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Daily-current-affairs / 05 Jun 2024

जलवायु-प्रतिरोधी खाद्य प्रणालियों का निर्माण : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

  • हालिया कई अध्ययनों में यह स्पष्ट हो गया है, कि वर्तमान वैश्विक खाद्य प्रणालियों में तत्काल व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के खाद्य उत्पादन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके। यह जलवायु अनुकूलन क्षमता में सुधार, स्थिरता सुनिश्चित करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए खाद्य संसाधन सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है, विशेषकर विकासशील देशों में जहां पोषण संबंधी कमियां आम हैं और कृषि मुख्यतः वर्षा आधारित है। अतः ऐसे में प्रभावी रणनीतियाँ और कार्यप्रणालियाँ कार्यान्वित करना आवश्यक हैं।

जलवायु परिवर्तन के तहत खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन

  • स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाना : स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाना जलवायु-सहनीय खाद्य प्रणालियों के विकास के लिए एक प्रमुख रणनीति मानी जाती है। इस दृष्टिकोण में फसल चक्र, बहुसंस्कृति (पॉलीकल्चर) और अवशेषी फसल जैसी तकनीकें शामिल हैं, जो मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करती हैं, साथ ही कीटों एवं रोगों के प्रति संवेदनशीलता को कम करती हैं। कृषि पारिस्थिकी (एग्रोइकोलॉजी), पारिस्थितिकीय सिद्धांतों को उन कृषि प्रथाओं में शामिल करती है, जिससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार का कृषि संरक्षण निरंतर मृदा आवरण बनाए रखने, मृदा क्षरण को कम करने और पौधों की प्रजातियों में विविधता लाने पर बल देती है। एक अध्ययन के अनुसार, संरक्षित कृषि मिट्टी की संरचना को मजबूत करती है, जल धारण क्षमता में सुधार करती है और जलवायु चरम सीमाओं के प्रति लचीलापन बढ़ाती है। जैविक खेती, कृत्रिम अनुप्रयोगों से स्वयं को बचाकर प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करती है। यह मिट्टी की उर्वरता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का भी समर्थन करती है, जिससे यह जलवायु अनुकूलन के लिए एक स्थायी विकल्प बन जाता है।
  • फसलों और पशु-पालन (पशुधन) में विविधता लाना: कृषि में लचीलापन बढ़ाने के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण रणनीति है: फसलों और पशुधन में विविधता लाना जलवायु परिवर्तन फसल कीटों और रोगों के पैटर्न को बदल सकता है, जिससे एकल फसल (मोनोकल्चर) वाली खेती विशेष रूप से संवेदनशील हो जाती है। विविध कृषि प्रणालियाँ, जिनमें विभिन्न प्रकार की फसलें और पशुधन की नस्लें शामिल होती हैं, इन जोखिमों को कम करने में मदद करती हैं। कई प्रमाण बताते हैं कि फसल विविधीकरण फसल की पूरी तरह से बर्बादी के जोखिम को कम करता है और कुल मिलाकर कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है। इसके लिए जलवायु-सहनीय फसल किस्मों और विविधतापूर्ण पशुधन नस्लों की क्षमता के दोहन को शामिल किया जाना आवश्यक है। ये किस्में और नस्लें गर्मी, सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम स्थितियों को सहन करने के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित हैं। उप-सहारा अफ्रीका का एक अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है, कि विविध कृषि प्रणालियाँ बदलती जलवायु परिस्थितियों में उत्पादकता बनाए रखने में मदद करती हैं, जिससे खाद्य आपूर्ति स्थिर रहती है।
  • जल प्रबंधन में दक्षता: जलवायु अनुकूलन के लिए जल प्रबंधन में दक्षता होना एक महत्वपूर्ण कारक है। ड्रिप सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई विधियों को अपनाने से, जो पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाती है, पानी की बर्बादी को कीं कर सकती है। इसके अतिरिक्त, वर्षा जल संचयन भी एक प्रभावी प्रयोग है, जो शुष्क अवधि के दौरान उपयोग के लिए वर्षा जल को एकत्र और संग्रहीत करता है।
  • जलवायु-समर्थ तकनीकों का उपयोग: नवीनतम कृषि प्रथाओं को आधुनिक बनाने और उनमें लचीलापन बढ़ाने के लिए जलवायु-समर्थ तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है। सटीक कृषि, सुदूर संवेदन और डेटा विश्लेषण किसानों को सूचित निर्णय लेने, संसाधन उपयोग को अनुकूलित करने और उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम बनाते हैं। मोबाइल एप्लिकेशन और डिजिटल उपकरण वास्तविक समय के मौसम पूर्वानुमान, कीट अलर्ट और सर्वोत्तम प्रथाओं की सिफारिशें प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बनाने में मदद मिलती है। इसके आलावा सटीक कृषि पद्धति फसल स्वास्थ्य, मिट्टी की स्थिति और मौसम के पैटर्न की निगरानी के लिए जीपीएस और सेंसरों का उपयोग करती है। इसके प्रयोग से किसान पानी, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे इनपुट का अधिक कुशलता से उपयोग कर सकते हैं, फसल बर्बादी को रोक सकते हैं और पैदावार बढ़ा सकते हैं। सुदूर संवेदन तकनीकें, जैसे उपग्रह इमेजरी, बड़े क्षेत्रों की निगरानी, जोखिमो एवं अन्य  संकेतों की शीघ्र पहचान कर संभावित नुकसान को कम करने में सहायता कर सकती हैं।

