सन्दर्भ :
भारत का परिवहन क्षेत्र, देश के कुल कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन में लगभग 13% का योगदान देता है। मोटर वाहनों की बढ़ती मांग, जो वर्ष 2020 में 60 मिलियन थी और 2050 तक 262 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है, उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि करेगी। इसके अतिरिक्त, भारत में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण, जिसमें 2031 तक शहरी आबादी के 590 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, से वाहनों की मांग और कार्बन उत्सर्जन दोनों में वृद्धि होगी। वर्तमान में, परिवहन क्षेत्र से CO₂ उत्सर्जन में सालाना लगभग 6% की वृद्धि का अनुमान है। ऐसे में, इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए त्वरित और प्रभावी उपाय आवश्यक हैं। इस दिशा में, FAME (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles) जैसी नीतियों के तहत, स्वच्छ ऊर्जा आधारित वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का विकास तेज़ हुआ है। हालांकि, डीकार्बोनाइजेशन की एक समग्र रणनीति के लिए केवल EV ही पर्याप्त नहीं है। इसमें हाइड्रोजन, जैव ईंधन और संपीड़ित बायोगैस जैसे वैकल्पिक ईंधनों को भी शामिल करना होगा, साथ ही कड़े नियामक उपायों को लागू करना आवश्यक होगा।
कार्बन उत्सर्जन को कम करने में वैकल्पिक ईंधन की भूमिका:
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और हाइड्रोजन:
● भारत सरकार ने FAME जैसी सहायक नीतियों के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को अपनाने को बढ़ावा दिया है, जिससे EV की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जैसे-जैसे देश में ऊर्जा उत्पादन स्वच्छ स्रोतों की ओर बढ़ रहा है, इलेक्ट्रिक वाहन परिवहन क्षेत्र से जुड़े उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
● इसके साथ ही, हाइड्रोजन, विशेष रूप से ग्रीन हाइड्रोजन, एक व्यवहार्य और दीर्घकालिक वैकल्पिक ईंधन के रूप में उभर रहा है। भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, हाइड्रोजन उत्पादन को प्राथमिकता देने, जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और टिकाऊ परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
जैव ईंधन: इथेनॉल, बायोडीजल और संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी)
इथेनॉल सम्मिश्रण
o इथेनॉल, बायोडीजल और संपीड़ित बायोगैस (CBG) जैसे जैव ईंधन, उत्सर्जन में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत के इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (Ethanol Blending Programme) का लक्ष्य अक्टूबर 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण (E20) प्राप्त करना है। वर्ष 2022-23 के दौरान, भारत की 17 बिलियन लीटर की इथेनॉल-मिश्रण क्षमता ने लगभग 10.8 मिलियन मीट्रिक टन शुद्ध CO₂ उत्सर्जन को कम किया, साथ ही 243 बिलियन रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा बचत करते हुए पेट्रोलियम आयात निर्भरता को भी घटाया।
o तेल विपणन कंपनियों (OMCs) — जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) ने 2022-24 के बीच इथेनॉल मिश्रण में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे 30 सितंबर 2024 तक लगभग 1,086.55 बिलियन रुपये की विदेशी मुद्रा बचत हुई।
o हालांकि, इथेनॉल अपनाने (Ethanol Adoption) की नीति और प्रभाव का मूल्यांकन अभी जारी है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) और भारतीय औद्योगिक उत्पादकता संस्थान (IIP), इथेनॉल मिश्रण स्तरों का सतत अध्ययन कर रहे हैं ताकि प्रभावी डीकार्बोनाइजेशन (Decarbonization) के लिए स्पष्ट रणनीति बनाई जा सके। वर्तमान CAFE मानदंडों में इथेनॉल मिश्रण से जुड़े 'अवमूल्यन कारक' (Degradation Factor Table) स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं, जिससे उत्सर्जन में कमी संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होती है।
संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी):
o संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) की तुलना में इसकी उच्च नकारात्मक कार्बन तीव्रता के बावजूद, नियामक ढांचे में सीबीजी का कम उपयोग किया जाता है । इसकी क्षमता को पहचानते हुए , राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) ने हाल ही में वित्तीय वर्ष 2025-26 से CNG और पाइप्ड प्राकृतिक गैस (PNG) में CBG के चरणबद्ध सम्मिश्रण को अनिवार्य करने की स्वीकृति दी है। इसके बावजूद, प्रस्तावित CAFE III और CAFE IV मानदंडों में CBG का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, जिससे भारत की डीकार्बोनाइजेशन रणनीति में इसकी भूमिका सीमित हो रही है।
डीजल में बायोब्यूटेनॉल का सम्मिश्रण:
● प्रस्तावित मानदंड डीज़ल में बायोब्यूटेनॉल मिश्रण को शामिल करने पर विचार करने में असफल रहे हैं, जबकि यह उपाय कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसी प्रकार, हाइड्रोजन-आधारित आंतरिक दहन इंजन की संभावनाओं पर भी अभी तक गंभीरता से कार्य नहीं हुआ है, जबकि यह तकनीक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन (NHM) के तहत 2030 तक प्रतिवर्ष 5 MMT ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लक्ष्य के साथ पूरी तरह मेल खाती है। यदि इसे प्रभावी रूप से अपनाया जाए, तो यह प्रति वर्ष लगभग 50 MMT CO₂ उत्सर्जन में कटौती करने की क्षमता रखता है।
कॉर्पोरेट औसत ईंधन अर्थव्यवस्था (CAFE) मानदंड:
o CAFE मानदंड (Corporate Average Fuel Economy Standards) मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) के लिए अनिवार्य दिशानिर्देश हैं, जो उनके बेड़े में औसत CO₂ उत्सर्जन सीमा तय करते हैं। इसका उद्देश्य ऊर्जा-कुशल और कम प्रदूषणकारी वाहनों को प्रोत्साहित करना है।
o ये मानदंड सबसे पहले 2017-18 में चरण I के रूप में लागू किए गए थे, जबकि अप्रैल 2022 में अधिक सख्त चरण II मानक लागू किए गए।
o शुरुआत में यह मानदंड केवल यात्री कारों पर लागू थे, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ाकर इसमें भारी वाहन, हल्के वाहन और वाणिज्यिक वाहन भी शामिल कर लिए गए हैं।
सुपर क्रेडिट और CO₂ कमी कारक:
● सुपर क्रेडिट का उद्देश्य निम्न-उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों (Low-Emission Technologies) को अपनाने के लिए वाहन निर्माताओं (OEMs) को प्रोत्साहित करना है:
● ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV) को 3 का गुणक दिया जाता है (CAFE III और IV के तहत इसे बढ़ाकर 5 करने का प्रस्ताव है)। गुणक विशेष रूप से उन तकनीकों या उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए होता है, जो किसी नीति के लिए फायदेमंद हैं, जैसे - ग्रीन वाहन।
o बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV) को 3 का गुणक दिया जाता है (जिसे बढ़ाकर 4 करने का प्रस्ताव है)।
o प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (PHEV) को 2.5 का गुणक प्राप्त होता है।
o हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV) को 2 का गुणक प्राप्त होता है।
CO₂ कारकों में पुनर्योजी ब्रेकिंग, स्टार्ट-स्टॉप सिस्टम और उन्नत ट्रांसमिशन प्रौद्योगिकियों के लिए 0.98 गुणक शामिल है, जो स्वच्छ परिवहन समाधानों को प्रोत्साहित करता है ।
भावी CAFE मानदंड (CAFE III और IV):
o CAFE III (2027-2032) का लक्ष्य वाहनों के औसत CO₂ उत्सर्जन को 91.7 ग्राम/किमी तक लाना है।
o CAFE IV (2033-2037) का लक्ष्य इसे और घटाकर 70 ग्राम/किमी करना है।
हालांकि, ये मानदंड मुख्य रूप से BEVs और FCEVs को प्राथमिकता देते हैं, जबकि जैव ईंधनों की भूमिका को अपेक्षाकृत कम करके आंका गया है, जिससे इन मानकों की समग्र प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
नीतिगत सिफारिशें और आगे की राह:
ई.वी. से परे CAFE मानदंडों का विस्तार
o CAFE मानदंडों को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय , सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा संचालित जैव ईंधन नीतियों के साथ समन्वित किया जाना चाहिए।
o सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाकर, केवल EV-केंद्रित रणनीति की तुलना में कार्बन न्यूनीकरण अधिक प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया जा सकेगा
ईंधन तुलना के लिए जीवन चक्र मूल्यांकन (एलसीए) को शामिल करना:
o सीएएफई मानदंडों में ईंधनों का सम्पूर्ण जीवन चक्र (Production to Disposal) के आधार पर मूल्यांकन करने के लिए LCA फ्रेमवर्क लागू किया जाना चाहिए।
o पूर्णतः इलेक्ट्रिक परिवहन की व्यवहारिक चुनौतियों को देखते हुए, हाइब्रिड वाहन, इथेनॉल आधारित हाइब्रिड वाहन और फ्लेक्स फ्यूल वाहन (FFV) को भी व्यवहारिक एवं टिकाऊ विकल्प के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
हरित ईंधन के विविधीकरण को प्रोत्साहित करना:
o CAFE III के तहत, 20% इथेनॉल मिश्रण वाले पेट्रोल वाहनों के लिए 14.3% का बायोजेनिक कारक और FFV के लिए 22.2% का बायोजेनिक कारक लागू किया जाना चाहिए।
o फ्लेक्स फ्यूल वाहन (एफएफवी)-स्ट्रॉन्ग एचईवी और एफएफवी-पीएचईवी के लिए भी नीतिगत प्रोत्साहन लागू किए जाएं, जोकि वर्तमान में बीईवी और एफसीईवी को मिल रहे प्रोत्साहनों के समान हों।
वैकल्पिक हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को मान्यता:
o आंतरिक दहन इंजनों में उपयोग के लिए नीले और हरे हाइड्रोजन को CAFE मानदंडों में शामिल किया जाना चाहिए।
नवाचारों को प्रोत्साहित करना:
o सौर रूफ इंटीग्रेशन, सिलेंडर डीएक्टिवेशन और फ्लेक्स-फ्यूल इंजन जैसी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाए।
o अमेरिका के CAFE मानक, दोहरे ईंधन (Dual-Fuel) और वैकल्पिक ईंधन वाले वाहनों को प्रोत्साहन देते हैं—भारत को भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
निष्कर्ष:
CAFE मानदंडों का गहन पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है ताकि जैव ईंधन, हाइब्रिड तकनीक, और वैकल्पिक ईंधन को भी EV के समान प्राथमिकता दी जा सके। एक समग्र दृष्टिकोण जो विभिन्न डीकार्बोनाइजेशन मार्गों को एकीकृत करता है, वह न केवल भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायक होगा, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास, और पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित करेगा।
मुख्य प्रश्न: परिवहन क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के भारत के प्रयासों में जैव ईंधन, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) जैसे वैकल्पिक ईंधन की भूमिका पर चर्चा करें। |