संदर्भ:
- वर्तमान में तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है, भारत इस प्राचीन बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। भारत के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा टीबी को खत्म करने के लिए किए गए ठोस प्रयासों और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, इस दिशा में प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है, और लाखों लोगों को अभी भी गुणवत्तापूर्ण देखभाल की कमी के कारण इसका दंश भुगतना पड़ रहा है। अतः इसके आदर्श बदलाव की तत्काल आवश्यकता है, जो टीबी से प्रभावित व्यक्तियों और उनके अनुभवों को इस बीमारी से निपटने के प्रयासों में अग्रणी रख सके ।
मानव-केंद्रित क्षय रोग देखभाल का मूल: जीवंत अनुभवों को स्वीकार करना
- क्षय रोग (टीबी) नियंत्रण हेतु आवश्यक बदलाव के केंद्र में, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के तहत क्षय रोग रोगियों और प्रभावित समुदायों की आवश्यकताओं एवं अभिरुचियों को प्राथमिकता देना, मौलिक रूप से महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, टीबी से प्रभावित लोगों के प्रत्यक्ष अनुभवों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी विशिष्ट चुनौतियों और अपेक्षाओं को समझने में कठिनाई होती है। इस उपेक्षा के कारण टीबी का अत्यधिक चिकित्सीकरण हुआ है, साथ ही इसके व्यापक मानवीय, लैंगिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट के रूप में इसके व्यापक प्रभावों की भी अनदेखी की गई है।
- हाल के वर्षों में, क्षय रोग से स्वस्थ होने वाले व्यक्तियों और प्रभावित समुदायों के समुचित प्रयासों के कारण, उपर्युक्त व्यवधानों को स्वीकार करने और उन्हें दूर करने की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव आया है। उन सबने स्वास्थ्य समाधान हेतु नीतिगत बदलाव और दृष्टिकोणों में संशोधन को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, ताकि क्षय रोग से प्रभावित लोगों की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा किया जा सके। यद्यपि पोषण सहायता प्रदान करना और टीबी देखभाल में लैंगिक असमानताओं दूर करना एक सकारात्मक प्रयास हैं, लेकिन नीतिगत पहलों और जमीनी हकीकतों के बीच की खाई को समाप्त करने के लिए और अधिक निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
नीतिगत पहलों को कार्यरूप देना:
- उच्च-गुणवत्ता सहित रोगी-केंद्रित क्षय रोग देखभाल प्रदान करने के लिए, भारत को निदान और उपचार तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से लक्षित हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसमें विशेष रूप से ग्रामीण और उपेक्षित क्षेत्रों में क्षय रोग परीक्षण सुविधाओं की सीमा में विस्तार करना तथा निःशुल्क, किफायती और गुणवत्ता-आश्वासित क्षय रोग दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है। आणविक परीक्षण, जिसे क्षय रोग देखभाल के लिए मुख्य मानक माना जाता है, अधिकांश क्षय रोग लक्षण वाले रोगियों के लिए दुर्लभ है, जो क्षय रोग निदान सेवाओं में सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करके, लैंगिक आधार वाले संवेदनशील दृष्टिकोणों को लागू कर टीबी देखभाल को और अधिक मानवीय बनाने वाले प्रयासों को केंद्रित किया जाना चाहिए। सामुदाय-आधारित क्षय रोग देखभाल मॉडल को सुदृढ़ करना और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को रोगियों के लिए व्यापक देखभाल प्रदान करने हेतु सशक्त बनाना इस दिशा में आवश्यक प्रयास हैं। इस दिशा में क्षय रोग से जुड़े भेदभाव और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का मुकाबला करने के साथ-साथ उपचार के दुष्प्रभावों को दूर करने के महत्व को रेखांकित करना आवश्यक है।
सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करनाः टीबी नियंत्रण के लिए एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण
- टीबी; समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करता है, जिससे मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानताएं बढ़ जाती हैं। इससे निपटने के लिए, गरीबी, कुपोषण, अपर्याप्त आवास और वायु गुणवत्ता को संबोधित करने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण आवश्यक है। हालिया शोध से पता चला है कि पोषण पूरकता टीबी की घटनाओं को काफी हद तक कम कर सकती है, विशेष रूप से टीबी रोगियों के घरेलू संपर्कों के बीच। इन अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक निर्धारकों से निपटने से, भारत टीबी उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकता है और समग्र जनसंख्या स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार कर सकता है।
प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोगः टीबी नियंत्रण के आगामी प्रयास:
- प्रौद्योगिकी और नवाचार भारत में टीबी देखभाल प्रयासों को बढ़ाने के लिए आशाजनक रास्ते प्रदान करते हैं। टीबी के निदान, उपचार के पालन और निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों को अपनाना टीबी देखभाल के वितरण और पहुंच में क्रांति ला सकता है। इसके अतिरिक्त, बेहतर टीकों के विकास में निवेश; अंततः इस वायुजनित बीमारी को खत्म कर सकती है। इन प्रगति का दोहन करके, भारत अपने टीबी नियंत्रण प्रयासों को मजबूत कर सकता है और उन्मूलन के लक्ष्य के करीब पहुंच सकता है।
निष्कर्ष:
- टीबी नियंत्रण प्रयासों में व्यक्ति-केंद्रित देखभाल को प्राथमिकता देने की अनिवार्यता हमेशा की तरह आज भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। टीबी रोगियों और प्रभावित समुदायों की जरूरतों और हितों को सबसे आगे रखते हुए, भारत पहुंच की बाधाओं को दूर कर सकता है और उपचार के परिणामों को बढ़ा सकता है। टीबी के सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करना, प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना और एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना टीबी उन्मूलन उद्देश्यों को प्राप्त करने और इसके सभी नागरिकों के लिए एक स्वस्थ भविष्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। यह आवश्यक है कि भारत और वैश्विक समुदाय इस निरंतर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के खिलाफ लड़ाई में टीबी से प्रभावित लोगों के अनुभवों को पहचानते रहें और उन्हें प्राथमिकता देते रहें।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न : 1. भारत में तपेदिक नियंत्रण की चुनौतियों का समाधान करने में व्यक्ति-केंद्रित समाधानों की भूमिका पर चर्चा करें। जाँच करें कि कैसे प्रभावित व्यक्तियों के जीवन के अनुभवों को समझना और उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना टीबी उन्मूलन के लिए अधिक प्रभावी रणनीतियों में योगदान कर सकता है। (10 अंक, 150 शब्द) 2. "तपेदिक के सामाजिक-आर्थिक निर्धारक भारत में रोग नियंत्रण के प्रयासों में महत्वपूर्ण बाधाएं प्रस्तुत करते हैं।" लेख के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण करें, जिसमें टीबी के प्रसार में योगदान देने वाले प्रमुख सामाजिक-आर्थिक कारकों पर प्रकाश डाला गया है और इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण प्रस्तावित किए गए हैं। (15 अंक, 250 शब्द) |
स्रोत: - द हिंदू