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Daily-current-affairs / 26 Oct 2024

संविधान और उच्च शिक्षा: भारत के भविष्य का मार्गदर्शन-डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था। उस समय भारत की स्थिति बिल्कुल अलग थीलगभग 37 करोड़ की जनसंख्या और 80 प्रतिशत से अधिक अशिक्षित लोग। उस समय महिलाओं के औसतन छह बच्चे होते थे और उच्च शिक्षा केवल विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग तक ही सीमित थी। 1947 में देश में केवल 20 विश्वविद्यालय और लगभग 500 कॉलेज थे, जिनमें 2.5 लाख छात्र और 20,000 शिक्षक कार्यरत थे।

·        वर्तमान समय में, भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में लंबी दूरी तय की है। 40 मिलियन से अधिक छात्र उच्च शिक्षा में दाखिला लेते हैं और 1.5 मिलियन से अधिक शिक्षक इस क्षेत्र से जुड़े हैं। आज, भारत में 1,100 से अधिक विश्वविद्यालय और लगभग 50,000 कॉलेज हैं। उच्च शिक्षा अब केवल एक विशेष वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यापक रूप से उपलब्ध हो गई है। इसके साथ ही, भारत की जनसंख्या में भी बड़ा बदलाव आया है। देश की 47 प्रतिशत जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और इन लोगों का एक बड़ा हिस्सा उदारीकरण के बाद पैदा हुआ है। इन बदलावों के बीच, भारतीय विश्वविद्यालयों ने समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

 

भारत में उच्च शिक्षा की चुनौतियाँ:

हालांकि उच्च शिक्षा ने बहुत प्रगति की है, फिर भी भारत की शिक्षा प्रणाली कुछ गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।

1.     शिक्षा की गुणवत्ता: वर्तमान में शिक्षा का अधिकांश ध्यान विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, और चिकित्सा (STEM) विषयों पर केंद्रित है। जबकि ये विषय आवश्यक हैं, समाज के समग्र विकास और मानवीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए केवल STEM पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।

2.     संविधान की जागरूकता का अभाव: कई स्कूल और विश्वविद्यालय संविधान के महत्व और उसके मूल्यों को नहीं सिखाते। जबकि यह राष्ट्र निर्माण और सामाजिक परिवर्तन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

3.     विविधता और समावेशन की कमी: संविधान भले ही समानता को बढ़ावा देता है, लेकिन उच्च शिक्षा प्रणाली में विविधता के अनुभवों को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थी संवेदनशील और जागरूक नागरिक बन सकें।

 

संविधान का अध्ययन: समय की मांग:

जैसे-जैसे भारत संविधान के 75वें वर्ष की ओर बढ़ रहा है, यह आवश्यक हो गया है कि हमारे स्कूल और विश्वविद्यालय संविधान का अध्ययन प्राथमिकता से करवाएं। संविधान केवल भारत की कानूनी संरचना का आधार है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता, और मानवाधिकारों की रक्षा का प्रमुख स्तंभ भी है। इसके अध्ययन से छात्रों में राष्ट्रीय चेतना का निर्माण होता है और उन्हें भारत की विविधता और एकता को समझने का अवसर मिलता है।

संविधान के अध्ययन की 5 मुख्य वजहें:

1.    सामूहिक चेतना का निर्माण: संविधान भारतीय समाज के बीच सामूहिक चेतना का निर्माण करता है। भारत जैसे देश में, जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत विविध है, संविधान का अध्ययन समाज के प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने में सहायक होता है। विश्वविद्यालयों को यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए कि वे इस सामूहिक चेतना को मजबूत करें और एक प्रगतिशील समाज का निर्माण करें।

2.     पहचान निर्माण का ढांचा: संविधान ने भारतीय पहचान का निर्माण किया है, जो विविधताओं में एकता को प्रोत्साहित करता है। इसके विभिन्न प्रावधान अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। विश्वविद्यालय इसके माध्यम से छात्रों में "संवैधानिक देशभक्ति" को बढ़ावा दे सकते हैं, जो समानता, स्वतंत्रता, और मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देती है।

3.     विविधता का उत्सव: संविधान के अनुच्छेद विशेष रूप से समानता और भेदभाव-रोधी प्रावधानों पर जोर देते हैं। विश्वविद्यालयों को ऐसी विविधता को बढ़ावा देना चाहिए जो संवेदनशील और शिक्षित नागरिकों का निर्माण करे। संविधान का अध्ययन छात्रों को विविधता के विभिन्न अनुभवों से परिचित कराता है और उन्हें एक समावेशी समाज का हिस्सा बनाता है।

4.     सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण का साधन: संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को समाप्त कर सामाजिक असमानता के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। विश्वविद्यालयों में संविधान का अध्ययन छात्रों को यह समझने में मदद करेगा कि स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के मूल्यों को अपनाकर वे समाज में कैसे योगदान दे सकते हैं।

5.     सामाजिक न्याय का आधार: संविधान का हर प्रावधान सामाजिक न्याय की दिशा में केंद्रित है। विश्वविद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पाठ्यक्रम में संविधान के अध्ययन को प्राथमिकता दी जाए, ताकि युवा पीढ़ी समतावादी समाज के निर्माण में अपनी भूमिका को पहचान सके और उसे अपना सके।

 

निष्कर्ष:
संविधान के 75वें वर्ष के अवसर पर, भारत के विश्वविद्यालयों को इस महान दस्तावेज के सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। संविधान का अध्ययन केवल कानून की जानकारी देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह छात्रों को अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी, संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक परिवर्तन के प्रति समर्पण की भावना विकसित करने में मदद करता है। विश्वविद्यालयों को इस दिशा में विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि देश के भविष्य को और अधिक उज्जवल बनाया जा सके।

 

 

यूपीएससी नोट्स:

 

  • संविधान और शिक्षा: 1949 में अपनाया गया भारतीय संविधान समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज उच्च शिक्षा 40 मिलियन से अधिक छात्रों और 1,100 से अधिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से व्यापक रूप से उपलब्ध है।
  •  संविधान की जागरूकता का महत्व: शिक्षा में संवैधानिक मूल्यों पर जोर नहीं दिया जाता। विश्वविद्यालयों को संविधान की शिक्षा देनी चाहिए ताकि राष्ट्रीय पहचान, सामाजिक न्याय और सामूहिक चेतना का निर्माण हो सके।
  • शिक्षा में चुनौतियाँ: भारतीय उच्च शिक्षा में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा) विषयों पर अत्यधिक ध्यान, संवैधानिक जागरूकता की कमी और विविधता के समावेशन में कमियाँ प्रमुख समस्याएँ हैं।
  • संविधान के अध्ययन के लाभ: संविधान का अध्ययन छात्रों को सामूहिक चेतना, राष्ट्रीय पहचान, विविधता का उत्सव, नागरिक सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  •  शिक्षा के माध्यम से सामाजिक सशक्तिकरण: विश्वविद्यालय संविधान में निहित समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को सुदृढ़ कर सकते हैं, जिससे एक सामाजिक रूप से जागरूक और सशक्त नागरिकता का निर्माण होता है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

विविधता, समावेश और संवैधानिक जागरूकता के संदर्भ में भारत की उच्च शिक्षा के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें।