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Daily-current-affairs / 14 Oct 2024

"मातृ मृत्यु दर में गिरावट: भारत की स्वास्थ्य नीतियों की सफलता का विश्लेषण" डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने भारत की मातृ स्वास्थ्य में उल्लेखनीय प्रगति की सराहना की है। साथ ही महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति राष्ट्र की दृढ़ प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

 भारत में मातृ स्वास्थ्य का संदर्भ:

भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को एक विशिष्ट अवधि में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर गर्भावस्था, प्रसव या गर्भावस्था की समाप्ति से संबंधित कारणों से होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के अनुसार, 2014-2016 से 2018-2019 के बीच भारत का राष्ट्रीय औसत एमएमआर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 130 से घटकर 97 रह गया। इसके अतिरिक्त, आठ राज्यों ने पहले ही 70 से कम एमएमआर का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, जो मातृ स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

 सफलता में योगदान देने वाले प्रमुख कारक:

1.    बेहतर परिवार नियोजन सेवाएँ:
मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में कमी के लिए सबसे महत्वपूर्ण योगदान परिवार नियोजन सेवाओं में प्रगति का रहा है। वर्तमान में विवाहित महिलाओं के बीच आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों का उपयोग 47.8% से बढ़कर 56.5% हो गया है। इस वृद्धि का श्रेय बढ़ती जागरूकता, शिक्षा  और गर्भनिरोधक विकल्पों की सुलभता को दिया जा सकता है, जिससे महिलाओं को अपने प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में उचित निर्णय लेने का अधिकार मिल रहा है।

2.    गर्भनिरोधक विकल्पों का विस्तार
सबडर्मल इम्प्लांट और इंजेक्टेबल गर्भनिरोधक जैसे विकल्पों ने परिवार नियोजन सेवाओं के विकल्पों को बढ़ाया है, जिससे महिलाओं को अपनी ज़रूरतों और जीवनशैली के अनुसार उपयुक्त विकल्प चुनने की सुविधा मिलती है। यह विविधीकरण प्रभावी परिवार नियोजन को बढ़ावा देने और अनपेक्षित गर्भधारण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे मातृ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं में कमी आती है।

3.    सहयोग और साझेदारी

भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के बीच साझेदारी ने मातृ स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सहयोग ने महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु प्रभावी नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को प्रोत्साहित किया है। इन संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप, मातृ स्वास्थ्य को राष्ट्रीय प्राथमिकता में शामिल किया गया, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधारों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में सहायता मिली है। यह साझेदारी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति में भी सहायक सिद्ध हो रही है।

4.     सरकारी पहल:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम)
शुरुआत: 2005
इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल और किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+) रणनीति के माध्यम से मातृ स्वास्थ्य देखभाल सहित सुलभ और किफायती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है।

जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई)
शुरुआत: 2005
एक सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम, जो निम्न आय वर्ग की गर्भवती महिलाओं के लिए संस्थागत प्रसव और प्रसवोत्तर देखभाल को प्रोत्साहित करता है।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई)
शुरुआत: 1 सितंबर, 2017
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके पहले जीवित बच्चे के जन्म पर नकद प्रोत्साहन और मुआवजा प्रदान किया जाता है तथा प्रसवपूर्व देखभाल और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया जाता है।

सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना (सुमन)
शुरुआत: 10 अक्टूबर, 2019
यह योजना सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक महिला और नवजात को बिना किसी लागत के सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल मिले, जिसका उद्देश्य रोकी जा सकने वाली मातृ एवं नवजात मृत्यु को कम करना है।

जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके)
शुरुआत: 2011
यह कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सिजेरियन सहित निःशुल्क और नकदरहित प्रसव सेवाओं की गारंटी देता है।

 

मातृ मृत्यु दर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मातृ मृत्यु को गर्भावस्था के दौरान या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर किसी महिला की मृत्यु के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मृत्यु आकस्मिक या आनुषंगिक कारणों को छोड़कर, गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित या उससे उत्पन्न किसी भी वजह से होती है।

 

मातृ मृत्यु के कारण:

1.     प्रसवोत्तर रक्तस्राव: यदि प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव का तुरंत प्रबंधन किया जाए, तो यह मातृ मृत्यु का कारण बन जाता है।

2.     उच्च रक्तचाप: गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप से माता और शिशु दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं, जिसमें स्ट्रोक की संभावना भी शामिल है।

3.     सेप्सिस: प्रसव के दौरान या उसके बाद होने वाला गंभीर संक्रमण प्रणालीगत सूजन और अंग विफलता का कारण बन सकता है।

4.     प्रसव के दौरान जटिलताएं: बाधित प्रसव या आपातकालीन सिजेरियन सेक्शन की आवश्यकता जैसी समस्याएं मां और शिशु दोनों के लिए जोखिम बढ़ाती हैं।

5.     गर्भपात से संबंधित जटिलताएं: असुरक्षित गर्भपात से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम और मृत्यु दर हो सकती है।