सामाजिक और आर्थिक लचीलापन बढ़ाना:

  • समुदायों के लचीलेपन का निर्माण : खाद्य प्रणालियों के जलवायु अनुकूलन हेतु कृषक समुदायों और संवेदनशील आबादी के बीच सामाजिक और आर्थिक लचीलापन बढ़ाना आवश्यक है। इसमें जलवायु सूचना और पूर्व चेतावनी प्रणालियों तक पहुंच प्रदान करना, बाजार तक पहुंच और मूल्य श्रृंखलाओं में सुधार करना, साथ ही किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल और बीमा योजनाओं को लागू करना इत्यादि सभी शामिल है। स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना जलवायु अनुकूलन क्षमता निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व हैं।
  • सामुदायिक ज्ञान को मान्यता देना और उसे औपचारिक रूप देना: भूमि को पुनर्जीवित करने या वनीकरण के लिए स्थानीय समुदायों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जो अनुकूलन प्रबंधन प्रथाओं का प्रबंधन और निरीक्षण कर सकते हैं। सामुदायिक ज्ञान प्रणालियों तथा वन प्रबंधन के प्रयासों को मान्यता देना और उन्हें औपचारिक रूप देना आवश्यक है। किसान-प्रबंधित प्राकृतिक पुनर्जनन (एफएमएनआर) प्रणालियों, जहां स्थानीय समुदाय प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित होने वाले पेड़ों की रक्षा और प्रबंधन करते हैं; ने कई राज्यों में महत्वपूर्ण आर्थिकी और पारिस्थितिकी तंत्र लाभ का प्रदर्शन किया है।

खाद्य प्रणालियों में नवाचार:

  • परंपरागत अनुकूलन रणनीतियों के अलावा, जलवायु अनुकूलन के लिए खाद्य प्रणालियों के तंत्रगत सुधार हेतु नवाचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बदलती जलवायु परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए जलवायु-सहनीय फसल किस्मों, जैव-सुदृढ़ीकरण, सतत एवं स्थायी जलीय कृषि और वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास अनिवार्य हैं। डिजिटल कृषि, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी और डेटा विश्लेषण में प्रगति भी खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में लचीलापन और पारदर्शिता को सुधारने के नए अवसर प्रदान करती है।

प्रभावी नीति और शासन ढाँचा:

  • जलवायु-सहनीयता खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन को संचालित करने के लिए प्रभावी नीति और शासन ढाँचे आवश्यक हैं। कृषि नीतियों में जलवायु परिवर्तन के विचारों को एकीकृत करना, स्थायी और दीर्घकालिक  भूमि उपयोग योजना को बढ़ावा देना, सब्सिडी और प्रोत्साहनों के माध्यम से जलवायु-समर्थित प्रथाओं को प्रोत्साहित करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना आदि लाभकारी नीतियाँ हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त समग्र और समावेशी रणनीतियों को लागू करने के लिए सरकारों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग का होना भी महत्वपूर्ण है।

चुनौतियाँ और अवसर:

  • खाद्य प्रणालियों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाना आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने और सतत विकास को प्राप्त करने के लिए आज के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौती है। इसमें लघु एवं सीमांत किसानों के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच, हितधारकों के बीच जागरूकता और क्षमता की कमी, भूमि उपयोग की प्राथमिकताओं में टकराव और राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नीतिगत अंतराल शामिल हैं। हालांकि, ये चुनौतियां टिकाऊ कृषि और खाद्य प्रणालियों में नवाचार, सहयोग और निवेश के अवसर भी प्रस्तुत करती हैं।

निष्कर्ष:

  • हालांकि वर्तमान खाद्य प्रणालियों को जलवायु-सहनीय बनाना जटिल है, तथापि जलवायु परिवर्तन भी अनिवार्य है। इसके लिए अनुकूल कृषि पद्धतियों, तकनीकी नवाचार, सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण, जैव विविधता संरक्षण और प्रभावी शासन के संयोजन की आवश्यकता है। इन चुनौतियों का सामना करने और अवसरों का लाभ उठाकर, हम ऐसे लचीले खाद्य प्रणालियों का निर्माण कर सकते हैं जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत विकास को बढ़ावा दें।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. फसल चक्र और संरक्षण कृषि जैसी स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाना खाद्य प्रणालियों में जलवायु लचीलापन बढ़ाने में कैसे योगदान दे सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य प्रणालियों को बदलने में जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियां और नवाचार क्या भूमिका निभाते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत- ORF

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