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Daily-current-affairs / 03 May 2024

जलवायु परिवर्तन, श्रम सुरक्षा, और नियामक सुधार संबंधी अंतर्विरोध- डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

  • वैश्विक श्रम उत्पादकता, मानव स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के परस्पर प्रभावों का अध्ययन वर्तमान समय की मांग है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) अपनी नवीनतम रिपोर्ट "बदलते वातावरण में कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना" के माध्यम से आर्थिक एवं बुनियादी ढाँचा लचीलापन के साथ-साथ जलवायु अनुकूलित श्रम को अपनाने की आवश्यकता पर बल देता है। यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते कार्य परिवेश के अनुकूलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जो अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्व जनसंख्या का एक तिहाई से अधिक भाग प्रतिवर्ष अत्यधिक गर्मी का सामना करता है, जिसके परिणामस्वरूप कार्य-संबंधित दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है। अतः इस दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।

जलवायु परिवर्तन के संभावित जोखिम:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) जलवायु परिवर्तन के छह प्राथमिक प्रभावों को चिन्हित करता है, जिनमें अत्यधिक गर्मी से लेकर कार्यस्थल वायु प्रदूषण और वेक्टर-जनित रोग भी शामिल हैं। ये खतरे मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप तनाव, ह्रदय-विकार और थकावट जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इस सन्दर्भ में कृषि, निर्माण, स्वच्छता, परिवहन और पर्यटन क्षेत्रों के श्रमिक विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में, जहाँ असंगठित क्षेत्र (गिग अर्थव्यवस्था) का रोजगार बढ़ रहा है, वहीं लगभग 80% कार्यबल गर्मी से जुड़े जोखिमों के प्रति संवेदनशील है। यह आँकड़ा इन चुनौतियों का व्यापक समाधान करने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।
    • कुछ विशिष्ट क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
      • कृषि क्षेत्र: विकासशील देशों में अनौपचारिक कृषि मजदूर जलवायु परिवर्तन के कारण बिगड़ती परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। खाद्य उत्पादन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, कई किसान न्यूनतम मौसम सुरक्षा के साथ काम करते हैं, जिससे उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
      • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र: अनौपचारिकता से ग्रस्त MSME क्षेत्र भारत में एक महत्वपूर्ण नियोक्ता के रूप में कार्यरत है। इसके कारण श्रमिक पर्याप्त निरीक्षण के बिना गर्मी के खतरों के संपर्क में जाते हैं।
      • निर्माण उद्योग: मुख्य रूप से शहरी केंद्रों पर केंद्रित निर्माण उद्योग शहरी गर्मी के प्रभाव और वायु प्रदूषण का सामना करते हैं, जो श्रमिकों के स्वास्थ्य को और अधिक खतरे में डालता है।

कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों पर प्रभाव:

  • भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यस्थल सुरक्षा परिस्थितियों को विनियमित करने हेतु कई केंद्रीय कानून बनाए गए हैं, जिनमें कारखाना अधिनियम, कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम आदि शामिल हैं। हालाँकि, इन कानूनों को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता, 2020 (OSH कोड, 2020) के तहत हाल ही में समेकित करने से ट्रेड यूनियनों के बीच सुरक्षा मानकों को लेकर समस्याएं बढ़ गई हैं। नए कानून के लागू होने में देरी के कारण यद्यपि पुराने नियमों पर निर्भरता बनी हुई है, जिससे श्रमिक-संरक्षण जोखिम की संभावना बनी रहती हैं।
  • वर्तमान में विद्यमान सभी मौजूदा कानून के बावजूद, कार्यस्थल पर ऊष्मता के खतरों से पर्याप्त सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने में चुनौतियां बनी रहती हैं। कारखाना अधिनियम में वर्णित कई दशक पुराने विनियमों की स्पष्टता में कमी है और वे वातानुकूलन जैसी तकनीकी प्रगति को ध्यान में नहीं रखते हैं। इसके अलावा, भारत के अधिकांश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) सरकारी निरीक्षण के दायरे से बाहर काम करते हैं, जो श्रमिकों के लिए जोखिम को और बढ़ा देता है। विनियामक ढांचे को उत्पादन प्रक्रियाओं के विकास के साथ संरेखित करने और थर्मल आराम और श्रमिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों को शामिल करने के लिए तत्काल संशोधनों की आवश्यकता है।

जलवायु खतरों का समाधान:

  • जलवायु खतरों की समस्या को दूर करने के प्रयास में, गर्मी से जुड़े जोखिमों के अलावा अपशिष्ट प्रबंधन और उप-उत्पाद निकालने जैसे मुद्दों को भी शामिल किया जाता है। हिंदुस्तान यूनिलीवर थर्मामीटर संयंत्र विवाद जैसे उदाहरण तापमान-संवेदनशील सामग्रियों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए उचित अपशिष्ट प्रबंधन के महत्व को रेखांकित करते हैं। इसी प्रकार, खनन और उत्खनन जैसे उच्च जोखिम वाले उद्योगों में सिलिका के संपर्क में वृद्धि के कारण होने वाले सिलिकोसिस के मामलों में संभावित वृद्धि, उपर्युक्त सक्रिय उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • अन्य बातों के अलावा कारखाना अधिनियम के तहत मौजूदा विनियम सिलिका के संपर्क को रोकने के उपायों को अपर्याप्त रूप से संबोधित करते हैं, जो श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अद्यतन मानकों की आवश्यकता को दर्शाता है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियां बनी रहती हैं, जिनमें कर्मचारियों की कमी और नौकरशाही दबाव शामिल हैं। निरीक्षकों की दक्षता और विशेष निरीक्षण करने की उनकी क्षमता सुरक्षा नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, नियामक निकायों पर निजी क्षेत्र के हितों के प्रभाव से निष्पक्ष निरीक्षण और जवाबदेही की सुनिश्चितता को रेखांकित करता है।

निष्कर्ष:

  • श्रम, जलवायु परिवर्तन और कार्यस्थल सुरक्षा के बीच का संबंध तत्काल ध्यान और ठोस कार्रवाई की मांग करता है। जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती जा रही है, वैसे-वैसे गर्मी से जुड़े खतरों, वायु प्रदूषण और अन्य जलवायु प्रभावों से जुड़े जोखिम बढ़ते जा रहे हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए केवल विनियामक सुधार की आवश्यकता है, बल्कि मजबूत प्रवर्तन तंत्र और श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सक्रिय उपायों की भी आवश्यकता है। सरकार और नियोक्ता श्रम के जलवायु अनुकूलन को प्राथमिकता देकर और सर्वमान्य विनियामक ढांचे को अपनाकर जोखिमों को कम कर सकते हैं, श्रमिकों के कल्याण की रक्षा कर सकते हैं और गर्म होती पृथ्वी के सामने लचीलापन बना सकते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में श्रम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियामक ढांचे को अद्यतन करने के महत्व पर चर्चा करें। गर्मी से संबंधित खतरों से निपटने में मौजूदा कानूनों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें और भारत में श्रमिक सुरक्षा बढ़ाने के उपाय प्रस्तावित करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा पहचाने गए खतरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, श्रम उत्पादकता और मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों का विश्लेषण करें। भारत के औद्योगिक संदर्भ से उदाहरण लेते हुए, इन चुनौतियों से निपटने में नियामक निकायों और प्रवर्तन तंत्र की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: – The Hindu

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