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Daily-current-affairs / 19 Jul 2022

मिजोरम में चिन शरणार्थी - समसामयिकी लेख

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कीवर्ड्स : सैन्य शासन, म्यांमार, संसदीय लोकतंत्र, भारत म्यांमार सीमा, मिजोरम, चिन शरणार्थी, गृह मंत्रालय, जातीय संबंध, पारंपरिक रूप से मुक्त आंदोलन, पारस्परिक सहानुभूति और एकजुटता, विदेशी अधिनियम, 1946, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन 1951, गैर-शरणार्थी का सिद्धांत ।

चर्चा में क्यों?

  • पिछले 1 वर्ष में मिजोरम में चिन शरणार्थियों का आगमन निरंतर बढ़ रहा है। इनमे मात्र वही शरणार्थी नहीं हैं जो अपने जीवन रक्षा के उद्देश्य से आये हैं।
  • गृह मंत्रालय (एमएचए) के "शरणार्थियों का पता लगाने और निर्वासित करने" के आदेशों के उपरांत भी मिजोरम राज्य सरकार शरणार्थियों को अनुमति दे रही है, इसमें वे विद्रोही भी शामिल हैं जिन्होंने स्व-निर्वासन में जाने का विकल्प चुना है उदाहरणस्वरूप सशस्त्र बल (पीडीएफ) और चिन डिफेंस फोर्स और चिन नेशनल आर्मी जैसे अन्य विरोधी मिलिशिया दलों के सदस्य ।
  • केंद्र सरकार का दृष्टिकोण जहाँ सुरक्षा-केंद्रित है वहीँ मिजोरम सरकार की म्यांमार से चिन शरणार्थियों के प्रति उदारता जन-केंद्रित नीति को प्रदर्शित कर रही है ।

चिन लोग कौन हैं?

चिन म्यांमार के प्रमुख जातीय समूहों में से एक हैं इनकी अधिकांश जनसँख्या ईसाई हैं।ये भारत और बांग्लादेश की सीमा से लगे पश्चिम म्यांमार में चिन राज्य के निवासी हैं।

चिन शरणार्थी क्यों बने?

बौद्ध-बहुल म्यांमार को अधिकांशतः एक सैन्य शासन (जुंटा ) द्वारा शासित किया गया है। इस सैन्य शासन ने चिन लोगों पर अत्याचार करते हुए उनके दमन के मार्ग को प्रसारित किया है। इसके परिणामस्वरूप कई बार हिंसक नागरिक संघर्ष हुए हैं।

म्यांमार (बर्मा) में सैन्य शासन का इतिहास:

  • 1948 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से म्यांमार कई वर्षों तक सैन्य शासन द्वारा शासित रहा है ।
  • यदयपि बर्मा संघ का आरम्भ संसदीय लोकतंत्र के रूप में हुआ था परन्तु यह प्रतिनिधि लोकतंत्र मात्र 1962 तक चला। 1962 में "जनरल यू ने विन" ने एक सैन्य तख्तापलट के द्वारा बर्मा की सत्ता प्राप्त की तथा अगले छब्बीस वर्षों तक सत्ता पर काबिज रहे।
  • जनरल यू ने विन ने 1974 में एक नया संविधान लाया था, जो प्रकृति में समाजवादी और अलगाववादी था।
  • इसके परिणामस्वरूप देश में आर्थिक गिरावट, व्यापक भ्रष्टाचार, मुद्रा से संबंधित आर्थिक नीति में तेजी से बदलाव और भोजन की कमी हुई।
  • इस समग्र संकट का परिणाम 1988 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और एक सरकारी कार्रवाई के रूप में सामने आया।
  • 1988 की कार्रवाई के बाद, "जनरल यू ने विन" ने त्यागपत्र दे दिया तथा 1989 में, एक नए सैन्य शासन ने देश का नाम बर्मा संघ से म्यांमार संघ में बदल दिया।
  • इस परिवर्तन के लिए तर्क यह है कि बर्मा, बर्मन जातीय बहुमत के प्रति औपनिवेशिक युग के पक्षपात का प्रतीक था तथा म्यांमार प्रकृति में अधिक समावेशी है।
  • 2008 में, सेना द्वारा एक नया संविधान प्रस्तुत किया गया था। यह आज भी यथावत है।
  • 2011 में, सैन्य शासन (जुंटा ) को अचानक भंग कर दिया गया और एक नागरिक संसद की स्थापना की गई।
  • 2015 में म्यांमार ने अपना पहला राष्ट्रव्यापी, बहुदलीय चुनाव आयोजित किया - यह चुनाव म्यांमार के अब तक के इतिहास का सर्वाधिक निष्पक्ष चुनाव माना जाता है ।
  • 2015 में आंग सान सू की म्यांमार की वास्तविक नेता बनीं।
  • फरवरी, 2021 में एक सैन्य तख्तापलट ने इस असैन्य सरकार को उखाड़ फेंका गया। जिसके उपरान्त देश में पुनः विरोध और हिंसा आरम्भ हो गई।

क्या आप जानते हैं?