6.     प्री-एक्लेमप्सिया: यह स्थिति उच्च रक्तचाप के कारण होती है,यह मां और बच्चे की सेहत पर असर डाल सकती है।

7.     एक्लैम्पसिया: यह प्री-एक्लेमप्सिया की गंभीर स्थिति है, जो गर्भावस्था या प्रसव के दौरान दौरे ला सकती है, जिससे मां और बच्चे को खतरा होता है।

 

भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) कम करने की चुनौतियाँ:

1.     क्षेत्रीय असमानताएँ: सीमित स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे वाले राज्यों में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर)  अधिक होती है। अतः इन असमानताओं को दूर करना आवश्यक है।

2.     सामाजिक-आर्थिक कारक: हाशिए पर स्थित समुदायों और निम्न आय वाले परिवारों की महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और संसाधनों तक सीमित पहुंच के कारण अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।

3.     स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता: कई क्षेत्रों, विशेषकर दूरदराज के इलाकों में कुशल स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और पर्याप्त चिकित्सा आपूर्ति का अभाव है, जिससे मातृ स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

4.     जागरूकता और शिक्षा: प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल के महत्व के बारे में सीमित जागरूकता समय पर स्वास्थ्य देखभाल बाधा डालती है।

5.     सांस्कृतिक और सामाजिक कारक: पारंपरिक मान्यताएं और सामाजिक मानदंड महिलाओं की मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे आवश्यक देखभाल में नहीं हो पाती है।

 

भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) कम करने की रणनीतियाँ:

  • सामुदायिक एकीकरण को बढ़ावा देना: स्वास्थ्य सेवा असमानताओं की पहचान और समाधान हेतु सामुदायिक एकीकरण को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। स्वास्थ्य शिक्षा को सशक्त बनाकर तथा गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग स्थापित करके, सरकार वंचित जनसंख्या तक प्रभावी रूप से पहुँच बना सकती है। इसके लिए, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) का उपयोग करते हुए स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सशक्त किया जा सकता है, ताकि वे महिलाओं को उपलब्ध सेवाओं के प्रति जागरूक कर सकें। यह जमीनी स्तर का दृष्टिकोण केवल विश्वास निर्माण में सहायक है, बल्कि आवश्यक मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में भी महत्वपूर्ण सुधार लाता है। इस प्रकार, सामुदायिक एकीकरण मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के सशक्तीकरण में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • मातृ मानसिक स्वास्थ्य से निपटना: मातृ मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर उपेक्षित किया जाता है, जबकि यह समग्र मातृ और शिशु कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मातृ मानसिक स्वास्थ्य को राष्ट्रीय नीतियों में समाहित करना प्रसवपूर्व अवसाद जैसे जटिल मुद्दों का समाधान करने में सहायक हो सकता है। गर्भावस्था और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने वाले लक्षित कार्यक्रमों का विकास यह सुनिश्चित करेगा कि महिलाओं को समग्र और प्रभावी देखभाल प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और समाधान करने के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है, जिससे माताओं को उपलब्ध सहायता का स्तर और बढ़ाया जा सके।
  • प्रौद्योगिकी बाधाओं को संबोधित करना: प्रौद्योगिकी बाधाओं को दूर करना मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और गुणवत्ता में सुधार के लिए अनिवार्य है, विशेषकर संसाधन-संकटग्रस्त क्षेत्रों में। डिजिटल स्वास्थ्य पहलों, जैसे टेलीमेडिसिन और मोबाइल स्वास्थ्य अनुप्रयोगों, का कार्यान्वयन गर्भवती महिलाओं को दूरस्थ परामर्श और आवश्यक शैक्षिक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। यह प्रणाली इस प्रकार संरचित की जा सकती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को तात्कालिक और सटीक स्वास्थ्य जानकारी प्राप्त हो, जिससे उनके स्वास्थ्य परिणामों में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक हो। इसके साथ ही, उपयोगकर्ता के अनुकूल प्लेटफार्मों का विकास तकनीकी कंपनियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके किया जा सकता है।

 

निष्कर्ष:

मातृ स्वास्थ्य और परिवार नियोजन में भारत के नेतृत्व को यूएनएफपीए द्वारा मान्यता मिलना महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में देश की महत्वपूर्ण प्रगति का प्रमाण है। 2000 से 2020 के बीच मातृ मृत्यु दर में 70% की प्रभावशाली कमी लक्षित स्वास्थ्य नीतियों और सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना एवं प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसी पहलों की प्रभावशीलता को दर्शाती है। यह प्रगति केवल भारत को 2030 तक 70 से नीचे एमएमआर के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के करीब ले जाती है, बल्कि भारत सरकार और यूएनएफपीए जैसे अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के बीच सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करती है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

मातृ मृत्यु दर को कम करने में प्रजनन अधिकारों और परिवार नियोजन सेवाओं के महत्व पर चर्चा करें। प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा क्या पहल की गई है?

स्रोत: PIB, यूएनएफपीए