेदभाव को समाप्त करती हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल और वृद्धजन देखभाल में सुधार: वृद्धजनों के लिए स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाएं और उनकी सहायता के लिए सामाजिक कल्याण कार्यक्रम शुरू करें।
  • क्षेत्रीय संसाधन आबंटन: प्रजनन दर और आर्थिक आवश्यकताओं दोनों को ध्यान में रखते हुए संसाधन आबंटन तंत्र को समायोजित करके जनसंख्या वृद्धि में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना।

निष्कर्ष:

भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन चुनौतियों और अवसरों का एक जटिल समूह प्रस्तुत करता है। जबकि प्रजनन दर में गिरावट एक वैश्विक घटना है, भारत के आर्थिक विकास, श्रम बाजार और सामाजिक कल्याण प्रणाली के लिए इसके निहितार्थों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाना चाहिए। मानव पूंजी विकास पर ध्यान केंद्रित करके, क्षेत्रीय समानता में सुधार करके और बढ़ती उम्र की आबादी की चुनौतियों के लिए तैयारी करके, भारत अपने जनसांख्यिकीय बदलाव को नेविगेट कर सकता है और सतत विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार भारत वर्ष 2060 तक 1.6 बिलियन से अधिक की आबादी के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा, इसलिए नीति निर्माताओं को जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, श्रम बाजार सुधार और सामाजिक कल्याण प्रणालियों में निवेश शामिल होना चाहिए , ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन से उसके सभी नागरिकों को लाभ मिले।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

भारत में प्रजनन दर में गिरावट के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों पर चर्चा करें। ये परिवर्तन आर्थिक विकास, श्रम बाज़ारों और सामाजिक कल्याण प्रणालियों को कैसे प्रभावित करते हैं? इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए रणनीतियाँ सुझाएँ।