भारत म्यांमार सीमा:

भारत और म्यांमार की 1,643 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं तथा सीमावर्ती पर दोनों देशो के लोगों के मध्य पारिवारिक संबंध हैं। म्यांमार भारत के चार राज्यों से खुली सीमा साझा करता है।

  • अरुणाचल प्रदेश 520 कि.मी. साझा करता है।
  • नागालैंड से 215 कि.मी.साझा करता है।
  • मणिपुर 398-किमी साझा करता है।
  • मिजोरम 510 साझा करता है।

चिन शरणार्थियों पर केंद्र सरकार और मिजोरम के बीच मुद्दे:

  • 10 मार्च, 2021 को केंद्र सरकार ने चार राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की सरकारों को भारत में प्रवेश करने वाले म्यांमार शरणार्थियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने का निर्देश दिया था।
  • नागरिक समाज द्वारा समर्थित मिजोरम की राज्य सरकार ने न केवल आने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का गर्मजोशी से स्वागत किया है, बल्कि केंद्र सरकार को भी सूचित किया है कि वह म्यांमार से शरणार्थियों की चिंताओं के प्रति "उदासीन" नहीं हो सकती है। यह गृह मंत्रालय (एमएचए) के "शरणार्थियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने" के आदेशों की अवहेलना है।
  • मिजोरम सरकार म्यांमार के उन शरणार्थियों को पहचान प्रमाण पत्र जारी कर रही है जिन्होंने राज्य में शरण ली है।
  • लगभग 22,000 शरणार्थियों के मिजोरम में होने का अनुमान है।

भारत चिन शरणार्थियों को शरण देने से क्यों मना कर रहा है?

  • अप्रवासी "आतंकवादी" समूहों द्वारा भर्ती के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं:
  • मिजोरम में वर्तमान में सभी चिन शरणार्थी मात्रा शरणार्थी नहीं हैं जो अपनी जान बचाने के लिए बस भाग गए हैं बल्कि इनमे कई विद्रोही सम्मिलित हैं , जिन्होंने स्व-निर्वासन में जाने का विकल्प चुना है तथा पीपुल्स डिफेंस आर्म्ड फोर्स (पीडीएफ) और चिन डिफेंस फोर्स और चिन नेशनल आर्मी जैसे अन्य मिलिशिया दलों को समर्थन देना जारी रखा है।
  • भारतीय नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन:
  • वे "न केवल भारतीय नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं बल्कि गंभीर सुरक्षा चुनौतियों को भी उत्पन्न करते हैं।

  • सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याएं :
  • प्रवासियों के आने से सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याएं भी पैदा होती हैं।
  • इसमें सांस्कृतिक मानदंडों, धार्मिक रीति-रिवाजों और सामाजिक समर्थन प्रणालियों की हानि, एक नई संस्कृति के लिए समायोजन तथा स्वयं की पहचान और अवधारणा में परिवर्तन शामिल हैं।

मिजोरम सरकार चिन शरणार्थियों का समर्थन क्यों कर रही है?

  • जातीय संबंध:
  • मिजोरम और मणिपुर के निवासियों ने सीमा पार जातीय संबंधों के कारण केंद्र सरकार का विरोध किया है।
  • दोनों देशो के मिज़ो और चिन समुदाय के लोगों का सामान्य इतिहास है तथा भारत-म्यांमार सीमा के दोनों ओर के लोगों के मध्य सामाजिक-राजनीतिक सम्बन्ध भी हैं ।
  • वे भारत की स्वतंत्रता के पूर्व ये एक मजबूत जातीय बंधन साझा करते थे।
  • परंपरागत रूप से मुक्त आवाजाही:
  • मिजोरम-म्यांमार सीमा खुली हुई है जिनमे दोनों पक्षों के लोग पारंपरिक रूप से स्वतंत्र रूप से अंदर और बाहर जाते रहे हैं।
  • भारत और म्यांमार के बीच 2018 में फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) ने इस प्रथा को विधिक जामा पहनाया है
  • FMR के द्वारा मिज़ो और चिन दोनों को दूसरी तरफ 16 किमी तक जाने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति है।
  • इससे आवाजाही में सहजता हुई है जिसमें बड़ी संख्या में सीमावर्ती लोग नियमित रूप से काम के लिए और रिश्तेदारों से मिलने के लिए दोनों ओर से पार करते हैं।
  • सीमा पार से विवाह तथा आवश्यक वस्तुओं का व्यापार भी सामान्य है।
  • आपसी सहानुभूति और एकजुटता का लंबा इतिहास:
  • मिज़ो और चिनों के बीच परस्पर सहानुभूति और एकजुटता का काफी लंबा इतिहास भी है।
  • 1960 से 1980 के दशक तक, चिन लोगों ने मिजो नेशनल फ्रंट के सदस्यों को खुला समर्थन और शरण दी, जो भारतीय संघ से अलग होने के लिए लड़ रहे थे।
  • इसी प्रकार, जब म्यांमार में 1988 के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के दौरान जुंटा शासन के हाथों चिनों का क्रूर दमन किया गया, तो मिज़ो ने सहायता के लिए हाथ बढ़ाया।

भारत में शरणार्थी नीति:

  • शरणार्थी प्रबंधन पर भारत की कोई नीति नहीं है।
  • शरण चाहने वालों से सम्बंधित मुद्दों को निस्तारित करने के एक समान तथा व्यापक कानून के अभाव में, भारत में शरणार्थी प्रबंधन पर स्पष्ट दृष्टि या नीति का अभाव है।
  • विदेशी अधिनियम, 1946, विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939, पासपोर्ट अधिनियम (1967), प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962, नागरिकता अधिनियम, 1955 (इसके विवादास्पद 2019 संशोधन सहित) और विदेशी आदेश, 1948 क्लब जैसे कानूनों के द्वारा विदेशी व्यक्तियों से सम्बद्ध मामलो को प्रबंधित किया जाता है।
  • भारत ने इस विषय पर न तो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की सदस्यता ली है और न ही शरणार्थियों से सम्बद्ध मुद्दों के निस्तारण हेतु घरेलू विधायी ढांचे की स्थापना की है,
  • पहले भारत तमिल शरणार्थियों से सम्बद्ध मुद्दों को विदेशी न्यायाधिकरण के तदर्थ माध्यम से निस्तारित करता था।
  • भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय 1951 का सदस्य नहीं है।

क्या आप जानते हैं?

गैर-प्रतिशोध का सिद्धांत

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत, गैर-प्रतिशोधन का सिद्धांत गारंटी देता है कि किसी को भी उस देश में वापस नहीं किया जाना चाहिए जहां उन्हें यातना, क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड और अन्य अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन 1951

  • यह जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता, या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न से भाग रहे लोगों को कुछ अधिकार प्रदान करता है।
  • भारत इस अभिसमय का सदस्य नहीं है।
  • यह अभिसमय निर्धारित करता है कि कौन से लोग शरणार्थी के रूप में योग्य नहीं हैं, जैसे युद्ध अपराधी।

आगे की राह :

  • इस इतिहास को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि भारत को वैश्विक मंच पर शरणार्थियों से सम्बद्ध विषयों तथा शरणार्थी अधिकारों के प्रश्न पर एक स्वाभाविक वैश्विक नेतृत्वकर्ता होना चाहिए। हालाँकि वर्तमान कार्यों और कानूनी ढांचे की कमी शरणार्थी समस्याओं के प्रति हमारी विरासत को समर्थन नहीं देती।
  • भारत कई उत्पीड़ित समुदायों के लिए एक उदार देश रहा है तथा बना रहेगा। भारत कई देशों की तुलना में शरणार्थियों के लिए अधिक कर रहा है, परन्तु न तो 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता है, और न ही इसके पास शरणार्थियों से सम्बद्ध घरेलू विधिक ढांचा है ।
  • हमारी न्यायपालिका ने पहले ही इस संदार्भ में मार्ग प्रशस्त किया है। 1996 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य को भारत में रहने वाले सभी मनुष्यों की रक्षा करनी है, चाहे उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी हो, क्योंकि वे अनुच्छेद 14, 20 और द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उपभोग करते हैं। इसके साथ ही न्यायपालिका ने यह कहा कि संविधान का 21 सभी को, सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए नहीं।
  • यह निश्चित ही चिंता का विषय है कि शरणार्थियों पर गौरवपूर्ण परंपराओं और महान प्रथाओं वाला देश कानूनी तौर पर न तो प्रतिबद्ध है और न ही शरणार्थियों के लिए कुछ भी करने के लिए बाध्य है, भले ही हम व्यवहार में मानवीय व्यवहार करें।
  • अब समय आ गया है कि सरकार शरणार्थी प्रबंधन पर एक नीति तैयार करे।

स्रोत: Indian Express

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2:
  • भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारतीय प्रवासी।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • भारत में शरणार्थी प्रबंधन पर नीति तैयार करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मिजोरम में वर्तमान शरणार्थी संकट के आलोक में इस कथन की चर्चा कीजिए।